Chhath puja: Learn why the offerings of Chhath Puja are made only on the earthen stove.
Chhath puja: इस वक्त त्यौहारों का मौसम छाया हुआ है. वहीं हमारे देश हर पर्व को बड़े ही उल्लासपूर्वक तरीके से मनाया जाता है. ऐसे में दिवाली (diwali) के बाद अब लोग छठ पूजा (chhath puja) की तैयारी में जुटे हुए हैं. हालांकि ये पर्व पूरे भारत में मनाया जाता है लेकिन बिहार में इस पर्व का महत्व ही कुछ और है. असल में इस पर्व को सिर्फ बिहार ही नहीं, उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से और नेपाल में मनाते हैं. अब तो दिल्ली, मुंबई सहित अमेरिका और यूरोप के कई देशों में भी छठ पर्व मनाया जाता है.
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बता दें कि ये पर्व पूरे चार दिनों का होता है. इसमें सूर्व भगवान की पूजा की जाती है. वहीं जिस दिन प्रसाद बनता है उस दिन को खरना कहते हैं. इस दिन की खासियत ये है कि प्रसाद बनाने के लिए मिट्टी के चूल्हे का या फिर नए चूल्हे का उपयोग किया जाता है. जी हां, खरना का प्रसाद बनाने के लिए चावल, दूध और गुड़ का उपयोग किया जाता है. चावल और दूध चंद्रमा का प्रतीक है तो गुड़ सूर्य का प्रतीक है.
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इसके साथ ही आज हम आपको इसके पीछे की कहानी बताएंगे कि आखिर क्यों छठ का प्रसाद मिट्टी के चूलहे पर या फिर नए चूलहे पर बनता है. क्योंकि छठ में हम कोई भी ऐसा बर्तन इस्तेमाल नहीं करते हैं जिसमें पहले खाना बन चुका हो.
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ऐसा इसलिए क्योंकि उस बर्तन में नमक का भी इस्तेमाल हुआ होता और छठ का प्रसाद व्रत वाले लोग भी खाते हैं. इस वजह से नए चूलहे का इस्तेमाल किया जाता है,
यहां पढ़ें व्रत की मुख्य तिथियां
18 नवंबर : नहाय-खाय
19 नवंबर : खरना
20 नवंबर : डूबते सूर्य को अर्घ्य
21नवंबर : उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही छठ पूजा की समाप्ति
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