Tripura Sundari Temple : 500 साल पुराना शक्तिपीठ जहां मां त्रिपुर सुंदरी आज भी देती हैं वरदान
Tripura Sundari Temple : भारत की धरती देवी शक्ति की आराधना से सदा पवित्र रही है. देशभर में 51 शक्तिपीठ हैं, जिनमें से एक अत्यंत प्रसिद्ध और पूजनीय है त्रिपुरा राज्य का त्रिपुर सुंदरी मंदिर (Tripura Sundari Temple). इसे स्थानीय लोग मातारानी त्रिपुर सुंदरी, त्रिपुरेश्वरी माता या माताबाड़ी (Matabari) के नाम से भी जानते हैं. यह मंदिर उदयपुर (पुराना नाम – राधाकिशोरपुर) में स्थित है, जो त्रिपुरा की राजधानी अगरतला से लगभग 55 किलोमीटर दूर है.
यह मंदिर अपनी देवी त्रिपुर सुंदरी की दिव्य मूर्ति, पौराणिक कथा और तांत्रिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है. यहां आने वाले भक्तों को न केवल मां की आराधना से शांति और शक्ति का अनुभव होता है, बल्कि इस स्थल की भौगोलिक सुंदरता भी मन मोह लेती है.
माता त्रिपुर सुंदरी मंदिर का इतिहास प्राचीन काल से जुड़ा है. ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर लगभग 500 वर्ष पुराना है और इसे त्रिपुरा के महाराजा धर्ममानिक्य (Maharaja Dhanya Manikya) ने 1501 ईस्वी में बनवाया था.
निर्माण की कथा
कहा जाता है कि महाराजा धर्ममानिक्य को एक रात स्वप्न में माता त्रिपुर सुंदरी ने दर्शन दिए. माता ने आदेश दिया कि वे उदयपुर क्षेत्र में एक मंदिर बनवाएं और वहां उनकी मूर्ति की स्थापना करें.
राजा ने माता के आदेश का पालन करते हुए मंदिर का निर्माण करवाया. जब मूर्ति लाने के लिए प्रयागराज (इलाहाबाद) से शिला लाई गई, तो रास्ते में ही बैकुंठ धाम के पास बैल रुक गए और आगे बढ़ने से मना कर दिया. इसे माता का संकेत मानकर वहीं पर मंदिर की स्थापना की गई.
देवी सती की कथा से संबंध
पुराणों के अनुसार, त्रिपुर सुंदरी शक्तिपीठ उन 51 स्थानों में से एक है जहां माता सती के शरीर के अंग गिरे थे.
यहां माता सती का दायां पैर (Right Foot) गिरा था. इसलिए यह स्थल ‘त्रिपुर सुंदरी शक्तिपीठ’ कहलाया.
देवी के साथ यहां भगवान विष्णु के रूप में “त्रिपुरेश” की भी पूजा होती है.
मंदिर में स्थापित देवी की मूर्ति काले रंग की पत्थर की बनी हुई है, जो लगभग 5 फीट ऊंची है.
माता त्रिपुर सुंदरी चार भुजाओं वाली हैं — उनके एक हाथ में शंख, दूसरे में चक्र, तीसरे में कमल और चौथे में खड्ग है.
माता का चेहरा अत्यंत शांत, आकर्षक और सौंदर्य का प्रतीक माना जाता है.
उनके बगल में बाल रूप में छोटी मूर्ति है जिसे “चोटोमाई” कहा जाता है. इसे माता के बाल रूप की प्रतिमा माना जाता है. भक्त दोनों रूपों की पूजा करते हैं.
माता त्रिपुर सुंदरी मंदिर की वास्तुकला बंगाल और दक्षिण भारतीय शैली का सुंदर मिश्रण है.
मंदिर का ढांचा “एक चतुर्भुज आधार (Square base)” पर बना है, जिसमें ऊपर की ओर गोलाकार शिखर (Dome) है.
मुख्य गर्भगृह के चारों ओर सुंदर नक्काशी और छोटे-छोटे मंदिर बने हैं.
मंदिर के सामने एक विशाल कुंड (तालाब) है जिसे कालीकुंड (Kalyan Sagar Lake) कहा जाता है. इस तालाब में बड़ी संख्या में कछुए (Turtles) पाए जाते हैं, जिन्हें भक्त देवी का वाहन मानकर पूजा करते हैं और आटा या मिठाई खिलाते हैं.
त्रिपुर सुंदरी मंदिर को “उत्तर-पूर्व भारत का कामाख्या मंदिर” भी कहा जाता है, क्योंकि यह मंदिर तंत्र साधना और शक्ति उपासना का प्रमुख केंद्र है.
तांत्रिक शक्ति पीठ
देवी त्रिपुर सुंदरी को तंत्र साधना की अधिष्ठात्री देवी माना गया है. कहा जाता है कि यहां की साधना से साधक को “सिद्धि” प्राप्त होती है.
नवरात्रि और अमावस्या की रातों में यहां विशेष तांत्रिक अनुष्ठान किए जाते हैं.
शक्ति और सौंदर्य की प्रतीक
“त्रिपुर सुंदरी” नाम का अर्थ है — “तीनों लोकों की सुंदरी”. देवी न केवल सौंदर्य की प्रतिमूर्ति हैं बल्कि वे ज्ञान, शक्ति और प्रेम की देवी भी हैं.
माना जाता है कि जो भी भक्त श्रद्धा से यहां मां की आराधना करता है, उसे मनचाहा वरदान प्राप्त होता है.
1. 51 शक्तिपीठों में से एक
माता त्रिपुर सुंदरी मंदिर भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक है। कहा जाता है कि जब भगवान शिव सती के शरीर को लेकर पृथ्वी पर घूम रहे थे, तब यहां माता सती का दायां पैर (Right Foot) गिरा था. इस कारण यह स्थान अत्यंत पवित्र और शक्तिपीठ के रूप में पूजनीय है.
2. मंदिर का निर्माण एक स्वप्न से जुड़ा
किंवदंती है कि त्रिपुरा के महाराजा धर्ममानिक्य को स्वप्न में मां त्रिपुर सुंदरी ने आदेश दिया था कि वे उदयपुर में उनका मंदिर बनवाएं। जागने के बाद राजा ने उसी स्थान पर मंदिर का निर्माण करवाया. आज भी भक्त इसे मां की “स्वयं प्रकट” इच्छा का परिणाम मानते हैं.
3. मंदिर का अनोखा नाम – माताबाड़ी
स्थानीय लोग इस मंदिर को प्यार से “माताबाड़ी” कहते हैं, जिसका अर्थ है “मां का घर”.
त्रिपुरा के लोगों के लिए यह मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि मां का साक्षात् घर है — जहां वे अपनी हर समस्या लेकर पहुंचते हैं.
4. माता की दो प्रतिमाएं
मंदिर में दो मूर्तियां हैं — बड़ी प्रतिमा को “त्रिपुर सुंदरी” कहा जाता है और छोटी प्रतिमा को “चोटोमाई” कहा जाता है.
माना जाता है कि “चोटोमाई” माता के बाल रूप का प्रतीक है। भक्त दोनों स्वरूपों की पूजा करते हैं.
5. कालीकुंड झील और पवित्र कछुए
मंदिर के सामने कालीकुंड झील (Kalyan Sagar Lake) है, जिसमें बड़ी संख्या में कछुए रहते हैं.
इन कछुओं को देवी का वाहन माना जाता है। श्रद्धालु इन्हें आटा, गुड़ या मिठाई खिलाते हैं, और यह धार्मिक पुण्य का कार्य माना जाता है.
6. दीवाली मेला की अनोखी परंपरा
त्रिपुरा की सबसे बड़ी धार्मिक घटना — “दीवाली मेला” इसी मंदिर में आयोजित होती है.
हर साल लाखों श्रद्धालु दीपोत्सव के दौरान यहां पहुंचते हैं। पूरा मंदिर हजारों दीपों से सजाया जाता है और माताजी की विशेष पूजा होती है. यह मेला लगभग 500 साल पुरानी परंपरा है.
7. तांत्रिक साधना का प्रमुख केंद्र
त्रिपुर सुंदरी मंदिर को उत्तर-पूर्व भारत का कामाख्या मंदिर भी कहा जाता है, क्योंकि यहां तांत्रिक साधना और शक्ति उपासना की प्राचीन परंपरा है.
अमावस्या की रातों में कई साधक यहां गुप्त साधनाएं करते हैं.
8. पत्थर से बनी दुर्लभ मूर्ति
माता त्रिपुर सुंदरी की प्रतिमा काले रंग के पत्थर (कृष्ण शिला) से बनी है. यह मूर्ति दक्षिण भारतीय शिल्प शैली की झलक देती है और देवी का चेहरा शांत, लेकिन तेजस्वी भाव लिए हुए है.
9. मंदिर का स्थापत्य बंगाल शैली में
मंदिर की वास्तुकला बंगाल के चार-छाला शैली (Charchala Style) में बनी है. ऊपर से गुंबदाकार और नीचे से चौकोर आधार — यह संरचना इस क्षेत्र में अद्वितीय मानी जाती है.
10. मंदिर परिसर में अनोखी ऊर्जा
कई श्रद्धालु बताते हैं कि जैसे ही वे मंदिर परिसर में प्रवेश करते हैं, उन्हें एक अनजानी सकारात्मक ऊर्जा और शांति का अनुभव होता है. तंत्र और शक्ति की साधना से यह स्थान “ऊर्जावान क्षेत्र (Energy Field)” माना जाता है.
11. मंदिर के पुजारी मणिक्य राजघराने से
आज भी मंदिर की पूजा-अर्चना त्रिपुरा के राजपरिवार (Manikya Dynasty) से जुड़े पुजारियों द्वारा की जाती है. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है.
12. धार्मिक पर्यटन का मुख्य केंद्र
त्रिपुर सुंदरी मंदिर त्रिपुरा राज्य का सबसे प्रमुख धार्मिक पर्यटन स्थल है. भारत सरकार ने इसे “प्रमुख तीर्थ स्थान” के रूप में सूचीबद्ध किया है और यहां तक पहुंचने के लिए सड़क, रेल और हवाई मार्ग की अच्छी व्यवस्था की गई है.
13. रात के समय मंदिर की सुंदरता अद्भुत
रात में जब मंदिर दीपों से जगमगाता है और कालीकुंड झील में उसका प्रतिबिंब दिखाई देता है, तो व्यू इतना सुंदर होता है कि ऐसा लगता है जैसे मां स्वयं सागर से उदित हो रही हों.
14. भक्तों की मनोकामना पूर्ण होने की मान्यता
माना जाता है कि जो भी भक्त सच्चे मन से माता त्रिपुर सुंदरी की आराधना करता है, उसकी हर मनोकामना पूरी होती है — चाहे वह संतान प्राप्ति हो, विवाह, सफलता या मानसिक शांति.
15. प्राकृतिक सौंदर्य का संगम
मंदिर के चारों ओर फैली हरियाली, झील, और शांत वातावरण इसे सिर्फ एक धार्मिक स्थान नहीं, बल्कि प्रकृति प्रेमियों के लिए भी स्वर्ग बनाता है।
1. दीवाली (Diwali)
माता त्रिपुर सुंदरी मंदिर में दीवाली का पर्व अत्यंत भव्य रूप से मनाया जाता है.
इस अवसर पर मंदिर में विशेष पूजा, भजन, दीपोत्सव और मेला आयोजित किया जाता है.
हजारों श्रद्धालु देशभर से यहां पहुंचते हैं. कहा जाता है कि त्रिपुरा की “दीवाली मेला” की परंपरा इसी मंदिर से जुड़ी है.
2. नवरात्रि
नवरात्रि के नौ दिनों में मंदिर में दैनिक हवन, पूजा, कन्या पूजन और रात्रि जागरण होते हैं.
इस दौरान देवी के विभिन्न रूपों की आराधना की जाती है.
3. दुर्गा पूजा
बंगाली परंपरा के अनुसार यहां दुर्गा पूजा का भी विशेष आयोजन होता है. मूर्ति विसर्जन के बाद भक्त माता त्रिपुर सुंदरी के दर्शन कर पूजा पूरी करते हैं.
यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है, जहां माता सती का दायां पैर गिरा था.
इसे माताबाड़ी नाम से भी जाना जाता है.
कालीकुंड झील में पवित्र माने जाने वाले कछुओं को भक्त देवी का रूप मानते हैं.
मंदिर में देवी की प्रतिमा काले पत्थर (कृष्ण शिला) से बनी है.
यहां के पुजारी परंपरागत रूप से मणिक्य राजघराने से संबंधित परिवारों से आते हैं.
दीवाली मेला के समय यहां लाखों भक्त उमड़ते हैं, जिसे त्रिपुरा का सबसे बड़ा धार्मिक मेला कहा जाता है.
मंदिर परिसर में भक्तों के लिए धर्मशालाएं, प्रसादालय और पूजा सामग्री की दुकानें हैं.
मंदिर के चारों ओर सुंदर प्राकृतिक दृश्य हैं — पहाड़, झील और हरियाली.
माता त्रिपुर सुंदरी मंदिर तक पहुंचने के लिए कई माध्यम उपलब्ध हैं — सड़क, रेल और हवाई मार्ग से.
हवाई मार्ग || By Air
नजदीकी हवाई अड्डा: अगरतला का महाराजा बीर बिक्रम एयरपोर्ट (Agartala Airport).
दूरी: लगभग 55 किमी
एयरपोर्ट से आप टैक्सी या बस द्वारा मंदिर तक आसानी से पहुंच सकते हैं.
रेल मार्ग || By Train
रेलवे स्टेशन: उदयपुर रेलवे स्टेशन (Udaipur Tripura Railway Station).
यह स्टेशन अगरतला, गुवाहाटी और शिलचर से जुड़ा है.
स्टेशन से मंदिर की दूरी लगभग 3 किमी है, जिसे आप ऑटो या टैक्सी से तय कर सकते हैं.
सड़क मार्ग (By Road)
अगरतला से NH-8 के जरिए उदयपुर तक सड़क मार्ग सुगम है.
त्रिपुरा राज्य परिवहन (TRTC) की बसें और निजी टैक्सियाँ नियमित रूप से चलती हैं.
अगरतला से यात्रा समय: लगभग 1.5 घंटे.
माता त्रिपुर सुंदरी मंदिर पूरे वर्ष खुला रहता है, लेकिन कुछ मौसम और अवसर विशेष रूप से बेहतर माने जाते हैं.
अक्टूबर से मार्च (अच्छा मौसम)
यह समय यात्रा के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है क्योंकि मौसम सुहावना होता है और मंदिर दर्शन आरामदायक रहता है.
दीवाली का समय (Best for Festive Vibe)
अगर आप धार्मिक और सांस्कृतिक माहौल में डूबना चाहते हैं, तो दीवाली के समय (अक्टूबर-नवंबर) मंदिर अवश्य जाएं.
इस दौरान पूरा परिसर रोशनी, संगीत और भक्ति से गूंज उठता है.
नवरात्रि
भक्तों के लिए नवरात्रि के नौ दिन भी यात्रा के लिए बेहद शुभ माने जाते हैं.
कहां ठहरें || Where to Stay
उदयपुर और अगरतला दोनों जगह रहने की अच्छी व्यवस्था है.
उदयपुर में:
Tripura Tourism Lodge
Matabari Yatri Nivas
Private Guest Houses & Budget Hotels
अगरतला में:
Ginger Hotel
Hotel Sonar Tori
Polo Lake Resort
इन होटलों में बुकिंग ऑनलाइन भी की जा सकती है.
उदयपुर शहर छोटा होने के बावजूद स्वादिष्ट स्थानीय व्यंजन पेश करता है —
मोई तोक, बांबू शूट करी, चाप, और खिचुरी यहां के लोकप्रिय पकवान हैं.
मंदिर के पास प्रसाद में मिलने वाला मिठा चूरा और नारियल लड्डू बेहद प्रसिद्ध है.
श्रद्धालु यहां से त्रिपुरा हैंडलूम और हस्तशिल्प वस्तुएं भी खरीदते हैं.
त्रिपुर सुंदरी मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा का केंद्र है.
भक्त मानते हैं कि यहां आने से व्यक्ति के जीवन की नकारात्मकता समाप्त होती है और मानसिक शांति प्राप्त होती है.
मां त्रिपुर सुंदरी का दर्शन करते ही मन में एक दिव्य संतोष और विश्वास की भावना उत्पन्न होती है.
माता त्रिपुर सुंदरी मंदिर, त्रिपुरा की आध्यात्मिक आत्मा का प्रतीक है.
यह मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि संस्कृति, इतिहास और सौंदर्य का भी प्रतीक है.
चाहे आप एक श्रद्धालु हों, इतिहास प्रेमी हों या प्रकृति प्रेमी — यह स्थान आपको हर रूप में प्रभावित करेगा.
त्रिपुरा की धरती पर स्थित यह शक्ति पीठ “त्रिपुर सुंदरी” वास्तव में तीनों लोकों की सुंदरता और शक्ति का प्रतीक है.
यहां आकर हर भक्त अनुभव करता है कि मां साक्षात करुणा और शक्ति का रूप हैं.
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