Tribe Eat dead human brain :  दुनिया में न जाने कितने कबीले और जनजातियां हैं. कई तो खत्म हो गई हैं, तो कुछ आज भी अपनी परंपराओं के साथ जिंदगी को जी रही हैं. आज हम आपको बताएंगे एक ऐसी ही जनजाति के बारे में जिसमें मृत शख्स के दिमाग को खाने की परंपरा है. ये बेशक आपको बेहद अजीब लगे लेकिन बात सौ फीसदी सच है. (Tribe Eat dead human brain) पापुआ न्यू गिनी में लगभग 312 जनजातियां रहती हैं. यहां रहने वाले इंसान आम व्यक्ति से थोड़े अलग हैं. अंतिम संस्कार के वक्त इस जनजाति में इंसान का दिमाग खाने की प्रथा थी.

फोर जनजाति खाते थे मृतक रिश्तेदारों का मांस || Four tribes used to eat the flesh of dead relatives

फोर जनजाति एक ऐसी जनजाति है. इस जनजाति में जब कोई अंतिम संस्कार होता था, तो वहां इस तरह की दावतें होती थीं. जहां पुरुष अपने मृतक रिश्तेदारों का मांस खाते थे. (Tribe Eat dead human brainइस जनजाति का मानना था कि अगर शरीर को दफनाया जाता है तो इसे कीड़े खाते हैं. इससे बेहतर तो ये है कि शरीर को वे लोग खाएं जो मृतक से प्यार करते हैं. फोर जनजाति में जब कोई अंतिम संस्कार होता था, तो वहां दावतें होती थीं. जहां पुरुष अपने मृतक रिश्तेदारों का मांस खाते थे, जबकि महिलाएं उनका दिमाग खाया करती थी.

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महिलाएं मानव मस्तिष्क खाया करती थी || women used to eat human brain

इतना ही नहीं बल्कि महिलाएं, दिमाग को निकालकर उसमें फर्न मिलाती और फिर इसे बांस में पकाया जाता था. पित्ताशय को छोड़कर सब कुछ भूनकर खा लिया जाता था लेकिन इस जनजाति को यह नहीं पता था कि मानव मस्तिष्क में एक घातक अणु होता है, जो खाए जाने पर मौत का कारण बनता है.

वैज्ञानिकों ने की रिसर्च || Scientists did Research

वहीं, अंतिम संस्कार के वक्त इस जनजाति में इंसान का दिमाग खाने की प्रथा ब्रिटेन और पापुआ न्यू गिनी के वैज्ञानिक फोर जनजाति के लोगों पर रिसर्च किया गया. रिसर्च से पता चला है कि ये (Tribe Eat dead human brain)  आदिवासी जिनके आहार में उनके मृत रिश्तेदारों का दिमाग भी शमिल था. इन्होंने कुरु नाम की बीमारी के लिए आनुवंशिक प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली है.

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1950 के दशक में कुरु के प्रकोप के बाद, न्यू गिनी में मानव मस्तिष्क खाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. बीमारी तब गायब होने लगी थी. हालांकि, जनजाति की जांच करने वाले वैज्ञानिकों ने अब पता लगाया है कि फोर जनजाति की दिमाग-खाने की आदतों की वजह से कुरु और प्रायन की वजह से होने वाली अन्य बीमारियों के लिए आनुवंशिक प्रतिरोधक क्षमता का विकास हुआ हैाय