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Gates of Delhi: दिल्ली के 8 ऐतिहासिक शहर और उनके दरवाज़े

Gates of Delhi : दिल्ली एक ऐसा शहर जिसने सदियों से इतिहास के कई पन्नों को अपने में समेटा है. यह केवल एक महानगर नहीं, बल्कि आठ ऐतिहासिक शहरों का संगम है, जिनमें से प्रत्येक की अपनी गाथा और पहचान है. आज भी दिल्ली में कई ऐतिहासिक दरवाज़े मौजूद हैं, जो इस शहर के गौरवशाली अतीत के गवाह हैं. ये दरवाज़े दो प्रकार के थे, वे जो नगर की चारदीवारी के साथ शहर में प्रवेश के लिए बनाए जाते थे और वे जो किलों या इमारतों से जुड़े होते थे. आइए दिल्ली के इन आठ शहरों और उनके दरवाज़ों की यात्रा करें…

1. दिल्ली का पहला शहर: लालकोट और किला राय पिथौरा || The first city of Delhi: Lal Kot and Qila Rai Pithora

दिल्ली की पहली बसावट लालकोट मानी जाती है, जिसे तोमर राजपूतों के अनंगपाल तोमर ने बसाया था. इसी स्थान पर पृथ्वीराज चौहान ने 1180 से 1186 ईस्वी के बीच किला राय पिथौरा का निर्माण करवाया था. राय पिथौरा की दिल्ली में 12 दरवाज़े थे, हालांकि समय के साथ वे नष्ट हो गए. तैमूर ने इन दरवाज़ों की संख्या 10 बताई है, जबकि यज़दी के ज़फरनामे में 18 दरवाज़ों का ज़िक्र मिलता है, जिनमें दरवाज़ा हौज रानी, बुर्का दरवाज़ा, ग़ज़नी दरवाज़ा (पहले रणजीत दरवाज़ा), मौज़जी दरवाज़ा, मंडार कुल दरवाज़ा, बदायूं दरवाज़ा, दरवाज़ा हौज ख़ास और दरवाज़ा बग़दादी शामिल हैं.

निगम बोध दरवाज़ा : निगम बोध दरवाज़ा: 1193 ईस्वी में बना यह दरवाज़ा दिल्ली के सबसे पुराने दरवाज़ों में से एक है.दिल्ली विकास प्राधिकरण ने इसका जीर्णोद्धार किया है और इस पर भगवत गीता के वे श्लोक भी अंकित हैं जो आत्मा की अमरता को सिद्ध करते हैं.
चौखंबा दरवाज़ा: कुतुब मीनार के ठीक बगल में मौजूद यह दरवाज़ा लालकोट किले का प्रवेश द्वार था और दिल्ली में मौजूद सबसे पुराना दरवाज़ा माना जाता है.
अलाई दरवाज़ा: कुतुब मीनार परिसर में स्थित, इसे अलाउद्दीन खिलजी ने 1311 ईस्वी में कुतुब ए इस्लाम परिसर में बनवाया था. यह घोड़े की नाल जैसी आकृति का है.

2. दिल्ली का दूसरा शहर: सीरी फोर्ट || The second city of Delhi: Siri Fort

दिल्ली का दूसरा ऐतिहासिक शहर सीरी फोर्ट था, जिसे अलाउद्दीन खिलजी ने 13वीं शताब्दी में बनवाया था. यह एक संपन्न शहर माना गया है, जिसमें पानी की आपूर्ति के लिए अलाउद्दीन खिलजी ने हौज खास का भी निर्माण कराया था.इस किले में सात दरवाज़े हुआ करते थे, हालांकि आज न तो किले के और न ही दरवाज़ों के कोई निशान मिलते हैं, केवल अवशेष ही दिखाई देते हैं. अलाउद्दीन खिलजी ने यहीं पर चोर मीनार का निर्माण भी कराया था, जिसके झरोखों में चोरों या मंगोलों से युद्ध में मारे गए सैनिकों के सिर टांगे जाते थे, ताकि दहशत फैलाई जा सके.

3. दिल्ली का तीसरा शहर: तुगलकाबाद || The third city of Delhi: Tughlaqabad

ग़यासुद्दीन तुगलक ने खिलजियों को हराने के बाद 1321 ईस्वी में दिल्ली का तीसरा शहर तुगलकाबाद बसाया था. यह किला केवल 4 साल में तैयार हो गया था और इसमें कई टावर और मस्जिदें थीं. कमाल की बात यह है कि इस किले में 52 दरवाज़े हुआ करते थे, लेकिन आज केवल 13 के ही निशान मिलते हैं, वे भी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में। आज केवल एक दरवाज़ा दिखाई देता है, जो पठान शैली में बना है.

4. दिल्ली का चौथा शहर: जहांपनाह || The fourth city of Delhi: Jahanpanah

मोहम्मद बिन तुगलक ने 1334 ईस्वी में तुगलकाबाद किले के पास ही जहांपनाह नाम का चौथा शहर बसाया था। इसे सीरी फोर्ट, तुगलकाबाद और लालकोट के बीच में मंगोलों के हमलों से बचने के लिए बनाया गया था। इसे विजय मंडल के नाम से भी जाना जाता है। इस शहर में भी 13 दरवाज़े थे, लेकिन आज उनके निशान भी नहीं मिलते।

5. दिल्ली का पांचवा शहर: फिरोजाबाद (फिरोजशाह कोटला) ||The fifth city of Delhi: Firozabad (Firoz Shah Kotla)

1351 ईस्वी में फिरोजशाह तुगलक ने यमुना नदी के किनारे एक नई राजधानी बसाई, जिसे उन्होंने फिरोजाबाद नाम दिया. आज इसे फिरोजशाह कोटला के नाम से जाना जाता है. इस किले में राजा, रानी और प्रशासनिक कार्यों के लिए तीन महल थे, साथ ही सैनिकों के लिए बैरक, हथियारों के गोदाम और एक विशाल मस्जिद भी थी. इसका एक बड़ा आकर्षण अशोक स्तंभ है, जिसे अंबाला जिले के टोपरा गांव से लाया गया था। इस काल के कोई भी मूल दरवाज़े अब मौजूद नहीं हैं.

6. दिल्ली का छठा शहर: पुराना किला || The sixth city of Delhi: Old Fort

दिल्ली का छठा शहर, जिसे आज हम सभी पुराना किला के नाम से जानते हैं, को बनवाने में हुमायूं और शेरशाह सूरी दोनों का योगदान है. शेरशाह सूरी ने इसे पूरा कराया था। यह माना जाता है कि पुराना किला ही इंद्रप्रस्थ का हिस्सा है, जिसे पांडवों की राजधानी के रूप में जाना जाता है। उत्खनन में यहां शुंग, गुप्त और महाभारत काल की निशानियां भी पाई गई हैं, जो इसके सदियों पुराने इतिहास को दर्शाती हैं.
पुराना किला में आज तीन मुख्य दरवाज़े दिखाई देते हैं:
 बड़ा दरवाज़ा: यह किले के पश्चिमी हिस्से में स्थित मुख्य प्रवेश द्वार है, जिसे शेरशाह सूरी ने 1540 से 1545 के बीच तैयार कराया था। यह लाल बलुआ पत्थरों से बना है और इसकी ऊंचाई और गहराई दुश्मनों को भ्रमित कर देती थी.
 हुमायूं दरवाज़ा: किले के दक्षिणी हिस्से में मौजूद यह दरवाज़ा हुमायूं के समय का माना जाता है। यह दिल्ली के चिड़ियाघर की ओर खुलता था और इसके पास ही ऐतिहासिक शेर मंडल भी है, जहां हुमायूं की मृत्यु हुई थी.  यह दरवाज़ा भी लाल पत्थर से बना है और मुगल काल की वास्तुकला का गवाह है.
तालाकी दरवाज़ा: यह किले के उत्तरी भाग में है और इसे अपशकुन का प्रतीक माना जाता है। ‘तालाकी’ का अर्थ ‘वर्जित’ या ‘निषिद्ध’ है और इसे सुरक्षा कारणों से बंद रखा गया है. इसे भी शेरशाह सूरी ने 1540 के दशक में बनवाया था और यह एक पुल का हिस्सा रहा होगा जो किले के चारों ओर बनी खाई के ऊपर से गुजरता था.
पुराना किला के ठीक सामने, मथुरा रोड पर शेरशाह दरवाज़ा (जिसे लाल दरवाज़ा भी कहते हैं) स्थित है। इस शहर में प्रवेश के लिए बने इस दरवाज़े का काफी हिस्सा आज ढह चुका है. यह लाल बलुआ पत्थरों से बना है और इसमें अफ़ग़ान और हिंदुस्तानी स्थापत्य का मिश्रण देखा जा सकता है.

7. दिल्ली का सातवां शहर: शाहजहानाबाद (पुरानी दिल्ली) || The seventh city of Delhi: Shahjahanabad (Old Delhi)

मुगल सम्राट शाहजहां ने 1638 ईस्वी में यमुना नदी के पश्चिमी किनारे पर अपनी नई राजधानी शाहजहानाबाद की नींव रखी. यह शहर आज की पुरानी दिल्ली है, जिसे भव्यता, सुरक्षा और योजना के हिसाब से बनाया गया था. शाहजहानाबाद को ऊंची पत्थर की दीवारों से घेरा गया था और इसमें कुल 14 प्रवेश द्वार बनाए गए थे. ये दरवाज़े सिर्फ सुरक्षा के लिए ही नहीं, बल्कि शहर की वास्तुकला, व्यापारिक रास्तों और सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र भी थे.
शाहजहानाबाद के प्रमुख दरवाज़े:
लाहौरी दरवाज़ा: यह लाल किले का पश्चिमी प्रवेश द्वार था और इसका नाम इसलिए पड़ा क्योंकि यह रास्ता लाहौर की दिशा में जाता था. आज भी हर वर्ष स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री यहीं से तिरंगा फहराते हैं.
 दिल्ली दरवाज़ा (दिल्ली गेट): दरियागंज क्षेत्र की शुरुआत में स्थित, यह शाहजहानाबाद की दक्षिणी सीमा पर था और इसका निर्माण लगभग 1640 ईस्वी में हुआ था. इसका उद्देश्य राजधानी को दक्षिण भारत, आगरा और दक्कन के रास्तों से जोड़ना था. यह लाल बलुआ पत्थर से बना विशाल और भव्य द्वार है, जिसमें मुगल और ब्रिटिश मरम्मत दोनों की झलक दिखाई देती है.
 तुर्कमान गेट: दिल्ली गेट से 1.5 किमी की दूरी पर स्थित, यह 17वीं सदी में शाहजहां द्वारा बनवाया गया था और इसका नाम सूफी संत हजरत शाह तुर्कमान की दरगाह के कारण पड़ा। यह लाल बलुआ पत्थर से बना था और शहर के अंदरूनी हिस्सों से बाहर आने-जाने के लिए महत्वपूर्ण मार्ग था.
अजमेरी गेट: 17वीं शताब्दी में शाहजहां के शासनकाल में बना यह दरवाज़ा शाहजहानाबाद की पश्चिमी सीमा पर था और इसका नाम अजमेर की दिशा में खुलने के कारण पड़ा। यह नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के बिल्कुल पास स्थित है और आज भी यह क्षेत्र बहुत भीड़भाड़ वाला है.
कश्मीरी गेट: यह भी शाहजहां के शासनकाल में 17वीं शताब्दी में बना था और 14 मूल दरवाज़ों में से एक था. यह कश्मीर, पंजाब और अफगानिस्तान की ओर यात्राओं के लिए उपयोग होता था. यह ऐतिहासिक दरवाज़ों में एकमात्र ऐसा है जिसमें आने और जाने के लिए दो रास्ते हैं. 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में इसका बड़ा ऐतिहासिक महत्व है, क्योंकि अंग्रेजों ने इस गेट को बारूद से उड़ाकर दिल्ली में प्रवेश किया था। आज भी दीवारों पर गोलियों के निशान और बारूद के धमाके के अवशेष देखे जा सकते हैं.
खूनी दरवाज़ा: दिल्ली गेट से लगभग 600 मीटर उत्तर पूर्व में स्थित यह दरवाज़ा 16वीं शताब्दी में शेरशाह सूरी के शासनकाल में बना बताया जाता है. इसका नाम इसके खौफनाक अतीत के कारण पड़ा है. 22 सितंबर 1857 को मेजर विलियम हडसन ने यहीं पर अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह ज़फर के बेटों और एक पोते को निहत्थे हालत में गोली मार दी थी, जिसके बाद उनके शव कई दिनों तक खून से लथपथ पड़े रहे. यह दिल्ली के बहादुर शाह ज़फर मार्ग पर स्थित है.

8. दिल्ली का आठवां शहर: नई दिल्ली || Eighth city of Delhi: New Delhi

दिल्ली का आठवां शहर नई दिल्ली है, जिसे ब्रिटिश शासन के दौरान बसाया गया था. इसकी नींव 1911 में जॉर्ज पंचम की दिल्ली यात्रा के दौरान रखी गई और 1931 में इसे आधिकारिक रूप से भारत की राजधानी घोषित किया गया. इसे ब्रिटिश वास्तुकार सर एडविन लुटियंस और सर हर्बर्ट बेकर ने डिज़ाइन किया था. नई दिल्ली में पुराने किलों या शहरों की तरह पारंपरिक किलेबंद दरवाज़े नहीं हैं, लेकिन यहां कुछ स्मारक रूप में गेट्स बनाए गए जो शहर की पहचान बन गए.
नई दिल्ली के प्रमुख प्रतीकात्मक दरवाज़े:

 इंडिया गेट: प्रथम विश्व युद्ध और अफ़ग़ान युद्ध में शहीद हुए 84,000 भारतीय सैनिकों की स्मृति में बनाया गया. इसे लुटियंस ने डिज़ाइन किया था और यह कर्तव्य पथ पर स्थित है (जिसे पहले राजपथ के नाम से जाना जाता था).
इसके अलावा, राष्ट्रपति भवन के भव्य द्वार, नॉर्थ और साउथ ब्लॉक के सचिवालय गेट, और हैदराबाद हाउस, बड़ौदा हाउस, जयपुर हाउस जैसे राजनयिक भवनों के प्रवेश द्वार भी हैं.
ये सभी द्वार ब्रिटिश काल की भव्यता, अनुशासन और शक्ति के प्रतीक हैं, जिनमें मुगल स्थापत्य और ब्रिटिश क्लासिकल आर्किटेक्चर का अनूठा संगम दिखाई देता है। इस प्रकार, नई दिल्ली के दरवाज़े परंपरागत न होकर आधुनिक और स्मारक रूप में हैं, लेकिन फिर भी वे इस शहर के गौरव और इतिहास के गवाह हैं। यह दिल्ली के आठों शहरों और उनके ऐतिहासिक दरवाज़ों की कहानी है, जो न केवल पत्थरों की, बल्कि सत्ता संघर्ष, कला और विरासत की गवाही देती है.

Komal Mishra

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