Mauritius History and Facts : मॉरिशस का क्या है इतिहास? Mauritius Travel Guide भी जानें
Mauritius History and Facts : याद करिए जनवरी 2013 का वो वक्त, जब Mauritius के तब के राष्ट्रपति राजकेश्वर पुरयाग बिहार के एक गांव में पहुंचे थे और फूट फूटकर रो दिए थे… बिहार के गांव वाजितपुर से उनका गहरा नाता है. नागरिक अभिनंदन के दौरान बोलते हुए वो अपने परदादा पुरयाग नोनिया को याद कर रोने लगे. उन्होंने कहा कि 150 वर्ष पहले उनके परदादा पुरयाग नोनिया बिहार के वाजितपुर गांव से मॉरिशस गए थे.
मॉरिशस से आकर अपने जड़ों की तलाश करने और उससे जुड़ाव की कहानी यहीं तक सीमित नहीं है… 2019 में हेमानंद बद्री अपनी पत्नी के साथ मॉरीशस से पटना पहुंचे थे… वो भी सिर्फ इसलिए कि वो अपने परदादा के बारे में जानकारी जुटा सके.
मॉरिशस की कहानी में भारतीय मूल के लोग इस कदर रचे-बसे हुए हैं जैसे ये द्वीप उनकी मिट्टी, उनकी खुशबू और उनकी परंपराओं का हिस्सा ही बन गया हो.
ऊंची इमारतें, विकसित हो चुकी अर्थव्यवस्था, और बेहद शांत देश… आज ये तस्वीर है मॉरिशस की… मॉरिशस का राष्ट्रीय चिह्न है the Coat of Arms of Mauritius – क्या आप जानते हैं कि जिस तरह भारत का राष्ट्रीय चिह्न अशोक स्तंभ शांति, एकता, न्याय और सत्य का संदेश देता है, उसी तरह यह चिह्न भी मॉरिशस की खूबसूरती, संघर्ष और उसके इतिहास की गवाही देता है.
आइए आपको लेकर चलते हैं मॉरिशस के रोचक सफर पर। इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि मॉरिशस का इतिहास क्या है, आज वो देश कैसा है, भारतीयों के लिए वहां क्या-क्या सहूलियतें हैं, अगर आप मॉरिशस घूमना चाहते हैं तो कहां-कहां जा सकते हैं, वहां की करेंसी इंडियंस को महंगी पड़ती है या सस्ती, और तो और अगर आप मॉरिशस में परमानेंट शिफ्ट होना चाहते हैं, तो उसके लिए आपको क्या करना होगा.
आइए चलते हैं भारत से 4 हजार किलोमीटर दूर स्थित एक छोटे से खूबसूरत द्वीप की यात्रा पर, जिसे दुनिया आज भी एक मिनी इंडिया के रूप में ही देखती है.
कभी समुद्र के बीचों-बीच बसा मॉरीशस बिल्कुल वीरान था. न इंसान, न खेती-बाड़ी – बस जंगल और जानवर। लेकिन 1507 में पुर्तगाली नाविकों ने इसे देखा और धीरे-धीरे यह द्वीप दुनिया के नक्शे पर आ गया. सबसे पहले डच यहां आए. उन्होंने सोचा – गन्ने का इस्तेमाल सिर्फ मिठास के लिए ही क्यों, इससे तो शराब भी बनाई जा सकती है! तो गन्ने का रस पका-पकाकर अरक (arrack) नाम की शराब तैयार होने लगी. ये था मॉरीशस की गन्ना कहानी का पहला पन्ना. अरक सिर्फ एक शराब नहीं थी, बल्कि डचों के लिए मॉरिशस में आर्थिक प्रभुत्व और वैश्विक व्यापार में हिस्सेदारी का जरिया भी थी… यही वजह है कि डचों ने गन्ने की खेती को व्यवस्थित करना शुरू किया और इस छोटे द्वीप को दुनिया के नक्शे पर लाया… लेकिन इसकी खेती बहुत मुश्किल थी, चक्रवात भी यहां आते रहते थे…यहां कई बीमारियां भी फैलने लगी थी… जैसे मलेरिया.. आखिरकार डच थककर 1710 में मॉरीशस छोड़कर चले गए…
फिर आए फ्रांसीसी. फ्रांसीसी गवर्नर मह ए डी ला बोरडोने (Mahé de La Bourdonnais) और दूसरे व्यापारियों ने यह नोटिस किया कि मॉरिशस की मिट्टी उपजाऊ है और जलवायु गन्ने के लिए अनुकूल है. फिर क्या था, उन्होंने गन्ने की खेती को उद्योग बना दिया.. गवर्नर ने नई तकनीकें मंगवाईं, मिलें बनवाईं और गन्ने के खेतों को फैला दिया गया. लेकिन इतने बड़े खेतों में काम कौन करता? तो अफ्रीका और मेडागास्कर से गुलाम (slaves) लाए गए. 1735 में पूरी आबादी 838 थी, जिसमें से 638 लोग गुलाम थे! धीरे-धीरे उनकी संख्या हजारों में पहुंच गई। कह सकते हैं – जहां डच असफल हुए, वहीं फ्रांसीसी यहां पर कामयाब हुए.
अब आया 1810 का दौर… मॉरीशस फ्रांसीसियों के हाथ में था। लेकिन 19वीं सदी की शुरुआत में यूरोप में चल रहे नेपोलियन युद्ध (Napoleonic Wars, 1803–1815) ने पूरे विश्व की राजनीति बदल डाली थी. ये युद्ध 1803 से 1815 के बीच चले थे. ये युद्ध मुख्य रूप से फ्रांस के शासक नेपोलियन बोनापार्ट और ब्रिटेन समेत अन्य यूरोपीय शक्तियों के बीच लड़े गए.
मॉरीशस उस समय सामरिक दृष्टि से बेहद अहम था, क्योंकि यहां से हिंद महासागर के समुद्री व्यापार पर नियंत्रण रखा जा सकता था. ब्रिटिश सेना ने 1810 में फ्रांसीसियों से मॉरीशस छीन लिया और द्वीप पर स्थायी रूप से शासन जमाया.
अब एक बड़ा बदलाव हुआ – फ्रांसीसी शासन के दौरान मॉरीशस की गन्ना खेती पूरी तरह दासों (Slaves) पर टिकी थी. अफ्रीका और मेडागास्कर से लाए गए इन गुलामों को अमानवीय परिस्थितियों में गन्ने के खेतों में काम करना पड़ता था. ब्रिटिशों ने 1810 में द्वीप पर कब्ज़ा करने के बाद 1835 में दास प्रथा को समाप्त कर दिया. लेकिन यह एकदम आसान फैसला नहीं था. गन्ना मालिकों ने विरोध किया, क्योंकि उनके पूरे उद्योग की रीढ़ यही दास थे. अंततः ब्रिटिश सरकार ने मालिकों को 20 लाख पाउंड स्टर्लिंग का मुआवज़ा देकर दासों को आज़ाद किया.
लेकिन गन्ने के खेत खाली कैसे रहते? अब तैयारी की गई गिरमिटिया मजदूरों को यहां लाने की…
दासों की आज़ादी के बाद गन्ना बागान खाली हो गए थे। ब्रिटिशों को मज़दूरी का नया इंतज़ाम करना पड़ा. तभी शुरू हुआ गिरमिटिया मजदूरों (Indentured Labourers) का दौर. ये मजदूर मुख्यतः भारत से लाए गए – खासकर बिहार, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश से.
इन्हें एक अनुबंध (गिरमिट/Agreement) के तहत मॉरीशस भेजा गया, जिसमें कहा गया कि ये निश्चित सालों तक काम करेंगे. 1834 से 1921 तक लगभग 5 लाख भारतीय मजदूर मॉरीशस पहुंचे। गिरमिटाया शब्द एग्रीमेंट से निकला… दरअसल भारतीय मजदूर एग्रीमेंट का सही उच्चारण नहीं कर पाते थे, तो उन्होंने खुद को गिरमिट मजदूर कहना शुरू किया और बाद में यही शब्द चलन में आ गया..
इन भारतीय मजदूरों ने मॉरीशस की गन्ना अर्थव्यवस्था को नया जीवन दिया. सिर्फ खेत ही नहीं, वे अपने साथ भोजपुरी और तमिल जैसी भाषा, दीवाली होली जैसे त्योहार, दाल-करी जैसे भारतीय व्यंजन भी ले गए और एक नई पहचान भी मॉरीशस को दी. आज भी मॉरीशस की जनसंख्या का बड़ा हिस्सा इन्हीं भारतीय गिरमिटिया मजदूरों के वंशज हैं.
क्या था: इस दौर में भारतीय गिरमिटिया मजदूरों के लिए समुंदर पार जाना केवल भौगोलिक यात्रा नहीं था — ये अपने-पराये, मिट्टी और रिश्तों को छोड़ने की जीवन बदल देने वाली घटना थी। गांवों में लोग इसे डर के साथ “काला पानी पार” करना कहते थे — यहां काला पानी का मतलब दंड से नहीं, बल्कि दूर समंदर पार जाकर अपनी पुरानी दुनिया से कट जाने से था। इसकी वजह थी रास्ते में आने वाली कठिनाइयां… महीनों तक जहाज़ की यात्रा, भीड़-भाड़, सीमित राशन, बीमारियां झेलकर मॉरिशस पहुंचे कई लोग कभी वापस नहीं लौटे; इन्होंने जीवन भर के लिए अपना घर छोड़ दिया…
क्या बदला: गिरमिटिया मजदूरों की आने से मॉरीशस अब “मिनी इंडिया” या “इंडिया का आठवां टापू” जैसा लगने लगा — क्योंकि उन्होंने वहां भाषा, रीति-रिवाज़, खाने और त्योहारों की परंपरा जड़ से जमा दी थीं.
मुख्य बातें: लाखों भारतीय मॉरिशस आए — इनकी संतानें आज मॉरीशस की जनसंख्या का बड़ा हिस्सा हैं। भोजपुरी, गुजराती, तमिल, थोड़े बहुत हिंदी के शब्द यहां की आम बोलचाल की भाषा का हिस्सा हैं.
दीवाली, होली, नवरात्र, और अन्य हिन्दू/सिख/तमिल त्योहार खुले मन से मनाए जाते हैं- Diwali आज भी बड़े उत्साह से मनाई जाती है.
कहानी: जिस घाट पर गिरमिटिया मजदूर पहली बार मॉरीशस उतरे — आज वही Aapravasi Ghat एक पवित्र स्मारक है। ये सिर्फ एक जगह नहीं; ये उन लाखों यात्रियों की पहचान और दर्द का प्रतीक है, जिसे झेलकर वो इस धरती पर आए थे…
मॉरीशस का राष्ट्रीय प्रतीक the Coat of Arms of Mauritius आज अपने इसी इतिहास और संस्कृति की कहानी बताता है. इस प्रतीक में चार हिस्सों वाली ढाल है, जिसमें सबसे खास है गन्ने का पौधा जो इस छोटे से द्वीप की आर्थिक और सांस्कृतिक आत्मा को दर्शाता है. ढाल के एक हिस्से में जहाज़ दिखता है, जो मॉरीशस की खोज और समुद्री व्यापार का प्रतीक है, जबकि दूसरी तरफ़ सुनहरी चाबी है, जो इसे हिंद महासागर का रणनीतिक केंद्र बनाती है. ढाल के दोनों ओर दो जानवर खड़े हैं – बाईं ओर मॉरीशस का विलुप्त पक्षी डोडो, और दाईं ओर सैंबर हिरण, जिसके खुरों के पास गन्ने की डालें हैं. नीचे इसका लैटिन आदर्श वाक्य लिखा है: “Stella Clavisque Maris Indici”, यानी “हिंद महासागर का सितारा और चाबी.” इस प्रतीक में गन्ने को स्थान देकर मॉरीशस ने यह दिखाया है कि उसकी आज़ादी, उसकी पहचान और उसकी सभ्यता की नींव इसी फसल पर टिकी है.
दोस्तों आए अब जानते हैं मॉरिशस की भाषाओं के बारे में…. यहां की मुख्य भाषा है मॉरिशियस क्रियोल (Mauritian Creole) – ये मॉरीशस की सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा है.
जब फ़्रांसीसी उपनिवेशी यहां आए, वे अपने साथ अफ़्रीकी दासों और मज़दूरों को लाए. अलग-अलग पृष्ठभूमि और भाषाओं के लोग आपस में संवाद करने के लिए फ्रेंच बेस्ड एक आसान भाषा बनाने लगे — वही भाषा समय के साथ “क्रियोल” बन गई. आज लगभग 90% आबादी इसे रोज़मर्रा में बोलती है. ये भाषा फ़्रेंच पर आधारित है लेकिन इसमें अफ़्रीकी, भारतीय और अंग्रेज़ी शब्द भी मिलते हैं. क्रियोल भाषा को वहाँ “दिल की भाषा” माना जाता है। यानी सरकारी काम अंग्रेज़ी/फ़्रेंच में होते हैं, लेकिन घर-परिवार और मोहल्ले में ज़्यादातर बातचीत क्रियोल में ही होती है.
अंग्रेज़ी – मॉरीशस की आधिकारिक भाषा मानी जाती है। संसद और सरकार के कामकाज में इसका इस्तेमाल होता है.
फ़्रेंच – शिक्षा, मीडिया और रोज़मर्रा के जीवन में बहुत मज़बूत है। अख़बार, टीवी, साहित्य — ज़्यादातर फ्रेंच में ही.
जब 19वीं सदी में भारत से गिरमिटिया मज़दूर (ज़्यादातर पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार से) मॉरीशस पहुंचे, वे अपने साथ भोजपुरी भाषा भी लाए.
शुरू में ये मज़दूर आपस में भोजपुरी बोलते थे, और यही भाषा उनके गीत, लोककथाओं और धार्मिक अनुष्ठानों में जीवित रही.
धीरे-धीरे दूसरी भाषाओं के साथ मिश्रण हुआ, लेकिन भोजपुरी आज भी करीब 5-6 लाख लोग समझ और बोल सकते हैं.
त्योहारों (जैसे होली, छठ पूजा, दीवाली) पर भोजपुरी लोकगीत गाए जाते हैं.
कई पीढ़ियों बाद भी भोजपुरी भी वहाँ सांस्कृतिक पहचान का अहम हिस्सा है.
मॉरीशस की संसद में भी कई बार भोजपुरी में भाषण दिए गए हैं.
भोजपुरी को वहाँ एक मान्यता प्राप्त भाषा का दर्जा भी मिला हुआ है.
भोजपुरी के अलावा, गिरमिटिया मज़दूरों के साथ आईं और भाषाएँ आज भी मौजूद हैं:
हिंदी जिसका इस्तेमाल (धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यों में),
तमिल, तेलुगु, मराठी, उर्दू, और साथ ही कुछ गुजराती समुदाय भी हैं.
“मॉरीशस में आप जब किसी गली से गुजरेंगे तो आपको तीन भाषाएँ साथ-साथ सुनाई देंगी – स्कूल में अंग्रेज़ी, दुकानों पर फ़्रेंच, और घरों में क्रियोल. और त्योहारों पर… भोजपुरी गीतों की गूंज.
1960 के दशक में मॉरीशस में स्वशासन और स्वतंत्रता की मांग तेज़ हो गई. भारतीय मूल की आबादी, जो अब वहां बहुसंख्यक थी, राजनीति में सक्रिय होने लगी.
भारतीय मूल के सर शिवसागर रामगुलाम (Sir Seewoosagur Ramgoolam) – स्वतंत्रता आंदोलन के सबसे बड़े नेता बनकर उभरे. उन्हें “फादर ऑफ द नेशन” कहा जाता है। लंबी बातचीत, संघर्ष और आंदोलन के बाद आखिरकार 12 मार्च 1968 को मॉरीशस ने ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की.उस दिन पहली बार मॉरीशस का झंडा लहराया गया — और भारतवंशी मजदूरों की संतानें इस पल की सबसे बड़ी गवाह बनीं.
आज़ादी के समय मॉरीशस की अर्थव्यवस्था सिर्फ गन्ने पर टिकी थी. लेकिन धीरे-धीरे देश ने टेक्सटाइल इंडस्ट्री, पर्यटन और IT सेक्टर में विकास किया. आज ये अफ्रीका के सबसे विकसित देशों में गिना जाता है। भारतीय भाषा, त्योहार और परंपराएं अब राष्ट्रीय धरोहर हैं. दीवाली पर वहां राष्ट्रीय अवकाश होता है. आज़ादी ने मॉरीशस को सिर्फ राजनीतिक ताक़त नहीं दी, बल्कि उसकी सांस्कृतिक जड़ों को भी और मज़बूत किया. आज मॉरीशस सिर्फ़ एक टूरिस्ट डेस्टिनेशन नहीं, बल्कि एक मिसाल है कि कैसे गिरमिटिया मज़दूरों की मेहनत और भारतीय नेताओं की प्रेरणा मिलकर एक राष्ट्र को जन्म दे सकती है.
आज का मॉरीशस एक छोटा लेकिन बेहद विकसित और स्थिर राष्ट्र है, जिसकी आबादी लगभग साढ़े 12 लाख है.कभी केवल गन्ने पर आधारित अर्थव्यवस्था अब मल्टीसेक्टोरियल बन चुकी है, जिसमें टेक्सटाइल और कपड़ा उद्योग, पर्यटन, वित्त और IT सेक्टर शामिल हैं. सफेद रेत वाले समुद्र तट, नीला समुद्र और हरे-भरे पहाड़ मॉरीशस को दुनिया भर के पर्यटकों के लिए आकर्षक बनाते हैं. देश में क्रियोल, फ़्रेंच, अंग्रेज़ी और भारतीय भाषाएं जीवित हैं, और भारतीय समुदाय की संस्कृति, जैसे भोजपुरी, हिंदी, तमिल और गुजराती, त्यौहार और लोकगीतों के माध्यम से संरक्षित है. यहां के प्रमुख त्यौहार, जैसे दीवाली, होली और छठ, राष्ट्रीय अवकाश के रूप में मनाए जाते हैं। अफ्रीका में भारतीय डायस्पोरा का केंद्र होने के नाते, मॉरीशस “Mauritian Miracle” के रूप में जाना जाता है – एक छोटा द्वीप जो आर्थिक और सामाजिक रूप से पूरी दुनिया के लिए मिसाल बन गया है.
मॉरीशस अपने प्राकृतिक सौंदर्य और ऐतिहासिक स्थलों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है. राजधानी पोर्त लुई (Port Louis, उत्तर पश्चिम) शहर की गलियों में आप बाजार, संग्रहालय और पुरानी फ्रेंच कॉलोनी बिल्डिंग्स देख सकते हैं। वहीं, पाम्प्लमुस बोटैनिकल गार्डन (Pamplemousses, उत्तर) दुनिया के सबसे पुराने बोटैनिकल गार्डन्स में से एक है, जहां विशाल पानी के पौधे, दुर्लभ पेड़ और सुगंधित फूल आपको मंत्रमुग्ध कर देंगे. दक्षिण-पश्चिम में स्थित चमरेल झरना और Seven Colored Earth (Chamarel, दक्षिण-पश्चिम) प्राकृतिक चमत्कार का प्रतीक हैं, जिसमें ऊंचा झरना और रंग-बिरगी मिट्टी का अद्भुत दृश्य देखने को मिलता है. उत्तर में ही ग्रैंड बे (Grand Baie, उत्तर) मॉरीशस का सबसे लोकप्रिय बीच और टूरिस्ट हब है, जहां वाटर स्पोर्ट्स, शॉपिंग और रिसॉर्ट्स का पूरा अनुभव मिलता है. दक्षिण-पश्चिम में ब्लैक रिवर गॉर्जेस नेशनल पार्क (Black River Gorges National Park, दक्षिण-पश्चिम) हाइकिंग और एडवेंचर के लिए परफेक्ट जगह है, जहां हरियाली भरे जंगल और विलुप्त होने वाले पक्षियों की झलक मिलती है. पूर्वी तट (East Coast) पर छोटे-छोटे द्वीप और आइल ऑफ़ लाइट्स पर्यटकों के लिए सूर्यास्त, समुद्र और वाटर स्पोर्ट्स का अद्भुत अनुभव देते हैं. अंत में, मॉरीशस की विरासत को याद करते हुए, डोडो संग्रहालय और स्मारक (Pamplemousses, उत्तर) आपको विलुप्त पक्षी डोडो की कहानी और जैव विविधता की याद दिलाते हैं.
टूरिस्ट वीज़ा
भारतीय नागरिकों को मॉरीशस जाने के लिए वीज़ा की जरूरत नहीं है अगर यात्रा 90 दिन या उससे कम की है.
बस पासपोर्ट चाहिए, जो यात्रा की तारीख से कम से कम 6 महीने तक वैध हो.
एयरपोर्ट पर परमिट ऑन अराइवल दिया जाता है.
रिटर्न टिकट या अगले देश का टिकट
होटेल बुकिंग या ठहरने का पता
यात्रा के दौरान खर्च उठाने की क्षमता (कैश या क्रेडिट कार्ड)
बिज़नेस वीज़ा
अगर कोई बिज़नेस मीटिंग या कॉन्फ्रेंस के लिए जा रहा है:
यह भी विज़िट वीज़ा के तहत 90 दिन तक वैध है।
निमंत्रण पत्र और बिज़नेस से जुड़ी जानकारी जरूरी है।
अगर कोई भारतीय मॉरीशस में स्थायी रूप से बसना चाहता है, तो इसके लिए कुछ तरीके हैं:
निवेश के आधार पर
ईकॉनॉमिक/इंवेस्टमेंट स्कीम के तहत आप मॉरीशस में निवेश करके स्थायी निवास प्राप्त कर सकते हैं.
आम तौर पर इसमें
न्यूनतम राशि लगभग 3 लाख पचहत्तर हजार मॉरीशस रुपए से शुरू
निवेश के बाद 5 साल में स्थायी निवास मिलने की संभावना है
नौकरी या व्यवसाय के आधार पर
अगर कोई मॉरीशस की कंपनी में काम करता है, तो वर्क परमिट मिलता है.
कई सालों तक काम करने के बाद PR (Permanent Residency) के लिए आवेदन किया जा सकता है.
मॉरीशस का Retired Non-Citizen Permit
50 वर्ष से अधिक उम्र वाले लोग आवेदन कर सकते हैं
न्यूनतम मासिक आय Certified करनी होती है
3 साल के लिए अनुमति, जिसके बाद renewal और स्थायी वीज़ा की संभावना
मॉरीशस में भारतीय मूल की बहुसंख्यक आबादी है, इसलिए भाषा और संस्कृति में आसानी रहती है.
हिंदी, भोजपुरी और तमिल बोलने वाले समुदाय के कारण घर जैसा महसूस होता है.
यहां शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा अच्छी हैं, जो इसे परिवार के लिए भी परफेक्ट बनाता है.
भारतीयों के लिए Mauritian Rupee (MUR),भारतीय रुपये (INR) की तुलना में लगभग दोगुना है. मतलब एक मॉरिशयाई रुपए के लिए आपको लगभग 2 भारतीय रुपए चुकाने होंगे.एक बात और मॉरिशियस में रहने का खर्च भारत की तुलना में 64 फीसदी ज्यादा है.
तो दोस्तों, कैसी लगी आपको हमारी ये मॉरिशस की जानकारी? 🌴✨
नीचे कमेंट बॉक्स में हमें बताइए कि आप मॉरिशस का प्लान कब कर रहे हैं, और कौन-कौन से जगहें आप सबसे पहले घूमना चाहेंगे! 🏖️✈️ तो घूमते रहिए और देखते पढ़ते रहिए ट्रैवल जुनून…
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