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India and China Relation – चीन को कर दिया बाय-बाय, अब भारत है इनका ‘अपना देश’

India and China – भारत और चीन ( India and China ) के बीच उतार चढ़ाव से भरे रिश्ते की कहानी है. एक धोखे से भरा इतिहास है, चालबाजी है और विश्वास की घनघोर कमी है. भारत चीन ( India and China ) के बीच इस रिश्ते को आजादी के बाद देश की चौथी पीढ़ी अपनी आंखों से देख रही है. चीन और भारत ( India and China ) के रिश्तों के बीच क्या आप किसी चीन मूल के नागरिक के भारत में होने के बारे में सोच सकते हैं? नहीं नहीं, इसमें कोई अचंभा नहीं. भारत के भी बहुत से लोग अलग अलग देशों में रहते हैं और चीन में भी बेहद बड़ी संख्या में भारतीय रहते हैं.

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अब आगे क्या? आगे ये कि अगर आपको ये बताया जाए कि चीन छोड़कर भारत में बस चुके ये चीन मूल के लोग न सिर्फ भारत में व्यवसाय कर रहे हैं, बल्कि यहां की संस्कृति में भी रच बस गए हैं. और तो और, उनकी हिंदी ऐसी है कि कोई आम भारतीय भी शायद चकरा जाए.

भारत में बसे इस छोटे से चीन से हमारा मुलाकात हुआ Connaught Place के F ब्लॉक में. D. Minsen and Company नाम की ये शॉप, Connaught Place में 80 साल पुरानी है. इस दुकान में कई कहानियां आपको हर कोने में सिमटी नजर आती हैं. हां, लेकिन यहां के कमाल के जूते आधुनिकता और बीते हुए कल के बीच एक पुल का काम भी करते हैं.

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Connaught Place Oldest Shop

D. Minsen and Company, Connaught Place की सबसे पुरानी दुकानों में से एक है. वर्तमान में इसके मालिक एडवर्ड ने हमें बताया कि ये दुकान जबसे कनॉट प्लेस बना है, तभी से यहां पर है. उन्होंने बताया कि 1945 से ये दुकान यहां पर है. और वह भारत में अपने परिवार की चौथी जेनरेशन हैं. सबसे पहले यह दुकान एक ब्रिटिश शख्स की थी और यहां एडवर्ड के दादा काम करते थे. बाद में, ये दुकान उन्होंने उस ब्रिटिश शख्स से खरीद ली. इसके बाद से यह परिवार का पुश्तैनी कारोबार बना हुआ है.

How Chinese came in India

एडवर्ड ने हमें बताया कि कलकत्ता में बहुत से चीन के नागरिक लगभग 200 साल पहले आए थे. तब कलकत्ता ही भारत की आधिकारिक राजधानी थी और शिमला गर्मियों की राजधानी थी. चीन भारत ( India and China ) के रिश्ते की कहानी यूं तो चाय से जुड़ी है लेकिन वहां के ढेरों नागरिकों ने शिमला और कलकत्ता में अपना ठिकाना बनाया. कलकत्ता में इनका आना एक शुगर मिल के लिए हुआ था. ये सभी उसमें काम करते थे. आज कलकत्ता में चीन के उस समुदाय का मंदिर भी है.

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क्या कभी भेदभाव का शिकार हुए

हमने एडवर्ड से बातचीत के दौरान पूछा कि क्या भारत में उन्हें कभी किसी तरह के भेदभाव का सामना करना पड़ा? एडवर्ड ने इस सवाल पर काफी देर सोचा फिर कहा कि नहीं, कुछ खास नहीं. हमने जब फ़िर से जोर दिया तो उन्होंने कहा कि जब हम किसी स्मारक को देखने जाते हैं तो हमसे पहचान पत्र पूछा जाता है.

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चीन से रिश्तों में तनातनी का असर

स्टोर विजिट करने से पहले हमें ये बात पता थी कि 1962 में भारत-चीन युद्ध ( India and China ) के दौरान टी मिंशन एंड कंपनी नाम की इस दुकान के बाहर पुलिस की जिप्सी खड़ी रहती थी. खुफिया एजेंसियों की भी नजरें चीन मूल के इन लोगों पर और उनके परिवार पर रहती थी. इसे ही लेकर जब हमने एडवर्ड से सवाल किया तो उन्होंने जवाब दिया कि एक बार मेरे दादा जी को राजस्थान में पकड़ लिया गया था. बाद में लंबी पूछताछ के बाद उन्हें छोड़ा गया था.

D. Minsen and Company स्टोर के ओनर मिस्टर एडवर्ड के साथ हमारी पूरी बातचीत को देखें, वीडियो में

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