Delhi Historical 5 Devi Mandir: दिल्ली में हैं ये 5 प्राचीन देवी मंदिर, कितना जानते हैं इनके बारे में?
Delhi Historical 5 Devi Mandir : इस आर्टिकल में हम देश की राजधानी दिल्ली और उसके आसपास मौजूद देवी के 5 बेहद प्राचीन और ऐतिहासिक मंदिरों के बारे में जानेंगे. दिल्ली और उसके आसपास के इलाक़े सिर्फ़ राजनीति, इतिहास और आधुनिक वास्तुकला के लिए ही मशहूर नहीं हैं, बल्कि यहां की धरती मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों से भी पवित्र मानी जाती है. यहां ऐसे मंदिर हैं जो सहस्त्राब्दियों से भक्तों की आस्था का केंद्र रहे हैं, तो कुछ ऐसे भी हैं जो आधुनिक युग में बने लेकिन उनकी भव्यता और श्रद्धा में कोई कमी नहीं है. महाभारत काल की कहानियों से लेकर आज के समय तक, ये मंदिर देवी की शक्ति, करुणा और आशीर्वाद के प्रतीक हैं, आइए जानते हैं दिल्ली और आसपास के पाँच प्रमुख देवी मंदिरों के बारे में…
कालकाजी मंदिर दक्षिण दिल्ली के नेहरू प्लेस क्षेत्र में स्थित है और इसे जय कालका माता के नाम से भी जाना जाता है। ये मंदिर देवी माँ के स्वरूप महाकाली को समर्पित है और दिल्ली का सबसे प्रसिद्ध शक्तिपीठ माना जाता है. मान्यता है कि यहाँ पूजा करने से भक्त के जीवन से नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है और सुख-समृद्धि आती है. ये मंदिर पूरे वर्ष खुला रहता है, लेकिन नवरात्रि के दौरान यहां लाखों भक्त दर्शन के लिए आते हैं. दिल्ली में मौजूद कालकाजी मंदिर बेहद खास है. इसका निर्माण ईंट और संगमरमर के पत्थरों से किया गया है. ये मंदिर पिरामिडनुमा आकार में बना है. इसका सेंट्रल चैंबर संगमरमर से बना हुआ है. मंदिर का बरामदा करीब आठ से नौ फीट चौड़ा है. मंदिर के गर्भगृह में माता का शक्तिपीठ की मूर्ति स्थापित है और मंदिर के आंगन में दो बाघों की मूर्ति स्थापित की गई है. मंदिर में काली देवी की एक पत्थर की मूर्ति भी स्थित है.
मान्यता है कि इस पीठ का स्वरूप हर काल में बदलता रहता है और मां दुर्गा ने यहीं पर महाकाली के रूप में प्रकट होकर असुरों का संहार किया था. मान्यताओं के अनुसार मंदिर तीन हजार साल से अधिक पुराना है। मंदिर में बड़ी संख्या में लोग अपने बच्चों के मुंडन के लिए भी आते हैं. आप जब मंदिर में प्रवेश करते हैं तो आपको दोनों ओर जर्जर अवस्था में पुरानी धर्मशालाएं नज़र आती हैं, जो बताती हैं कि यहां कभी लोग आकर ठहरा भी करते थे, हालांकि आज ये व्यवस्था बंद हो चुकी है.
ऐसा माना जाता है कि महाभारत काल में युद्ध से पहले भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों के साथ यहां भगवती की अराधना की थी. बाद में बाबा बालकनाथ ने इस पर्वत पर तपस्या की। तब मां भगवती ने उन्हें दर्शन दिए थे.
मौजूदा मंदिर बाबा बालकनाथ ने स्थापित किया था। ऐसा माना जाता है कि वर्तमान मंदिर के पुराने हिस्से का निर्माण मराठाओं ने सत्रह सौ चौसठ में करवाया था। बाद में अट्ठारह सौ सोलह में अकबर द्वितीय ने इसका पुनर्निर्माण करवाया.
बीसवीं शताब्दी के दौरान दिल्ली में रहने वाले हिन्दू धर्म के अनुयायियों और व्यापारियों ने यहां चारों ओर कई मंदिरों और धर्मशालाओं का निर्माण कराया था. उसी दौरान इस मंदिर का वर्तमान स्वरूप बनाया गया था.
मंदिर पिरामिडनुमा आकार में बना हुआ है. मंदिर का सेंट्रल चैंबर पूरी तरह से संगमरमर के पत्थर से बना हुआ है। मंदिर में काली देवी की एक पत्थर की मूर्ति भी है। मुख्य मंदिर में बारह द्वार हैं। ये बारह महीनों का संकेत देते हैं. हर द्वार के पास माता के अलग-अलग रूपों का चित्रण किया गया है.दुनिया भर के मंदिर ग्रहण के वक्त बंद होते हैं, जबकि कालकाजी मंदिर खुला होता है. अकबर द्वितीय ने इस मंदिर में 84 घंटे लगवाए थे. इनमें से कुछ घंटे अब मौजूद नहीं हैं. इन घंटों की विशेषता यह है कि हर घंटे की आवाज अलग है. इसके अलावा तीन सौ साल पुराना ऐतिहासिक हवन कुंड भी मंदिर में है और वहां आज भी हवन किए जाते हैं.
मां के शृंगार दिन में दो बार बदले जाते हैं.सुबह के समय मां के सोलह शृंगार के साथ फूल, वस्त्र आदि पहनाए जाते हैं, वहीं शाम को शृंगार में आभूषण से लेकर वस्त्र तक बदले जाते हैं. मां की पोशाक के अलावा जूलरी का विशेष महत्व होता है। नवरात्र के दौरान रोजाना मंदिर को डेढ़ सौ किलो फूलों से सजाया जाता है। इनमें से काफी सारे फूल विदेशी होते हैं. मंदिर की सजावट में इस्तेमाल फूल अगले दिन श्रद्धालुओं को प्रसाद के साथ बांटे जाते हैं. यहां की देवी को जगदंबा कालका भी कहा जाता है, जो भक्तों के संकट हरने वाली मानी जाती हैं.
शिव मंदिर – जहां भगवान शिव के शिवलिंग की पूजा होती है.
हनुमान मंदिर – यहाँ मंगलवार और शनिवार को विशेष भीड़ होती है.
राम दरबार – जिसमें भगवान राम, माता सीता, लक्ष्मण और हनुमान जी की प्रतिमाएं हैं.
शनि मंदिर – भक्त यहाँ शनि दोष निवारण के लिए तेल चढ़ाते हैं.
महालक्ष्मी मंदिर – धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी की प्रतिमा.
भैरव मंदिर – मान्यता है कि कालकाजी माता की पूजा भैरव जी के दर्शन के बिना अधूरी रहती है.
आइए अब जानते हैं कि आप यहां कैसे पहुंच सकते हैं।
मेट्रो से, सबसे नज़दीकी मेट्रो स्टेशन कालकाजी मंदिर मेट्रो स्टेशन है, जो मैजेंटा लाइन और वायलेट लाइन का इंटरचेंज है.
स्टेशन से मंदिर सिर्फ तीन सौ से चौर सौ मीटर दूर है, पैदल यहां पहुंचने में पांच से सात मिनट लगते हैं.
बस की बात करें, तो कालकाजी मंदिर बस स्टॉप तक डीटीसी और क्लस्टर बसें नियमित चलती हैं.
बस स्टॉप से मंदिर का प्रवेश द्वार केवल दो सौ से तीन सौ मीटर की दूरी पर है.
सड़क मार्ग से : कनॉट प्लेस से दूरी लगभग बारह से तेरह किलोमीटर है.
हवाई मार्ग से इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से दूरी लगभग अट्ठारह से उन्निस किलोमीटर है.
आसपास पार्किंग की सीमित सुविधा उपलब्ध है, इसलिए त्योहारों के दौरान पब्लिक ट्रांसपोर्ट से आना सुविधाजनक रहता है.
झंडेवालान मंदिर, दिल्ली के करोल बाग और पहाड़गंज के बीच स्थित है, और इसे माँ आदी शक्ति के स्वरूप माँ आदी शक्ति झंडेवाली को समर्पित माना जाता है। ये मंदिर दिल्ली के प्राचीनतम और प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ पर देवी दुर्गा के कई रूपों की पूजा होती है, और खासकर नवरात्रि के समय यहाँ लाखों भक्त दर्शन करने आते हैं। मंदिर का नाम झंडेवालान इस कारण पड़ा क्योंकि यहाँ प्राचीन समय में एक साधु ने बड़े-बड़े झंडे चढ़ाए थे, और धीरे-धीरे यह स्थान झंडे का स्थान कहलाने लगा।
झंडेवालान मंदिर का इतिहास अट्ठारहवीं सदी के अंत से जुड़ा है, लेकिन इसकी पौराणिक महत्ता उससे भी कहीं पुरानी है। झंडेवालान मंदिर की स्थापना की कहानी का केंद्र हैं भक्त बद्रीदास, जो पुरानी दिल्ली के एक संपन्न व्यापारी थे और माँ दुर्गा के परम भक्त माने जाते थे।
कहा जाता है कि एक रात माँ ने उन्हें स्वप्न में दर्शन दिए और कहा कि वे दिल्ली के उस विशेष स्थान पर खुदाई करें जहाँ वे खड़ी थीं। अगली सुबह, बद्रीदास ने स्वप्न में बताए गए स्थान पर खुदाई करवाई और वहाँ से देवी की एक प्राचीन मूर्ति प्राप्त हुई। ये मूर्ति मिट्टी और पत्थरों में दबी हुई थी, लेकिन पूरी तरह सुरक्षित थी।
बद्रीदास ने उसी स्थान पर एक छोटा मंदिर बनवाकर माँ की मूर्ति को स्थापित किया और नियमित पूजा-अर्चना शुरू कर दी।
अब हम ये जानते हैं कि इस मंदिर का नाम झंडेवालान मंदिर कैसे पड़ा. दरअसल, बद्रीदास माँ के प्रति अपनी भक्ति दिखाने के लिए मंदिर पर एक विशाल लाल झंडा चढ़ाते थे। धीरे-धीरे भक्तों ने भी अपनी मनोकामना पूरी होने पर यहाँ झंडा चढ़ाना शुरू किया।
इस परंपरा के कारण इस स्थान को झंडे का स्थान और आगे चलकर झंडेवालान कहा जाने लगा। आज भी यह परंपरा चली आ रही है और मंदिर की पहचान का मुख्य हिस्सा है।
शुरुआती दौर में मंदिर छोटा और साधारण था, लेकिन समय के साथ भक्तों की संख्या बढ़ने लगी। उन्निसवीं और बीसवीं सदी में यहाँ कई बार पुनर्निर्माण और विस्तार कार्य हुए। आधुनिक काल में मंदिर दो मंज़िला भव्य भवन के रूप में विकसित हुआ है.
मंदिर में भव्य सीढ़ियाँ, विशाल तोरणद्वार और सफेद-लाल रंग की वास्तुकला इसे एक विशिष्ट पहचान देते हैं।
झंडेवालान मंदिर सिर्फ पूजा का स्थल नहीं रहा, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का भी केंद्र रहा है। नवरात्रि में यहाँ विशाल भंडारे, भजन संध्याएँ और कन्या पूजन के कार्यक्रम आयोजित होते हैं। कई सामाजिक संस्थाएँ यहाँ से गरीबों और जरूरतमंदों को भोजन और सहायता भी उपलब्ध कराती हैं।
मंदिर का मुख्य भवन सफेद और लाल रंग के पत्थरों से बना है, जिसकी वास्तुकला पारंपरिक हिंदू शैली में है। गर्भगृह में माँ झंडेवाली की दिव्य मूर्ति स्थापित है, जो सोने के आभूषणों और लाल-सुनहरे वस्त्रों से सजी रहती है। मंदिर का निचला भाग महाकाली और चंडी देवी की पूजा के लिए समर्पित है, जबकि ऊपरी मंज़िल पर माँ झंडेवाली की प्रतिमा है। मंदिर के चारों ओर विशाल प्रांगण है, जिसमें बैठने, भजन-कीर्तन और प्रसाद वितरण की व्यवस्था है।
मंदिर के सामने एक बड़ा तोरणद्वार और भव्य सीढ़ियाँ हैं, जिनसे ऊपर जाकर गर्भगृह तक पहुंचा जाता है। माँ झंडेवाली को भक्त मनोकामना पूर्ण करने वाली देवी मानते हैं। यहाँ विशेष रूप से नवरात्रि में भव्य आयोजन होता है, जिसमें प्रतिदिन भजन, हवन, कन्या पूजन और विशाल भंडारा होता है। साल भर हर रविवार और मंगलवार को यहाँ बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।
मंदिर में झंडा चढ़ाने की परंपरा आज भी जीवित है, और यह झंडे भक्त अपनी मनोकामना पूरी होने पर चढ़ाते हैं.
झंडेवालान मंदिर परिसर और उसके आस-पास कई अन्य देवी-देवताओं के मंदिर हैं, जैसे:
हनुमान मंदिर – ये झंडेवालान मेट्रो स्टेशन के नज्दीक है, यहाँ मंगलवार को विशेष भीड़ होती है.
शिव मंदिर – गर्भगृह के निकट है, यहां शिवलिंग स्थापित है. यहां की सकारात्मक ऊर्जा आपको प्रफुल्लित कर देती है.
भैरव मंदिर – परंपरा के अनुसार, माँ के दर्शन के बाद यहाँ भी दर्शन किए जाते हैं.
शनि देव मंदिर – शनि दोष निवारण के लिए तेल और काले तिल चढ़ाए जाते हैं.
छोटे-छोटे देवी मंदिर – माँ लक्ष्मी, माँ सरस्वती और अन्य स्वरूपों की प्रतिमाएं.
मेट्रो की बात करें तो, सबसे नज़दीकी मेट्रो स्टेशन झंडेवालान मेट्रो स्टेशन है, जो ब्लू लाइन पर स्थित है. स्टेशन से मंदिर लगभग आठ सौ मीटर दूर है.
बस की बात करें, तो डीटीसी और क्लस्टर बसें झंडेवालान या करोल बाग रूट पर नियमित चलती हैं.
बस स्टॉप से मंदिर का प्रवेश द्वार दो सौ से तीन सौ मीटर दूरी पर है.
सड़क मार्ग की बात करें, तो कनॉट प्लेस से दूरी लगभग तीन से चार किलोमीटर की है, जिसे कार या ऑटो से 15 मिनट में तय किया जा सकता है.
नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से दूरी लगभग दो से तीन किलोमीटर है.
मंदिर के पास सीमित पार्किंग उपलब्ध है, इसलिए त्योहारों के समय पब्लिक ट्रांसपोर्ट का प्रयोग सुविधाजनक है.
छतरपुर मंदिर दक्षिण दिल्ली में आता है. ये मंदिर देवी कात्यायनी को समर्पित है. इस मंदिर से जुडी एक बहुत अद्भुत और रोचक कहानी है, जिसे जानने के बाद हर कोई आश्चर्यचकित हो जाता है,उस पौराणिक कहानी के अनुसार एक बार एक ऋषि ने दुर्गा देवी की कठोर तपस्या की थी. ऋषि का नाम कात्यायन ऋषि था. रिषि की कठोर तपस्या को देखकर दुर्गा देवी प्रसन्न हुई और उस ऋषि के सामने प्रकट हुई.देवी ने उस रिषि की तपस्या से प्रसन्न होकर कहा की जो भी वरदान चाहते हो वो अवश्य मांगो.
उसके बाद कात्यायन ऋषि ने देवी से कहा कि आप मेरे घर में मेरी पुत्री बनकर जन्म लो। मुझे आपका पिता बनने की इच्छा है। रिषि के यह शब्द सुनकर देवी प्रसन्न हुई और उसे इच्छा अनुरूप वरदान दे दिया. देवी ने फिर ऋषि के घर में कात्यायन पुत्री के रूप में जन्म लिया और तभी से देवी के उस अवतार को कात्यायनी देवी अवतार कहा जाता है। इसीलिए दिल्ली के इस मंदिर को कात्यायनी देवी का छतरपुर मंदिर कहा जाता है.यह मंदिर दिल्ली के दक्षिण पश्चिम के हिस्से में आता है और यह क़ुतुब मीनार से केवल चार किमी की दूरी पर है.
इस मंदिर की स्थापना बाबा संत नागपाल ने सन उन्निस सौ चौहत्तर में की थी। उनकी मृत्यु उन्निस सौ अट्ठानवे में हुई थी. इस मंदिर परिसर में देवी कात्यायनी के मंदिर पर नवरात्रि के दौरान विशेष रूप से भीड़ जुटती है. नवरात्रि के छठे दिन मां दुर्गा के कात्यायनी स्वरूप की पूजा की जाती है.
इस मंदिर का जब भी जिक्र आता है, तब संत बाबा नागपाल जी का जिक्र भी होता है. ये दोनों एक ही सूत्र में हैं. बाबा जी का जन्म कर्नाटक में हुआ था, और वे होली की पूर्णिमा के शुभ दिन धरती पर आए थे. अपने माता–पिता को बहुत कम उम्र में खो देने के पश्चात् वे दिव्य शक्ति की तलाश में निकल पड़े. उन्होंने साधुओं से शिक्षा ली और भारत भर में तीर्थयात्राएँ कीं. वर्ष उन्निस सौ चौहत्तर में छतरपुर की गांव पंचायत ने उन्हें एक एकड़ भूमि प्रदान की। बाबा नागपाल जी ने भक्तों के सहयोग से वहीं मां कात्यायनी के लिए मंदिर निर्माण शुरू किया। इस काम में वे खुद गीलें ईंटे और कंकर उठाकर निर्मिति में लगे रहे। धीरे-धीरे उन्होंने आसपास की भूमि खरीदकर आज का विशाल साठ सत्तर एकड़ परिसर बनाया, जिसमें दक्षिण और उत्तर भारतीय स्थापत्य कला का संगम देखने को मिलता है। हर मंज़िल की जाली, संगमरमर की कलाकारी, और मंदिरों की सुंदरता बाबा की दूरदर्शिता और भगवती की कृपा का उदाहरण है.
इस मंदिर के तीन प्रांगण हैं. मुख्य परिसर में मां कात्यायनी की प्रतिमा है और शिवलिंग भी स्थापित है. इसके साथ ही राम लक्ष्मण और मां सीता की प्रतिमा भी यहां है. इसी के दाहिनी ओर सड़क के पार स्थित है गौरी गणेश मंदिर. इस मंदिर का भव्य स्वरूप आपको मोह लेता है. इन दोनों मंदिरों के सामने सड़क के दूसरी ओर बाबा संत नागपाल जी की समाधि है. ये समाधि स्थल मंदिर के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व का एक प्रमुख हिस्सा है. परिसर के भीतर, एक शांत और पवित्र हिस्से में संत बाबा नागपाल जी की समाधि स्थित है. यह समाधि मंदिर के नागपाल बाबा समाधि एवं हनुमान जी परिसर में आती है, जिसे भक्त अत्यंत श्रद्धा और भावनाओं के साथ देखते हैं।
समाधि सफेद संगमरमर से बनी है, जिसके चारों ओर साफ-सुथरा और सुंदर प्रांगण है.
चारों ओर फूलों के बाग और हरियाली है, जिससे यहाँ का वातावरण हमेशा शांत और आध्यात्मिक बना रहता है.
समाधि के पास एक मंडपनुमा संरचना है, जहां भक्त बैठकर ध्यान, जप और प्रार्थना करते हैं.
समाधि के चारों ओर देवी मां की प्रतिमाएं हैं. भक्त इन सभी के दर्शन कर धन, विद्या और अन्न-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.
मंदिर के पूरे परिसर में शिव मंदिर, राम मंदिर, माँ कात्यायनी मंदिर, माँ महिषासुरमर्दिनी मंदिर, माँ अष्टभुजी मंदिर, झर्पीर मंदिर, मार्कंडेय मंदिर, बाबा संत नागपाल जी की समाधी, नागेश्वर मंदिर, त्रिशूल, एक सौ एक फीट की हनुमान मूर्ति भक्तों के विशेष आकर्षण का मुख्य केंद्र है.
नवरात्री, महाशिवरात्रि और जन्माष्टमी के दौरान तो मंदिर में हजारों भक्तों की भीड़ लगी रहती है। इस अवसर पर लाखों भक्त देवी के दर्शन के लिए आते है, जिसकी वजह से यहाँ का नजारा काफी देखने लायक होता है.
नवरात्री के दिनों में यहापर लाखों लोगो को लंगर का प्रसाद बाटा जाता है, यह दृश्य देखनेवालो का अपनी आँखों पे विश्वास ही नहीं होता क्यों की यह दृश्य देखने में काफी सुन्दर होता है.
सड़क के दूसरी ओर मुख्य मंदिर के प्रवेश द्वार पर ही एक पुराना पेड़ है और इस पेड़ पर पवित्र धागे बांधे जाते है. अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए लोग इस पेड़ को धागे और चूड़ियां बांधते हैं.
लोग इस विश्वास के साथ इस पेड़ को धागे बांधते है की उनकी हर व्यक्त की गयी इच्छा पूरी हो जाए। नवरात्री उत्सव के दौरान हजारों भक्त देवी के दर्शन करने के लिए आते रहते है। कम शब्दों में कहा जाए तो भारत की धार्मिक विरासत को दर्शाने वाला छतरपुर का मंदिर काफी महत्वपूर्ण मंदिर है।
छतरपुर मंदिर की वास्तुकला की बात की जाए तो वास्तुकला की दृष्टि से छतरपुर का मंदिर एक अद्भुत मंदिर है क्यों की इस मंदिर के पत्थर कवितायें दर्शाते है।
साल दो हजार पांच में दिल्ली में अक्षरधाम मंदिर बनने से पहले यह छतरपुर मंदिर भारत का सबसे बड़ा और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मंदिर हुआ करता था।
इस मंदिर को पूरी तरह से संगमरमर से बनाया गया था और मंदिर के सभी जगहों पर जाली से काम करवाया गया था। इस तरह की वास्तुकला को वेसारा वास्तुकला कहा जाता है।
बहुत बड़ी जमीन पर फैले हुए इस मंदिर की सारी इमारते विभिन्न तरह के वस्तुओ से बनी है। इस मंदिर के परिसर में कई सारे सुन्दर बाग और लॉन बनाये गए है जिन्हें देखकर किसी भी भक्त के मन को शांति मिलती है।
मंदिर में की गई नक्काशी का काम सच में काफी प्रशंसनीय है। मंदिर के बड़े आकार की वजह से यहाँ का परिसर काफी अच्छा दिखता है।
देवी कात्यायनी की मूर्ति एक बडेसे से भवन में स्थापित की गयी है और इस भवन में प्रार्थना के हॉल से भी प्रवेश किया जा सकता है। सोने के मुलामे से बने हुई देवी कात्यायनी की मूर्ति हमेशा भव्य कपडे, सोने और सुन्दर फूलो के हार से अलंकृत की जाती है। नवरात्रि के दिनों में तो यहाँ पर हजारों भक्तों की भीड़ लगी रहती है।
इतनी बड़ी भक्तों की भीड़ को नियंत्रित करने के लिए उन्हें साप की कतार में खड़ा किया जाता है। इन लम्बी लम्बी कतारों को नियंत्रित करने के लिए बहुत सारे सुरक्षा रक्षक तैनात किये जाते है.
मंदिर के नज़्दीक ही श्री संत नागपाल निदान एवं अनुसंधान केंद्र है. छतरपुर मेट्रो स्टेशन से उतरकर आप जैसे ही मंदिर की ओर बढ़ते हैं, आपको रास्ते में ये बाईं ओर ये इमारत दिखाई देती है. यहां आम लोगों को बहुत ही कम खर्च में इलाज की सुविधा मिलती है.
छतरपुर मंदिर तक कैसे पंहुचा जा सकता है, आइए अब इसे समझते हैं.
देश की राजधानी दिल्ली के इस छतरपुर मंदिर में पहुचने के लिए पुरे देश से सुविधा उपलब्ध है.
सबसे करीबी मेट्रो स्टेशन छतरपुर है, आप वहां से पैदल या रिक्शे की मदद से यहां तक आ सकते हैं, नज्दीकी रेलवे स्टेशन निजामुद्दीन रेलवे स्टेशन है.
यहा का सबसे नजदीकी हवाई अड्डा इंदिरा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हवाईअड्डा है.आप यहां अगर अपने वाहन से आते हैं, तो पार्किंग की चिंता मत करिए, यहां पार्किंग मुफ्त है और उपलब्ध होने पर ठहरने की सुविधा भी मिलती है.
दिल्ली के छतरपुर मंदिर की कई सारी विशेषताएं है। इस मंदिर की सबसे खास बात यह है की इस मंदिर में कोई अगर एक बार प्रवेश कर ले तो फिर वो मंदिर में चारो ओर घूमता ही रह जाता है। उसे मालूम ही नहीं पड़ता की कहा से मंदिर की शुरुआत है और कहा पर मंदिर से बाहर निकलने का रास्ता है।
क्यों की इस मंदिर को बनाया ही है कुछ इस तरीके से, कि किसी भी दिशा में जाने के बाद मंदिर का अंतिम छोर नजर ही नहीं आता। ऐसा लगता है कि हर दिशा में अन्दर जाने का रास्ता दिखता है और बाहर जाने का कोई नामोनिशान मिलता ही नहीं।
दिल्ली और उसके आसपास फैले ये पाँचों देवी स्थिल, महरौली का प्राचीन योगमाया मंदिर, दक्षिणी दिल्ली का कालकाजी मंदिर, मध्य दिल्ली का झंडेवालान मंदिर, गुरुग्राम का शीतला माता मंदिर और विशाल छतरपुर कात्यायनी मंदिर — न केवल आस्था और श्रद्धा के केंद्र हैं, बल्कि ये हमारी सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और स्थापत्य धरोहर के भी अनमोल रत्न हैं। इन मंदिरों में देवी मां के अलग-अलग रूपों के दर्शन से मन को शांति और शक्ति मिलती है, और हर भक्त का अनुभव अलग ही अद्भुत होता है। यदि आप भी इन मंदिरों की भव्यता और आध्यात्मिक वातावरण को महसूस करना चाहते हैं, तो इन्हें अपनी जीवन यात्रा में ज़रूर शामिल करें।
अगर आपको हमारी दी गई जानकारी पसंद आई हो तो हमारे चैनल को सब्सक्राइब करें, वीडियो को लाइक और शेयर करें, और हमें कमेंट में बताएं कि इन पाँचों में से आप सबसे पहले किस मंदिर के दर्शन करने जाएंगे। आपकी हर यात्रा माँ के आशीर्वाद से मंगलमय हो।
योगमाया मंदिर, जो महरौली, दिल्ली में स्थित है, और कुतुब मीनार से लगभग 850 मीटर की दूरी पर है, एक प्राचीन मंदिर है जिसका ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व बहुत अधिक है. योगमाया देवी को भगवान कृष्ण की बड़ी बहन माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, द्वापर युग में, कृष्ण के जन्म से पहले, माता दुर्गा ने कुछ समय के लिए योगमाया के रूप में अवतार लिया था। देवी भागवत पुराण के अनुसार, योगमाया ने देवी के गर्भ को रोहिणी के गर्भ में पहुँचाया, जिससे बलराम का जन्म हुआ, जिसके बाद यशोदा के गर्भ से योगमाया का जन्म हुआ। एक किंवदंती के अनुसार, जब राजा कंस ने योगमाया को एक शिला पर पटककर मारने का प्रयास किया, तो वह उसके हाथों से फिसल गईं और एक आकाशवाणी (दिव्य आवाज) ने घोषणा की कि उनका वध करने वाला पहले ही कहीं और जन्म ले चुका है. शिशु उस स्थान पर गिरा जहाँ महरौली में योगमाया मंदिर स्थित है. दूसरा भाग मिर्जापुर के विंध्याचल में विंध्यवासिनी देवी के रूप में पूजित है.तीसरा भाग आकाश में बिजली बनकर चमकता है.इसे भी योगमाया देवी का एक रूप माना जाता है.
यह मंदिर पांडव कालीन मंदिर माना जाता है, जो लगभग 5,000 साल पुराना है. मंदिर का प्रबंधन पिछले 850 वर्षों से एक ही परिवार (‘वक्फ प्लान’) द्वारा संभाला जा रहा है. देवी भागवत (जिसमें 1008 श्लोक हैं) में इसका उल्लेख है कि भगवान श्रीकृष्ण स्वयं पांडवों को लेकर अपने अज्ञातवास के दौरान इस मंदिर में आए थे और उन्होंने यहाँ योगमाया देवी की पूजा की थी. ऐसा कहा जाता है कि औरंगजेब ने भी इस मंदिर पर चढ़ाई करने का प्रयास किया था लेकिन वह सफल नहीं हो सका, संभवतः देवी की शक्ति के भय से उसने अपना प्रयास अधूरा छोड़ दिया। मंदिर में एक भंडार गृह (माल गोदाम) है, जिसका उपयोग मंदिर की आवश्यक वस्तुओं जैसे घी आदि को रखने के लिए किया जाता है। इसकी संरचना गुंबदनुमा है, जो मस्जिद के समान दिखती है.
योगमाया मंदिर में हर साल 6 जुलाई को कल्कि जयंती मनाई जाती है। यह उत्सव 1997 से लगातार आयोजित किया जा रहा है, यानी 35 वर्षों से. इस कार्यक्रम के दौरान, कल्कि, भगवान विष्णु और योगमाया देवी के भजन गाए जाते हैं, जिससे महरौली और पहाड़गंज से कई भक्त आकर्षित होते हैं. योगमाया मंदिर का संबंध प्रसिद्ध ‘फूल वालों की सैर’ उत्सव से है, जो हिंदू-मुस्लिम एकता (सांप्रदायिक सद्भाव) का प्रतीक है और हर साल महरौली के जहाज महल और पास के जलाशय में मनाया जाता है।
इस उत्सव की शुरुआत बहादुर शाह जफर के समय में हुई थी. उनकी बेगम, अपने बेटे मिर्जा जहाँगीर की कैद और निर्वासन से दुखी थीं, उन्होंने मन्नत माँगी कि यदि उनका बेटा रिहा हो जाता है, तो वह ख्वाजा बख्तियार काकी की दरगाह पर फूलों की चादर और योगमाया मंदिर में फूलों के पंखे और छत्र चढ़ाएँगी. जब मिर्जा जहाँगीर वास्तव में रिहा हुए, तो बहादुर शाह जफर ने इसे मनाने के लिए दिल्ली के फूल वालों को शामिल करते हुए एक भव्य जुलूस का आयोजन किया, जिससे दरगाह और मंदिर दोनों के लिए फूलों की भेंट तैयार की गईं.इस आनंदमय अवसर को ‘फूल वालों की सैर’ नाम दिया गया और यह एक वार्षिक परंपरा बन गई, जो हिंदुओं और मुसलमानों के बीच एकता का प्रतीक है। आज, दिल्ली के बाहर के विभिन्न राज्यों के लोग भी इस मेले में भाग लेते हैं.
यह मंदिर महरौली, दिल्ली में स्थित है, जो ऐतिहासिक रूप से एक मुस्लिम-बहुल क्षेत्र था और चांदनी चौक के साथ दिल्ली का एक प्रमुख आवासीय केंद्र था।
योगमाया मंदिर का निकटतम मेट्रो स्टेशन कुतुब मीनार है, जहाँ से मंदिर 20 मिनट की पैदल दूरी पर है या ऑटो से ₹50 में पहुँचा जा सकता है।
यदि आप कार से यात्रा कर रहे हैं, तो मंदिर कालका दास मार्ग से चंद कदमों की दूरी पर है, और वाहन आसानी से मंदिर तक पहुँच सकते हैं। टैक्सी भी बुक की जा सकती है।
हवाई यात्रियों के लिए, दिल्ली का इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (IGI) मंदिर से लगभग आधा किलोमीटर की दूरी पर है, जबकि गाजियाबाद का हिंडन हवाई अड्डा लगभग 30 किलोमीटर दूर है.
महरौली मंदिर के अलावा, भारत में देवी के कई अन्य योगमाया मंदिर भी हैं, जिनमें शामिल हैं,मिर्जापुर के पास विंध्याचल में विंध्याचल मंदिर,बाड़मेर का योगमाया मंदिर,
जोधपुर का योगमाया मंदिर,वृंदावन का योगमाया मंदिर,पाकिस्तान के मुल्तान, केरल के अलमठी और त्रिपुरा में अगरतला के पास भी योगमाया मंदिर हैं,दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में कई अन्य प्राचीन मंदिर भी हैं, जैसे:गाजियाबाद का दूद्धेश्वर विश्वनाथ मंदिर,प्रगति मैदान स्थित दूध्या भैरव मंदिर,पहाड़गंज का भगवान विश्वकर्मा मंदिर.
पहाड़गंज में स्थित बाराही मंदिर,चाणक्यपुरी का प्राचीन श्री बटुक भैरव मंदिर,कनॉट प्लेस में स्थित हनुमान मंदिर, गुरुग्राम में शीतला माता मंदिर,प्रगति मैदान में ही स्थित किल्क भैरव मंदिर. दिल्ली का नीली छतरी मंदिर.
शीतला माता मंदिर, गुरुग्राम वीडियो का मुख्य केंद्र शीतला माता मंदिर है, जिसे एक बेहद प्राचीन और पवित्र तीर्थ स्थल के रूप में वर्णित किया गया है. यह मंदिर गुरुग्राम के मसानी गांव में शीतला माता रोड पर स्थित है। यह मां शीतला को समर्पित है, जिनकी पूजा चेचक और अन्य बीमारियों से रक्षा करने वाली देवी के रूप में की जाती है।
मंदिर का इतिहास लगभग 500 साल पुराना माना जाता है. इसके निर्माण का श्रेय 18वीं शताब्दी में भरतपुर के हिंदू जाट राजा जवाहर सिंह को दिया जाता है। उन्होंने मुगलों पर अपनी जीत के लिए मां शीतला की कृपा मांगी थी और जीत के बाद इस भव्य मंदिर का निर्माण करवाया. कुछ विद्वानों का मानना है कि यह स्थान प्राचीन काल से ही आध्यात्मिक महत्व रखता था और इसका संबंध महाभारत काल से भी है, जहां यह गुरु द्रोणाचार्य के आश्रम के नजदीक था. वास्तुकला और विशेषताएं: मंदिर पारंपरिक हिंदू वास्तुकला शैली को दर्शाता है, जिसमें ऊंचे गुंबद और नक्काशीदार स्तंभ शामिल हैं. मुख्य आकर्षण मां शीतला की मूर्ति है, जिसे लाल और सुनहरे रंगों से सजाया जाता है. मंदिर परिसर में भगवान हनुमान, भगवान शिव, शनिदेव और मां दुर्गा को समर्पित छोटे मंदिर भी हैं। हरा-भरा उद्यान और भ्रमकुंड (पवित्र तालाब) इसकी सुंदरता को और बढ़ाते हैं.
इस मंदिर का महाभारत के प्रसिद्ध गुरु द्रोणाचार्य और उनकी पत्नी कृपि से गहरा ऐतिहासिक संबंध है. कृपि को शीतला माता या ललिता के रूप में भी जाना जाता है.
द्रोणाचार्य का आश्रम गुरुग्राम में था, जहाँ वे पांडवों और कौरवों को शिक्षा देते थे. कृपि दिल्ली के नजदीक केशवपुर गांव में रहती थीं और बीमार बच्चों, विशेष रूप से चेचक से पीड़ित बच्चों की देखभाल करती थीं, जिसकी वजह से उन्हें शीतला माता के रूप में पूजा जाने लगा. महाभारत युद्ध में गुरु द्रोणाचार्य की मृत्यु के बाद, कृपि ने गुरुग्राम में उसी स्थान पर अपने प्राण त्यागने का निर्णय लिया, जहाँ वे और द्रोणाचार्य रहते थे.अग्नि में प्रवेश करने से पहले, उन्होंने घोषणा की कि यह स्थान उनकी शक्ति, करुणा और मातृत्व का प्रतीक बनेगा, जहाँ उन्हें मां शीतला के रूप में पूजा जाएगा और वे बच्चों को सुरक्षा प्रदान करेंगी। उनके इसी बलिदान और आध्यात्मिक शक्ति ने मंदिर की नींव रखी. यह भी उल्लेख किया गया है कि गुरुग्राम जिले को द्रोणाचार्य की वजह से ही अपना नाम मिला।
मुंडन संस्कार: शीतला माता मंदिर “मुंडन संस्कार” के लिए एक बेहद लोकप्रिय स्थल है. यह हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में से एक है, जिसमें बच्चे के पहले बाल कटवाए जाते हैं। यह संस्कार बच्चे के जीवन से नकारात्मक ऊर्जा को हटाने और उसे स्वस्थ, समृद्ध और आध्यात्मिक जीवन प्रदान करने के लिए किया जाता है। हर साल हजारों परिवार अपने बच्चों का मुंडन संस्कार करवाने के लिए यहाँ आते हैं.
बेगम समरू की आस्था: वीडियो में 18वीं शताब्दी की प्रभावशाली मुस्लिम शासिका (जो बाद में ईसाई बनीं) और झाड़सा बादशाहपुर की गवर्नर बेगम समरू की भक्ति पर प्रकाश डाला गया है. बताया जाता है कि उनका एकमात्र पुत्र चेचक की गंभीर बीमारी से पीड़ित था, उस समय यह एक जानलेवा बीमारी थी जिसका कोई इलाज नहीं था।
स्थानीय सलाह पर, वह अपने पुत्र को शीतला माता मंदिर में लेकर आईं और मां शीतला के सामने प्रार्थना की। चमत्कारिक रूप से, उनका पुत्र जल्द ही ठीक हो गया।
इस घटना ने बेगम समरू को मां शीतला की शक्ति पर विश्वास दिलाया, और उन्होंने मंदिर के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया, जिससे यह विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच लोकप्रिय हुआ।
नजदीक एकलव्य मंदिर: वीडियो में शीतला माता मंदिर के पास ही सेक्टर 37 के खानसा गांव में स्थित एकलव्य मंदिर का भी उल्लेख है। यह एक छोटा लेकिन आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण मंदिर है, जिसे अक्सर शीतला माता मंदिर के साथ एक धार्मिक सर्किट के रूप में देखा जाता है।
मंदिर प्रबंधन: शीतला माता मंदिर ट्रस्ट मंदिर की दैनिक गतिविधियों, रखरखाव और तीर्थयात्रियों की सुविधाओं का ध्यान रखता है। ट्रस्ट की औपचारिक स्थापना 1950 के दशक में हुई थी। इसका मुख्य उद्देश्य मंदिर की पवित्रता को बनाए रखना, भक्तों की सुविधाओं को बढ़ाना और मंदिर की ऐतिहासिक विरासत को संरक्षित करना है। ट्रस्ट नियमित पूजा, त्योहार, भंडारा और मुफ्त चिकित्सा शिविर जैसे सामाजिक कार्य भी आयोजित करता है।
मेट्रो: नजदीकी मेट्रो स्टेशन इफको चौक मेट्रो स्टेशन (येलो लाइन) है, जो मंदिर से लगभग 7-8 कि.मी दूर है और यहां से ऑटो रिक्शा या कैब द्वारा पहुंचा जा सकता है.
सड़क: मंदिर नेशनल हाईवे आठ से लगभग 5 कि.मी दूर है, यहां अच्छी तरह से बनी स्थानीय सड़कें और मुफ्त कार पार्किंग उपलब्ध है.
बस: गुरुग्राम बस स्टैंड मंदिर से सिर्फ 2 कि.मी की दूरी पर है, जहां से स्थानीय बसों, ऑटो रिक्शा और कैब द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है.
रेलवे नजदीकी रेलवे स्टेशन गुरुग्राम रेलवे स्टेशन है, जो मंदिर से लगभग 3.5 कि.मी दूर है और प्रमुख शहरों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है.
हवाई मार्ग: दिल्ली का इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा मंदिर से लगभग 15-20 कि.मी की दूरी पर है, जहाँ से टैक्सी या कैब द्वारा 30-40 मिनट में पहुंचा जा सकता है.
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