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धराली गांव में फटा बादल: एक प्राकृतिक आपदा जिसने मचाई तबाही

उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले का धराली गांव एक बार फिर प्राकृतिक आपदा का शिकार हुआ है. 5 अगस्त 2025 को यहां बादल फटने से भारी तबाही हुई, जिसने इस खूबसूरत घाटी को अंधकार में डुबो दिया. इस घटना ने केवल धराली ही नहीं बल्कि आसपास के इलाकों को भी अपनी चपेट में ले लिया। तेज बारिश और अचानक आई बाढ़ ने इस छोटे से कस्बे को पल भर में मलबे और पानी के तेज बहाव के साथ तहस-नहस कर दिया.

धराली, जो गंगोत्री धाम के रास्ते में लगभग 20 किलोमीटर दूर स्थित है, एक महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल और तीर्थयात्रियों का पड़ाव भी है.लेकिन इस प्राकृतिक प्रकोप ने इसे तबाह कर दिया. स्थानीय लोगों की रिपोर्ट के मुताबिक, इस बादल फटने की आपदा में लगभग 50 से अधिक लोग लापता हैं, जिनमें कई की जान जाने की आशंका जताई जा रही है। तेज बहाव के कारण कई घर, होटल, दुकानें और वाहन मलबे में दब गए। बचाव एवं राहत कार्य चल रहे हैं, लेकिन रास्तों के अवरुद्ध होने के कारण राहत अभियान में कई चुनौतियां सामने आ रही हैं.

धराली में बादल फटने की घटना का वैज्ञानिक कारण || The scientific reason for the cloudburst incident in Dharali.

बादल फटना, जिसे फ्लैश फ्लड या बादल टूटना भी कहा जाता है, एक प्राकृतिक आपदा है जो अचानक और तीव्र बारिश के कारण होती है. विशेष रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में, जहां घाटियां संकरी होती हैं, भारी बारिश के पानी का बहाव बहुत तेज होता है. इस तेज पानी के साथ-साथ मिट्टी और पत्थर भी बहाव में आ जाते हैं, जिससे भूस्खलन और मलबा भी आता है.ये घटनाएं अचानक आती हैं और इनके लिए चेतावनी देना मुश्किल होता है.

धराली की घटना में ऊपर के क्षेत्रों में ग्लेशियरों का पिघलना और लगातार हुई भारी बारिश ने मलबे को नालों में जमा कर दिया था. एक समय पर ये मलबा अचानक पानी के तेज बहाव के साथ नीचे की ओर लुढ़क पड़ा. इस बहाव की रफ्तार लगभग 15 मीटर प्रति सेकंड थी और मलबे के दबाव ने 250 किलोपास्कल का प्रेशर उत्पन्न किया, जिससे नीचे स्थित मकान, होटल और दुकानें ताश के पत्तों की तरह गिर गईं. इस आपदा की तीव्रता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पल-पल में यह विनाशकारी सैलाब धराली से आगे के गांवों तक फैल गया.

उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाएं सामान्य क्यों हैं || Why are cloudburst incidents common in Uttarakhand?

उत्तराखंड जैसी पहाड़ी प्रदेशों में मॉनसून के दौरान भारी बारिश सामान्य होती है। खासकर जुलाई-अगस्त के महीने में, जब मॉनसून की सक्रियता चरम पर होती है। इस मौसम में पहाड़ों पर जमा पानी अचानक भारी मात्रा में बहने लगता है. घाटियों की संकरी संरचना के कारण पानी का दबाव और बहाव दोनों अत्यधिक तीव्र हो जाते हैं। इसके परिणामस्वरूप बाढ़, भूस्खलन और बादल फटने जैसी घटनाएं होती हैं.

साथ ही, हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियरों का पिघलना भी इन आपदाओं को बढ़ाता है. ग्लेशियर तालाबों में जमा पानी का अचानक रिसाव भी बादल फटने की घटनाओं को जन्म देता है। ये प्राकृतिक प्रक्रियाएं तेज गति से होती हैं और आमतौर पर किसी पूर्व चेतावनी के बिना प्रलयकारी रूप ले लेती हैं.

धराली के बादल फटने से पहले और बाद में क्या हुआ || What happened before and after the cloudburst in Dharali

धराली में बादल फटने के तुरंत बाद पानी और मलबे ने तेजी से इलाके को घेर लिया। तीन-चार मंजिला इमारतें, होटल, दुकानें और घर भारी दबाव में ढह गए। स्थानीय लोग और पर्यटक घबराकर सुरक्षित स्थानों की ओर भागे, लेकिन तेज बहाव ने कई को फंसा दिया. राहत कार्यों में प्रशासनिक और आपदा प्रबंधन विभाग के कर्मी जुट गए। हेलीकॉप्टर और स्थानीय बचाव दल मदद के लिए भेजे गए, लेकिन भूस्खलन और सड़कों के टूटने के कारण रेस्क्यू ऑपरेशन कठिनाइयों से भरा रहा.

इस आपदा ने 2013 के केदारनाथ और 2021 के ऋषिगंगा आपदा की यादें ताजा कर दीं, जो इसी प्रकार की प्राकृतिक आपदाएं थीं। धराली की इस त्रासदी ने फिर से पहाड़ी क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदाओं से निपटने की जरूरत को उजागर किया है.

बादल फटने से बचाव के लिए क्या किया जा सकता है|| What can be done to prevent cloudburst?

मॉनिटरिंग सिस्टम: पहाड़ी क्षेत्रों में मौसम के लगातार मॉनिटरिंग और ग्लेशियर तालाबों की निगरानी आवश्यक है ताकि समय रहते चेतावनी जारी की जा सके.

आपदा प्रबंधन: आपदा के समय त्वरित बचाव और राहत कार्यों के लिए प्रभावी योजना और संसाधनों का होना जरूरी है.

स्थानीय जागरूकता: स्थानीय लोगों को आपदाओं के दौरान सुरक्षित रहने के उपाय और बचाव तकनीकों के बारे में जागरूक करना चाहिए.

पर्यावरण संरक्षण: पेड़ों की कटाई और अनियंत्रित निर्माण को रोकना, जिससे भूस्खलन के खतरे को कम किया जा सके.

धराली गांव में हुए बादल फटने की घटना ने फिर से यह दर्शाया है कि प्रकृति की ताकत कितनी भयंकर हो सकती है. पहाड़ी क्षेत्रों में ऐसे प्राकृतिक प्रकोप आम हैं, लेकिन हम उनकी चेतावनी और बचाव के लिए बेहतर तैयारी कर सकते हैं. धराली के पीड़ितों के लिए सरकार और स्थानीय प्रशासन को तत्परता से राहत एवं पुनर्निर्माण कार्य करना होगा ताकि इस त्रासदी के बाद यहां के लोग फिर से सुरक्षित जीवन जी सकें. इसके साथ ही हमें अपने पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा के लिए भी सजग रहना होगा ताकि इस तरह की आपदाओं से बचा जा सके.

Komal Mishra

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