Friday, March 29, 2024
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जब रावण ने शिव जी से मांगा था वरदान तब हुई थी Vaidyanath Jyotirlinga की स्थापना

नई दिल्ली. वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग Vaidyanath Jyotirlinga मंदिर जिसे बाबा बैद्यनाथ धाम के नाम से भी जाना जाता है और बैद्यनाथ धाम बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। वैद्यनाथ शिवलिंग का समस्त ज्योतिर्लिंगों की गणना में 9 वां स्थान बताया गया है। भगवान वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का मंंदिर जिस स्थान पर स्थित है, उसे ‘वैद्यनाथ धाम’ कहा जाता है। यह स्थान झारखंड प्रान्त, पूर्व में बिहार प्रान्त के सन्थाल परगना के दुमका नामक जनपद में पड़ता है।

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का इतिहास (History of Vaidyanath Jyotirlinga)

Vaidyanath Jyotirlinga वैद्यनाथ लिंग की स्थापना के सम्बन्ध में लिखा है कि एक बार राक्षसराज रावण ने हिमालय पर स्थिर होकर भगवान शिव की घोर तपस्या की। उस राक्षस ने अपना एक-एक सिर काट-काटकर शिवलिंग पर चढ़ा दिये। इस प्रकिया में उसने अपने नौ सिर चढ़ा दिया और दसवें सिर को काटने के लिए जब वह उद्यत (तैयार) हुआ, तब तक भगवान शंकर प्रसन्न हो उठे। प्रकट होकर भगवान शिव ने रावण के दसों सिरों को पहले की ही भांति कर दिया। उन्होंने रावण से वर मांगने के लिए कहा।

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रावण ने भगवान शिव से कहा कि मुझे इस शिवलिंग को ले जाकर लंका में स्थापित करने की अनुमति प्रदान करें। शंकरजी ने रावण को इस प्रतिबन्ध के साथ अनुमति प्रदान कर दी कि यदि इस लिंग को ले जाते समय रास्ते में धरती पर रखोगे, तो यह वहीं स्थापित हो जाएगा। जब रावण शिवलिंग को लेकर चला, तो मार्ग में ‘चिताभूमि’ में ही उसे पेशाब आ गया। उसने उस लिंग को एक अहीर को पकड़ा दिया और लघुशंका से निवृत्त होने चला गया। इधर शिवलिंग भारी होने के कारण उस अहीर ने उसे भूमि पर रख दिया।

वह लिंग वहीं  स्थापित हो गया। वापस आकर रावण ने काफ़ी ज़ोर लगाकर उस शिवलिंग को उखाड़ना चाहा, लेकिन वह असफल रहा। अन्त में वह निराश हो गया और उस शिवलिंग पर अपने अंगूठे को गड़ाकर (अंगूठे से दबाकर) लंका के लिए ख़ाली हाथ ही चल दिया। इधर ब्रह्मा, विष्णु इन्द्र आदि देवताओं ने वहां पहुंच कर उस शिवलिंग की विधिवत पूजा की। उन्होंने शिव जी का दर्शन किया और लिंग की प्रतिष्ठा करके स्तुति की। उसके बाद वे स्वर्गलोक को चले गये।

 मनुष्य को उसकी इच्छा के अनुकूल फल देने वाला वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग

यह वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग Vaidyanath Jyotirlinga मनुष्य को उसकी इच्छा के अनुकूल फल देने वाला है। इस वैद्यनाथ धाम में मंदिर से थोड़ी ही दूरी पर एक विशाल सरोवर है, जिस पर पक्के घाट बने हुए हैं। भक्तगण इस सरोवर में स्नान करते हैं। यहां तीर्थपुरोहितों (पण्डों) के हज़ारों घाट हैं, जिनकी आजीविका मंदिर से ही चलती है। परम्परा के अनुसार पण्डा लोग एक गहरे कुएं से जल भरकर ज्योतिर्लिंग को स्नान कराते हैं। अभिषेक के लिए सैकड़ों घड़े जल निकाला जाता हैं। उनकी पूजा काफी लंबी चलती है। उसके बाद ही आम जनता को दर्शन-पूजन करने का अवसर प्राप्त होता है।

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यह ज्योतिर्लिंग रावण के द्वारा दबाये जाने के कारण भूमि में दबा है और उसके ऊपरी सिरे में कुछ गड्ढा सा बन गया है। फिर भी इस शिवलिंग मूर्ति की ऊंचाई लगभग ग्यारह अंगुल है। सावन के महीने में यहां मेला लगता है और भक्तगण दूर-दूर से कांवर में जल लेकर बाबा वैद्यनाथ धाम (देवघर) आते हैं। वैद्यनाथ धाम में अनेक रोगों से छुटकारा पाने के लिए भी बाबा का दर्शन करने श्रद्धालु आते हैं। ऐसी प्रसिद्धि है कि श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की लगातार आरती-दर्शन करने से लोगों को रोगों से मुक्ति मिलती है।

मंदिर का मुख्य आकर्षण केंद्र

वैद्यनाथधाम (देवघर) के मुख्य मन्दिर का चित्र, देवघर का शाब्दिक अर्थ है देवी-देवताओं का निवास स्थान। देवघर में बाबा भोलेनाथ का अत्यन्त पवित्र और भव्य मन्दिर स्थित है। हर साल सावन के महीने में स्रावण मेला लगता है जिसमें लाखों श्रद्धालु “बोल-बम!” “बोल-बम!” का जयकारा लगाते हुए बाबा भोलेनाथ के दर्शन करने आते है। ये सभी श्रद्धालु सुल्तानगंज से पवित्र गंगा का जल लेकर लगभग सौ किलोमीटर की अत्यन्त कठिन पैदल यात्रा कर बाबा को जल चढ़ाते हैं।

मंदिर के पास में स्थित पवित्र तालाब का चित्र

मंदिर के पास ही एक विशाल तालाब भी स्थित है। बाबा बैद्यनाथ का मुख्य मन सबसे पुराना है जिसके आसपास अनेक अन्य मन्दिर भी बने हुए हैं। बाबा भोलेनाथ का मन्दिर माँ पार्वती जी के मन्दिर से जुड़ा हुआ है।

कब करें यात्रा वैद्यनाथ धाम 

वैद्यनाथ धाम की पवित्र यात्रा श्रावण मास (जुलाई-अगस्त) में शुरू होती है। सबसे पहले तीर्थ यात्री सुल्तानगंज में एकत्र होते हैं जहां वह अपने-अपने पात्रों में पवित्र गंगाजल भरते हैं। इसके बाद वे गंगाजल को अपनी-अपनी कांवर में रखकर बैद्यनाथ धाम और वासुकीनाथ की ओर बढ़ते हैं। पवित्र जल लेकर जाते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि वह पात्र जिसमें जल है, वह कहीं भी भूमि से न सटे।

वासुकिनाथ मंदिर

वासुकिनाथ अपने शिव मंदिर के लिये जाना जाता है। वैद्यनाथ मंदिर की यात्रा तब तक अधूरी मानी जाती है जब तक वासुकिनाथ में दर्शन नहीं किये जाते। (यह मान्यता हाल फ़िलहाल में प्रचलित हुई है। पहले ऐसी मान्यता का प्रचलन नहीं था। न ही पुराणों में ऐसा वर्णन है।) यह मन्दिर देवघर से 42 किलोमीटर दूर जरमुण्डी गाँव के पास स्थित है। यहाम पर स्थानीय कला के विभिन्न रूपों को देखा जा सकता है। इसके इतिहास का सम्बन्ध नोनीहाट के घाटवाल से जोड़ा जाता है। वासुकिनाथ मन्दिर परिसर में कई अन्य छोटे-छोटे मन्दिर भी हैं।

कैसे पहुंचे
यह जसीडीह रेलवे स्टेशन से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर पड़ता है और सड़क मार्ग से भी यहां पहुंचने की अच्छी व्यवस्था है।

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Komal Mishra

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