Teerth Yatra

SwargaRohini – हिमालय का दिव्य शिखर जहां युधिष्ठिर को खुद लेने आए थे इंद्र!

SwargaRohini – हिमालय के दिव्य शिखर के दर्शन के लिए आपको कहीं जाने की जरूरत नहीं. ट्रैवल जुनून तस्वीर के जरिए आपको पूरी जानकारी देने जा रहा है. फोटो में सबसे बाईं तरफ स्वर्गारोहिणी ( SwargaRohini  ) शिखर है, मान्यता है कि पांचों पांडव द्रौपदी संग यहां से स्वर्ग जा रहे थे लेकिन स्वर्ग तक सिर्फ युधिष्ठिर पहुंच सके थे. बाकी पांडव बीच रास्ते में ही मृत्युलोक पहुंच गए थे. दूसरी तरफ दाई तरफ बंदरपूंछ ( BandarPunch ) शिखर है. खास बात ये है कि यमुना नदी का उद्गम बंदरपूंछ के पश्चिमी यमुनोत्री हिमनद से होता है और फोटो में काला नाग पर्वत जिसे ब्लैक पीक भी कहा जाता है, वह भी थोड़ा थोड़ा दिख रहा है, लेकिन वह बंदरपूंछ ( BandarPunch ) के पीछे छिपा हुआ है.

उत्तराखंड में बदरीनाथ मंदिर ( Badrinath Mandir ) के पीछे 40 किमी की दूरी पर स्वर्गारोहिणी ( SwargaRohini  ) स्थल है. महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद पांडव स्वर्गारोहिणी ( SwargaRohini  ) की तरफ गए थे. इस रास्ते में ही सबसे पहले द्रौपदी ने शरीर त्यागा. द्रौपदी के बाद, सहदेव, नकुल, अर्जुन और भीम शरीर त्यागते चले गए. इसके पश्चात, स्वर्ग के राजा इंद्र और मृत्यु के देवता यमराज अवतरित हुए और युधिष्ठिर को खुद देह सहित स्वर्ग ले गए.

Story of SwargaRohini

रामायण में एक कथा का जिक्र है. शिवजी से वरदान पाकर रावण बहुत अभिमानी और तीनो लोक में अजिंक्य बन गया था. मानव-असुर धरती पर यानी पृथ्वीलोक पर वास करते थे और देवतागण स्वर्गलोक में. इस दूरी को खत्म करने के लिए रावण ने पृथ्वी और स्वर्गलोक को जोड़ने वाला पुल तैयार कर दिया. बाद में, भगवान विष्णु ने उस पुल को ध्वस्त किया था. उस पुल की 14 सीढ़ियां अभी भी दिखाई देती हैं. इसी स्थान को स्वर्गारोहिणी के नाम से जाना जाता है.

रामायण की इसी कथा ने स्वर्गारोहिणी ( SwargaRohini  ) के महत्व को और बढ़ा दिया है. चार धाम की यात्रा के दौरान भगवान बदरी विशाल के दर्शन करने के बाद बड़ी संख्या में श्रद्धालु स्वर्गारोहिणी ( SwargaRohini  ) की तरफ जाते हैं. स्वर्गारोहिणी ( SwargaRohini  ) का इलाका सालभर बर्फ से ढका रहता है. ये मार्ग हिमखंडों से पटा रहता है और इसी वजह से इसके सफर में 3 दिन लग जाते हैं. यहां की खूबसूरती देखते ही बनती है. कहीं आपको झरने दिखाई देंगे तो कहीं दूर तक फैले हुए बुग्याल (मखमली घास के मैदान). यहां चारों ओर बर्फ से ढंकी पहाड़ियां आपको अनंत शांत वातावरण की अनुभूति कराएंगी.

बदरीनाथ धाम के धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल ने एक रिपोर्ट में कहा था कि स्वर्गारोहिणी की यात्रा अत्यंत विकट है लेकिन दिव्य आकर्षण की वजह से श्रद्धालु यहां खिंचे चले आते हैं. बदरीनाथ के आगे का क्षेत्र बदरीकाश्रम नाम से जाना जाता है. यह धरा परम पावन और पवित्र मानी जाती है. श्रीदत्तात्रेय, भगवान श्रीकृष्ण के भाई उद्धव, भगवान परशुराम, हनुमानजी और अन्य ऋषि-मुनी, चिरंजीव का विहार इसी परिसर में है. यह भूमि कितनी पवित्र मानी जाती है इसके पीछे एक विश्वास ये है कि आप धरती पर कहीं पर भी एक लाख बार ईश्वर का नाम लें और यहां आकर एक बार भगवान का नाम लें, ये एक समान है.

स्वर्गारोहिणी के रास्ते में जहां द्रौपदी ने देह त्यागा, वहां का एक नाम अन्य जगह के 10 लाख नाम के बराबर बताया जाता है. ऐसी मान्यता है कि सहदेव के यहां एक कोटी, नकुल की 10 कोटी, अर्जून की 100 कोटी और जहॉं भीम ने शरीर त्यागा था वहॉं का एक नाम इतरत्र 1 हजार कोटी नाम के बराबर है.

स्वर्गारोहिणी यात्रा के हैं 3 पड़ाव

स्वर्गारोहिणी की यात्रा बेहद दुर्गम है. बदरीनाथ धाम से 10 किलोमीटर दूरी पर लक्ष्मी वन है जो भोजपत्र का विशाल जंगल है. इसके आगे 10 किलोमीटर की दूरी पर चक्रतीर्थ है और फिर 6 किलोमीटर आगे सतोपंथ है. स्वर्गारोहिणी के दर्शन के लिए यहां से 4 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई होती है. प्राचीन काल में यहां आने वाले यात्री इन्हीं पड़ावों पर स्थित गुफाओं में रात्रि विश्राम करते थे. लेकिन अब यात्री टेंट साथ में लेकर आते हैं, और उसी में ठहरते हैं.

स्वर्गारोहिणी की यात्रा के लिए प्रशासन से इजाजत लेना जरूरी

स्वर्गारोहिणी जाने के लिए श्रद्धालुओं को जोशीमठ तहसील प्रशासन से अनुमति लेना जरूरी होता है. इसके साथ ही यहां जाने के लिए वन विभाग की परमिशन लेना भी आवश्यक है. ऐसा इसलिए क्योंकि यह क्षेत्र नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान के अंतर्गत आता है. वन विभाग स्वर्गारोहिणी के लिए प्रति यात्री 150 रुपये की फीस लेता है. यात्री को पोर्टर व गाइड की व्यवस्था के लिए अलग से राशि चुकानी होती है.

झील की परिक्रमा है खास

स्वर्गारोहिणी में 3 किलोमीटर व्यास की एक विशाल झील मौजूद है. श्रद्धालु स्वर्गारोहिणी पहुंचकर इस झील की परिक्रमा करना नहीं भूलते हैं. ऐसी मान्यता है कि इस झील की परिक्रमा करने से श्रद्धालुओं का पुण्य की प्राप्ति होती है.

 

Recent Posts

Karwa Chauth 2025: सरगी का समय, परंपराएं और सूर्योदय से पहले क्या खाएं

Karwa Chauth 2025:  करवा चौथ के दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और… Read More

1 day ago

Tripura Sundari Temple : 500 साल पुराना शक्तिपीठ जहां मां त्रिपुर सुंदरी आज भी देती हैं वरदान

Tripura Sundari Temple : पवित्र स्थलों में से एक है त्रिपुरा राज्य में स्थित माता… Read More

1 day ago

Diwali 2025 : घर की सफाई करते समय भूलकर भी न फेंके ये 5 चीजें, मां लक्ष्मी हो जाएंगी नाराज

Diwali 2025 :  दिवाली का पावन त्यौहार 20अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा. दिवाली के त्यौहार… Read More

2 days ago

Navi Mumbai International Airport : नवी मुंबई एयरपोर्ट आधुनिक और पारंपरिक भारतीय शैली का है अनोखा मिश्रण

Navi Mumbai International Airport : मुंबई भारत की आर्थिक राजधानी, जिसे "सिटी ऑफ ड्रीम्स" कहा… Read More

2 days ago

Unique Craft India : घर बैठे मंगवाए देशभर के Handicrafts! देश के अनोखे Strart Up को जानें

Unique Craft India : अगर आप देश के हैंडीक्राफ्ट के शौकीन है, तो एक ऐसा… Read More

3 days ago

Haunted Forts In India : ये हैं भारत के हॉन्टेड किले, जिनकी कहानी सुन कांप जाएगी रूह

Haunted Forts In India : भारत में कई खूबसूरत किले हैं. आज के आर्टिकल में… Read More

4 days ago