Thursday, March 28, 2024
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Solang Valley : मैं बनना चाहता था शम्मी कपूर लेकिन कहानी उल्टी पड़ गई!

Solang Valley and Manali Travel Blog | My First Skiing Experience | 2013 जा रही है, 2014 आ रहा था… हम मनाली ( Manali ) में थे. बात कोई 30 दिसंबर 2013 की है. मनाली ( Manali ) में हम पहुंचे ही थे कि बर्फबारी शुरू हो गई. हम होटेल रूम में किसी तरह पहुंचे. होटेल से सामने पहाड़ का नजारा देखते ही बनता था. जिंदगी में पहली बार मैंने बर्फ से ढका पहाड़ आंखों से देखा था. पता नहीं कितनी देर तक मैं उसे ही देखता रहा. ध्यान तब टूटा जब सुबह का ब्रेकफास्ट दरवाजे पर दस्तक दे रहा था.

जितना शानदार मौसम था, उतना ही शानदार था वो ब्रेकफास्ट. मैं सचमुच खुद को सातवें आसमान पर समझ रहा था. हम प्रकृति के नजारे लेने लगे. ब्रेकफास्ट बाल्कनी में ही किया. दरअसल, हमारा जो होटेल था, वह सेब के बाग में था. हालांकि उस वक्त सेब के पेड़ों पर सेब तो नहीं थे लेकिन ये सुनना ही कि वो सेब के पेड़ है, मन को कौतुहल से भर दे रहा था.

मैंने पहाड़ देखा, सेब के एक एक पेड़ को देखा, वहां के घर देखें, आते जाते लोगों को देखा. फिर हम तैयार हुए और चल दिए घुमक्कड़ी के लिए. गाड़ी होटेल से ही मिल गई थी. ड्राइवर भी स्थानीय ही थे, सो वह एक एक चीज बताते चल रहे थे. वो क्या है न, अपना दिल थोड़ा खुला हुआ है इसलिए सब अच्छे ही लगते हैं.

ड्राइवर ने गाड़ी सोलांग वैली (Solang Valley) की तरफ घुमा ली थी. हम पीछे बैठे बैठे बाहर के नजारे ले रहे थे और वह भाई साहब हमें कभी बर्फ के बारे में बताते और कभी वहां के एडवेंचर स्पोर्ट्स के बारे में. मैं सोचने लगा कि कुछ तो करेंगे ही… हम आपस में बात करके तय करते इससे पहले गाड़ी एक शॉप के सामने रुक गई. ड्राइवर ने हमसे जोर देकर कहा कि स्कीइंग करिए सर… बर्फ में बहुत मजा आएगा.

हम सोचते इससे पहले एक दूसरा शख्स, शायद वो दुकान से जुड़ा हुआ था, तमाम तस्वीरें (स्कीइंग करते हुए लोगों की) लेकर आया और हमें दिखाने लगा. ये देखिए सर… बर्फ में शानदार तस्वीरें, लाइफ टाइम एक्सपीरिएंस है सर, स्कीइंग करते हुए क्या मजा आएगा सर. मैंने तस्वीरें देखी भर थीं कि खुद को ‘याहू चाहे कोई मुझे जंगली कहे’ का शम्मी कपूर समझने लगा. मैंने सोचा शम्मी कपूर ने जो काम बिना स्कीइंग के किया मैं स्कीइंग से करके दिखाउंगा.

बस फिर क्या था, मैंने पूछा कितने की किट पड़ेगी? उन्होंने कहा- 3500 की… ये सुनते हीृ ट्रैवल पैकेज कॉस्ट, दिल्ली में कैब कॉस्ट और एक एक खर्चे मेरी आंखों के सामने तैरने लगे. लेकिन वो क्या था न… बात दिल पे ले ली थी. मैंने भी जेब से पैसे निकाले और ले डाली किट. चेंज किया और चल पड़े सोलांग वैली की तरफ. जो मुझे किसी परिकथा के स्थान जैसे जान पड़ रही थी.

सोलांग वैली से कुछ किलोमीटर पहले ही हम पहुंचे थे कि गाड़ियों का लंबा काफिला दिखाई दिया. लौटने वाले पैदल आते दिखाई दिए और जाने वाले पैदल ही जाते. ड्राइवर ने कहा कि आप चलते रहिए, मैं ट्रैफिक खुलते ही रास्ते में आपको मिल जाउंगा… और अगर जाम नहीं खुला तो वापसी में कॉल करना. हम निकले और चल दिए.

हमने चलना शुरू ही किया था कि एक जगह बर्फ की ढलान थी. उसे पार करने की कोशिश में हम यूं रपटे कि 3-4 मिनट उठे ही नहीं… और जब उठे तो सामने पहाड़ की ऐसी खूबसूरती थी कि सचमुच वो परिकथा से कहीं से भी कमतर नहीं थी. मैं सामने पहाड़ देखता, कभी दूर गगन से आता पैराशूट… लोग यूं मस्त थे जैसे वो एक अलग ही दिव्यलोक जान पड़ रहा था.

फिर हमने उन लोगों को भी देखा जो हमारी तरह ही स्कीइंग करने में जुटे थे. हमने शुरुआत की… लेकिन ये क्या… ये तो एक्सपेक्टेशन Vs रिएलिटी वाली कहानी हो गई. स्कीइंग से पहाड़ पर शम्मी कपूर बनना तो दूर हम तुषार कपूर भी नहीं बन पा रहे थे. एक कदम फिसलने में बर्फ में हमारे पसीने छूट गए. लगभग आधे घंटे कोशिश की… थक गए, बैठ गए, उठे फिर कोशिश की लेकिन फिर समझ गए… ये वो सपना था, जो सपना ही रहने वाला है.

अब ट्रिप को यादगार तो बनाना ही था सो वहां एक भुट्टे वाले भैया दिखाई दिए. पहुंच गए उनके पास भुट्टा खाने. दरअसल, वो भुट्टा नहीं, स्वीट कॉर्न था. स्वीट कॉर्न लिया, पैसे दिए लेकिन अपने अंदर तो खुजली है, पूछ बैठे भैया कहां से हो. वो भी निकले हमारे ही जिले से. बस फिर क्या था. हमने ये पूछा कि इतनी दूर से यही जगह मिली थी कमाने के लिए. वो बोले कई सालों से हैं. रोटी के लिए कहीं तो जाना ही था, तो यहीं आ गए.

फिर एक फोटोग्राफर को पकड़ा. उससे तस्वीरें खिंचवाई. ऐसे जैसे हम ही है स्कीइंग के बादशाह. हमसे बड़ा न कोई प्लेयर था, न होगा. कई ऊपर करके, कभी कंधे पर रखकर, कभी फिसलने का पोज देकर. हम एक पोज मारते, फोटोग्राफर तीन चार तो ऐसे ही मरवा देता. बाद में समझ आया कि हमारी तकलीफ के असली मजे तो वही ले उड़ा.

कुछ घंटे वहीं रहे, फिर ड्राइवर की याद आई. फोन घुमाया. पास ही था वो भी. हमें तो ऐसा लगा कि हम कहां जाएं उससे ज्यादा वही जानता था कि हम कहां जा सकते हैं. मानों हमारे एक एक कदम में रडार फिट किया हुआ था उसने. ये भी टैलेंट है इन ड्राइवर लोगों का. फिर वो दुकान भी आ गई, जहां से हमने स्कीइंग की किट ली थी. जब वो हमें चेंज दे रहा था, यकीन मानों दोस्तों कलेजे पर सांप लोट रहा था.

तो शिक्षा यही कि सफर में किसी और के बहकावे में न आएं. अपनी अकल लगाएं. यो कला आती हो उसी में हाथ आजमाएं, जनहित में जारी…

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