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Devraha Baba Ashram : देवरहा बाबा का आश्रम कहां स्थित है? चमत्कार की कहानियां भी जानिए

Devraha Baba Ashram Chamatkaa :  भारत यूंही नहीं ऋषि-मुनियों का देश रहा है. यहां संतों की भक्ति की शक्ति का एहसास लोगों को प्राचीन काल से ही है. भारत में ऐसे कई संत हुए हैं, जिन्हें दिव्य संत कहा गया है. आज हम आपको एक ऐसे दिव्य संत, सिद्ध पुरुष, कर्मयोगी के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनका आशीर्वाद पाने के लिए देश-दुनिया के लोग उनके आश्रम पर आते थे. हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के चमत्कारी देवरहा बाबा की. देवरहा बाबा एक सिद्ध पुरुष व कर्मठ योगी थे. देवरहा बाबा ने कभी अपनी उम्र, तप, शक्ति और सिद्धि के बारे में कोई दावा नहीं किया. वे बिना पूछे ही सबकुछ जान लेते थे. आइए देवरहा बाबा के बारे में खास बात जानते हैं.

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देवराहा बाबा के बारे में || About Devraha Baba

देवराहा बाबा भारत के इतिहास में सबसे महान योगियों में से एक हैं, वे श्री रामानुज आचार्य (दक्षिण भारत के संत दार्शनिक, वैष्णव धर्म के संस्थापक) की वंशावली में ग्यारहवें हैं और उनके अच्छे शिष्यों में से एक थे. वह हमेशा प्रेम से ओतप्रोत रहते थे. वे प्रेमस्वरूप थे, (वास्तव में आध्यात्मिक) प्रेम के अवतार. पूरे भारत से सभी जातियों और वर्गों के लोग उन्हें नमन करने आते थे. वह भारतीय राजनेताओं के प्रिय थे, इंदिरा और राजीव गांधी, मंत्री, संत, योगी, पुजारी, अमीर और गरीब लोग उनसे मिलने आते थे. सभी बाबा के दर्शन (आध्यात्मिक आशीर्वाद) के लिए आते थे.
बाबा को “अनन्त योगी” कहा जाता था. देवरहा बाबा ने अपनी जीभ और अपनी मृत्यु के समय को नियंत्रित करके खेचरी मुद्रा में महारत हासिल की. ​​भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने योगी की बड़ी उम्र के बारे में देखा. 73 वर्ष की आयु में उन्होंने कहा कि जब वह छोटे लड़के थे, उनके पिता ने उन्हें बाबा से मिलने के लिए भेजा था, जो वही पुराने व्यक्ति थे, और उनके पिता उससे कई साल पहले से ही बाबा को जानते थे. देवरहा बाबा की उपस्थिति 12 मुख्य कुंभ मेला छुट्टियों में दर्ज की गई थी. यह 12 साल में एक बार होती है. इलाहाबाद उच्च न्यायालय के वकील ने निर्धारित किया कि उनके परिवार की सात पीढ़ियां देवरहा बाबा के चरणों में बैठी थीं. 19 जून 1990 को देवरहा बाबा ने अपना शरीर त्याग दिया और महासमाधि की स्थिति में प्रवेश किया.

कितने वर्ष तक जिये थे देवरहा बाबा || How many years did Devraha Baba live?

देवरहा बाबा का जन्म अज्ञात है. यहा तक कि उनकी सही उम्र का आकलन भी नहीं है. कहा जाता है कि वह करीब 900 साल तक जिन्दा थे. (बाबा के संपूर्ण जीवन के बारे में अलग-अलग मत है, कुछ लोग उनका जीवन 250 साल तो कुछ लोग 500 साल मानते हैं. उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद में एक योगी, सिद्ध महापुरुष एवं सन्तपुरुष थे देवरहा बाबा. डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, महामना मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टंडन जैसी विभूतियों ने पूज्य देवरहा बाबा के समय-समय पर दर्शन कर अपने का अनुभव किया था.

देवरहा बाबा के परिवार में कौन-कौन था || Who was in Devraha Baba’s family?

सिद्ध योगी देवरहा बाबा की असली जन्म तिथि अज्ञात है.उनका जन्म उत्तर प्रदेश के तत्कालीन गोरखपुर तथा वर्तमान बस्ती जिले के दुबौलिया ब्लाक/ थाना के अंतर्गत सरयू तट स्थित उमरिया नामक गांव में हुआ था, उनका बचपन का नाम जनार्दन दत्त दूबे था. उनके पिता का नाम पं. राम यश दूबे था उनके तीन पुत्र थे सूर्यबली देवकली और जनार्दन. पिता जी अपने तीनों बेटों से खेती का काम ही कराना चाहते थे जनार्दन सबसे छोटे भाई थे.तरुणाई में ही वे बड़ी बहन का उलाहना पाकर सरयू पार कर रामनगरी आ पहुंचे. यहां कुछ दिन निवास करने के बाद वे संतों की टोली के साथ उत्तराखंड चले गए. वहां पहुंचे संतों के मार्गदर्शन में योग एवं साधना की बारीकी सीखी.

देवरहा बाबा की वेशभूषा और उनके भक्त || Devraha Baba’s costumes and his devotees

देवरहा बाबा की दुबली-पतली शरीर, लंबी जटा, कंधे पर यज्ञोपवीत व कमर में मृगछाला ही पहचान थी.  देवरहा बाबा का दर्शन करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद, पं मदन मोहन मालवीय, पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, अटल बिहारी बाजपेयी, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव सहित विदेश के भी अनेकों लोगों ने उनके पास शीश नवाया है. सन 1911 में जॉर्ज पंचम भी देवरहा बाबा का आशीर्वाद लेने उनके आश्रम आए थे.  कहा जाता है कि बरसात के दिनों में सरयू नदी की बाढ़ का पानी उनके मचान को छुने के बाद घटने लगती थी.

पैर के अंगुठे से आशीर्वाद देते थे देवरहा बाबा || Devraha Baba used to bless with his toe.

देवरहा बाबा अपने मचान से श्रद्धालुओं को पैर के अंगूठा से आशीर्वाद देते थे. बाबा से आशीर्वाद लेकर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी प्रसन्न हो जाती थीं.

जल पर चलते थे  देवरहा बाबा || Devraha Baba used to walk on water

पूरे जीवन निर्वस्त्र रहने वाले बाबा से भक्तों का विश्वास है कि वे जल पर चलते थे, उन्हें प्लविनि सिद्धि प्राप्त थी. बाबा ने किसी भी जगह स्थल पर पहुंचने के लिए कभी सवारी नहीं की। वे हर साल माघ मेले में प्रयागराज जाते थे. यमुना किनारे वृंदावन में बाबा आधे घंटे तक बिना सांस लिए ही पानी में रह लेने थे.

देवरहा बाबा ने ही कांग्रेस को दिया था पंजा का निशान|| It was Devraha Baba who gave the paw mark to Congress

देश में आपातकाल के बाद 1977 में चुनाव हुआ तो इंदिरा गांधी बुरी तरह हार गईं. तब इंदिरा गांधी देवरहा बाबा का आशीर्वाद लेने उनके आश्रम पहुंचीं. बताया जाता है कि उस दौरान बाबा ने इंदिरा गांधी को हाथ का पंजा उठाकर आशीर्वाद दिया था. जिसके बाद से ही इंदिरा गांधी ने पार्टी का चुनाव चिन्ह हाथ का पंजा कर दिया. पंजा निशान पर ही 1980 में इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने प्रचंड जीत हासिल की और वह देश की प्रधानमंत्री बनीं.

बड़े-बडे़ नेता थे देवरहा बाबा के भक्त || Big leaders were devotees of Devraha Baba.

पूर्व राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी समेत कई बड़े राजनेता देवराहा बाबा के भक्त थे. देवरिया में जन्में संत देवराहा बाबा सिद्ध योगी थे. उनका देहावसान 19 जून 1990 में वृंदावन में हुआ था.

देवरहा बाबा के चमत्कार || Miracles of Devraha Baba

अपनी उम्र, कठिन तप और सिद्धियों के बारे में देवरहा बाबा ने कभी भी कोई चमत्कारिक दावा नहीं किया, लेकिन उनके इर्द-गिर्द हर तरह के लोगों की भीड़ ने उनके चमत्कार को देखा है. अत्यंत सहज, सरल और सुलभ बाबा के सानिध्य में जैसे वृक्ष, वनस्पति भी अपने को आश्वस्त अनुभव करते रहे. भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें अपने बचपन में देखा था. देश-दुनिया के महान लोग उनसे मिलने आते थे और विख्यात साधू-संतों का भी उनके आश्रम में समागम होता रहता था. उनसे जुड़ीं कई घटनाएं इस सिद्ध संत को मानवता, ज्ञान, तप और योग के लिए विख्यात बनाती हैं.

लगभग 1987 की बात होगी, जून का ही महीना था. वृंदावन में यमुना पार देवरहा बाबा का डेरा जमा हुआ था. अधिकारियों में अफरातफरी मची थी. प्रधानमंत्री राजीव गांधी को बाबा के दर्शन करने आना था. प्रधानमंत्री के आगमन और यात्रा के लिए इलाके की मार्किंग कर ली गई. आला अफसरों ने हैलीपैड बनाने के लिए वहां लगे एक बबूल के पेड़ की डाल काटने के निर्देश दिए. भनक लगते ही बाबा ने एक बड़े पुलिस अफसर को बुलाया और पूछा कि पेड़ को क्यों काटना चाहते हो ?

अफसर ने कहा, प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए जरूरी है. बाबा बोले, तुम यहां अपने पीएम को लाओगे, उनकी प्रशंसा पाओगे, पीएम का नाम भी होगा कि वह साधु-संतों के पास जाता है, लेकिन इसका दंड तो बेचारे पेड़ को भुगतना पड़ेगा! वह मुझसे इस बारे में पूछेगा तो मैं उसे क्या जवाब दूंगा? नही ! यह पेड़ नहीं काटा जाएगा. अफसरों ने अपनी मजबूरी बताई कि, यह दिल्ली से आए अफसरों का आदेश है, इसलिए इसे काटा ही जाएगा और फिर पूरा पेड़ तो नहीं कटना है, इसकी एक टहनी ही काटी जानी है, मगर बाबा जरा भी राजी नहीं हुए.उन्होंने कहा कि, यह पेड़ होगा तुम्हारी निगाह में, मेरा तो यह सबसे पुराना साथी है, दिन रात मुझसे बात करता है, यह पेड़ नहीं कट सकता. इस घटनाक्रम से बाकी अफसरों की दुविधा बढ़ती जा रही थी. आखिर बाबा ने ही उन्हें तसल्ली दी और कहा कि घबड़ाओ मत, अब पीएम का कार्यक्रम टल जाएगा. तुम्हारे पीएम का कार्यक्रम मैं कैंसिल करा देता हूं. आश्चर्य कि, दो घंटे बाद ही पीएम आफिस से रेडियोग्राम आ गया की प्रोग्राम स्थगित हो गया है. कुछ हफ्तों बाद राजीव गांधी वहां आए, लेकिन पेड़ नहीं कटा.

ऐसे पहुंचें देवरहा बाबा आश्रम ||How to reach Devraha Baba Ashram

देवरिया जिला मुख्यालय से लगभग 35 किलोमीटर दूर सरयू नदी के किनारे देवसिया गांव में देवरहा बाबा का आश्रम है. रेलवे स्टेशन लार रोड व सलेमपुर से निजी या किराये के वाहन से आसानी से देवरहा बाबा के आश्रम पहुंच सकते हैं.

राम मंदिर निर्माण की 33 साल पहले कर दी थी भविष्यवाणी || Construction of Ram temple was predicted 33 years ago

देवराह बाबा से एक बार पत्रकार ने साक्षात्कार में करीब 33 साल पहले पूछा था कि बाबा क्या राम मंदिर बन जाएगा. तो देवराह बाबा ने इस पर कहा था कि “सुनो, वो रोका नहीं है, कायदे से बन जाएगा, सुना मंदिर बन जाएगा, इसमे कोई संदेह नहीं है”. मंदिर प्रेम से बनेगा यह बात देवराह बाबा ने आज से 33 साल पहले एक पत्रकार को कही थी. जिसका वीडियो भी आज कल सामने देखने को खूब मिल रहा है. देवराह बाबा की यह भविष्यवाणी राम मंदिर को लेकर बिल्कुल सटीक बैठी और अब 22 जनवरी 2024 दिन सोमवार को अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हुई थी.

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