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दिल्ली की हवेलियां ( Haveli ) और महल ( Mahal ), आइए करें एक बार दीदार

दिल्ली ( Delhi ) में घूमने के स्थान केवल मंदिरों, बाग- बगीचे और स्मारकों तक ही सीमित नहीं हैं। ये शहर ना जाने कितने अतीत को अपने अंदर समेटे हुए है। दिल्ली ( Delhi ) में कई पुरानी हवेलियां ( Havelis ) और महल ( Mahal ) है जो किसी भी पर्यटकों के लिए खास हो सकते हैं। यहां की हवेलियों ( Havelis ) का संबंध पुराने काल से है। जो बाहर से बंद और अंदर से खुली, बड़े मेहराब, जालीदार झरोखे के अलावा ये हवेलियां ( Havelis ) रात में किसी बारात के लिए मेजबानी की जगह बन जाती है। अगर आप इन हवेलियों ( Havelis ) का दीदार करने आए तो इनकी छतों और गर्मियों से बचने के लिए बनाए गए तहखाने को देखना ना भूले। आप Chunnamal’s haveli, Zeenat Mahal, Jahaz mahal, Mirza Ghalib’s Haveli को जरूर देखने जाएं।

Jahaz Mahal: लोदी काल ( Lodi era ) में बनी इस इमारत का नाम जहाज महल ( Jahaz Mahal ) इसलिए पड़ा क्योंकि यह महल, महरौली में ‘हौज-ए-शम्सी’ पानी के टैंक के किनारे पर बना है। बारिश के मौसम में आप इस महल का प्रतिबिंब ‘हौज-ए-शम्सी’ के पानी में देख सकते हैं। जहाज महल ( Jahaz Mahal ) का शाब्दिक अर्थ ship palace है। सुल्तान ने  1229-30 में हौज़-ए-शम्सी का निर्माण कराया। जहाज महल ( Jahaz Mahal ) में खूबसूरती से तराशे गए बलुआ पत्थर के खंबे, छत पर रंग- बिरंगी टाइल्स और छतरियां लगी है। इस जगह पर मॉनसून के बाद सालाना ‘फूलवालों की सैर’ उत्सव ( Phoolwalon ki Sair festival ) का भी आयोजन होता है, इस दौरान यहां ख्वाजा बख्तियार काकी की दरगाह और पास में स्थित योगमाया मंदिर में फूल चढ़ाए जाते हैं। यह त्यौहार 19वीं सदी में उस समय शुरू हुआ था जब मुमताज ( Mumtaz ) महल की इच्छा पूरी होने पर वो दरगाह पर चादर चढ़ाने आई थीं।

कैसे जाएं: Jahaz Mahalतालाब लेन, खंडा कॉलोनी महरौली में है, यहां पर आपको अगर घूमने के लिए आना होतो सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक आ सकते हैं।

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Zeenat Mahal: जीनत महल चांदनी चौक ( Chandni Chowk ) की पुरानी गलियों में फतेहपुरी मस्जिद ( Fatehpuri Mosque ) से कुछ ही दूरी पर स्थित है। ये इमारत काफी लंबे वक्त से बंद है। हवेली में किया गया उस वक्त का जालीदार काम अभी भी बरकरार है। यह कोई नहीं जानता की कहां से जीनत महल ( Zeenat Mahal ) शुरू होता है और कहां खत्म होता है। अगर आप मेट्रो ( Metro ) से आ रहे हैं तो फतेहपुरी की ओर स्थित नटराज दही भल्ले की दुकान से बाएं मुड़े या लाल किले ( Red Fort ) के लाल कुआं से पैडल रिक्शा से यहां पहुंचें।

Zafar Mahal: यह मुगलों के आखिरी महलों में से एक है। ‘जफर महल’(  Zafar Mahal ) का निर्माण मुगल शासक अकबर शाह द्वितीय ( Mughal Emperor Akbar Shah II ) ने 19वीं सदी की शुरुआत में महरौली ( Mehrauli ) में बनी सूफी संत कुतुबद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह के नजदीक करवाया था। इसके कुछ समय बाद अंतिम मुगल शासक बहादुर शाह जफर ( Bahadur Shah Zafar ) ने इसे Renovated करवाया था, जिनका नाम इस महल के नाम के साथ जुड़ा है। ये महल बादशाह बहादुर शाह जफर की गर्मी के दिनों में आरामगाह हुआ करती थी। लाल पत्थर का तीन मंजिला द्वार बहादुर शाह जफर ने निर्माण कराया था, जिसे ‘हाथी दरवाज़ा’ कहा जाता था। इसके ऊपर छज्जे बने हुए थे और सामने खिड़कियों में बंगाली वास्तुकला को भुनाया गया है। महल के अहाते में संगमरमर से बनी खूबसूरत मोती मस्जिद और कई शाही कब्र हैं। जिसमें कई मुगल शासक जैसे शाह आलम और शाह आलम द्वितीय की कब्र भी शामिल है। हालांकि, अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर ने भी यहीं दफन होने की इच्छा जताई थी लेकिन अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर रंगून भेज दिया और वहीं उनकी मृत्यु हुई।

कैसे जाएं: अगर आपको यहां की सैर करने के लिए जाना है, तो कालका दास मार्ग से होते हुए महरौली मार्केट से बड़ीवाला कुआं होते हुए जफर महल पहुंच सकते हैं।

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Khazanchi Haveli: दिल्ली के चांदनी चौक  ( Chandni Chowk ) स्थित खजानची हवेली आज अपने सबसे खराब दौर में है। ये हेवली खंडहर में तब्दील हो गई है। हवेली के सफेद पत्थरों पर काले रंग की गंदगी से ढका हुआ है। ये जगह पर Emporer Shah Jahan के  accountants and book-keepers रखने के काम आती थी। यहां पर उन दिनों सिक्कों, मोहरों को भी रखा जाता था। खजानची हवेली ( Khazanchi Haveli ) लाल किले ( Red Fort ) के करीब थी, जो एक सुरंग से जुड़ी हुई थी।

Chhunnamal ki Haveli: बाहर चलने वाले ट्रैफिक के कारण हवेली ( Haveli ) का बाहरी हिस्सा धूल- मिट्टी से भर गया है। हालांकि इसके अंदर का हिस्सा इसके महत्व को आज भी जिंदा रखे हुए हैं।  चांदनी चौक ( Chandni Chowk ) के सबसे जाने- माने structures में से एक, इस हवेली निर्माण लाला चुन्नामल ( Chhunnamal  ) ने करवाया था। चुन्नामल ( Chhunnamal ) ब्रिटिश भारत के पहले Municipal Commissioner थे और शहर के पहले व्यक्ति थे जिनके पास अपना वाहन और फोन था। उस समय उनकी मासिक आय करीब 1 लाख रुपए महीना था। इतनी आय होने के बाद इस बात में कोई आश्चर्य नहीं है, कि वे अपनी इस 128 कमरों वाली राजसी हवेली में किस तरह समय के  साथ- साथ fancy carpets, chandeliers, paintings and watches from Cooke & Kelvey के साथ अपने शाही- ठाठ को बनाए रख पाए।

Mirza Ghalib’s Haveli: चांदनी चौक के बल्लीमारान में गली कासिम जन में स्थित यह हवेली भारत के सबसे विद्वान कवि ‘मिर्जा गालिब’ ( Mirza Ghalib ) का निवास स्थान रही है। 19वीं सदी में जब मुगल सल्तनत का पतन हो रहा था और गालिब ( Ghalib ) की कविताएं इस पतन को हवा दे रही थीं। गालिब शब्दों के जादूगर थे और उन्हें किसी भी भौतिक सुख की चाहत नहीं थी। इसका प्रमाण उनकी इस हवेली में साफ तौर पर दिखता है। शाहजहानाबाद के दूसरे घरों की तरह इसमें भी एक खुला चौक है, जिसके चारों ओर कमरे हैं और इनके दरवाजे चौक में खुलते हैं। 1990 तक यह इमारत काफी जर्जर थी, इसमें कई लोगों ने दुकानें खोल रखी थीं। हालांकि, बाद में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग हरकत में आया और दुकानें बंद हुई। अब इस हवेली पर गालिब के कई चाहने वालों की निगरानी भी रहती है। गालिब की हवेली पर आप कभी भी जा सकते हैं।

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