Interesting Travel Facts

भारत में मुग़लों का आख़िरी महल, जानें इसके बारे में रोचक तथ्य

Zafar mahal-जफर महल अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र की गर्मी के दिनों में आरामगाह हुआ करती थी. 18वीं सदी में कुतुब मीनार के पास इस इमारत को मुग़ल बादशाह अकबर ने निर्माण करवाया था. लाल पत्थर का तीन मंजिला द्वार बहादुर शाह जफर ने निर्माण कराया था, जिसे ‘हाथी दरवाज़ा’ कहा जाता था. इसके ऊपर छज्जे बने हुए थे और सामने खिड़कियों में बंगाली वास्तुकला को भुनाया गया है. जफर महल महरौली की घनी आबादी क्षेत्र में स्थित है उसके चारों ओर मकान बन चुके हैं.

जफर महल  (Zafar mahal) पुरातत्व विभाग की सुरक्षित ऐतिहासिक इमारत है, लेकिन अब यह अवैध निर्माण की चपेट में है. एक मकान की दीवार तो महल की दीवार पर ही उठाई गई है. जफर महल से जुड़े संगमरमर की बनी हुई छोटी सी मोती मस्जिद भी बहुत सुंदर है और अभी तक अपेक्षाकृत अच्छी हालत में है.

यहां मुगल बादशाह अकबर और मिर्जा जहांगीर की कब्र भी स्थित है. देखभाल न होने के कारण उन्हें नुकसान पहुंचा है. अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर ने भी यहीं दफ़न होने की इच्छा जताई थी लेकिन अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर रंगून भेज दिया और वहीं उनकी मृत्यु हुई.

Zafar mahal- जफर महल के चारों ओर अवैध रूप से बहु मंजिला इमारतें निर्माणाधीन हैं. कानून के अनुसार, किसी पुरातात्विक सुरक्षित इमारत से सौ मीटर के भीतर कोई इमारत नहीं बनाई जा सकती. लेकिन जफर महल अब अवैध निर्माण की चपेट में है. ये ऐतिहासिक इमारत अब चारों ओर से बहु मंजिला इमारतों से परेशान हो रही है. अब केवल द्वार ही बाहर से दिखाई देता है.

इस जगह पर हनुमान जी की पूजा एक स्त्री के रूप की जाती है

ख़्वाजा कुतुबुद्दीन बख़्तियार बाबा के इतने बड़े मुरीद थे कि उनकी चाहत थी कि इंतकाल के बाद उन्हें भी उनकी मज़ार के पास दफ़नाया जाए. बहादुर शाह ज़फर ने ज़फर महल, जो कि मज़ार से कुछ ही दूर है, में खुद अपनी एक कब्र बनवाई. और वसीयत की, कि बाद इंतकाल के मुझे ख़्वाजा कुतुबुद्दीन बख़्तियार काकी के साय में सुपर्द ए ख़ाक किया जाए ताकि मैं ता-क़यामत सुकून से सो सकूं.

लेकिन वक्त और हालात किसी बादशाह की ख़्वाहिश के भी पाबंद कहां होते हैं. जंग ए आज़ादी की पहली गदर 1857 में शुरू हुई तो बहादुर शाह ज़फ़र ने उसका नेतृत्व किया. अपनी बची खुची फौज और ज़ंग लगे हथियारों से बामुश्किल अंग्रेज़ों का सामना किया. ये वही दौर था, जब शायर ए आज़म मिर्ज़ा ग़ालिब और इब्राहीम ज़ौक जैसे शायर बहादुर शाह ज़फर के दरबार में होते थे.

लखनऊ के अलावा यूपी के इस शहर में भी है ऐतिहासिक इमामबाड़ा

लड़ाई शुरू हुई तो मुगलिया फौज अंग्रेज़ों के सामने ज़्यादा देर टिक नहीं पाई. 21 सितंबर 1857 को दिल्ली के हुमांयू के मक़बरे में आमने-सामने की लड़ाई के दौरान बहादुर शाह ज़फर को गिरफ़्तार कर लिया था. ब्रिटिश फ़ौज के मेजर हडसन ने उन्हें उनके दो बेटों मिर्जा मुगल और खिज़र सुल्तान और पोते अबू बकर के साथ पकड़ लिया.

अपने बजट में रहकर वीकेंड में घूमकर आएं ये पांच जगहें

बहादुर शाह ज़फर (Bahadur Shah Zafar) की गिरफ्तारी को लेकर एक किस्सा भी अक्सर सुनाया जाता है. ये कितना सच्चा है, पता नहीं लेकिन मंज़र ए आम पर इसे कई किताबों में ‘कोट’ किया गया है. कहते हैं, मेजर हडसन लंबे वक्त तक हिंदुस्तान में रहा इसलिए उसे उर्दू की थोड़ी बहुत समझ थी. उस वक्त अंग्रेज़ अफ़सरों को ये आदेश भी दिया जाता था कि वो उर्दू-हिंदी सीखें ताकि आम लोगों की बातें समझ सकें. जब मेजर हडसन ने बहादुर शाह जफर को गिरफ़्तार किया.

Emperor Shah Shah Zafar

बहादुर शाह ज़फर के महल पर कब्ज़ा हुआ और मुग़ल सल्तनत की सैकड़ों साल पुरानी निशानियों को लूट लिया गया. अपनी ताकत और जीत का परचम लहराने के लिए अंग्रेज़ों ने महल को अस्तबल में तब्दील करके वहां घोड़े बांध दिये.

साल 1858 में बहादुर शाह जफर को अंग्रेज़ों ने बर्मा (मयंमार) भेज दिया ताकि उनके समर्थन में उठ रही हिंदुस्तानी आवाम की आवाज़ को दबाया जा सके. बहादुर शाह जफर मयंमार चले गए. लेकिन दिल्ली के महरौली में, ज़फर महल में बनी एक कब्र एक बादशाह की अधूरी ख्वाहिश के पूरा होने का इंतज़ार करती रही. उम्मीद थी, कि कभी न कभी, उनके इंतकाल पर उन्हें वापस हिदुस्तान लाया जाएगा. और ज़फर महल की उसी कब्र में सुपुर्द ए ख़ाक किया जाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. 6 नवंबर 1862 को आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फर को लकवे का तीसरा दौरा पड़ा.

Bahadur Shah Zafar and the war of 1857 में सैय्यद मेहदी ने लिखा है कि बर्मा में इंतकाल से एक हफ्ता पहले से ही बहादुर शाह जफर ने खाना पीना छोड़ दिया था. उनकी आखिरी ख़्वाहिश बस यही थी कि इंतकाल के बाद उन्हें दिल्ली के ज़फर महल में पहले से बनी उनकी कब्र में दफनाया जाए. हालांकि बहादुर शाह जफर को अंदाजा था कि अंग्रेज़ अधिकारी उनकी ये ख्वाहिश पूरी नहीं करेंगे.

Know More About Zafar Mahal

7 नवंबर 1862 को हिंदुस्तान में 300 साल की मुग़लिया हुकूमत का आखिरी चिराग बुझ गया. बर्मा में ही, उसी दिन शाम 4 बजे 87 साल के बादशाह को उनकी आखिरी ख़्वाहिश को नज़र अंदाज़ करते हुए दफ़ना दिया गया. उनकी कब्र उसी घर के पीछे बनाई गयी जहां उन्हें कैद करके रखा गया था.

किताब ‘कॉम्बैट डायरी‘ में ब्रिगेडियर जसबीर सिंह ने लिखा है कि बहादुर शाह ज़फर को दफ़नाने के बाद उनकी कब्र को समतल कर दिया गया था ताकि कब्र की कोई निशानी न रह जाए. इतिहासकार मानते हैं कि आज जिस मज़ार को बहादुर शाह ज़फर की मज़ार कहा जाता है, वो यकीनी तौर पर उसी जगह दफ्न किए गए, इसका कोई सबूत नहीं.

बाहदुर शाह ज़फर (Bahadur Shah Zafar) की मौत के 158 साल बाद, महरौली का ज़फऱ महल आज भी वैसे ही खड़ा है. अपनी बुज़ुर्ग आंखों से तमाम आते-जाते ज़मानों का गवाह बनकर.
दौर आएंगे- जाएंगे लेकिन ज़फ़र महल में बनी वो खाली कब्र हमेशा याद दिलाती रहेगी एक अज़ीमुश्शान बादशाह की अधूरी ख्वाहिश की.

Recent Posts

Gen Z के लिए भारत के 7 अंडररेटेड वाइल्डलाइफ सेंक्चुरी: जहां हर फ्रेम बनेगा ‘Epic Reel’

Gen Z सिर्फ घूमने नहीं जाती, वो हर ट्रिप को aesthetic adventure बनाना जानती है… Read More

1 day ago

Shankar’s International Dolls Museum जाकर खुश हो जाएंगे आपके बच्चे! जानें इसके बारे में विस्तार से

Shankar's International Dolls Museum दिल्ली में स्थित एक ऐसा म्युजियम है जहां दुनिया भर की… Read More

2 days ago

अगर शांति चाहिए तो भारत के इन 12 शहर जाएं

कभी-कभी सफर हमें नई जगहें नहीं दिखाता, बल्कि हमें खुद से मिलाता है. भारत भी… Read More

4 days ago

Shri Someshwara Swamy Temple: श्री सोमेश्वर स्वामी मंदिर का इतिहास, महत्त्व, कैसे पहुंचे और आसपास घूमने लायक जगहें

Shri Someshwara Swamy Temple : कर्नाटक की संस्कृति, परंपरा और भक्ति का अनोखा संगम देखने… Read More

6 days ago

Jammu-Kashmir Visit In Winter : कश्मीर की 5 जगहें जहां स्नोफॉल देखकर आप कहेंगे-वाह, क्या नज़ारा है!

Jammu-Kashmir Visit In Winter : जब कश्मीर में सर्दी दस्तक देती है, तो सिर्फ ठंड… Read More

1 week ago