Railway Journey Blog - वो सर्द महीना था. शायद, दिसंबर के बीच का समय था. मैंने भाई से घूमने की ज़िद की. भाई ने मेरे बार बार अनुरोध पर
Railway Journey Blog – वो सर्द महीना था. शायद, दिसंबर के बीच का समय था. मैंने भाई से घूमने की ज़िद की. भाई ने मेरे बार बार अनुरोध पर, दफ्तर से छुट्टी भी ले ली और हम दोनों चल दिए घूमने के लिए. घूमने से पहले टिकट से लेकर ठहरने का पूरा इंतज़ाम भाई ने कर लिया था. उन्होंने मुझसे पैकिंग के लिए कहा था. मैंने भी सबकुछ रख लिया. जूते, ब्रुश, रुमाल, तौलिया, साबुन, कपड़े सबकुछ… हां, एक जो सबसे अहम चीज़ मैं रखने से चूक गया वो थी शॉल और इस टूर में सबसे ज़्यादा इसी चीज़ की कमी हमें खलने जा रही थी.
हम तय समय पर नई दिल्ली से ट्रेन में बैठे और ट्रेन ने भी तय समय में, हमें झांसी पहुंचा दिया था. ये सफर दिन का था तो हमें सर्दी का भी कुछ ज़्यादा अहसास नहीं हुआ. झांसी से ओरछा और फिर कुछ और जगहें. घूमने के सिलसिले में कब 3 दिन गुज़र गए पता ही नहीं चला. अब बारी आई थी लौटकर वापस दिल्ली आने की.
होटल से चेक आउट किया और फटाफट स्टेशन पहुंच गए. ट्रेन पकड़ने की हड़बड़ी में, हम एक और गड़बड़ी कर गए. वो ये कि हमने ट्रेन का टाइम टेबल ऑनलाइन चेक ही नहीं किया. होटल से निकलने के कुछ ही देर बाद हम स्टेशन तो पहुंच गए लेकिन ट्रेन का कुछ पता नहीं था. तभी, अनाउंस हुआ कि ट्रेन तय समय से 2 घंटा विलंब से चल रही है.
ये 2 घंटा, पहले 3 हुआ, फिर 4, और फिर 8.. साढ़े 8 घंटे का ये समय, हमारे लिए एक युग की तरह था. पहले अनाउंसमेंट के बाद ही, हम वेटिंग रूम गए तो पता चला कि वहां काम चल रहा है. पहले 2 घंटे तो इंतज़ार किया लेकिन उसके बाद इंतज़ार नहीं किया गया. आराम करने के लिए एक ही सहारा था, स्टेशन की शुरुआत में बना वेटिंग रूम. उस वेटिंग रूम में दोनों भाई, एक चद्दर में लिपटकर ऐसे सोए जैसे कोई बोरी हो. हम सर्दी से छटपटाते रहे.
कुल 8 घंटे बाद ट्रेन आई और हम ठंड से निढाल होकर उसमें ऐसे सवार हुए, जैसे अब हमारी कोई मंज़िल हो ही न! बैठने के कुछ ही घंटे बाद, हम दिल्ली में थे. यहां से मेट्रो ली और घर आ गए. इस सफर में, हमें सर्दी का जो सितम मेरी गलती से मिला, उसे जीवन भर मैं भूल नहीं सकूंगा. हां, उस टूर के बाद, आज तक मैं जहां भी गया हूं, जाने से पहले सामान की एक सूची तैयार कर लेता हूं और साबुन से लेकर शॉल तक, सब लेकर चलता हूं.
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