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Kasol Tour Blog – कभी नहीं भूलेगी कसौल में पार्वती नदी के किनारे बिताई गई पहली रात

Kasol Tour Blog में अब तक आप CHOJ Village से Chalal Village Trek तक की यात्रा को पढ़ चुके हैं. हमने आपसे kasol से होते हुए CHOJ गांव तक पहुंचने के सफर को भी शेयर किया है. आपने इनसे जुड़े तमाम वीडियो हमारे यूट्यूब चैनल www.youtube.com/traveljunoonvlog पर देखे हैं. इस ब्लॉग में आप kasol tour blog के सफर में आगे बढ़ते हुए वहां बिताई गई हमारी पहली रात के अनुभव को जानेंगे. कसौल की ये रात, अब तक की सभी यात्राओं में मेरी बेहतरीन रातों में से एक बन गई. खूबसूरत लम्हों में लिपटी ये रात कमाल की थी. चलिए शुरू करते हैं kasol tour blog के इस सफर को…

कसौल में मलाणा जाने के लिए गाड़ी का बंदोबस्त करके हम तेज़ कदमों से वापस CHOJ के अपने कैंप की तरफ़ बढ़ चले थे. हमें रात के लिए काफ़ी सामान भी लेना था, कोल्डड्रिंक, चिप्स, स्नैक्स वग़ैरह. और पानी की बोतल भी. जब हम कसौल मार्केट के चौक पर पहुँचे तो वहाँ एक दुकान में जाकर मैंने सभी सामान ख़रीदे. यक़ीन मानिए, 50 और 60 रुपये वाली चाय पीकर जितनी तकलीफ़ पहुँची थी यहाँ रुककर उतनी ही राहत मिली. वो इसलिए क्योंकि हर सामान एमआरपी पर थी. मैंने जब कोल्डड्रिंक की एक बोतल उठाकर उनसे रेट पूछा तो उन्होंने 40 कहा, मुझे यक़ीन नहीं हुआ तो मैंने दोबारा पूछा. फिर मैं कहा रुकने वाला था, ज़रूरत का हर सामान रख लिया. 

अब हमें पहुँचना था CHOJ गाँव के हमारे कैंप में, वो भी पैदल. कसौल पार करते ही रात का सन्नाटा बढ़ जाता है. रोशनी का नामोनिशान नहीं मिलता है. सिर्फ़ शोर होता है, आपके साथ बह रही पार्वती नदी की लहरों का, वो भी भीषण शोर, जो आपको शायद डरा दे. ये नदी विपरीत दिशा से आती है और बहती है पीछे की तरफ़. हम सभी ने मोबाइल की फ़्लैश लाइट्स ऑन कर ली थीं. यहाँ हमें अहसास हुआ कि एक टॉर्च होनी ही चाहिए. ऐसा नहीं है कि मैंने कोशिश नहीं की. घर पर एक टॉर्च थी भी लेकिन आख़िरी समय में पता चला कि वो तो ख़राब है. इसी वजह से उसे नहीं ला सका और न ही नई ख़रीद सका. 

चलते-चलते, हम रास्ते में आ रही गाड़ियों से भी ख़ुद को बचा रहे थे. पता नहीं, अंधेरे में कब क्या हो जाए. अब हम उसी जगह पहुँच चुके थे जहां से सुबह हमने पार्वती नदी को पार किया था. हाँ, अभी हम ढलान से ऊपर ही थे. अभी हमें नीचे जाकर पुल के इस पार वाले छोर पर पहुँचना था. हमने कदमों को टेड़ा रखकर उतरना शुरू किया. दोस्तों, यहाँ हम सभी डरे हुए थे. मुझे तो ऐसा लग रहा था कि पैर फिसला नहीं और हम सभी नीचे नदी में. हालाँकि ऐसा नहीं था. नीचे भी समतल ज़मीन थी. हम जैसे-तैसे नीचे उतर गए और अब बारी थी पुल पर चढ़ने की. लहरों का प्रवाह इतनी तेज़ था कि रात के सन्नाटे में मानो वो किसी राक्षस की भांति गरज रही थीं. हिलता हुआ पुल इस डर पर चार चाँद लगा रहा था. 

मोबाइल का फ़्लैश पूरी तरह नाकाफ़ी साबित हो रहा था. मैं और संजू आगे थे और विपिन, वासु पीछे पीछे. एक बार पुल तेज़ से हिला तो विपिन ने पीछे से आवाज़ लगाई कि पुल क्यों हिला रहे हो, आराम आराम से चलो, डर लग रहा है. हाँ हाँ, यहाँ हम में से सबकी हालत खराब थी. खैर कुछ ही पल में हम पुल को पार कर चुके थे. अब आई वही चढ़ाई, वही टेढ़े मेढ़े रास्ते, वही कैफ़े जो सुबह आए थे. हम रास्ते को समझ चुके थे और बाक़ी पूछताछ करते करते कैंप में पहुँच ही गए. 

सोचा तो था कि कैंप पहुँचकर पैर पसारकर आराम से कमरों में बैठेंगे लेकिन यहाँ तो नया ही बवाल हमारा इंतज़ार कर रहा था. कैंप पहुँचकर, केयरटेकर से मैंने कमरे के बारे में पूछा, सुबह जिस शख़्स को हम भैया भैया करके बात कर रहे थे उसने तो अब अपना तेवर ही बदल लिया था. उन्होंने कहा कि कमरा ख़ाली नहीं हुआ तो आप लोगों को टैंट में ही रहना होगा. मैंने टेंट देखा, वो तो हमारे सामान से ही भर जाना था और तीन लोग आना तो दूर की बात थी. मेरा ग़ुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया. अगर कुछ भी ऐसा था तो उन्हें सुबह ही बता देना था लेकिन तब उन्होंने बड़े विश्वास से हमें भरोसे में ले लिया था और कहा था कि कमरा हमारा ही है, अब उनका अंदाज बिल्कुल बदला हुआ था. विपिन ने किसी तरह स्थिति को सँभाला. हम सभी डोर्मेटरी में शिफ़्ट हो गए.

डोर्मेटरी में शिफ़्ट होकर सबसे पहले मैंने ग़ुस्सा शांत किया. सही में, ये मुश्किल वक़्त था. लेकिन हाँ, ये दौर बीत चुका था और अब हमारी कभी न भूलने वाली रात हमारा स्वागत करने के लिए बाहर खड़ी थी, वो भी बाँहें फैलाकर. हम सभी फ़्रेश हुए और सामान सेटअप करके आराम से बैठे. बाहर बॉर्नफायर हो रहा था और उसकी आग मद्धिम हो चुकी थी. सभी लोग अपने कमरों में भी जा चुके थे. हम बॉर्नफायर के पास आ गए. वहाँ पेड़ के तनों जैसी बैठने की चीज़ें थीं, हम उसी पर बैठ गए. यहाँ से पीछे बह रही पार्वती नदी का शोर बहुत प्यारा लग रहा था. हाँ, कुछ देर पहले हम इसी लहर से डरे हुए थे. वो बेहद सर्द चाँदनी रात थी और नदी के साए में एक ख़ामोश गाँव में हम चार दोस्त बैठकर लम्हों को जी रहे थे. 

हम बातें कर रहे थे कि कैंप के बाहर से कपल्स के चार ग्रुप निकले. वो सभी मदहोश थे. किसी तरह अपने पैरों को सँभालते एक लड़की ने एक होस्टल के बारे में पूछा. हमने इस हॉस्टल को रास्ते में देखा था इसलिए हमने उन्हें बता दिया कि हाँ आगे ही है. मैं एक पल रूका और सोचा ग़ज़ब की दुनिया है ये भी. क्या दिल्ली और किसी दूसरी जगह हम इतने सन्नाटे में किसी कपल के ऐसा घूमने की सोच सकते हैं, वो भी रात के बारह बजे? खैर, सभी को ज़िंदगी जीने का हक़ है. 

रात बढ़ती ही जा रही थी. इतने में वहाँ चार दोस्त और आ गए. वो सभी घूमकर आ रहे थे, उनके कमरे हमारे सामने ही थे. उनमें से दो से हमने बातें की. वो सभी साउथ से आए थे. कमाल है यार, कितनी दूर से लोग यहाँ आ रहे हैं. उनमें से कुछ ब्लॉगर्स भी थे. बातें करते करते हमने खाना ऑर्डर किया. खाना पानी सब कमरे में पहुँच चुका था. हम अभी भी हिल नहीं रहे थे, वो भी तब जब सुबह हमें मलाणा और खीरगंगा के लिए निकलना था. मुझपे नींद हावी होने लगी. मैं कमरे की तरफ़ चल दिया. 

वहाँ टेबल पर खाना रखा था. खाया नहीं और सो गया. काफ़ी देर बाद जब विपिन, वासु और संजू लौटे, उन्होंने मुझे जगाकर खाना खिलाया. अप्रैल के महीने में इतनी सर्दी थी कि सब्ज़ी सूख चुकी थी. हाँ, स्वाद कमाल का था. वो आज भी मेरी ज़ुबान पर है. खाकर मैं सो गया, बाक़ी लोग बतियाते रहे.

अगले ब्लॉग में पढ़िए मलाणा की यात्रा की शुरुआत कैसे हुई

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