Jammu Kashmir Rivers List Jhelum Chenab Ravi Tawi
Jammu Kashmir Rivers List : जम्मू-कश्मीर को धरती का स्वर्ग कहा जाता है, और इस स्वर्ग की सबसे बड़ी पहचान उसकी नदियां हैं. बर्फ से ढके पहाड़ों, गहरी घाटियों और हरे-भरे मैदानों से होकर बहती ये नदियां न सिर्फ यहां की प्राकृतिक सुंदरता बढ़ाती हैं, बल्कि हजारों साल से इस प्रदेश की सभ्यता, संस्कृति और आस्था की धुरी भी रही हैं. कश्मीर घाटी की झेलम से लेकर लद्दाख की ज़ांस्कर और जम्मू की तावी तक—हर नदी अपने साथ एक अलग पहचान, लोककथाएं और इतिहास समेटे हुए है.
इन नदियों ने यहां की खेती-बाड़ी, व्यापार, तीर्थ-यात्रा और युद्ध – सबमें अहम भूमिका निभाई है. राजतरंगिणी जैसे ग्रंथों में इनका उल्लेख मिलता है, तो वहीं कई नदियाँ देवी-देवताओं से जुड़ी धार्मिक मान्यताओं का प्रतीक मानी जाती हैं. कहीं ये धान की देवी कहलाती हैं, तो कहीं सूर्य की पुत्री. इनकी धारा ने कश्मीर की वादियों को जीवन दिया और लद्दाख जैसे शुष्क इलाके को भी सींचा है.
आज के दौर में भी ये नदियाँ जलविद्युत परियोजनाओं, पर्यटन और सामरिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण हैं. इनकी गोद में बसे गाँव, शहर और ऐतिहासिक स्थल जम्मू-कश्मीर की धरोहर हैं. आइए जानते हैं जम्मू-कश्मीर की नदियों के बारे में विस्तार से…
झेलम नदी का प्राचीन नाम वितस्ता है। कहा जाता है कि इसका नाम देवी पार्वती ने रखा था और इसे शिव-पार्वती की कृपा से उत्पन्न नदी माना जाता है। वेरिनाग से निकलकर यह श्रीनगर से गुजरती है और वुलर झील को भरती है। कश्मीर के इतिहासकार कल्हण ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक राजतरंगिणी में झेलम का कई बार उल्लेख किया है।
चिनाब नदी का प्राचीन नाम अस्किनी या चंद्रभागा था। एक पौराणिक कथा के अनुसार चंद्रमा की पुत्री चंद्रभागा ने अपनी इच्छा से इस नदी में विलीन होकर इसे अमर बना दिया। इसी से इसका नाम पड़ा। यह नदी जम्मू क्षेत्र की रीढ़ है और आधुनिक समय में इसके किनारे पर कई बड़े बांध और पनबिजली परियोजनाएँ बनी हैं।
रावी का पुराना नाम इरावती था। इसे महाभारत और वेदों में भी याद किया गया है। प्राचीन नगर लाहौर का नाम भी रावी से जुड़ा माना जाता है। यह नदी जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्सों से गुजरकर पाकिस्तान में जाती है और चिनाब से मिलती है।
तावी नदी को सुर्यपुत्री तावी भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इसका उद्गम कैलाश कुंड से हुआ और इसे भगवान सूर्य की कन्या माना गया। जम्मू शहर को यह नदी दो भागों में बाँटती है और यहाँ हर साल तावी तट पर धार्मिक मेले लगते हैं।
नीलम नदी को लोककथाओं में कृष्णगंगा कहा गया है। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से इस नदी को मार्ग दिया था। गुरेज़ घाटी से बहती हुई यह नदी बेहद खूबसूरत है और यहाँ से जुड़ी कई लोककथाएँ कश्मीरी संस्कृति में प्रचलित हैं।
लिद्दर नदी को पहलगाम की आत्मा कहा जाता है। इसका उद्गम कोलाहोई ग्लेशियर से होता है। लोककथा है कि इस नदी के किनारे कभी ऋषि मुनियों का आश्रम हुआ करता था। आज भी यह जगह अमरनाथ यात्रा का मुख्य पड़ाव है और तीर्थयात्रियों के लिए महत्वपूर्ण है।
ज़ांस्कर नदी लद्दाख की शान है। इसे तिब्बती संस्कृति में पवित्र माना जाता है। सर्दियों में जब यह नदी बर्फ बन जाती है तो स्थानीय लोग इसे चादर मार्ग कहकर देवी रूप में पूजते हैं।
सिंध नदी का संबंध कश्मीर की प्राचीन सभ्यता से है। कहा जाता है कि इसके तट पर प्राचीन मंदिर और व्यापारिक मार्ग हुआ करते थे। आज भी यह गंदरबल क्षेत्र के गाँवों को जीवन देती है।
पुंछ नदी के बारे में लोककथा है कि इसके तट पर कभी राजा पूंछ का किला हुआ करता था। यह झेलम की सहायक नदी है और पुंछ क्षेत्र की संस्कृति व लोकगीतों में इसका कई बार उल्लेख मिलता है।
सुरु नदी करगिल क्षेत्र की सबसे महत्वपूर्ण नदी है। यह सुरु घाटी की जीवनरेखा है। करगिल युद्ध के दौरान भी इसका सामरिक महत्व रहा। लोककथाओं में इसे देवताओं द्वारा दी गई पवित्र धारा माना जाता है।
उझ नदी का संबंध कठुआ क्षेत्र की संस्कृति से है। इसे स्थानीय लोग देवधारा मानकर पूजते हैं।
यापोला नदी को शाम नदी भी कहा जाता है। यह लमायुरु मठ के पास बहती है। बौद्ध धर्मग्रंथों में इस नदी को ध्यान और साधना का प्रतीक माना जाता है।
स्तोद नदी ज़ांस्कर की प्रमुख धारा है। स्थानीय मान्यता है कि यहाँ के देवता इसे जीवन देने वाली नदी मानते हैं।
द्रास नदी करगिल के ड्रास क्षेत्र से बहती है। यहां की घाटी को भारत का सायबेरिया कहा जाता है। लोककथा है कि इस नदी को हिम देवी ने जन्म दिया ताकि यहाँ जीवन संभव हो सके।
त्सारप नदी ज़ांस्कर क्षेत्र से होकर बहती है। यह कई प्राचीन गुफाओं और मठों से जुड़ी है।
शिंगो नदी का स्रोत गिलगित क्षेत्र में है। स्थानीय मान्यता है कि यह नदी नाग देवता की धारा है।
विशोव नदी कुलगाम क्षेत्र से बहती है। इसे विशोव नाग का आशीर्वाद माना जाता है और इसके किनारे मंदिर और तीर्थ स्थल बने हैं।
रिम्बियार नदी शोपियां क्षेत्र में बहती है। स्थानीय लोककथाओं में इसे धान की देवी का आशीर्वाद माना जाता है क्योंकि यह खेती को पानी देती है।
कलनई नदी डोडा क्षेत्र में बहती है। कहा जाता है कि यहाँ कभी प्राचीन साधु-महात्मा ध्यान किया करते थे।
नीरू नदी भद्रवाह घाटी की शोभा है। यहाँ इसे नागों की धारा माना जाता है और इसके किनारे कई पुराने मंदिर मिलते हैं।
मराउ नदी चिनाब बेसिन का हिस्सा है और स्थानीय लोगों के जीवन का आधार है।
बसंतर नदी ऐतिहासिक दृष्टि से प्रसिद्ध है। 1971 में भारत-पाक युद्ध के समय बसंतर की लड़ाई यहीं लड़ी गई थी। धार्मिक रूप से भी इसे पवित्र माना जाता है।
नाला पल्खू मौसमी धारा है। यहाँ के लोग इसे खेती-बाड़ी में उपयोग करते हैं और कई लोकगीतों में इसका जिक्र है।
संद्रन नदी अनंतनाग क्षेत्र से बहती है। कहा जाता है कि इसके किनारे ऋषियों ने तप किया था।
ब्रंगी नदी कोकरनाग से निकलती है। यहाँ का कोकरनाग उद्यान इसी नदी की वजह से प्रसिद्ध है।
मनावर तावी नदी चिनाब की सहायक है। स्थानीय लोग इसे धरती माता की धारा मानकर पूजते हैं।
सुखनाग नदी बडगाम ज़िले में बहती है। मान्यता है कि यह नदी शिव-पार्वती के आशीर्वाद से उत्पन्न हुई थी।
कालगनी नदी भद्रवाह क्षेत्र में बहती है और स्थानीय संस्कृति में इसका महत्व है।
पोह्रू नदी कुपवाड़ा से बहती है और झेलम में मिल जाती है। लोककथाओं में इसे धान की बहन कहा गया है क्योंकि यह खेतों को सींचती है।
Haridwar Travel Guide : अगर आप हरिद्वार घूमने की योजना बना रहे हैं, तो हम… Read More
ठंड के मौसम में स्किन और बालों पर सबसे ज़्यादा असर पड़ता है। Dermatologists का… Read More
जब भी भारत में snowfall देखने की बात आती है, ज़्यादातर लोगों के दिमाग में… Read More
कांचीपुरम के प्रसिद्ध एकाम्बरणाथर मंदिर में आज 17 साल बाद महाकुंभाभिषेक की पवित्र परंपरा सम्पन्न… Read More
2025 भारतीय यात्रियों के लिए सिर्फ vacation planning का साल नहीं था, बल्कि यह meaningful… Read More
नई दिल्ली. Moringa यानी सहजन का पेड़ भारतीय रसोई में सालों से इस्तेमाल होता आ… Read More