Get information from here about the auspicious time of Govardhan Puja
Govardhan Puja – दीपावली के अगले दिन यानि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है. लोग इस पर्व को अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं. इस त्यौहार का पौराणिक महत्व है. इस पर्व में प्रकृति एवं मानव का सीधा संबंध स्थापित होता है. इस पर्व में गोधन यानी गौ माता की पूजा की जाती है. शास्त्रों में बताया गया है कि गाय उतनी ही पवित्र हैं जितना माँ गंगा का निर्मल जल आमतौर पर यह पर्व अक्सर दीपावली के अगले दिन ही पड़ता है लेकिन यदा कदा दीपावली और गोवर्धन पूजा के पर्वों के बीच एक दिन का अंतर आ जाता है.
इस पर्व में हिंदू धर्म के मानने वाले घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन जी की मूर्ति बनाकर उनका पूजन करते हैं. इसके बाद ब्रज के साक्षात देवता माने जाने वाले भगवान गिरिराज को प्रसन्न करने के लिए उन्हें अन्नकूट का भोग लगाते हैं. गाय- बैल आदि पशुओं को स्नान कराकर फूल माला, धूप, चन्दन आदि से उनका पूजन किया जाता है.
Govardhan puja : जानें क्यों मनाया जाता है गोवर्धन पूजा, क्या है इसके पीछे की पौराणिक कथा
गायों को मिठाई का भोग लगाकर उनकी आरती उतारी जाती है और प्रदक्षिणा की जाती है. कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को भगवान के लिए भोग व यथासामर्थ्य अन्न से बने कच्चे-पक्के भोग, फल-फूल, अनेक प्रकार के खाद्य पदार्थ जिन्हें छप्पन भोग कहते हैं का भोग लगाया जाता है. फिर सभी सामग्री अपने परिवार व मित्रों को वितरण कर प्रसाद ग्रहण किया जाता है.
यह घटना द्वापर युग की है. ब्रज में इंद्र की पूजा की जा रही थी. वहां भगवान कृष्ण पहुंचे और उनसे पूछा की यहां किसकी पूजा की जा रही है. सभी गोकुल वासियों ने कहा देवराज इंद्र की. तब भगवान श्रीकृष्ण ने गोकुल वासियों से कहा कि इंद्र से हमें कोई लाभ नहीं होता. वर्षा करना उनका दायित्व है और वे सिर्फ अपने दायित्व का निर्वाह करते हैं, जबकि गोवर्धन पर्वत हमारे गौ-धन का संवर्धन एवं संरक्षण करते हैं. जिससे पर्यावरण शुद्ध होता है. इसलिए इंद्र की नहीं गोवर्धन की पूजा की जानी चाहिए.
Govardhan Puja : गोवर्धन पूजा कहनी है बहुत पुरानी, आप भी पढ़ें
सभी लोग श्रीकृष्ण की बात मानकर गोवर्धन पूजा करने लगे जिससे इंद्र क्रोधित हो उठे, उन्होंने मेघों को आदेश दिया कि जाओं गोकुल का विनाश कर दो. भारी वर्षा से सभी भयभीत हो गए| तब श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठिका ऊंगली पर उठाकर सभी गोकुल वासियों को इंद्र के कोप से बचाया.
जब इंद्र को ज्ञात हुआ कि श्रीकृष्ण भगवान श्रीहरि विष्णु के अवतार हैं तो इन्द्रदेव अपनी मुर्खता पर बहुत लज्जित हुए और भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा याचना की. तबसे आज तक गोवर्धन पूजा बड़े श्रद्धा और हर्षोल्लास के साथ की जाती है.
कहा जाता है कि भगवान कृष्ण का इंद्र के अहंकार को तोड़ने के पीछे उद्देश्य ब्रज वासियों को गौ धन एवं पर्यावरण के महत्त्व को बतलाना था. ताकि वे उनकी रक्षा करें. आज भी हमारे जीवन में गौ माता का विशेष महत्त्व है. आज भी गौ द्वारा प्राप्त दूध हमारे जीवन में बेहद अहम स्थान रखता है.
यूं तो आज गोवर्धन पर्वत ब्रज में एक छोटे पहाड़ी के रूप में हैं, किन्तु इन्हें पर्वतों का राजा कहा जाता है. ऐसी संज्ञा गोवर्धन को इसलिए प्राप्त है क्योंकि यह भगवान कृष्ण के समय का एक मात्र स्थाई व स्थिर अवशेष है. उस काल की यमुना नदी जहां समय-समय पर अपनी धारा बदलती रहीं, वहीं गोवर्धन अपने मूल स्थान पर ही अविचलित रुप में विद्यमान रहे.
गोवर्धन को भगवान कृष्ण का स्वरुप भी माना जाता है और इसी रुप में इनकी पूजा की जाती है. गर्ग संहिता में गोवर्धन के महत्त्व को दर्शाते हुए कहा गया है – गोवर्धन पर्वतों के राजा और हरि के प्रिय हैं. इसके समान पृथ्वी और स्वर्ग में दूसरा कोई तीर्थ नहीं.
गोवर्धन पूजा 2020
15 नवंबर
गोवर्धन पूजा पर्व तिथि – रविवार, 15 नवंबर 2020
गोवर्धन पूजा सायं काल मुहूर्त – दोपहर बाद 15:17 बजे से सायं 17:24 बजे तक
प्रतिपदा तिथि प्रारंभ – 10:36 (15 नवंबर 2020) से
प्रतिपदा तिथि समाप्त – 07:05 बजे (16 नवंबर 2020) तक
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