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Hauz Khas : दिल्ली के सबसे समृद्ध गांव की कहानी – इतिहास, आधुनिकता और चुनौतियां

Hauz Khas : दिल्ली के दिल में बसा हॉज़ ख़ास विलेज, सिर्फ़ एक गाँव नहीं, बल्कि इतिहास और आधुनिकता का एक अनूठा संगम है. इसे भारत के सबसे समृद्ध और संपन्न गांवों में से एक माना जाता है. कभी यह एक शांत और कृषि-प्रधान गाँव हुआ करता था, जहां चारों तरफ़ खेतीबाड़ी और गाय-भैंसें दिखती थीं। लेकिन पिछले कुछ दशकों में, इसकी पहचान में अभूतपूर्व बदलाव आए हैं।

हौज खासः ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और प्रमुख स्थल || Hauz Khas: Historical Background and Major Sites

हौज खास का इतिहास सदियों पुराना है और यह कई महत्वपूर्ण स्मारकों और कहानियों को समेटे हुए है हॉज़ ख़ास जलाशय (झील): यह इस पूरे इलाक़े के प्रसिद्ध होने का मुख्य कारण है. हौज का अर्थ जलाशय या पानी इकट्ठा करने की जगह है, और ख़ास का मतलब विशेष या शाही है। इसका निर्माण अलाउद्दीन ख़िलजी (1290-1320 ई.) ने सीरी फोर्ट (दिल्ली की दूसरी बस्ती) को पानी उपलब्ध कराने के लिए करवाया था। मूल रूप से यह 123 एकड़ में फैला था, जिसकी चौड़ाई 600 मीटर और लंबाई 700 मीटर थी, हालांकि अब इसका क्षेत्रफल कम हो गया है। 13वीं शताब्दी में बने इस जलाशय का बाद में फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ (1351-1388 ई.) ने मरम्मत,करवाया। आज जलाशय का अधिकांश क्षेत्र एक सुंदर पार्क में बदल गया है, जहाँ लोग घूमने आते हैं और बच्चों के लिए झूले और बड़ों के लिए व्यायाम मशीनें भी लगाई गई हैं। यहाँ एक 100-150 साल पुराना भव्य बरगद का पेड़ और नक्षत्रों के अनुसार लगाए गए पेड़ों वाला एक नक्षत्र  गार्डन भी है। चोर मीनार हॉज़ ख़ास एनक्लेव में स्थित यह मीनार अलाउद्दीन ख़िलजी के समय (1290-1320 ई.) में बनाई गई थी। इसमें 200 से अधिक झरोखे (niches) बने हुए हैं। इन झरोखों में मंगोलों (जिन्हें खिलजी ने देश में आने से रोका), चोरों और विद्रोहियों के *सर कलम करके टांग दिए जाते थे ताकि दहशत फैलाई जा सके और अपराध रोका जा सके। आज ऊपर जाने का रास्ता बंद कर दिया गया है। मुंडा गुंबद यह जलाशय के बिल्कुल बीचों-बीच स्थित हुआ करता था। पहले यह दो मंज़िला था, पर अब केवल एक मंज़िल बची है।

फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ का मक़बरा और मदरसा || Hauz Khas: Historical Background and Major Sites

फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ (तुग़लक़ वंश का तीसरा शासक) ने अपने जीवन काल में ही अपना मक़बरा और मदरसा बनवाया था, ताकि मृत्यु के बाद उन्हें वहीं दफनाया जा सके। यह मदरसा देश-विदेश से आने वाले छात्रों के लिए ज्ञान का केंद्र था। उन्होंने 300 नए नगरों की स्थापना की, जिनमें हिसार, फ़िरोज़ाबाद, फ़तेहाबाद, जौनपुर और फ़िरोज़पुर प्रमुख हैं।  नीली मस्जिद यह मस्जिद ख़रेड़ा गाँव में स्थित है और इसे *सिकंदर लोदी* के समय में बनवाया गया था। इसके नाम की वजह इसकी छत पर लगे नीले रंग के पत्थर या टाइलें हैं। यहाँ आज भी नमाज़ अदा की जाती है। जाटों का इतिहास  इस गाँव में जाट समुदाय का वर्चस्व रहा है। जाटों को अंग्रेजों द्वारा’लड़ाकू कौम’ (मार्शल कास्ट) का दर्जा दिया गया था। उन्होंने मुगलों और अंग्रेजों के ख़िलाफ़ काफ़ी प्रतिरोध किया। यह गाँव तीन तरफ से जंगल से घिरा होने के कारण भी बाहरी आक्रमणों से अपेक्षाकृत सुरक्षित रहा। गाँव में 90 घर और 36 बिरादरी के लोग रहते हैं, और पारंपरिक रूप से यहाँ कभी जातिवाद नहीं रहा।

आधुनिकीकरण और वर्तमान स्थिति || Modernization and current status

हौज खास में बदलाव 1990 के दशक से शुरू हुए, बीना रमानी जो पहली डिज़ाइनर थीं, उन्होंने 1988 में हौज खास विलेज में अपना बुटीक स्थापित किया। यह एक पुराने मकान में खोला गया था जिसका किराया उस समय ₹3800 था। इसके बाद सुरेश कलमाड़ी (पूर्व कांग्रेस सांसद) ने 1990 में ‘द विलेज बिस्ट्रो’ नामक पहला रेस्टोरेंट खोला। धीरे-धीरे बड़े कलाकार, आर्ट गैलरीज़ और कैफेज़ यहां आने लगे। 2012 से 2016-17 तक, हौज खास विलेज बहुत प्रसिद्ध हो गया और यहां अच्छा-ख़ासा जनसैलाब आता था।  पिछले 10 सालों में यह गाँव मुख्य रूप से रेस्टोरेंट और क्लबों के लिए जाना जाने लगा है, हालांकि यह इसकी पूरी पहचान नहीं है।  रेस्टोरेंट और क्लबों के आगमन से दुकानों का किराया दोगुना-तिगुना हो गया, जिससे बुटीक और अन्य रचनात्मक व्यवसाय शाहपुर जट जैसे स्थानों पर चले गए। हालाँकि, अब किराए का बबल फट गया है और किराए कम हो गए हैं।  गाँव में कई म्यूजिक स्कूल, आर्ट गैलरी, कॉमेडी क्लब, ऑफ़िस और टैटू आर्टिस्ट भी हैं, जो इसकी रचनात्मक पहचान को दर्शाते हैं। कुछ युवा एयरबीएनबी (Bed & Breakfast) या गेस्ट हाउस का संचालन कर रहे हैं, जबकि अन्य गाँव के बाहर नौकरी या व्यवसाय करते हैं।

गांव की चुनौतियां और समस्याएं || Challenges and problems of the village

आधुनिकता के साथ-साथ, हौज ख़ास विलेज कई चुनौतियों का सामना कर रहा है: भाईचारे का ह्रास: शहरीकरण के कारण गाँवों में भाईचारे में कमी आई है। हालाँकि, कुछ ग्रामीण अभी भी एकजुट होकर गाँव की समस्याओं का समाधान करते हैं, लेकिन कुछ परिवार ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति अपनाकर भाईचारे को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।
प्रमोटर्स की समस्या: रेस्टोरेंट के बाहर खड़े प्रमोटर्स लोगों को लुभाने के लिए शराब बेचते हैं और रास्ते में रुकावट पैदा करते हैं, जिससे निवासियों को असुविधा और रात में सुरक्षा संबंधी चिंताएं होती हैं।
सामुदायिक स्थानों की दुर्दशा  गाँव का पंचायत घर 2010 से अधूरा पड़ा है, क्योंकि ठेकेदार काम छोड़कर भाग गया और कुछ ग्रामीणों ने ही इसमें बाधा डाली। गाँव के श्मशान घाट और कब्रिस्तान भी बंद पड़े हैं। छवि की समस्या: गाँव को ‘बार, शराब और लड़कियों’ से जोड़ा जाने लगा है, जिससे युवा इसकी छवि सुधारने की कोशिश कर रहे हैं।

आवासीय जीवन पर प्रभाव || Impact on residential life

नाइटलाइफ़ अर्थव्यवस्था का विस्तार गाँव के आवासीय जीवन से टकराता है, जिससे शोर और सुरक्षा संबंधी मुद्दे पैदा होते हैं। ग्रामीण इसे *’हेरिटेज विलेज’ घोषित करने की मांग कर रहे हैं, न कि ‘नाइट-टाइम इकोनॉमी’ हब।

बच्चों और युवाओं पर प्रभाव || Impact on children and youth

गाँव में बच्चों का बचपन पहले से बहुत अलग हो गया है, और आशंका है कि 10-15 सालों में यह गाँव अपनी मूल पहचान खो देगा।

संस्कृति का अभाव || Lack of culture

विदेशी पर्यटकों को गाँव के इतिहास और संस्कृति से परिचित कराने के लिए कोई औपचारिक मार्गदर्शक नहीं हैं।

अन्य विशेषताएं || Other features

इन चुनौतियों के बावजूद, हौज खास विलेज में कई अनूठी विशेषताएँ भी हैं

डियर पार्क: यह एक छोटा चिड़ियाघर है जिसमें बड़ी संख्या में हिरण हैं, और प्रकृति प्रेमियों के लिए यह एक शांतिपूर्ण जगह है।
बॉक्सिंग रिंग: गाँव में एक आधुनिक बॉक्सिंग रिंग का होना अपने आप में एक अनोखी बात है, जो इसकी आधुनिकता को दर्शाता है।
हनुमान मंदिर: यह गाँव का एक प्रमुख मंदिर है जहाँ स्थानीय लोग और यहाँ पार्टी के लिए आने वाले युवा भी माथा टेकते हैं।
जगन्नाथ मंदिर और ताड़फल: हॉज़ ख़ास विलेज के रास्ते में उड़िया शैली का जगन्नाथ मंदिर है जहाँ विभिन्न राज्यों के लोग, विशेषकर ओडिशा के लोग आते हैं। मंदिर के बाहर ‘ताड़फल’ (आइस एप्पल) बेचे जाते हैं, जिससे ‘ताड़ी’ (ताड़ का रस) भी बनती है। ताज़ा ताड़ी नशा नहीं करती और शरीर के लिए अच्छी होती है, लेकिन 12 घंटे बाद यह नशा करने लगती है।
पुराने मकान और कुएं: गांव में आज भी कुछ जर्जर अवस्था में पुराने मकान हैं जहाँ लोग चूल्हों पर खाना बनाते हैं। कई पुराने कुएं भी मौजूद हैं, हालांकि उनमें से अधिकांश अब बंद हो चुके हैं, जो गाँव की खोती हुई संस्कृति को दर्शाते हैं।

हॉज़ ख़ास विलेज, इतिहास, आधुनिकता और चुनौतियों का एक जीता-जागता उदाहरण है। यह हमें याद दिलाता है कि विकास की दौड़ में हमें अपनी जड़ों और भाईचारे को नहीं भूलना चाहिए। ग्रामीण और युवा दोनों ही इस बात पर ज़ोर दे रहे हैं कि हॉज़ ख़ास की मूल पहचान और संस्कृति बनी रहे, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ भी ‘गाँव का कल्चर’ और ‘भाईचारा’ महसूस कर सकें

Komal Mishra

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