Interesting Travel Facts

Savitribai Phule : यह है एक पिछड़ी महिला की ‘यात्रा’ जो हमारे लिए मिसाल बन गयी

Savitribai Phule :  अक्सर जब हम यात्रा की बात करते हैं तो ज़हन में एक ही बात आती है कि एक स्थान से दूसरे स्थान तक विचरण करना। लेकिन यात्रा तो एक युग से दूसरे युग तक भी होती है। मनुष्य अपने जीवन में जो पड़ाव पार करता है वो भी तो यात्रा कहलाती है। ऐसी ही एक यात्रा हम सब के लिए एक कालजयी उदाहरण की तरह है। वो यात्रा जिसके के कारण पुरातन भारत में महिला सशक्तिकरण की नींव रखी गई। वो यात्रा जिसमें पुराने भारत में समाज को बदलाव और सुधार की ओर ले जाने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किये गए। यह यात्रा एक महिला की है जिन्होंने भारत की पहली शिक्षिका बन कर नए भारत के निर्माण की कोशिश की। यह यात्रा है सावित्री बाई फूले की।

अक्सर यात्राएं सुकून भरी होती हैं लेकिन सावित्री बाई फुले का सफ़र काफी कठिनाइयों से भरा था। जब वो महाराष्ट्र में अपने घर से स्कूल की ओर निकलती थी तो उस दौरान बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था और उन दिक्कतों के हल के नाम पर उनके पास हमेशा थैले में एक साड़ी होती थी। यह बात आपको ज़रूर अजीब लगी होगी कि किसी समस्या का हल साड़ी कैसे हो सकता है? लेकिन यक़ीन मानिए यह सच है। असल में भारत की पहली शिक्षिका कही जाने वाली सावित्री बाई एक पिछड़े परिवार से थी। उस ज़माने में भी समाज की रूढ़िवादी सोच को परे रखते हुए उन्होंने पढ़ने-लिखने का फ़ैसला किया। उच्च शिक्षा प्राप्त कर वे भारत की पहली अध्यापिका बनी। जब वे स्कूल में पढ़ाने जाती थी तो कुछ रूढ़िवादी लोग उनके कार्यों से नाराज़ हो कर उन पर पत्थर और गोबर फेंकते थे। लेकिन उन सब की परवाह किये बगैर सावित्री बाई रोज़ उसी तरह पूरे जज़्बे और लगन के साथ स्कूल में पढ़ाने जाती थी। वो अपने साथ हमेशा थैले में एक साड़ी रख कर ले जाती थी ताकि अगर रास्ते में लोग गोबर और कीचड़ फ़ेंक कर उनके कपड़े गंदे कर दें तो स्कूल पहुंच कर वो अपनी साड़ी बदल सकें। निश्चित ही बहुत साहस चाहिये ऐसी यात्रा के लिए। लेकिन इन महान और साहसिक समाज सेविका की यात्रा सिर्फ इतनी नहीं थी। एक दलित सावित्री बाई से आदरणीय समाज सेविका सावित्री बाई फुले तक का सफर काफ़ी लंबी और कठिन थी।

भारत की महान समाज सुधारक के रूप अपना नाम दर्ज करने वाली सावित्री बाई फुले का जन्म महाराष्ट्र में 3 जनवरी 1831 को एक किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम खण्डोजी नेवसे और माता का नाम लक्ष्मीबाई था। पिछड़े परिवार में जन्मी सावित्री बाई की सन 1840 में सिर्फ़ नौ साल की उम्र में 13 साल के ज्योतिराव फुले के साथ शादी कर दी गयी थी। ज्योतिराव एक महान क्रांतिकारी होने के साथ एक उत्तम लेखक, विचारक और समाजसेवी थे। जब सावित्रीबाई की शादी हुई तो उस समय तक वे पढ़ी-लिखी नहीं थी। शादी के बाद ज्योतिराव ने ही उन्हें पढ़ना-लिखना सिखाया। पति का सहयोग मिलने से सावित्री बाई ने सामाजिक भेदभाव और कई मुश्किलों का सामना करते हुए न सिर्फ़ अपनी शिक्षा पूर्ण की बल्कि बाकी महिलाओं की भी शिक्षा के लिए कईं महत्वपूर्ण कार्य किये। सावित्री बाई फुले के प्रयासों के कारण उनका नाम इतिहास में भारत की पहली अध्यापिका और महिला समाज सेवी के रूप में दर्ज हैं।

इसी कड़ी में ज्योतिराव फुले और सावित्री बाई ने वर्ष 1848 में मात्र 9 छात्रों को लेकर एक पाठशाला स्थापित की। बालिकाओं की शिक्षा के लिए उन्होंने करीब 18 स्कूल खोले। उनका यह सफर काफी मुश्किलों से भरा था। समाज का एक रूढ़िवादी हिस्सा उनसे नाराज़ था। लेकिन बिना किसी की परवाह किये उन्होंने लड़कियों की शिक्षा पर काम करना और पढ़ाना जारी रखा।

 समाज में पनप रही कईं कुप्रथाओं को खत्म करने के लिए भी उन्होंने बहुत से महत्वपूर्ण प्रयास किये। सतीप्रथा, बाल-विवाह और विधवा विवाह निषेध जैसी कई कुप्रथाओं के खिलाफ़ उन्होंने अपनी आवाज़ उठाई और जीवन भर महिलाओं के हक़ के लिए लड़ती रहीं। उस ज़माने में विधवाओं की स्थिति तो और भी दयनीय थी। विधवा महिलाओं को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। उस समय विधवा को पुनः विवाह का भी हक़ न था। लेकिन सावित्रीबाई ने इस मानसिकता को बदलने की कोशिश की और समाज से लड़ते हुए उन्होंने एक विधवा केंद्र की स्थापना की और उनको पुनर्विवाह के लिए प्रोत्साहित किया।

28 जनवरी 1853 को उन्होंने गर्भवती-बलात्‍कार पीड़ितों के लिए बाल हत्‍या प्रतिबंधक गृह की स्‍थापना की। पुणे की विधवा महिलाओं के आर्थिक विकास के लिए उन्होंने वर्ष 1892 में महिला सेवा मंडल के रूप में देश का पहला महिला संगठन बनाया। सावित्री बाई इस संगठन में स्वयं सभी दलित और विधवा महिलाओं से चर्चा करती थीं और उनकी समस्याओं का उपाय बताती थीं। इसके अलावा कन्या भ्रूण हत्या जैसे अपराध को रोकने के लिए उन्होंने नवजात शिशुओं के लिए एक आश्रम की शुरुआत की।

फुले दंपती की कोई औलाद नही थी तो उन्होंने एक बच्चे को गोद ले लिया। अपने गोद लिए हुए पुत्र यशवंत को उन्होंने खूब पढ़ाया लिखाया और एक काबिल डॉक्टर बनाया।

सावित्री बाई ने अछूतों के अधिकारों के लिए भी काफ़ी संघर्ष किया। वर्ष 1897 में प्लेग जैसी महामारी फैलने लगी तब उस दौरान उन्होंने पुणे में अपने डॉक्टर पुत्र के साथ मिलकर एक अस्पताल खोला और प्लेग से पीड़ित लोगों का इलाज किया। बिना अपनी सेहत की परवाह किये वे प्लेग से पीड़ित लोंगो का पूरी श्रद्धा भाव से इलाज करते रहे। इस दौरान सावित्री बाई फुले स्वयं प्लेग से पीड़ित हो गईं और उसी वर्ष मार्च में उनका निधन हो गया। यह समाज के लिए दुखद घटना थी। उस दौर में समाज को कुरीतियों से बचा कर आधुनिक सोच के साथ आगे बढ़ाने में उनका बहुत महत्वपूर्ण योगदान था। जहाँ उस काल में महिलाओं को घर की चार दिवारी में रखा जाता था वहीं एक पिछड़ी जाति की स्त्री होकर स्त्रियों को सामाजिक बेड़ियों से बाहर निकाल उनको पढ़ने लिखने के लिए प्रोत्साहित करना, विधवाओं के बारे में सोचना, दलितों और अछूतों के लिए प्रयास करना कोई आसान बात नहीं थी।

शिक्षा के क्षेत्र में फुले दंपती के महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए ब्रिटिश सरकार के शिक्षा विभाग ने उन्हें 16 नवम्बर 1852 को सम्मानित भी किया। केंद्र और महाराष्ट्र सरकार ने सावित्रीबाई फुले की स्मृति में कई पुरस्कारों की स्थापना की। इसके अलावा उनके सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया गया है।

शिक्षिका और समाजसेविका होने के साथ साथ सावित्री बाई एक अच्छी कवयित्री भी थी। उन्होंने अपने जीवन काल में ‘काव्य फुले’ और ‘बावनकशी सुबोधरत्नाकर’ नामक दो काव्य पुस्तकें भी लिखी थी।

तो यह थी भारत की पहली शिक्षिका और समाज सेविका सावित्री बाई फुले की जीवन यात्रा। तमाम मुश्किलों को पार करते हुए उन्होंने समाज में महिलाओं की स्थिति को अच्छा करने की कोशिश की साथ ही समाज में दिमाग की तरह लगी अन्य कुरीतियों को भी दूर करने के प्रयास किये। सावित्री बाई फुले की जीवन यात्रा हम सब के लिए एक मिसाल है।

 

Recent Posts

ईरान में भारतीय पर्यटकों के लिए घूमने की बेस्ट जगहें और Travel Guide

Iran Travel Blog : ईरान, जिसे पहले फारस (Persia) के नाम से जाना जाता था,… Read More

2 weeks ago

Pahalgam Travel Guide : पहलगाम क्यों है भारत का Hidden Heaven? जानिए सफर से लेकर संस्कृति तक सब कुछ

Pahalgam Travel Guide : भारत के जम्मू-कश्मीर में स्थित पहलगाम (Pahalgam) उन चंद जगहों में… Read More

2 weeks ago

Haifa Travel blog: इजराइल के हाइफा से क्या है भारत का रिश्ता, गहराई से जानिए!

Haifa Travel blog: इजरायल और ईरान युद्ध में जिस एक शहर की चर्चा सबसे ज्यादा… Read More

2 weeks ago

Unmarried Couples का Entry Ban: आखिर क्या हुआ था Jagannath Temple में राधा रानी के साथ?

Jagannath Puri Temple, ओडिशा का एक ऐसा धार्मिक स्थल है जो न केवल आस्था बल्कि… Read More

2 weeks ago

केदारनाथ में हेलीकॉप्टर क्रैश क्यों होते हैं? जानें पीछे के 5 बड़े कारण

उत्तराखंड के प्रसिद्ध तीर्थस्थल केदारनाथ तक पहुँचने के लिए हर साल हजारों श्रद्धालु Helicopter Services… Read More

2 weeks ago

Top 7 Plane Crashes: जब एक पल में खत्म हो गई सैकड़ों जिंदगियां!

Air travel को भले ही आज सबसे सुरक्षित transport modes में गिना जाता है, लेकिन… Read More

3 weeks ago