हम आपको अगले लेख में भूली भटियारी के महल का इतिहास ( History of Bhuli Bhatiyari Ka Mahal ) भी बताएंगे लेकिन यहां इस ब्लॉग में पहले मैं अपने अनुभव की बात आपसे कर लेता हूं.
दिल्ली में हॉन्टेड जगहें ( Haunted Places in Delhi ) कौन कौन सी हैं? ये सवाल आपने भी गूगल पर सर्च ज़रूर किया होगा. चाहे आप दिल्लीवाले हों या न हों. अब इंटरनेट की दुनिया ऐसी है दोस्तों, कि यहां क्या सच और क्या झूठ, समझ ही नहीं आता है. हॉन्टेड जगहों की सूची में क्या पता कब कौन सा नाम जुड़ जाए. इंटरनेट पर अनगिनत आर्टिकल्स और वीडियो के बीच आप कहीं इन जगहों को लेकर कन्फ्यूज न हो जाएं इसलिए हमने आपके भ्रम को दूर करने का बीड़ा उठाया.
इस ब्लॉग में, हम जिस जगह की सच्चाई आपको बताने जा रहे हैं वो है दिल्ली के बीचों बीच बना भूली भटियारी का महल ( Bhuli Bhatiyari Ka Mahal ). इस महल ( Bhuli Bhatiyari Ka Mahal ) को हमने इंटरनेट पर बहुत सर्च किया. लगभग हर जगह इसके हॉन्टेड या भुतहा होने की बात कही गई. कई आर्टिकल्स में हमने पाया कि यहां कोई भी गार्ड 3-4 दिन से ज़्यादा ठहर नहीं पाता. कुछ जगह ये लिखा था कि एक बार एक ग्रुप यहां घूमने आया. इस ग्रुप ने जंगल में जाकर एक दीवार के आगे तस्वीर खिंचवाई. जब उस ग्रुप ने तस्वीर देखी तो उसमें से वह दीवार जो सफेद रंग की थी, गायब थी.
ऐसी कई बातें सोशल मीडिया से लेकर इंटरनेट पर अलग अलग सोर्स में तैर रही हैं. कुछ में बताया गया है कि भूली भटियारी महल ( Bhuli Bhatiyari Ka Mahal ) में एक रानी की आत्मा आज भी बदला लेने के लिए घूमती है. खैर, ये जब पढ़कर जब हमारा दिमाग चकराया तो टीम में से एक सदस्य ने फैसला किया कि वह अकेले भूली भटियारी के महल जाएगा और सच को सामने लाएगा.
हम आपको अगले लेख में भूली भटियारी के महल का इतिहास ( History of Bhuli Bhatiyari Ka Mahal ) भी बताएंगे लेकिन यहां इस ब्लॉग में पहले मैं अपने अनुभव की बात आपसे कर लेता हूं.
भूली भटियारी का महल ( Bhuli Bhatiyari Ka Mahal ) जाने से पहले मैंने इस जगह के बारे में काफी पढ़ा था. अलग अलग बातें पढ़ने की वजह से मेरे दिमाग में कई चीज़ें चल रही थीं. इसी वजह से एक शनिवार को सुबह 10 बजे मैं घर से निकला. चूंकि मैं अकेला था इसलिए कुछ आशंकाएं भी थीं.
भूली भटियारी का महल ( Bhuli Bhatiyari Ka Mahal ) के लिए मैं झंडेवालान मेट्रो स्टेशन पर उतरा. स्टेशन पर उतरकर मैंने गूगल मैप का सहारा लिया. मेट्रो स्टेशन से इस महल की कुल दूरी 550 मीटर की दिखा रही थी. यह देखकर मैं पैदल ही आगे बढ़ा. सीधा गोलचक्कर से बाईं ओर हनुमान जी के मंदिर की तरफ बढ़ा. सड़क पार करके हनुमान जी के मंदिर पहुंचा. वहां मैंने दर्शन किए और फिर मंदिर के बगल वाली सड़क से आगे बढ़ने लगा.
हनुमान मंदिर के पीछे कुछ ही कदम बढ़ते ही बग्गा लिंक के पीछे वाली सड़क दिखाई दी. सड़क थोड़ी पतली थी और आगे सुनसान नजर आ रही थी. कोने पर एक सिगरेट की दुकान थी. यहां बैठे शख्स से मैंने पूछा कि क्या भूली भटियारी के महल ( Bhuli Bhatiyari Ka Mahal ) के लिए यही रास्ता है, उसने बिना कुछ बोले ही हाथों से इशारा किया. यहां हरी झंडी पाकर मैं इस रास्ते पर आगे बढ़ गया.
कुछ दूरी पर बढ़ने के बाद, पीछे बाईं ओर हनुमान जी की मूर्ति का शिख दिखाई देने लगा और बगल में एक दरगाह. दरगाह पहुंचकर मैं रुका. सोचा कि दरगाह के अंदर जाऊं लेकिन वक्त की कमी थी और पहली प्राथमिकता भूली भटियारी का महल जाना था इसलिए आगे बढ़ चला.
भूली भटियारी के महल ( Bhuli Bhatiyari Ka Mahal ) के लिए बग्गा लिंक के पीछे वाले रास्ते पर आगे बढ़ते हुए मैं लगातार एक गहरे जंगल में प्रवेश करता जा रहा था. यह दिल्ली का सेंट्रल रिज फॉरेस्ट एरिया था. मैं इस रास्ते पर बढ़ते जा रहा था. बगल में एक पार्क था. जहां मुझे दो शख्स बैठे दिखे. ये चेहरे और हाव भाव से असामाजिक तत्व लग रहे थे. सो, मैंने अपना प्रेस आईडी कार्ड जेब में डाल लिया. आगे बढ़ा. बेहद सुनसान रास्ता. दोपहर के 12 बजे यहां कोई चहल-पहल नहीं. सोचिए, रात को क्या होता होगा. मैं आगे बढ़ता जा रहा था. तभी वृक्षों के पीछे से मुझे भूली भटियारी का महल दिखना शुरू हो गया.
ये वह जगह थी जहां पक्षियो की चहचहाहट ही थी और मैं, तीसरा था ये महल. हम तीनों के अलावा, मैं जिस चीज़ का अहसास ले पा रहा था वह एक डर का अहसास ही था. ये डर अकेला होने की वजह से था. मैं कुछ देर रुका, खुद को खुद से ही हौसला दिया. ईश्वर का नाम लिया. और जुट गया अपने काम पर.
महल के भीतर जाने के लिए दरवाजा बंद था. दरवाजे को ताले से नहीं बल्कि रस्सी बांधकर बंद किया गया था. हैरान हुआ. फिर मुझे वह किस्सा याद आया जहां पर कथित तौर ये कहा गया था कि एक ग्रुप ने तस्वीर खिंचवाई लेकिन फोटो में से पीछे की दीवार गायब थी. ये सोचकर मैं महल के पीछे गया. दोस्तों, यहां पेड़ों के बीच मैंने महल की पूरी परिक्रमा कर डाली. पीछे मुझे गिद्धों का झुंड बैठा दिखाई दिया, मोर दिखाई दिए, ये देखकर मेरा डर भी बढ़ता गया. कुछ पेड़ गिरे भी थे. मैंने गिरे पेड़ों को लांघकर, 8 से 10 फीट ऊंचे बुर्ज को देखते हुए ये परिक्रमा पूरी की. ऐसा लगा कि यहां राजा ऐशो आराम या सीधा सीधा कहूं तो अय्याशी के लिए आते होंगे. शायद यही सच है. जंगल के बीचों बीच वर्ना इस महल का क्या काम! जब आज यहां ये हाल है तो सोचिए 700 साल पहले क्या हाल रहा होगा.
मैं महल की परिक्रमा लगाकर फिर से मुख्य दरवाज़े के सामने आ चुका था. यहां आते ही एक कौवा मेरे करीब आकर बैठ गया और सिर हिला हिलाकर कांव कांव करने लगा. अब उसके बगल में एक कुत्ता भी आ गया. कुत्ता पतला सा था इसलिए उसे देखकर डर तो नहीं लगा लेकिन जब वह गर्दन घुमा घुमाकर मुझे देखने लगा और वो भी एकटक. तब थोड़ा डर बढ़ना शुरू हुआ. मैंने फिर उन दोनों को चिल्लाकर वहां से भगाया.
अब एक और किस्सा हुआ. मैं रिकॉर्ड करते करते दरवाज़े की तरफ बढ़ा. मेरा कैमरा ऑन था. तभी अचानक बंद दरवाजे की दूसरी तरफ एक सफेद कुत्ता आ गया. अचानक किसी के वहां आ जाने से एक बार तो मैं सिहर ही उठा था लेकिन जैसे ही सच्चाई का पता चला मैंने खुद को संभाला. इसके बाद रिकॉर्डिंग की कहानी को आगे बढ़ाया.
भूली भटियारी महल पर एक घंटे रहने के बाद मैंने कोशिश की कि कोई मिल जाए, जिससे मैं बात कर सकूं. लेकिन वहां सिर्फ खुद को पाकर मुझे लगातार निराशा ही मिली. अब मैं वापसी की राह पर था. कुछ देर पहले एक कपल वहां से जाते तो दिखे थे लेकिन ऐसे किसी जोड़े को रोकना अपने समय की बर्बादी ही थी. सो, मैं वापस जाने लगा. वापसी के रास्ते पर, थोड़ी ही दूर आगे बढ़ने पर कुर्ता पायजाना पहने एक शख्स मुझे भूली भटियारी के महल की तरफ जाता दिखाई दिया. इस शख्स ने कानों में ईयरफोन भी लगाया हुआ था.
मैंने इस शख्स को रोककर महल के बारे में पूछा. इस शख्स ने तुरंत कहा कि मैं यहीं का गार्ड हूं. बस क्या था, समझ जाइए कि प्यासे को जैसे कुआं मिल गया हो. मैंने उनसे पूछा कि इंटरनेट पर तो कई जगह ये लिखा है कि यहां गार्ड रुक ही नहीं पाते हैं, उनके साथ अनहोनी हो जाती है! उन्होंने कहा कि भईया मैं तीन साल से यहीं पर हूं. मेरी नियुक्ति जिस एजेंसी से है, एएसआई ने उसे कॉन्ट्रैक्ट दिया है.
नवाबुद्दीन नाम के इन गार्ड के साथ मैं वापस महल आया. उन्होंने हाथों में ली हुई रस्सी मुझे दिखाई और कहा कि यहां स्मैक लेने वाले और दूसरे असामाजिक तत्व हैं जिनसे आपको खतरा ज़रूर हो सकता है लेकिन भूत-प्रेत जैसी कोई बात यहां नहीं. मैंने पूछा कि रात में भी ऐसा कुछ नहीं होता? उन्होंने कहा कि रात में तो लोग आते हैं यहां. कुछ लोग यहां डेयरिंग के लिए या वीडियो बनाने आते ही हैं. नवाबुद्दीन की इस बात से मैंने राहत की सांस ली.
नवाबुद्दीन जी से फिर मैंने ये भी पूछा कि एक आर्टिकल में मैंने ये पढ़ा था कि लोगों ने सफेद दीवार के सामने फोटो खिंचवाई और तब तस्वीर देखी तो उसमें से वह दीवार गायब थी, क्या ये बात सच है. उन्होंने कहा कि भाई साहब देखिए, ऐसा कुछ भी नहीं, झूठ है ये सब. आगे उन्होंने महल पर कहा कि जितने मुंह उतनी बातें, किसी को कुछ नहीं पता. अंदर क्या सच है, वह भी लोगों को नहीं पता. इंटरनेट पर 50 कहानियां हैं. हां, उन्होंने बातों बातों में ये ज़रूर कहा कि अंदर एक रानी की कब्र है जिसके बारे में कहा जाता है कि उसकी बेवफाई से नाराज होकर राजा ने उसे यहां छोड़ दिया था. हालांकि उसकी सच्चाई भी साफ नहीं है.
भूली भटियारी से महल पर तैनात गार्ड से मैंने रस्सी के बारे में पूछा. उन्होंने बताया कि यहां रहने वाले असामाजिक तत्व ताला तोड़कर ले जाते हैं इसलिए दरवाज़े को रस्सी से बांधना पड़ता है. आप किसी भूत-प्रेत का वहम मन से निकाल दें. यहां खतरा इन्हीं लोगों से हैं. पूरा जंगल खाली है. पुलिस का पहरा रहता है लेकिन आप किसी दोस्त के साथ ही आएं. अकेले बिल्कुल न आएं. नवाबुद्दीन से बात करके अब बारी थी वहां से विदा लेने की. मैंने नवाबुद्दीन जी को अलविदा कहा और चल दिया मेट्रो स्टेशन की ओर.
वहां से वापसी के रास्ते में एक बार फिर मैं हनुमान जी के मंदिर के सामने था. झंडेवालान मंदिर मेट्रो स्टेशन के नीचे वाले हनुमान मंदिर के ठीक सामने हनुमान जी को प्रणाम किया. मूर्ति देखकर, मुंह से सहसा निकल आया – भूत-पिशाच निकट नहीं आवैं, महाबीर जब नाम सुनावैं.
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