KarnaPrayag Travel Guide, Where to Travel in Karnaprayag
कर्णप्रयाग (Karnaprayag) उत्तराखंड के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में से एक है। ये उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में एक शहर और नगरपालिका बोर्ड है। कर्णप्रयाग (Karnaprayag) अलकनंदा नदी के पांच प्रसंग (पांच संगम), अलकनंदा संगम और पिंडार नदी के संगम पर स्थित है। अलकनंदा और पिंडर नदी के संगम पर बसा शहर कर्णप्रयाग (Karnprayag) एक बहुत ही खूबसूरत शहर है। संगम से पश्चिम की ओर शिलाखंड के रुप में दानवीर कर्ण की तपस्थली और मन्दिर हैं।
बद्रीनाथ धाम जाते समय साधुओ, ऋषियों, मुनियों और पैदल तीर्थयात्रीयो को कर्णप्रयाग शहर से गुजर कर जाना होता है। कर्णप्रयाग पौराणिक समय में एक उन्नतिशील बाजार भी था और देश के अन्य जगह से आकर लोग यहां पर निवास करने लगे क्योंकि यहां पर व्यापार के अवसर उपलब्ध थे।
इन गतिवधियो पर साल 1803 को बिरेही बांध के टूटने के कारण रोक लग गयी थी। उस समय इस स्थान में प्राचीन उमा देवी मंदिर का भी नुकसान हुआ था। कर्णप्रयाग (Karnaprayag) की संस्कृति उत्तराखंड की सबसे पौराणिक और अद्भुत नन्द राज जट यात्रा से जुडी है। कहानियों के अनुसार कर्णप्रयाग (Karnaprayag) का नाम कर्ण पर रखा गया है। जो की महाभारत में एक महत्वपूर्ण पात्र था। कर्ण का जन्म माता कुंती की गर्भ में हुआ था और कर्ण पांडवो का बड़ा भाई था।
वहीं एक और कहानी के अनुसार जिस स्थान पर कर्ण को समर्पित मंदिर है। यह स्थान कभी जल के अन्दर था और मात्र कर्णशिला नाम के एक पत्थर की नोक जल के बाहर थी। कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद भगवान कृष्ण ने कर्ण का दाह संस्कार कर्णशिला पर अपनी हथेली का संतुलन बनाये रखकर किया था।
कर्णप्रयाग की पौराणिक मान्यतायें (Historical Importance related to KarnaPrayag)
पौराणिक मान्यताओं और कथा के अनुसार पौराणिक समय में कर्ण ने उमा देवी की शरण में रहकर इस संगम स्थल में भगवान सूर्य की कठोर तपस्या की थी। जिससे की भगवान शिव, कर्ण की तपस्या को देखकर प्रसन्न हुए और भगवान सूर्य ने उन्हें अभेद्य कवच, कुंडल और अक्षय धनुष प्रदान किया था। कर्ण मंदिर इस स्थान पर स्थित होने के कारण इस स्थान पर स्नान के बाद दान करना अत्यंत पूर्णकारी माना जाता है। यह भी कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने इसी स्थान पर कर्ण का अंतिम संस्कार किया था। इसलिए इस स्थान पर पितरो को तर्पण देना भी महत्वपूर्ण माना जाता है। कर्णप्रयाग की अन्य कथा ये भी है कि जब भगवान शिव के द्वारा अपमान किये जाने पर मां पार्वती अग्नि कुंड में कूद गयी थी तो उन्होंने हिमालय की पुत्री के रूप अपना दूसरा जन्म उमा देवी के रूप में लिया था और उन्होंने शिव को पाने के लिए कठिन तपस्या की थी और इसी स्थान पर मां उमा का प्राचीन मंदिर भी है।
कर्णप्रयाग के आकर्षण स्थल (Travel Places in KarnaPrayag)
उमा मंदिर
इस मंदिर की स्थापना 8वीं सदी में आदि शंकराचार्य द्वारा की गई थी। जबकि इस स्थान पर बहुत पहले से ही उमा देवी की मूर्ति स्थापित थी। ऐसा कहा जाता है कि संकसेरा के एक खेत में उमा का जन्म हुआ था और और ये भी कहा जाता है कि एक डिमरी ब्राह्मण को देवी ने स्वप्न में आकर अलकनंदा और पिंडर नदियों के संगम पर उनकी प्रतिमा स्थापित करने का आदेश दिया था।
कर्णमंदिर
ये मंदिर संगम स्थल के बाएं किनारे पर बनाया गया है, जो कि कर्ण के नाम पर है। पुराने मंदिर का वर्तमान समय में दोबारा निर्माण हुआ है। और इस मंदिर में मानव के आकर से भी बड़े आकर की कर्ण और भगवान कृष्ण की मूर्ति मंदिर में स्थापित है। मंदिर के अन्दर छोटे मंदिर भी स्थित है जो कि भूमिया देवता, राम, सीता और लक्षमण, भगवान शिव और मां पार्वती को समर्पित है।
नंदप्रयाग
अलकनंदा और नंदकिनी नदी के संगम का स्थान नंदप्रयाग है। ये आध्यात्मिकता और भक्ति का स्थान है और साथ ही सुंदर नजारों का भी। धार्मिक, प्राकृतिक और आध्यात्मिक महत्व का एक विशेष स्थान, नंदप्रयाग अलकनंदा नदी के पांच मिलन बिंदुओं में से एक है, जिसमें अन्य नदियां बहती हैं। उत्तराखंड के शक्तिशाली हिमालय में जहां पर सैकड़ों नदी और नाले बहते हैं,
नंदप्रयाग आध्यात्मिकता और धर्म का केंद्र है। 900 मीटर की ऊंचाई पर स्थित ये जगह अद्भुत पहाड़ों और खूबसूरत वादियों से घिरा हुआ है। ये शहर उस समय के यदु साम्राज्य की राजधानी भी हुआ करता था, जिसके राजा ने प्रसिद्ध नंदा मंदिर का निर्माण किया था। नंदप्रयाग इसके अलावा सहज प्राकृतिक सौंदर्य का स्थान भी है।
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