Srila Prabhupada
Srila Prabhupada : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 8 फरवरी 2024 को यहां भारत मंडपम में आध्यात्मिक गुरु श्रील प्रभुपाद की 150वीं जयंती के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल हुए. पीएम ने महान आध्यात्मिक गुरु के सम्मान में एक स्मारक टिकट और एक सिक्का भी जारी किया.
श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर, जिन्हें श्रील प्रभुपाद के नाम से भी जाना जाता है, एक आध्यात्मिक नेता और एक वैष्णव धार्मिक संगठन गौड़ीय मठ के फाउंडर थे. उनका जन्म 6 फरवरी, 1874 को पुरी, भारत में हुआ था और उन्हें 20वीं सदी के सबसे प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरुओं में से एक माना जाता है. श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर को गौड़ीय वैष्णववाद की शिक्षाओं के प्रसार के प्रति समर्पण और प्राचीन वैदिक परंपराओं के संरक्षण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के लिए जाना जाता है.
एक जन्मजात भक्त: श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर का जन्म भक्तों के एक परिवार में हुआ था. उनके पिता, भक्तिविनोद ठाकुर, एक प्रमुख वैष्णव विद्वान और कार्यकर्ता थे, जिन्होंने भगवान चैतन्य की शिक्षाओं को पुनर्जीवित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनकी मां भगवती देवी भी भगवान कृष्ण की भक्त थीं.
एक प्रारंभिक आध्यात्मिक जागृति: श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर ने बहुत कम उम्र से ही आध्यात्मिक झुकाव के लक्षण दिखाए. महज पांच साल की उम्र में, वह घंटों ध्यान में बैठते थे और भगवद गीता और अन्य ग्रंथों के श्लोकों का पाठ करते थे.
सीखने का जुनून: श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर में ज्ञान के लिए एक अतृप्त प्यास थी और उन्होंने अपने बचपन और युवावस्था का अधिकांश समय विभिन्न वैदिक ग्रंथों और धर्मग्रंथों का अध्ययन करते हुए बिताया. उन्हें रूप गोस्वामी और अन्य वैष्णव संतों के कार्यों में विशेष रुचि थी.
एक दूरदर्शी नेता: श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर के पास भारतीय उपमहाद्वीप से परे गौड़ीय वैष्णववाद के संदेश को फैलाने की स्पष्ट दृष्टि थी. उनका मानना था कि भगवान चैतन्य की शिक्षाओं में दुनिया में आध्यात्मिक क्रांति लाने की शक्ति है.
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एक आध्यात्मिक यात्रा: 1918 में, श्रील भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर ने वृन्दावन और मायापुर जैसे भगवान चैतन्य से जुड़े पवित्र स्थानों की यात्रा के लिए यात्रा शुरू की। इस यात्रा के दौरान, उन्होंने कई आध्यात्मिक नेताओं से मुलाकात की और भगवान चैतन्य की शिक्षाओं की गहरी समझ हासिल की.
गौड़ीय मठ की स्थापना: 1920 में, श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर ने भगवान चैतन्य की शिक्षाओं का प्रचार करने के लिए कोलकाता में गौड़ीय मठ की स्थापना की। उन्होंने गौड़ीय वैष्णववाद के संदेश को व्यापक दर्शकों तक फैलाने के लिए मासिक पत्रिका ‘श्री गौड़ीय दर्शन’ की भी स्थापना की.
एक बेस्ट अध्यापक: श्रील भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर एक ओजस्वी वक्ता और एक लेखक थे. उन्होंने कई व्याख्यान दिए और गौड़ीय वैष्णववाद के दर्शन, भक्ति सेवा और हरे कृष्ण मंत्र के जाप के महत्व सहित विभिन्न आध्यात्मिक विषयों पर विस्तार से लिखा.
प्रामाणिकता के समर्थक: श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर प्रामाणिक वैदिक परंपराओं और शिक्षाओं के सख्त पालन के लिए जाने जाते थे.उन्होंने भगवान चैतन्य की मूल शिक्षाओं से हटकर किसी भी प्रकार की भक्ति पद्धति का कड़ा विरोध किया.
एक वैश्विक प्रभाव: श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर के मार्गदर्शन में, गौड़ीय मठ संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड और जर्मनी सहित विभिन्न देशों में शाखाओं के साथ एक विश्वव्यापी संगठन के रूप में विकसित हुआ. उन्होंने अपने शिष्यों को जापान और अन्य एशियाई देशों में गौड़ीय मठ की शाखाएँ स्थापित करने के लिए भी भेजाय
एक स्थायी विरासत: श्रील भक्तिसिद्धांत सरस्वती ठाकुर का निधन 1 जनवरी, 1937 को हुआ, लेकिन उनकी विरासत उनके शिष्यों और अनुयायियों के माध्यम से जीवित है. उनकी शिक्षाएँ आज भी दुनिया भर के लाखों लोगों को प्रेरित करती रहती हैं.
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