Teerth Yatra

Kailash Mansarovar Yatra : मुराद हो गई पूरी, तो बोलो- ॐ नमः शिवाय

कैलाश मानसरोवर, भोले नाथ का ठिकाना… भोलेनाथ के भक्तों की चाहत होती है कि एक बार कैलाश मानसरोवर जरूर होकर आएं लेकिन बहुत ज्यादा खर्चा और यात्रा के लिए लगने वाला बहुत ज्यादा समय… हर किसी के बस का नहीं था. दोस्तों अगर आप भी इसी मजबूरी से बंधे थे तो बस समझ लीजिए, भोलेनाथ ने आपकी सुन ही ली है.

भारत ने एक लिंक रोड की शुरुआत की है जो कैलाश मानसरोवर तक का ट्रैवल टाइम 80 फीसदी तक घटा देगा. तो बोलो… ओम नमः शिवाय. और इस वजह से ही ये यात्रा झटपट भी होगी और जेब पर खटपट भी नहीं होगी. 80 किलोमीटर लंबी ये पक्की सड़क उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में धारचूला को चीन के स्वायत्त क्षेत्र वाले तिब्बत से जोड़ देगा. तो फिर से बोलो, ओम नमः शिवाय

कैलाश मानसरोवर तक की नई सड़क

बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन द्वारा बनाया गया ये रास्ता, सच मानिए कैलाश मानसरोवर यात्रा में चार चांद लगा देगा और यात्रा पथ पर पड़ने वाले रास्ते की सूरत को बदल देगा. कैसे? आइए ये भी जानते हैं. इस रास्ते के बनने से पहले भारतीय श्रद्धालु जिन रास्तों से होकर कैलाश मानसरोवर तक पहुंचते थे, वो उत्तराखंड का लिपुलेख दर्रा था और सिक्किम का नाथु ला पास.

इस सड़क के बनने से पहले, जो यात्री लिपुलेख पास को चुनते थे उन्हें इस पूरे 80 किलोमीटर के रास्ते को ट्रैक करके जाना पड़ता था.17 हजार किलोमीटर ऊपर है ये जगह समुद्री सतह से. जरा सोचिए, एक तो पहाड़ और ऊपर से उबड़ खाबड़ वाला खतरनाक रास्ता. इस पूरे ट्रैक में उन्हें 5 दिन लगते थे. अब जरा सोचिए दोस्तों, ऑफिस है, घर है, काम है… और ये सब छोड़कर अगर आप 5 दिन सिर्फ मंजिल पहुंचने में लगा दें तो कितना नुकसान होगा. और वहीं अगर श्रद्धालु सिक्किम वाले नाथु ला पास को चुनते थे तो सड़क मार्ग का 80 फीसदी हिस्सा चीन की सीमा में होता था.

लिपुलेख का रास्ता बहुत कुछ बदल देने वाला है दोस्तों. कैलाश मानसरोवर का ये नया रास्ता 84 फीसदी भारत के अंदर है. इस सड़क के बाद आखिरी 5 किलोमीटर का हिस्सा है जिसे पार कर श्रद्धालु आसानी से तिब्बत में प्रवेश कर सकते हैं. ये 5 किलोमीटर वाला हिस्सा रेड टेप में आता है और अगर ये स्वीकार कर लिया जाता है तो इस साल के अंत तक वहां भी सड़क बन जाएगी.

हालांकि, इस सड़क मार्ग से होने वाली यात्रा के लिए 2 दिन का समय लगेगा ही. श्रद्धालुओं को समुद्र तल से 10,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित गूंजी कस्बे में वहां के मौसम और हालात के अनुकूल खुद को ढालना होगा. लिपुलेख पहुंचने से पहले ये एक कठिन प्रक्रिया होती है. बॉर्डर क्रॉस करने के लिए श्रद्धालुओं को 5 किलोमीटर की दूरी चलकर पार करनी होगी इसके बाद 97 किलोमीटर की वो यात्रा शुरू होती है जो चीन की सीमा में होती है और आपको कैलाश मानसरोवर के पवित्र स्थल तक लेकर जाती है.

पवित्र मानसरोवर

माउंट कैलाश, तिब्बत के कैलाश रेंज का हिस्सा है. इस जगह का हिंदू, जैन, बौद्ध और तिब्बती लोगों में खासा महत्व है. 6,638 मीटर की ये पर्वत चोटी मानसरोवर लेक के पास में है, जो कैलाश ग्लैशियर से निकली है. ऐसी मान्यता है कि इस झील का जल आपके सभी पापों से मुक्ति दिलाता है.

सदियों से इस यात्रा को पैदाल या घोड़ों पर ही किया जाता था. भारत का विदेश मंत्रालय इस यात्रा का आयोजन करता है.

आपको ऑनलाइन पास और फिजिकल क्वालिफिकेशन हासिल करना होता है. इस यात्रा में एक शख्स को एक लाख सत्तर हजार भाृरतीय रुपये अदा करने होते हैं. इस यात्रा के लिए यहां अप्लाई करें

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