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जब भी कभी किसी को विदेश यात्रा पर जाते देखती तो मन में ये कभी नहीं आता था कि मैं भी कभी भारत से बाहर जाऊंगी लेकिन अचानक ही मुझे भी परिवार सहित भारत से बाहर जाने का मौका मिला. ये मेरी पहली विदेश यात्रा थी इसलिए मेरे मन के भीतर बैठा छोटा बच्चा बल्लियों उछल रहा था. कहीं मन में उत्सुकता मिला थोड़ा डर भी था. आखिरकार 10 मई का वो दिन भी आ गया जिस दिन मुझे अपने देश से बाहर जाने के लिए उड़ान भरनी थी.
हम एक्साइटमेंट में उड़ान के समय से साढ़े तीन घंटे पहले ही एयरपोर्ट पहुंच गए गए. दिल्ली का इंदिरा गांधी टर्मिनल 3 मेरी सोच से भी ज्यादा खूबसूरत था. अचानक याद आया फेसबुक पर किसी ने बताया था कि इस जगह कभी गांव हुआ करते थे. एयरपोर्ट पर खूब सारे विदेशी देखकर ख्याल आया कि ये विदेशी जब एयरपोर्ट पर उतरते होंगे तो सब कुछ खूबसूरत और चकाचक देखते होंगे और फिर पहाड़ गंज या करोल बाग़ के होटल में ठहर कर दिल्ली में गन्दगी और जाम देखते होंगे.
लोगों के चेहरे ओब्सर्व करने में मुझे बड़ा मज़ा आ रहा था. कोई थका हुआ था तो कोई जल्दी में था. किसी के माथे पर तिलक लगा था तो कोई सिर्फ एक शोल्डर बैग कंधे पर टाँगे ऊंघ रहा था. खूब सारी ड्यूटी फ्री दुकानों पर तरह तरह का भारतीय सामान सजा था. इन्हीं सब चीज़ो को देखते हुए साढ़े तीन घंटे गुजर गए और नियत समय पर मैं अपने बोइंग 777 में जाकर बैठ गयी.
कैरिज वे से विमान में जाते हुए मेरी नज़र विमान के घूमते हुए प्रोपेलर्स पर भी पड़ी। उन्हें देखकर उत्साह दोगुना हो गया। मुझे हमेशा से विमान का टेक ऑफ करना बहुत ही एक्साइटिंग लगता है फिर इस बार तो बहुत बड़ा विमान था. विमान पहले धीरे, फिर तेज़ और फिर बहुत तेज़ हुआ और फिर आसमान में उड़ गया. दिल्ली की ऊँची ऊँची इमारतें लगातार छोटी होती जा रही थीं और मैं अपने आप को पंछी सा महसूस कर रही थी.
सचमुच आसमान की ऊंचाई से मेरी दिल्ली बड़ी खूबसूरत दिखती थी. मेरी सीट के सामने लगे टीवी स्क्रीन पर लगातार विमान गति और उसकी धरती से ऊंचाई बढ़ती जा रही थी. हालाँकि मेरी उड़ान आधी रात की थी फिर भी मैं अपनी यात्रा का एक भी पल सोकर गंवाना नहीं चाहती थी इसलिए उड़ान के दौरान लगातार मेरी सीट के आगे लगे टीवी स्क्रीन पर मैं दुनिया के नक़्शे को देखती रही कि कब मैं भारत से दूर जा रही हूँ.
जब विमान बंगाल की खाड़ी और अन्य समुद्रो के ऊपर 12000 मीटर की ऊंचाई पर 900 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से उड़ता जा रहा था तो एक बार मलेशिया के लापता विमान का मन को झकझोर देने वाला ख्याल भी आया. बीच बीच में छोटे छोटे आइलैंड्स पर टिमटिमाती हुई रोशनियां देखकर लगता था कि जाने ये कौन सा देश होगा. यहां कौन लोग रहते होंगे और कैसे होंगे.
सिंगापुर एयरलाइन्स के उस विमान की परिचारिकाएं काफी खुशमिज़ाज थी और प्लास्टिक नहीं बल्कि नेचुरल स्माइल के साथ दौड़ दौड़ कर अपना काम कर रही थी. उनमे से एक तो शैली नाम की भारतीय एयरहोसटेस भी थी. विमान के टेक ऑफ करते ही हमारी सीटों पर स्टिकर चस्पा कर दिए गए थे क्योंकि हमें शुद्ध शाकाहारी जैन मील की दरकार थी.
विमान में खाना भी सबसे पहले हमें ही दिया गया. उड़ान के दौरान सिंगापोर एयरलाइन्स द्वारा दिया गया शाकाहारी जैन डिनर. इसमें तीन चीज़ें बड़ी मज़ेदार थी. रोटी के साथ साथ बन भी था. सलाद में करीने से कटी लाल शिमला मिर्च थी जो आश्चर्यजनक रूप से खाने में स्वाद भरी भी लग रही थी. मीठे में बिना दूध के मीठे जंवें (सेंवियां) भी बहुत स्वादिष्ट थीं.
सुबह ज़रा सी रौशनी देखते ही मैंने अपनी खिड़की शटर उठाकर नीचे झांका तो नीचे का नज़ारा बड़ा खूबसूरत था. नीचे नीला समंदर जिसमे खूब सारे जहाज खड़े थे पर इतनी ऊपर से तो वो किश्तियों जैसे लग रहे थे. विमान के अंदर देखा तो लाइन सी लगी नज़र आई. पहले कुछ समझ नहीं आया फिर ध्यान दिया कि वो वॉशरूम यूज़ करने वालों की लाइन थी. अचानक भारतीय रेल याद हो आई. फिर सोचा कि विमान की खिड़की से बाहर देखना ही बेहतर है और इस तरह इस साढ़े पांच घंटे की यात्रा पूरी करके आख़िरकार मैं एक नए देश में उतरने को तैयार थी.
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