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Haridwar Travel Guide : हरिद्वार की यात्रा कैसे करें? यहां मिलेगी पूरी जानकारी

Haridwar Travel Guide : नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आपका Travel Junoon में. आज हम आपको लेकर चल रहे हैं देवभूमि उत्तराखंड के पवित्र शहर हरिद्वार में, जहां मैदानों में उतरते ही गंगा मां की पहली धारा पूरे माहौल में एक अद्भुत शांति और दिव्यता भर देती है. इस वीडियो में हम घूमेंगे हरिद्वार के प्रमुख मंदिर, मनसा देवी, चंडी देवी, माया देवी और कई ऐतिहासिक स्थान जैसे श्री राम मंदिर, श्री यंत्र मंदिर, जगद्गुरु आश्रम… साथ ही जानेंगे हरिद्वार के पंच तीर्थों के बारे में, जिसमें हर की पौड़ी, कुशावर्त घाट, दक्षेश्वर महादेव मंदिर, चंडी देवी मंदिर और मनसा देवी मंदिर शामिल है. साथ ही ये भी कि आप हरिद्वार कैसे पहुंच सकते हैं, आप हरिद्वार में क्या क्या कर सकते हैं, ठहरने के बेहतर ऑप्शन क्या है? धर्मशाला या होटल्स, आपके लिए क्या है सही? और साथ ही यहां आप किन किन बातों का ध्यान रखें. दो दिन की itinerary में हम हरिद्वार से जुड़ी सभी बातों को जानेंगे. साथ ही ये भी कि ये शहर घूमने के लिए स्कूटी हायर करना सही है या ऑटो-ई रिक्शा का ऑप्शन बेहतर रहता है. और शाम को हम चलेंगे हर की पौड़ी की दिव्य गंगा आरती में, जहां दीयो की रौशनी और मंत्रों की गूंज आत्मा को छू जाती है. तो चलिए दोस्तों, बिना देरी किए शुरू करते हैं हरिद्वार की ये आध्यात्मिक यात्रा… हर हर गंगे.

देवभूमि उत्तराखंड में स्थित है हरिद्वार, कभी इस शहर को मायापुरी, कपिलस्थल और गंगाद्वार के नाम से जाना जाता था. मां गंगा की पावन धारा यहीं से पर्वतों को छोड़कर भारत के मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती हैं. हरिद्वार शहर गंगा नदी के दाहिने किनारे पर, शिवालिक पर्वतमाला के foothills में बसा है. यहां भव्य कुंभ मेला भी आयोजित होता है, जिसमें लाखों-करोड़ों भक्त गंगा स्नान करने आते हैं.

पुराणों के अनुसार हरिद्वार उन चार स्थानों में से एक है जहां समुद्र मंथन के बाद अमृत की बूंदें गिरी थीं. अमृत की बूंदें हरिद्वार के अलावा उज्जैन, नासिक और प्रयागराज में गिरी थीं. जहां अमृत गिरा था, वो स्थान हर की पौड़ी पर स्थित ब्रह्मकुंड है, यानि हरिद्वार का सबसे पवित्र घाट.

हरिद्वार छोटा चार धाम यानि गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ का प्रवेश द्वार भी है. हरिद्वार का उच्चारण दो तरह से होता है – Haridwar और Hardwar. Haridwar का अर्थ है भगवान विष्णु का द्वार, और Hardwar का अर्थ है भगवान शिव का द्वार. ऐसा इसलिए क्योंकि यहीं से बद्रीनाथ यानि भगवान विष्णु के मंदिर और केदारनाथ यानि भगवान शिव के मंदिर की पावन यात्रा शुरू होती है.

ये माना जाता है कि यहीं राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए कठोर तप किया था, जिससे गंगा धरती पर अवतरित हुईं. इसी कारण आज भी लोग अपने प्रियजनों की अस्थियां यहां गंगा में प्रवाहित करते हैं.

चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 629 ई. में हरिद्वार का उल्लेख मो-यू-लो के रूप में किया था. ये शहर दिल्ली सल्तनत, मुगल साम्राज्य और अन्य राजवंशों के शासन में भी रहा. अकबर यहां के गंगाजल को अमृत जल कहकर अपने लिए मंगवाता था. सिखों के पहले गुरु, गुरु नानक देव जी ने 1504 ईस्वी में कुशावर्त घाट पर स्नान किया था.

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हरिद्वार रेलवे और बस स्टेशन || Haridwar Railway Station and Bus Station

हरिद्वार की इस पवित्र यात्रा की शुरुआत होती है हरिद्वार जंक्शन रेलवे स्टेशन और हरिद्वार रोडवेज बस अड्डे से. ये दोनों जगहें आमने सामने स्थित हैं और हर साल लाखों श्रद्धालुओं को उत्तराखंड की ओर लेकर जाती हैं.

बात करें हरिद्वार जंक्शन रेलवे स्टेशन की, तो हरिद्वार जंक्शन उत्तर भारत के सबसे व्यस्त रेलवे स्टेशनों में से एक है. यहां से आपको भारत के लगभग हर बड़े शहर के लिए सीधी ट्रेनें मिल जाती हैं, जैसे दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, जयपुर, अहमदाबाद, प्रयागराज, वाराणसी, लखनऊ, देहरादून, अमृतसर आदि. स्टेशन हरिद्वार के रेलवे रोड पर स्थित है और हर की पौड़ी से इसकी तीन किलोमीटर की है. स्टेशन के बाहर ऑटो, ई-रिक्शा और लोकल टैक्सी आसानी से मिल जाती हैं. यहां 24×7 फूड स्टॉल, वेटिंग हॉल और बुकिंग ऑफिस उपलब्ध हैं. अगर आप अपनी यात्रा बगैर होटल बुकिंग के एक दिन में पूरी करना चाहते हैं, तो यहां clock room की सुविधा भी उपलब्ध है. यहां एक सामान को 24 घंटे तक रखवाने के लिए आपको 30 रुपए देने होंगे और हां, उसपर ताला लगा होना चाहिए. अगर आप अपने वाहन से हरिद्वार आते हैं, तो यहां की पार्किंग का इस्तेमाल भी कर सकते हैं.

बात करें हरिद्वार रोडवेज बस अड्डे की तो यहां से आपको उत्तर भारत के कई शहरों के लिए रेगुलर बस सर्विस मिल जाती है, जैसे दिल्ली, चंडीगढ़, पंजाब और हिमाचल के लिए… साथ ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए भी.

हरिद्वार रेलवे और बस स्टेशन पर सभी तरह की Basic Amenities हैं. अगर आप अपने वाहन से हरिद्वार आ रहे हैं तो जान लें कि Haridwar National Highway 334 से कनेक्टेड है. आप इस हाइवे के जरिए यहां तक आ सकते हैं.

हरिद्वार का नजदीकी एयरपोर्ट || Haridwar Nearest Airport

हरिद्वार के सबसे नज़दीकी एयरपोर्ट का नाम जॉली ग्रांट एयरपोर्ट है, जिसे देहरादून एयरपोर्ट भी कहा जाता है। यह हरिद्वार से लगभग 35–40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जहां तक पहुँचने में सामान्यतः 45 से 50 मिनट का समय लगता है। यह एयरपोर्ट उत्तराखंड का एक प्रमुख हवाई अड्डा है और दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, बेंगलुरु, जयपुर और वाराणसी जैसे बड़े शहरों से सीधी या कनेक्टिंग फ्लाइट्स अवेलेबल रहती हैं.

हरिद्वार में कहां ठहरें || Where to Stay in Haridwar

दोस्तों आइए अब जानते हैं कि आप हरिद्वार में कहां स्टे कर सकते हैं. हरिद्वार में जिस रोड में रेलवे स्टेशन स्थित है, उसे रेलवे रोड कहते हैं. आपको यहां पर धर्मशाला, सस्ते लॉज, होटल्स, और लग्जरी स्टे के ऑप्शन भी मिल जाते हैं. अगर आप यहां बजट फ्रेंडली स्टे चाहते हैं, तो हरिद्वार की धर्मशालाएं बेस्ट ऑप्शन हैं. यहां आपको धन्नी देवी खन्ना धर्मशाला, मारवाड़ी पंचायती बाबा काली कमली धर्मशाला, मुरलीमल धर्मशाला, लखनऊ धर्मशाला, मद्रासी धर्मशाला जैसी कई धर्मशालाएं मिलती हैं. कई धर्मशालाओं में रेट्स 200 रुपए पर बेड से शुरू होते हैं. धर्मशालाएं किसी हैरिटेज की तरह मालूम होती हैं. आप अपने हिसाब से इन्हें चुन सकते हैं. हां इनकी ऑनलाइन बुकिंग नहीं होती है. धर्मशालाओं में बुकिंग ऑफलाइन ही होती हैं. हमने हरिद्वार की धर्मशालाओं पर एक डिटेल वीडियो बनाया है. आप ट्रैवल जुनून के यूट्यूब चैनल पर या आई बटन पर क्लिक करके उस वीडियो को देख सकते हैं.

स्टे के बाद अब जानते हैं ट्रांसपोर्ट के बारे में. अगर आप स्कूटी से हरिद्वार घूमना चाहते हैं, तो इसका विकल्प भी आपको मिलता है. शहर में नॉन सीजन में स्कूटी 500 रुपए पर डे के हिसाब से किराए पर मिलती है. सीजन में यही रेट डबल ट्रिपल हो जाता है. अगर आप दो से ज्यादा लोग हैं तो ऑटो या रिक्शा बुक करके यात्रा करना बेस्ट रहता है.

हर की पौड़ी, हरिद्वार || Har ki Pauri, Haridwar

हरिद्वार की यात्रा शुरू होती है हर की पौड़ी से. यही वो स्थान है जिसके बारे में कहा जाता है कि हरि के चरण यहां पड़े इसलिए इसे हर की पैड़ी भी कहा जाता है. हर की पौड़ी के ठीक पास ही स्थित है ब्रह्मकुंड — पौराणिक मान्यता है कि यहीं अमृत की बूंदें गिरी थीं. हर की पौड़ी और उसके घाटों पर पारंपरिक विधियों से तर्पण, पिंडदान, अस्थि-विसर्जन, नारायण-नागबली जैसे कर्मकांड किए जाते हैं. स्थानीय पुरोहित और श्री गंगा सभा जैसी संस्थाएं इन कर्मकांडों को व्यवस्थित व विधिवत संचालित करती हैं.

हर की पौड़ी पर होने वाली विश्व-प्रसिद्ध गंगा आरती की शुरुआत औपचारिक रूप से पंडित मदन मोहन मालवीय ने 1916 में की थी और तब से श्री गंगा सभा द्वारा सुबह (मंगल आरती) और शाम (संध्या/गौरी आरती) दोनों समय आरती का आयोजन किया जाता है.

इस घाट का सबसे पहले निर्माण राजा विक्रमादित्य ने करवाया था, वो भी अपने भाई भातृहरी के लिए जो यहां तप करने आए थे. हर की पौड़ी को समय-समय पर बढ़ाया, सहेजा और पुनर्निर्मित किया गया है. सबसे बड़े बदलावों में 19वीं सदी के बाद के सुधारों में 1938 में घाट के पास स्थित प्रसिद्ध घंटाघर यानि क्लॉक-टावर का निर्माण भी हुआ, जिसे राजा बलदेव दास बिड़ला ने बनवाया था — ये मालवीय द्वीप पर स्थित है और आज हरिद्वार की एक प्रमुख पहचान है.

हर की पौड़ी केवल एक घाट नहीं है, बल्कि यह पूरा क्षेत्र छोटे-बड़े कई मंदिरों का समूह है. अधिकतर मंदिर गंगा नदी के किनारे या घाटों के पीछे बने हैं. आप गंगा मंदिर सहित कई दूसरे मंदिरों में यहां दर्शन पूजन कर सकते हैं.

आप रेलवे स्टेशन या बस स्टेशन से ई रिक्शा लेकर हर की पौड़ी तक आ सकते हैं. आप यहां आराम से गंगा स्नान करें. महिलाओं के लिए हर की पौड़ी पर अलग घाट है और यहां चेंजिंग रूम भी बनाए गए हैं. आप यहां धनुष पुल की खूबसूरती भी देख सकते हैं, रात में ये पुल रौशनी से जगमगा उठता है.

आप हर की पौड़ी पर स्नान दर्शन पूजन के बाद आसपास मौजूद होटल्स में भोजन आदि कर सकते हैं. यहां मिठाईयों की भी कई दुकानें उपलब्ध हैं.

हर की पौड़ी के बाद शुरू होती है हरिद्वार के मंदिरों की और यहां के आध्यात्मिक स्थलों की यात्रा… हम आगे बढ़ें उससे पहले आपसे एक रिक्वेस्ट करते चलें, अगर आप पहली बार हमारे चैनल पर हैं, तो इसे सब्सक्राइब जरूर करें… आइए चलते हैं सफर में आगे

मनसा देवी मंदिर,हरिद्वार || Mansa Devi Mandir, Haridwar

दोस्तों, हरिद्वार के पावन मंदिरों की यात्रा शुरू होती है मनसा देवी मंदिर से. ये मंदिर मनसा देवी को समर्पित है — इन्हें हिंदू धर्म में “मनोकामना पूर्ण करने वाली देवी” माना जाता है। “मनसा” का अर्थ होता है “मन की इच्छा”. मनसा देवी मंदिर हरिद्वार के पंच तीर्थ में शामिल है.

मनसा देवी मंदिर उत्तराखंड राज्य के हरिद्वार शहर में शिवालिक पहाड़ियों की एक चोटी पर स्थित है. ये जगह हर की पौड़ी से कुछ ही दूरी पर है. मंदिर तक पहुंचने के लिए रोपवे और पैदल रास्ता दोनों मौजूद हैं, यहां बाइक से भी पहुंचा जा सकता है. ऊंचाई पर होने के कारण मंदिर से पूरे हरिद्वार शहर का नजारा बेहद मनमोहक दिखाई देता है.

मनसा देवी मंदिर का निर्माण 1811 से 1815 के बीच हुआ था। तब से भक्त अपनी मनोकामना के लिए मंदिर आते हैं। मनसा देवी मंदिर परिसर में ही एक पेड़ है, जिसकी शाखाओं पर लोग धागा बांधकर मन्नत मांग सकते हैं और जब पूरी हो जाती है तो उसे खोलते भी हैं।

हर की पौड़ी से मनसा देवी मंदिर की पैदल दूरी 3 किलोमीटर की है. पैदल रास्ते पर कुछ ही सीढ़ियां चढ़ने पर आपको सपाट रास्ता मिल जाता है. इस रास्ते में छायादार वृक्ष भी हैं. यहां तक पहुंचने के लिए कुछ लोग टू व्हीलर वाहन का भी इस्तेमाल भी करते हैं. हालांकि एक निश्चित जगह बाइक को खड़ा करना होता है और आगे की यात्रा पैदल ही होती है.

रोपवे सर्विस यहां खासी फेमस है. इसका पर पर्सन फेयर 200 रुपए है. अगर आप चंडी देवी तक के लिए ट्रांसपोर्ट लेते हैं तो उसके लिए 95 रुपए अतिरिक्त चुकाने होंगे. रोपवे से मनसा देवी मंदिर पहुंचने में 5 मिनट का वक्त लगता है. मंदिर परिसर में ही मनसा देवी मंदिर ट्रस्ट का कार्यालय है, आप यहां से आरती, पूजन आदि की जानकारी ले सकते हैं.

चंडी देवी मंदिर,हरिद्वार || Chandi Devi Mandir,Haridwar

दोस्तों मनसा देवी मंदिर के बाद आइए जानते हैं चंडी देवी मंदिर. ये भी हरिद्वार के पंच तीर्थों में शामिल स्थल है. मनसा देवी मंदिर से चंडी देवी मंदिर की दूरी साढ़े 4 किलोमीटर की है. अगर आपने काउंटर से ट्रांसपोर्ट यानि बस की टिकट नहीं ली है, तो मनसा देवी मंदिर पर ही खड़े ऑटो आपको 50 रुपए के किराए में चंडी देवी मंदिर तक ले जाते हैं, जहां से आप रोपवे लेकर चंडी देवी मंदिर जा सकते हैं.

यहां की रोपवे की टिकट 240 रुपए की है. अगर आप चंडी देवी और मनसा देवी का रोपवे टिकट मिलाकर लेना चाहते हैं, तो इसका फेयर 439 रुपए है.

चण्डी देवी मंदिर, देवी चण्डी को समर्पित है। ये मंदिर शिवालिक पर्वत श्रृंखला की पूर्वी दिशा में स्थित नील पर्वत की चोटी पर बना है। शिवालिक, हिमालय की सबसे दक्षिणी पर्वतमाला है।

इस मंदिर का वर्तमान ढांचा सन् 1929 में कश्मीर के राजा सचत सिंह ने बनवाया था। लेकिन यहां स्थापित मुख्य मूर्ति आदि शंकराचार्य द्वारा 8वीं सदी में स्थापित मानी जाती है।

चूँकि ये मंदिर नील पर्वत की चोटी पर स्थित है, इसे नील पर्वत तीर्थ भी कहा जाता है.

चंडी देवी मंदिर के पास ही स्थित है अंजनी माता का मंदिर. आप पैदल ही इस मंदिर तक जा सकते हैं. हां, वानरों से आपको यहां बचकर रहना होगा. अगर आपने प्रसाद लिया है, तो उसे किसी थैले में डाल लें या कवर कर लें.

मंदिर में विशेष दर्शन पूजन की जानकारी आप यहां मौजूद ट्रस्ट के कार्यालय से ले सकते हैं.

माया देवी मंदिर,हरिद्वार || Maya Devi Mandir,Haridwar

चंडी देवी मंदिर में दर्शन के बाद अब चलते हैं माया देवी मंदिर. ये मंदिर चंडी देवी मंदिर से ढाई किलोमीटर दूर हरिद्वार शहर में स्थित है. मायापुरी हरिद्वार में माया देवी मंदिर प्राचीन है, ये हरिद्वार शहर के बीचोबीच स्थित है. देवी माया हरिद्वार की संरक्षक देवी हैं. ये तीन सिरों वाली और चार भुजाओं वाली देवी हैं जिन्हें शक्ति का अवतार माना जाता है. हरिद्वार को पहले इस देवता की श्रद्धा में मायापुरी के नाम से जाना जाता था. मंदिर परिसर में ही धर्मशाला भी है और यात्री यहां कम खर्च में ठहर सकते हैं.

हरिद्वार में मंदिरों के साथ साथ शॉपिंग और फूड का अनुभव भी खास होता है. हर की पौड़ी के आसपास की गलियाँ रंग-बिरंगी दुकानों से भरी रहती हैं, जहाँ से आप रुद्राक्ष, पूजा सामग्री, कुंडलियाँ, हस्तकला की वस्तुएँ और पहाड़ी हर्बल प्रोडक्ट्स खरीद सकते हैं। खाने के लिए हरिद्वार स्वर्ग जैसा है—कचौड़ी-जलेबी, आलू पूरी, छोले भटूरे, फलाहारी व्यंजन, और हर की पौड़ी के पास मिलने वाला गरमागरम रबड़ी वाला दूध ज़रूर चखने लायक है। यहाँ के छोटे-छोटे हलवाई अपने पारंपरिक स्वाद के लिए मशहूर हैं, और गंगा किनारे बैठकर खाना इस अनुभव को और भी खास बना देता है. शॉपिंग, स्ट्रीट फूड और एक आध्यात्मिक माहौल—तीनों मिलकर हरिद्वार की यात्रा को पूरी तरह कमाल का बना देते हैं.

कुशावर्त घाट,हरिद्वार || Kushavart Ghat,Haridwar

दोस्तों हरिद्वार यात्रा में अब हम आपको लेकर चलते हैं कुशावर्त घाट की ओर. अपने घाटों के लिए पहचाना जाने वाला हरिद्वार अपने कुछ विशेष घाटों के लिए अधिक प्रचलित है उन्ही में से एक कुशा घाट भी है, जिसे कुशावर्त घाट भी कहते हैं. कुशा घाट पिंड दान और श्राद्ध कर्म करने के लिए जाना जाता है. यहां लोग गौदान भी करते हैं. ये घाट हरिद्वार के पंच तीर्थ में शामिल है.

आइए जानते हैं यहां श्राद्धकर्म करने वाले सुरेश जी से इस घाट के बारे में…

सर्वानंद घाट,हरिद्वार || Sarvanand Ghats,Haridwar

अब हम आपको जिन मंदिरों के दर्शन कराएंगे वो हर की पौड़ी से कुछ दूरी पर स्थित हैं. ये मंदिर सप्त सरोवर रोड पर स्थित हैं. इन मंदिरों की यात्रा के लिए जाते हुए आप हर की पौड़ी से लगभग 2 किलोमीटर दूर स्थित स्वामी सर्वानंद घाट भी जा सकते हैं. ये घाट बेहद सुंदर है. आप यहां कुछ पल बिताकर यात्रा में आगे बढ़ सकते हैं. बात करें सप्त सरोवर मार्ग की, तो ये एक तरह से मंदिरों वाली गली है.

हालांकि हम इस यात्रा में सबसे पहले आपको लेकर जाएंगे पावन धान जो स्वामीनारायण आश्रम रोड पर स्थित है. ये धाम मंदिर में कांच के अद्भुत इस्तेमाल के लिए जाना जाता है. हर की पौड़ी से इसकी दूरी ढाई किलोमीटर है.

पावन धाम के बाद आपको सप्त सरोवर रोड पर कई दुर्लभ मंदिर मिलते हैं.

आचार्य बेला इंडिया मंदिर, हरिद्वार || Acharya Bela India Temple,Haridwar

आचार्य बेला इंडिया टैंपल, शिवानंद धाम, श्रीकृष्ण प्रणामी निजधाम, चित्रकूट धाम, साधुबेला आश्रम, भूमा निकेतन, श्री मंगल कलश, Mandir Mata Lal Devi Ji Bharat Darshan या वैष्णो मंदिर हैं. लेकिन यहां श्री राम मंदिर और भारत माता मंदिर सबसे खास है.

श्री राम मंदिर की संरचना और वास्तुकला बेहद खास है. इसकी दीवारों पर रामचरितमानस की चौपाईयां लिखी हुई हैं. आप यहां कुछ देर बैठकर आध्यात्म की अनुभूति कर सकते हैं. मंदिर परिसर में ही धार्मिक पुस्तकें भी मिलती हैं. यहां पर एक शिवालय भी है. इस मंदिर को तुलसी मानस मंदिर भी कहते हैं…

भारत माता मंदिर,हरिद्वार || Bharat Mata Mandir,Haridwar

इसके साथ ही सप्त सरोवर रोड पर स्थित है भारत माता मंदिर. भारत माता मंदिर एक बहुमंज़िला मंदिर है. इस मंदिर की स्थापना स्वामी सत्यमित्रानंद गिरि ने की थी. मंदिर का उद्घाटन 1983 में हुआ और उस समय की भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसे विधिवत चालू किया था. मंदिर में “भारत माता” को समर्पित एक प्रतिमा है; लेकिन इसका उद्देश्य केवल एक देवी-पूजा तक सीमित नहीं: ये मंदिर भारत की अखंडता, देशभक्ति, सांस्कृतिक विविधता, धर्मों और समाज के विभिन्न हिस्सों की एकता को दर्शाने का प्रतीक है. भारत माता मंदिर कुल 8 मंज़िला भवन है, और इसकी ऊँचाई लगभग 180 फीट बताई जाती है. हर मंजिल (floor) को अलग-अलग विषय (theme) के मुताबिक तैयार किया गया है.

पहली मंजिल पर भारत माता की प्रतिमा है. दूसरी मंजिल शूर मंदिर है जिसमें भारत के वीरों, स्वतंत्रता सेनानियों और देशभक्तों की प्रतिमाएं हैं. तीसरी मंजिल मातृ मंदिर है, जिसमें भारत की महिलाओं, स्त्री-शक्ति, महान महिला वीरांगनाओं और संतानों को दर्शाया गया है. इसी तरह संत मंदिर, भगवान विष्णु के अवतार, भगवान शिव की थीम पर फ्लोर्स हैं.

मंदिर में 20 रुपए के शुल्क पर आप प्रोजेक्टर पर देश के पावन धाम के दर्शन का लाभ ले सकते हैं. मंदिर प्रांगण में ही इसके निर्माण के लिए दान करने वाले भक्तों के लिए नाम लिखे गए हैं. इनमें कई भक्त NRI हैं.

भारत माता मंदिर की यात्रा के बाद आप नज़दीक स्थित घाट पर भी जा सकते हैं. कल कल बहती पावन गंगा को निर्मल रूप में देखकर आपका मन प्रफुल्लित हो उठेगा.

दोस्तों अब हम आपको लेकर चलते हैं हरिद्वार के कनखल में स्थित मंदिरों की ओर. इस कड़ी में हम जानेंगे रामेश्वरम मंदिर, श्री यंत्र मंदिर, जगद्गुरु आश्रम, हरिहर मंदिर, दक्ष प्रजापति मंदिर, पायलट बाबा मंदिरों की यात्रा के बारे में.

कनखल में हम आपको सबसे पहले लेकर चलते हैं श्री रामेश्वर धाम ट्रस्ट में. इस मंदिर में रामेश्वरम से लाया गया तैरता पत्थर रखा गया है. ये पत्थर पानी में तैरता है और रामायण काल के एक ऐसे पत्थर का अवशेष माना जाता है जिससे भगवान राम ने लंका के लिए सेतु बनाया था. यहां मौजूद पत्थर का वजन 10 किलो 800 ग्राम बताया जाता है. यहां पर तीन मुखी रुद्राक्ष का वृक्ष भी है.

श्री यंत्र मंदिर,हरिद्वार || Shri Yantra Temple,Haridwar

श्री रामेश्वर धाम ट्रस्ट से 2 किलोमीटर से कुछ ज्यादा दूरी पर स्थित है श्री यंत्र मंदिर. देवभूमि हरिद्वार में वैसे तो बहुत से मंदिर हैं, लेकिन यहां एक ऐसा भी मंदिर है, जिसके निर्माण में लोहे और सीमेंट का इस्तेमाल नहीं हुआ. फिर भी इसकी बनावट इतनी भव्य है की जो भी इसे देखता है वह मंत्रमुग्ध हो जाता है. ये मंदिर मां लक्ष्मी को समर्पित है और यहां मां लक्ष्मी का श्री यंत्र स्थापित होने के कारण ही मंदिर का नाम श्री यंत्र मंदिर नाम से जाना जाता है. यहां 10 महाविद्याओं में से तीसरे स्थान की माता का यह मंदिर है. त्रिपुरा सुंदरी के साथ मां काली की मूर्ति भी सोने से निर्मित है. इन दो मूर्तियों के अलावा माता लक्ष्मी माता सरस्वती की मूर्ति भी स्थापित है. साथ ही मंदिर में भगवान भोलेनाथ की चांदी से निर्मित मूर्ति स्थापित है और इस मंदिर में दो श्री यंत्र स्थापित किए गए हैं.

इसके नजदीक है जगद्गुरु आश्रम. यहां पर आप मां काली के दर्शन कर सकते हैं.

हरिहर आश्रम,हरिद्वार || Harihar Ashram,Haridwar

अब आपको लेकर चलते हैं हरिहर आश्रम. ये आश्रम कई बातों के लिए चर्चित है, और इनमें से एक है पारद के शिवलिंग. कहते हैं इसी शिवलिंग का पूजन कर रावण ने अपनी लंका को स्वर्ण में तब्दील कर दिया था.। शिवपुरान में शिवजी का कथन है कि करोड़ शिवलिंगों के पूजन से जो फल प्राप्त होता है उससे भी करोड़ गुना अधिक फल पारद शिवलिंग की पूजा और दर्शन मात्र से ही प्राप्त हो जाता है. यहीं पर आपको एक मैडिकल रूम भी मिलता है जहां निशुल्क इलाज की सुविधा मिलती है.

पारदेश्वर महादेव मंदिर,हरिद्वार || Pardeshwar Mahadev Temple,Haridwar

हरिद्वार के कनखल क्षेत्र में स्थित है पारदेश्वर महादेव का मंदिर, और हर की पौड़ी से इसकी दूरी 5 किलोमीटर है. ये शिवलिंग 150 किलो ग्राम पारद से बना है.

इस आश्रम में और भी दर्शनीय स्थान है. आप यहां मृत्युंजय महादेव के दर्शन करें. इस मंदिर की वास्तुकला आपका मन मोह लेगी. ये जूना अखाड़ा के पंच दशानन अखाड़े का यह आश्रम है. यहां शंकराचार्य की प्रतिमा भी है. 12 ज्योतिर्लिंग के पूजन से जितना पुण्यकाल प्राप्त होता है उतना पुण्य पारद शिवलिंग के दर्शन मात्र से मिल जाता है. बोलो हर हर महादेव.

पारदेश्वर महादेव के बाद आपको लेकर चलते हैं शिवजी के एक और प्राचीन और महत्वपूर्ण मंदिर में, जिसे समस्त दुनिया दक्ष प्रजापति मंदिर के नाम से जानती है. दक्ष प्रजापति मंदिर, पारदेश्वर महादेव से लगभग डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर है. ये हरिद्वार के पंच तीर्थ में शामिल है.

दक्षेश्वर महादेव मंदिर,हरिद्वार || Daksheshwar Mahadev Temple,Haridwar

दक्षेश्वर महादेव मंदिर, भगवान शिव और दक्ष की पुत्री माता सती को समर्पित है. यहां पर हजारों साल पुराना बरगद का पेड़ है और मंदिर की दीवारों पर राजा दक्ष और मंदिर की कहानियां दर्शाई गई हैं. मंदिर में सती कुंड बना हुआ है. मान्यता है कि ये वहीं कुंड है जहां पर माता सती ने खुद को हवन की अग्नि में समर्पित किया था.

मंदिर परिसर में मुख्य शिव मंदिर के अलावा अन्य उप-मंदिर भी हैं — जैसे दस महाविद्या मंदिर (जिसमें देवी/देवियों की पूजा होती है), माँ गंगा का मंदिर आदि. पास में दक्षा घाट भी है — श्रद्धालु यहीं गंगा स्नान भी करते हैं. यहां की शांति और ऊर्जा आप कभी भुला हीं पाएंगे.

दक्ष प्रजापति मंदिर में आप हल्का स्नैक्स भी ले सकते हैं. यहां मंदिर परिसर में ही कई दुकानें हैं.

दक्ष प्रजापति मंदिर, हरिद्वार || Daksh Prajapati Temple,Haridwar

दक्ष प्रजापति मंदिर से कुछ दूरी पर स्थित है पायलट बाबा का आश्रम. अगर आप हरिद्वार में भक्ति के साथ देश भक्ति का संगम देखना चाहते हैं तो हरिद्वार की प्राचीन नगरी कनखल से सटे जगजीतपुर में महायोगी पायलट बाबा का आश्रम बना हुआ है. यहां पर हिंदू देवी-देवताओं समेत देश भक्तों की प्रतिमाएं भी स्थापित की गई हैं. हरिद्वार में यह आश्रम काफी अनोखा है. वैसे तो पायलट बाबा के आश्रम देश के साथ-साथ विदेशों में भी हैं. पायलट बाबा के आश्रम में जाकर काफी सुकून का अहसास होता है. यदि आप सुकून की तलाश में है और शांति चाहते हैं तो पायलट बाबा आश्रम आपके लिए एक अच्छा विकल्प होगा.

पायलट बाबा का आश्रम, हरिद्वार || Pilot Baba’s Ashram,Haridwar

हरिद्वार के जगजीतपुर में स्थित पायलट बाबा के आश्रम में भगवान भोलेनाथ, भगवान विष्णु समेत सभी देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित की गई है. साथ ही दांडी यात्रा, भारत माता की प्रतिमा और अन्य राष्ट्र भक्तों की मूर्ति भी इस आश्रम में आपको देखने को मिलेगी. इतना ही नहीं यदि आप पक्षियों से लगाव रखते हैं तो आपके लिए इस आश्रम में एक छोटा सा चिड़ियाघर बनाया गया है. जहां पर शतुरमुर्ग समेत कई प्रजातियों के पक्षी आप यहां पर देख सकते हैं. वही पायलट बाबा के आश्रम में घूमने और दर्शन करने आने वाले श्रद्धालुओं के लिए लंगर की व्यवस्था भी की जाती है. आप आश्रम में घूमने आए हैं और आपको भूख लगी है तो आप आश्रम के भोजनालय में आराम से बैठ कर भोजन कर सकते हैं.

संन्यासी बनने से पहले पायलट बाबा भारतीय वायुसेना में विंग कमांडर थे और उन्होंने 1962, 1965 और 1971 के युद्ध में भाग लिया था। उनकी समाधि इसी आश्रम में है.

हर की पौड़ी में संध्या आरती का आनंद ||Enjoying the evening Aarti at Har Ki Pauri

दोस्तों हरिद्वार की विस्तृत यात्रा के बाद अब वक्त है संध्या आरती का और संध्या आरती के लिए हर की पौड़ी से बेहतर जगह और क्या हो सकती है.गर्मी में ये आरती शाम 6 बजे से और सर्दी में शाम 5 बजे से होती है. हर की पौड़ी पर संध्या आरती अटेंड करना अपने-आप में एक दिव्य और कमाल का अनुभव होता है. इसे अटेंड करने के लिए आपको थोड़ा पहले पहुंच जाना चाहिए, क्योंकि भीड़ काफी रहती है. घाट के दोनों तरफ बैठने की व्यवस्था है और सुरक्षा व व्यवस्था के लिए पुलिस व स्वयंसेवक मौजूद रहते हैं. जैसे ही गंगा मैया की आरती शुरू होती है, घंटियों की ध्वनि, मंत्रोच्चार और दीपों की ज्योति वातावरण को पूरी तरह आध्यात्मिक बना देती है. लोग श्रद्धा से हाथ जोड़कर आरती में शामिल होते हैं और कई यात्री अपनी मनोकामनाओं के लिए दीप बहाते हैं, जो बहते हुए गंगा के प्रवाह में स्वर्णिम लकीरों की तरह चमकते हैं.

बिड़ला घाट हरिद्वार || Bidla Ghat, Haridwar

आरती के बाद जब आप नदी के दूसरी ओर बिड़ला घाट की ओर पैदल निकलते हैं, तो हरिद्वार का शांत और सुकून भरा रूप देखने को मिलता है। शाम की हल्की ठंडी हवाएं, गंगा के प्रवाह की निरंतर ध्वनियां और आसमान का धीरे-धीरे गहरे रंग में ढलना—ये सब मिलकर एक अद्भुत वातावरण बनाते हैं। बिड़ला घाट वाले हिस्से में भीड़ कम होती है, इसलिए आप गंगा के और करीब महसूस करते हैं। पानी की थपेड़ों की आवाज़ और हवा की ठंडक मन को गहराई से शांत करती है। चलते-चलते जब आप पीछे मुड़कर जगमगाते हर की पौड़ी की रोशनी देखते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे पूरा शहर किसी पवित्र ऊर्जा में डूबा हुआ है। कुल मिलाकर, आरती की भव्यता और बिड़ला घाट की शाम का सुकून—दोनों मिलकर हरिद्वार की यात्रा को यादगार बना देते हैं.

दोस्तों, कैसी लगी हमारी ये पेशकश, कमेंट बॉक्स में अपनी राय जरूर दें. मिलेंगे अगली बार एक नए वीडियो में, घूमते रहिए और देखते रहिए ट्रैवल जुनून.

Komal Mishra

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