Thursday, March 28, 2024
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Singapore Diary 2: ‘जब पहली बार बोली- मैं इंडिया से आई हूं’

विमान से बाहर निकलते हुए सिंगापोर एयरलाइन्स की विमान परिचारिकाओं ने बड़ी गर्मजोशी से बाय कहा। मुझे उनकी पहनी हुई यूनिफार्म बड़ी पसंद आई। ये नीले रंग की प्रिंटेड लॉन्ग स्कर्ट और लॉन्ग ब्लाउज था जिसे सिंगापुर में कुरुंग कहते है। विमान से उतरकर कैरेज वे से आते हुए अन्य विमान नज़र आ रहे थे जिसमे ज्यादातर सिंगापोर एयरलाइन्स के ही विमान थे। देखने से ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी छोटे शहर का एयरपोर्ट हो। हम टर्मिनल 2 पर उतरे थे।

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सिंगापुर का चांगी एयरपोर्ट काफी खाली खाली था। बाहर सड़क पर देखने पर ऐसा लगता था कि जैसे मैं मुंबई में हूँ। एयरपोर्ट पर तरह तरह के ईटिंग जॉइंट्स थे जिसमे ज्यादातर में चाइनीज़ खाना ही मिल रहा था। साथ ही मनी चेंजर और लोकल सिम खरीदने के लिए भी कियोस्क थे।

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हमारा ड्राइवर हमें लेने के बाद एयरपोर्ट के टर्मिनल 3 पर गया जहाँ से उसे एक और पैसेंजर को लेना था। तब मुझे अंदाज़ा हुआ कि चांगी एयरपोर्ट कितना बड़ा था। सिंगापोर टेक्नोलॉजी के मामले में काफी उन्नत है, ये बात मुझे पहले ही पता थी लेकिन अब एक एक करके मेरे सामने हैरान कर देने वाली टेक्नोलॉजी आने लगी थी।

एयरपोर्ट से होटल जाते हुए चौड़ी और साफ़ सड़के, उस पर अपनी लेन में स्मूथली चलता ट्रैफिक और दुनिया की बेहतरीन गाड़ियां। कुछ गाड़ियां तो ऐसी थी जो अभी भारत में लॉन्च ही नहीं हुई हैं, और वहां वो टैक्सी के रूप में चल रही थीं। मैं खुद मर्सिडीज में बैठी थी। मिड लेवल गाड़ियां जैसे सैंट्रो ज़िंग, आल्टो, वैगन आर, आई टेन का तो वहां नामो निशान नहीं था। वहां ज्यादातर ऐसी गाड़ियां थीं जो बहुत कम माइलेज देती है जबकि वहां भी पेट्रोल का दाम भारत से कोई कम नहीं था।

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वहां मैंने आई 40, क्रिसलर, किआ जैसी गाड़ियां टैक्सी के रूप में देखी जिनका भारत में कोई शोरूम ही नहीं है। एयरपोर्ट से होटल तक की लगभग 25 मिनट की यात्रा में मुझे कहीं भी एक भी ट्रैफिक पुलिस कर्मी नज़र नहीं आया। मैंने जब ड्राइवर से इस बारे में पूछा तो उसने बताया कि यहाँ सब जगह कैमरे लगे हैं फिर ट्रैफिक पुलिस कर्मी का क्या काम?  लेकिन अगर दुर्भाग्य से कोई हादसा हो जाता है तो पुलिस सिर्फ दो मिनट में हादसे की जगह पहुँच जाती है। सड़क पर जगह जगह हरे और नीले रंग के बिलकुल वैसे ही साइन बोर्ड लगे थे जैसे भारत की सड़कों पर लगे होते हैं। उन्हें देख कर समझ आया कि भारत में विदेशी टेक्नोलॉजी यूँ की यूँ चिपका दी जाती है।

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मर्सिडीज़ वैन में हमारे साथ एक अन्य मुसाफिर भी थी जो फिलीपींस से बिज़नेस ट्रिप पर आई थी। उसके भाई भाभी दो घंटे पहले ही सिंगापोर पहुँच चुके थे। वो दूसरी बार सिंगापोर आ रही थी। जब उसने मुझसे मेरे बारे में पूछा तो मैंने इंडिया कहा। पहली बार ऐसा हुआ था कि मैंने अपने देश का नाम लिया था।

 

इससे पहले तो भारत में कहीं भी जाते थे तो सिर्फ दिल्ली कहने भर से काम चल जाता था। सच कहूँ तो उस समय मुझे सही मायनों में भारतीय होने का और अपने विदेश में होने का अहसास हुआ। वहां के लोगों से बात करने के लिए अंग्रेजी जानना बहुत ज़रूरी था। उस पर उनका अंग्रेजी डाइलेक्ट बिलकुल अलग था। हम भारतीय बिलकुल अलग तरह की अंग्रेजी बोलते है। उनका डाइलेक्ट पकड़ने में मुझे भी कुछ वक़्त लगा।

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मसलन उनकी ज़ुबान पर ‘ट ‘ और ‘ड’ अक्षर है ही नहीं।  वो total को ‘तोतल’ कहेंगे और हमारे यहाँ तो ‘तोतल’ का मतलब ही कुछ और ही हो जाता है। इसी तरह वो लोग madam को ‘मदाम’ कहते है और studied को ‘स्तादिद’ इसलिए मैंने भी एक फार्मूला अपनाया। बातचीत में जहाँ भी वो ‘त’ और ‘द’ लगाते वहां मैं मन ही मन ‘ट’ और ‘ड’ लगा लेती और आराम से उनकी बात का मतलब समझ जाती।

पारुल जैन से संपर्क करें paruljain1975@gmail.com

Parul Jain

घुमन्तु स्वतन्त्र पत्रकार और मीडिया एजुकेटर

2 thoughts on “Singapore Diary 2: ‘जब पहली बार बोली- मैं इंडिया से आई हूं’

  • Abhishek Jain

    Its look like that I am traveling to Singapore. When I read Each and every word of your post it feels like I am in Singapore. Phenomenal writing.

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