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देव उठनी एकादशी व्रत कैसे करें, संकल्प से पारण तक की पूरी विधि

हिंदू परंपरा में देव उठनी एकादशी (Dev Uthani Ekadashi) को अत्यंत शुभ माना जाता है, क्योंकि इस दिन भगवान विष्णु अपने चार माह के योगनिद्रा (चातुर्मास) से जागते हैं। इन चार महीनों में विवाह, गृहप्रवेश और अन्य मांगलिक कार्य नहीं किए जाते। जैसे ही विष्णु जी जागते हैं, माना जाता है कि सृष्टि में शुभ कार्यों की पुनः शुरुआत होती है। देव उठनी एकादशी को “प्रबोधिनी एकादशी” भी कहा जाता है, और इसके बाद फिर से विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञ आदि कार्यों के लिए शुभ समय (Auspicious Period) शुरू हो जाता है। इसके कुछ दिन बाद आने वाली उत्पन्ना एकादशी (Utpanna Ekadashi) भी अत्यंत पवित्र मानी जाती है — यह आध्यात्मिक नये संकल्पों की शुरुआत का प्रतीक है।

देव उठनी एकादशी 2025: तिथि, मुहूर्त और पारण समय || Dev Uthani Ekadashi 2025: Date, Auspicious Time and Parana Timing

तिथि आरंभ: 1 नवंबर 2025 (शनिवार) सुबह से

तिथि समाप्त: 2 नवंबर 2025 (रविवार) सुबह तक

पारण (व्रत खोलने का समय): 2 नवंबर दोपहर 1:11 बजे से 3:23 बजे के बीच

उत्पन्ना एकादशी 2025: तिथि और समय

तिथि आरंभ: 15 नवंबर 2025 (शनिवार) रात्रि 12:49 बजे (लगभग)

तिथि समाप्त: 16 नवंबर 2025 तक

देव उठनी और उत्पन्ना एकादशी का धार्मिक महत्व
देव उठनी एकादशी को चातुर्मास की समाप्ति का प्रतीक माना गया है। इस दिन से शुभ कार्यों, विवाहों, गृहप्रवेशों और धार्मिक अनुष्ठानों की शुरुआत होती है।
शास्त्रों में कहा गया है कि देव उठनी एकादशी का व्रत कई यज्ञों के समान फलदायी होता है।
वहीं उत्पन्ना एकादशी का अर्थ है “उत्पत्ति” या “नई शुरुआत”, यानी यह दिन आत्मिक जागरण और नए संकल्पों का प्रतीक है।

देव उठनी एकादशी व्रत-विधि || Dev Uthani Ekadashi Fasting Ritual

स्नान और संकल्प: 1 नवंबर की सुबह शुद्ध स्नान कर व्रत का संकल्प लें।

पूजन: घर में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें। तुलसी दल, पीले फूल, फल और दीप अर्पित करें।

जप और भक्ति: विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें या “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जप करें।

व्रत नियम: अन्न, चावल, और दाल से परहेज़ करें; फलाहार या सात्त्विक भोजन करें।

पारण: अगले दिन (2 नवंबर) निर्धारित समय में व्रत खोलें और जरूरतमंदों को भोजन या वस्त्र दान करें।

उत्पन्ना एकादशी व्रत-विधि (15 नवंबर)
व्रत की प्रक्रिया लगभग समान रहती है — स्नान, संकल्प, भगवान विष्णु की पूजा और भक्ति भाव से उपवास।
यह दिन नए आध्यात्मिक संकल्पों के लिए उपयुक्त माना जाता है — जैसे सेवा भाव बढ़ाना, ध्यान या भक्ति अभ्यास शुरू करना आदि।

आधुनिक जीवन में व्रत पालन के सुझाव || Suggestions for observing fasts in modern life

अगर पूर्ण उपवास संभव न हो तो फलाहार या हल्का सात्त्विक भोजन करें।

मन और वचन से संयम रखें — क्रोध, विवाद, या नकारात्मकता से बचें।

अपने आस-पास स्वच्छता और शांत वातावरण बनाए रखें।

व्रत का सार है भक्ति, संकल्प और दया का भाव — पूर्णता से अधिक भावना मायने रखती है।

नोट:
देव उठनी एकादशी के बाद विवाह, गृहप्रवेश, वाहन-पूजन, नए कार्यों की शुरुआत आदि को फिर से शुभ माना जाता है।

Komal Mishra

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