भारत देश को प्राचीनकाल से ही चमत्कारों और आस्था का देश कहा जाता है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक कई चमत्कारिक मंदिर और गुफाएं आपको देखने को मिल जाएंगी। ऐसा ही एक मंदिर है जिसे लोग किराड़ू मंदिर ( Kiradu Temple ) हैं। ये मंदिर धोरों के गढ़ बाड़मेर, राजस्थान में स्थित है। किराड़ू मंदिर ( Kiradu Temple ) को राजस्थान का खजुराहो भी कहा जाता है।

खम्भों के सहारे निर्मित यह मंदिर भीतर से दक्षिण के मीनाक्षी मंदिर की याद दिलाता है, तो इसका बाहरी आवरण खजुराहो का रंग लिए हैं। काले व नीले पत्थर पर हाथी-घोड़े व अन्य आकृतियों की नक्काशी मंदिर की कलात्मक भव्यता को दर्शाती है। किराडू मुख्यतः पांच मंदिरों की एक भव्य श्रृंखला है। जिसमे से एक भगवान विष्णु का है बाकी भगवान शिव के हैं।

इससे पहले किराड़ कोट के नाम से प्रसिद्ध ये जगह मूलतः किराड़ वंश के राजपूतों द्वारा बसाई गयी थी। छठवीं से आठवीं शताब्दी के बीच अपने ऐश्वर्य-शाली वैभव के चरमोत्कर्ष पर पहुंचा ये शहर उस समय विदेशी लुटेरों के लिए एक किंवदंती के रूप में प्रसिद्ध था।किराडू पर शासन करने वाले राजपूत दरअसल चालुक्यों के सामंत थे। चालुक्य वंशीय राजाओं का शासन उस समय सौराष्ट्र और गुजरात क्षेत्र में था यही वजह थी कि किराडू पर उस समय गुजराती संस्कृति कि स्पष्ट छाप थी जो आज भी दिखाई देती है।

कहाँ स्तिथ है यह मंदिर ( Where it is situated ? )

दक्षिण भारतीय शैली में बना किराड़ू का मंदिर अपनी स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध है।बाड़मेर से 43 किलोमीटर दूर हात्मा गांव में ये मंदिर है। किराड़ू प्राचीन मंदिर, पांच मंदिरों का एक समूह है।जो बाड़मेर से 39 किलोमीटर की दूरी  पर हाथमा गाँव में स्थित है । 1161 के एक शिलालेख से पता चलता है की हाथमा को पहले किरतकूप के नाम से भी जाना जाता था। जो पहले पनवारा वंश की राजधानी भी थी।

ये पांच मंदिरों का एक समूह है ( Group of five temples )

किराड़ू का ये भव्य प्राचीन मंदिर, पांच मंदिरों का एक समूह है। यहाँ के पाँचों मंदिरों में सोमेश्वर मंदिर सबसे बड़ा है और इस मनीर को 11वीं शताब्दी में बनाया गया था ये  मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। एक बहु बुर्जदार टॉवर और विभिन्न हिंदू देवी देवताओं की मूर्तियां भी इस मंदिर में मौजूद हैं।

मंदिर के भीतरी कक्ष में भगवान का एक चित्र है, जबकि मंदिर का आधार एक रिवर्स वक्र कमल है। यहाँ मौजूद अन्य चार मंदिर विष्णु और शिव को समर्पित है। महाकाव्य रामायण से कई सारे चित्रों को इस मंदिर के लिए लिया गया है जिनकी झलक यहाँ मंदिर की दीवारों और मूर्तियों में देखने को मिलती है। साथ ही इस मंदिर में अप्सराओं के भी कई सारे चित्र मौजूद हैं।

कैसे एक साधु के श्राप ने इस मंदिर को पत्थरों की नगरी में तब्दील कर दिया

इस मंदिर के विषय में एक किवदंती बड़ी मशहूर है जो इसे और मंदिरों से अलग बनती है ।  इस इलाके के स्थानीय लोगों की माने तो  एक साधु के श्राप ने इस मंदिर को पत्थरों की नगरी में बदल दिया। ऐसा माना जाता है कि कई सालों पहले यहां एक साधु अपने शिष्य के साथ रहता था। एक बार वह  भिक्षा के लिए कहीं गया था लेकिन उसने अपने शिष्य को इस भरोसे आश्रम में ही छोड़ा था कि गांववाले उसकी सेवा ठीक उसी प्रकार करेंगे जैसे वो उसकी करते हैं। लेकिन हुआ ठीक इसके विपरीत, सिवाए एक कुम्हारन के किसी ने भी उसकी सुध न ली इस कारण शिष्य की तबियत खराब हो गयी और वो बहुत कमज़ोर हो गया।

जब साधु वापस लौटा तो शिष्य को बीमार देखकर वह बहुत ज्यादा क्रोधित हुआ। क्रोध में आकर उसने शाप दिया कि जिस स्थान के निवासियों में दया और करुणा की भावना न हो वहां जीवन का क्या मतलब, इसलिए यहां के सभी लोग पत्थर के हो जाएं और पूरा शहर बर्बाद और तहस नहस हो जाए।

साधू के इस श्राप के बाद देखते ही देखते वहां के सभी निवासी पत्थर के हो गए। बस वो कुम्हारन बाख गयी, जिसने साधू के चहिते  शिष्य की सेवा की थी। साधु ने उस कुम्हारन से कहा कि तेरे ह्रदय में दूसरों के लिए करुणा और ममता है इसलिए तू यहां से चली जा। साथ में साधू ने उस औरत को ये चेतावनी भी दी कि जाते समय पीछे मुड़कर बिलकुल नहीं देखना वरना तू भी इन सब कि तरह पत्थर की हो जाएगी।

इतना सुनते ही कुम्हारन वहां से तुरंत भाग गयी, जब वो वहां से वापस जा रही थी तो जाते वक़्त उसके मन में अचानक एक विचार आया कि क्या सच में किराडू के लोग पत्थर के हो गए हैं? यह देखने के लिए वह जैसे ही पीछे मुड़ी वह खुद भी पत्थर की मूर्ति में तब्दील हो गयी। आज भी पास ही में स्थित सिहाणी गांव के नजदीक कुम्हारन की वह पत्थर की मूर्ति आज भी अपने उस डरावने अतीत को बयां करती दिखाई देती है। 

किराडू मंदिर खुलने एवं बन्द होने का समय ( Time for the temple to open and close )

किराडू मंदिर पर्यटकों के घूमने के लिए प्रतिदिन सुबह 9.00 बजे से शाम 6.00 बजे तक खुला रहता है और आपकी जानकारी के लिए बता दे किराडू मंदिर की पूर्ण और विस्तृत यात्रा के लिए 1-2 घंटे का समय निकालकर मंदिर की यात्रा सुनिश्चित करें। किराडू मंदिर में पर्यटकों के घूमने के लिए कोई प्रवेश शुल्क नही है यहाँ आप बिना किसी एंट्री फीस का भुगतान किये घूम सकते हैं। 

हवाई जहाज़ से कैसे पहुंचे किराडू मंदिर ( How to reach Kiradu temple by plane )

अगर आप हवाई मार्ग से किराडू मंदिर बाड़मेर की यात्रा करना चाहते हैं तो हम आपको बता दें कि बाड़मेर का निकटतम हवाई अड्डा जोधपुर हवाई अड्डा है जो बाड़मेर से लगभग 220 किमी की दूरी पर स्थित है। जोधपुर हवाई अड्डा  के लिए दिल्ली, मुंबई, जयपुर और उदयपुर से लगातार उड़ानें उपलब्ध हैं। हवाई अड्डे से किराडू मंदिर बाड़मेर जाने के लिए आप  टैक्सी, केब या बस से यात्रा कर सकते हैं। 

ट्रेन यात्रा द्वारा कैसे पहुंचे किराडू मंदिर ( How to reach Kiradu temple by train )

अगर आप किराडू मंदिर की यात्रा ट्रेन द्वारा करना चाहते हैं तो हम आपको बता दें कि किराडू मंदिर का निकटतम रेलवे स्टेशन बाड़मेर रेलवे स्टेशन है जो जोधपुर और अन्य प्रमुख शहरों से रेल मार्ग द्व्रारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। तो आप ट्रेन से यात्रा करके बाड़मेर रेलवे स्टेशन पहुंच सकते है और रेलवे स्टेशन से किराडू मंदिर जाने के लिए आप टैक्सी, ऑटो या अन्य स्थानीय वाहनों की मदद ले सकते हैं।

सड़क मार्ग से कैसे पहुंचे किराडू मंदिर ( How to reach Kiradu temple by road )
अगर आप सड़क मार्ग से बाड़मेर की यात्रा करना चाहते हैं तो बता दें कि बाड़मेर बस टर्मिनल रेलवे स्टेशन के पास स्थित है। बाड़मेर के लिए आपको जोधपुर, जयपुर, उदयपुर सहित राज्य के अधिकांश शहरों से बसें मिल जायेंगी। उसके अलावा आप टैक्सी, केब या अपनी निजी कार के माध्यम से भी किराडू मंदिर पहुंच सकते हैं।