Amarnath Yatra 2025: Pahalgam से Amarnath Cave तक की पवित्र यात्रा का पूरा वृत्तांत
Amarnath Yatra 2025 : श्री अमरनाथ यात्रा एक पवित्र तीर्थ यात्रा है. ये तीर्थ यात्रा जम्मू और कश्मीर के अनंतनाग जिले में स्थित अमरनाथ गुफा तक जाती है. ये गुफा भगवान शिव को समर्पित है और यहां हर साल बर्फ से प्राकृतिक शिवलिंग निर्मित होता है. अमरनाथ गुफा का स्थान जम्मू कश्मीर के अनंतनाग जिले में है. ये यात्रा पहलगाम और बालटाल दो मार्गों से की जाती है.
यात्रा की अवधि की बात करें, तो ये यात्रा हर साल आषाढ़ पूर्णिमा से रक्षाबंधन तक की जाती है, यानि जून के अंत से अगस्त तक. 2025 में ये यात् 29 जून से 11 अगस्त तक है. अमरनाथ जी की पवित्र गुफा की बात करें, तो ये गुफा समुद्र तल से करीब 3,888 मीटर यानि 12,756 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. यहाँ बर्फ से स्वयं बनने वाला प्राकृतिक शिवलिंग है जो भगवान शिव के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है.
कहा जाता है कि भगवान शिव ने यहीं पार्वती को अमरत्व का रहस्य सुनाया था. इस यात्रा के दो प्रमुख रूट हैं. पहला रूट है पहलगाम का. इसकी लंबाई 48 किलोमीटर की है. इसमें पहलगाम → चंदनवारी → शेषनाग → पंचतरनी → अमरनाथ गुफा का रास्ता तय किया जाता है. प्राचीन और धार्मिक दृष्टि से इस मार्ग की बहुत अहमियत है. दूसरा और लघु रूट है बालटाल का. इसकी लंबाई 14 किलोमीटर की है. इसमें बालटाल → डोमेल → बरारीमार्ग → संगम → अमरनाथ गुफा की यात्रा की जाती है. इस मार्ग में तीव्र चढ़ाई है लेकिन कम समय में दर्शन मुमकिन हो जाते हैं.
इस यात्रा के लिए अमरनाथ श्राइन बोर्ड की वेबसाइट पर पंजीकरण अनिवार्य है. वेबसाइट का पता है- https://jksasb.nic.in. इसके लिए आपको अस्पताल में अपना मैडिकल करवाकर खुद को रजिस्टर करवाना होता है. ये रजिस्ट्रेशन वेबसाइट के माध्यम से ही होता है. किस अस्पताल से मैडिकल करवाना है, इसकी जानकारी भी आपको अमरनाथ श्राइन बोर्ड की वेबसाइट से मिल जाती है.
दोस्तों ये तो हुई इस पावन तीर्थ से जुड़ी खास जानकारी. लेकिन आगे मैं आपको वर्ष 2025 में अपनी अमरनाथ यात्रा के अनुभव के बारे में बताऊंगा. इस वर्ष मैंने ये यात्रा पूरी की.
अमरनाथ यात्रा के लिए Medical Certificate
मित्रों, मैंने अमरनाथ यात्रा पिछले साल यानि 2024 में भी करने की कोशिश की थी. तब मैंने श्राइन बोर्ड की वेबसाइट देखकर दिल्ली के दिलशाद गार्डन में स्थित दयानंद अस्पताल से मैडिकल बनवाया था. हालांकि तब हमारी यात्रा हो नहीं पाई थी, क्योंकि सोनमर्ग में हमें रोक दिया गया था. हमें बताया गया कि यात्रा बंद हो गई है.
तब हम 5 दोस्त इस यात्रा के लिए गए थे. इस बार यानि 2025 में जैसे ही यात्रा की तारीख सामने आई, मैं Dayanand Hospital पहुंच गया. पहले दिन पता लगा कि मैडिकल का टाइम निकल चुका है. मुझे अगले दिन आना होगा. मैडिकल फॉर्म मैंने ऑनलाइन डाउनलोड कर लिया था. इसे लेकर मैं कुछ दिन बाद अस्पताल पहुंच गया. सरकारी अस्पताल में इस मैडिकल टेस्ट के लिए मुझे कई चक्कर लगाने पड़े. सबसे पहले अमरनाथ यात्रा मैडिकल डेस्क पर जाकर मैडिकल जांच की पर्ची ली.
इसके बाद मैं ब्लड सैंपल देने के लिए OPD ब्लॉक में गया. यहां मेरे ब्लड सैंपल लिए गए. इसके बाद आपको ECG करवाना होता है, जिसकी रिपोर्ट आपको हाथ के हाथ मिल जाती है. मामला फंसता है ब्लड रिपोर्ट में. इसके लिए आपको 2 दिन बाद आना होता है. मैं दो दिन बाद हॉस्पिटल गया, तब वो रिपोर्ट मिली. और फिर दो दिन बाद नोडल मैडिकल ऑफिसर के साइन करवाने गया.
इस तरह से 4 विजिट में मेरा मैडिकल बना.
अमरनाथ यात्रा Registration
मैडिकल बनने के बाद चुनौती होती है अपने मुताबिक तारीख का रजिस्ट्रेशन करवाना. मैंने जिस तारीख को अपने ग्रुप के साथ चुना था उस डेट को चुन तो लिया था, लेकिन पेमेंट होने तक उसे फाइनल नहीं माना जाता है. और सारी कहानी यहीं अटक जाती है, क्योंकि पेमेंट तब होती है, तब आपका रजिस्ट्रेशन वैरिफाई कर लिया जाता है.
वैरिफाई होने के बाद पेमेंट गेटवे ही अटक गया और एक दिन बाद जब खुला तब डेट फुल हो चुकी थी. आनन फानन में मैंने एक मित्र से संपर्क किया. मित्र बैंक में कार्यरत है. उसकी मदद से एक संपर्क मिला, जो अमरनाथ यात्रा रजिस्ट्रेशन की लिस्ट वाले बैंक ब्रांच में कार्यरत थे. वहां पहुंचा तो पता लगा कि ग्रुप के लिए 15 जुलाई तक कोई जगह नहीं है, अकेले यात्रा के लिए 10 जुलाई में एक स्लॉट अवेलेबल है. मैंने फटाफट 10 जुलाई की तारीख ले ली.
अमरनाथ यात्रा Rail Ticket
अमरनाथ यात्रा के लिए अब मैंने 6 जुलाई की ट्रेन टिकट करवा ली. हालांकि ये बात मुझे बाद में पता चली कि आपको यात्रा की तारीख से दो दिन पहले जम्मू पहुंचना होता है. और दो दिन पहले ही आपका RFID कार्ड बनता है.
अमरनाथ यात्रा की शुरुआत
मेरी अमरनाथ यात्रा की शुरुआत होनी तो थी 6 जुलाई को, लेकिन अचानक एक कार्यक्रम आने की वजह से ये यात्रा मुझे 7 से शुरू करनी पड़ी.
अमरनाथ यात्रा: पहलगाम मार्ग से पवित्र गुफा तक
पहला दिन: जम्मू पहुँचना और प्रारम्भिक तैयारियाँ
यात्रा से एक दिन पहले, हम जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में थे जहाँ हमने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री का इंटरव्यू किया रात को मैं घर आया, वीडियो एडिट किया, और मध्य रात्रि को 2 घंटे सोया। सुबह 4 बजे घर से निकला और 6 बजे वंदे भारत ट्रेन पकड़ी, जो मुझे दोपहर 1 बजे जम्मू ले आई.
जम्मू पहुँचने पर पता चला कि RF ID कार्ड यात्रा की तारीख जैसे मेरी यात्रा तारीख 10 जुलाई थी, तो ये उससे दो दिन पहले बनता, लेकिन मैं 7 जुलाई को पहुँचा था, इसलिए एक दिन रुकना पड़ा. मैंने कालिका धाम में मां वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के विश्राम स्थल में ₹200 का डोमेट्री बेड बुक किया। वैष्णवी धाम और सरस्वती धाम में भी कमरे और डोमेट्री बेड उपलब्ध हैं. मुझे यहाँ पश्चिम बंगाल के बांकुड़ा से दो दोस्त मिल गए। हमने साथ में मार्केट विजिट की, रघुनाथ मंदिर गए और डिनर किया.
अमरनाथ यात्राः RFID कार्ड और ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की समस्या
यात्रा के दूसरे दिन, हम सुबह 4 बजे जम्मू रेलवे स्टेशन पहुँचे और RF ID कार्ड बनवा लिया. यह यात्रा शुरू करने से पहले का आधा काम पूरा होने जैसा था. यदि आपका ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन या मेडिकल सर्टिफिकेट नहीं बना है, तो आने से पहले सोच लें, क्योंकि बाहर बहुत लंबी लाइनें हैं. लोगों को टोकन मिल चुका था, लेकिन जिन्हें टोकन नहीं मिला है, वे दो से तीन दिन से यहीं रात भर सो रहे हैं और उन्हें और रुकना पड़ सकता है. यह एक मुश्किल स्थिति है, इसलिए बिना ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के यात्रा के लिए न आएँ. टोकन मिलने के बाद रजिस्ट्रेशन और मैडिकल करवाने की प्रक्रिया शुरू होती है.
अमरनाथ यात्राः अनिवार्य स्वास्थ्य प्रमाण पत्र (CHC)
अमरनाथ यात्रा के लिए CHC (कंपलसरी हेल्थ सर्टिफिकेट) एक आवश्यक स्वास्थ्य प्रमाण पत्र है. यह प्रमाणित करता है कि आप कठिन और ऊंचाई वाली अमरनाथ यात्रा के लिए स्वास्थ्य रूप से फिट हैं. बिना इस सर्टिफिकेट के यात्रा की अनुमति नहीं मिलती. यह सर्टिफिकेट केवल श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड द्वारा अधिकृत अस्पतालों या डॉक्टरों से ही बनवाया जा सकता है. श्राइन बोर्ड हर साल राज्यवार सूची जारी करता है. अधिक जानकारी के लिए श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड से संपर्क कर सकते हैं: हेल्पलाइन नंबर: 01942313147, ईमेल आईडी: SBBJK2001@gmail.com.
हेल्थ सर्टिफिकेट को यात्रा से 15 दिन पहले बनवाना चाहिए और यह 1 महीने तक वैध रहता है. सर्टिफिकेट मिलने के बाद, आप इसे लेकर यात्रा पंजीकरण केंद्र, बैंक शाखाओं या ऑनलाइन तरीके से स्वयं को रजिस्टर करा सकते हैं और यात्रा परमिट प्राप्त कर सकते हैं.
अमरनाथ यात्राः भगवती नगर बेस कैंप, जम्मू
हम कालिका धाम, अंबेडकर चौक से ₹150 में रिक्शा लेकर भगवती नगर बेस कैंप, जम्मू पहुँचे. यहां प्रवेश के लिए लाइन लगी हुई थी, जो कल की तुलना में कम लंबी थी (लगभग 100-150 मीटर). कैंप के अंदर प्रवेश करने पर, सबसे पहले आवास के लिए फॉर्म लेना होता है, जो टूरिज्म ऑफिस के काउंटर से मिलता है. फॉर्म भरकर रहने के लिए आवेदन करना होता है, जिसमें आपको एक हॉल के अंदर रुकना पड़ता है. यहाँ देश के विभिन्न प्रांतों से लोग आए हुए थे, जैसे बंगाल और बिहार से, जिससे भारत का संगम दिखाई दे रहा था. यहां मैंने पहलगाम के लिए बस ली, जिसमें AC बस का किराया ₹838, डीलक्स बस (नॉन-AC, बेहतर आरामदायक): ₹553, और ऑर्डिनरी बस (नॉन-AC) का किराया ₹409 था.
बस टिकट और लॉजिंग बुकिंग के काउंटर विपरीत दिशाओं में होते हैं. भगवती नगर यात्री निवास में वॉशरूम की सुविधा भी है. मॉनिटर पर पहलगाम की दूरी 237 किमी और लगने वाला समय 5 घंटे 51 मिनट दिखाया जा रहा था.
अमरनाथ यात्रा के लिए प्रीपेड सिम कार्ड की सुविधा
भगवती नगर यात्री निवास में प्रीपेड सिम कार्ड ले सकते हैं, क्योंकि जम्मू के बाद प्रीपेड सिम काम करना बंद कर देते हैं. सिम कार्ड मुफ्त मिलता है, केवल रिचार्ज का भुगतान करना होता है.
अमरनाथ यात्राः महत्वपूर्ण बुकलेट और संपर्क नंबर
यात्री निवास में एक बुकलेट मिलती है जिसमें आपातकालीन संपर्क नंबर, दूरी की जानकारी, शाइन बोर्ड के अधिकारियों के नंबर (स्वास्थ्य, पुलिस, नागरिक प्रशासन), आवास सुविधाओं के नंबर, सूचना केंद्र, पर्यटन विभाग, और पुलिस नियंत्रण कक्ष के नंबर दिए होते हैं. इसमें यात्रियों के लिए अलग-अलग स्थानों के किराए की विस्तृत जानकारी भी होती है. यह बुकलेट यात्रा के दौरान साथ रखने के लिए उपयोगी है.
अमरनाथ यात्राः भगवती नगर यात्री निवास में ठहराव
* भगवती नगर यात्री निवास में डोमेट्री हॉल हैं, जहाँ यात्रियों को जगह आवंटित की जाती है।
* गद्दे का चार्ज ₹20 है और ₹100 सिक्योरिटी डिपॉजिट होता है, जो गद्दा वापस करने पर लौट जाता है।
* यदि गद्दा नहीं लेना चाहते, तो चद्दर या बेडशीट बिछा सकते हैं।
* यात्री निवास के अंदर जगह-जगह मोबाइल चार्जिंग पॉइंट्स उपलब्ध हैं।
* यहाँ नहाने की सुविधा, साबुन की दुकानें और खाने-पीने की दुकानें भी हैं।
* शाम को यह हॉल पूरी तरह से भर जाता है, और दोपहर बाद आने वाले यात्रियों को जगह नहीं मिल पाती। बहुत भीड़ होने के कारण लोग बरामदे में कुर्सियों पर या वॉशरूम के पास चार्जिंग करते हुए बैठे रहते हैं। सुबह जल्दी 5-8 बजे पहुँचने की सलाह दी जाती है ताकि डोमेट्री बेड मिल सके।
अमरनाथ यात्राः तैयारी और आगे की योजना
मेरी पहलगाम के लिए बस टिकट (बस नंबर P5, सीट 13) ली गई थी, जो सुबह 4 बजे भगवती नगर यात्री निवास से निकलती है. यह एक ऑर्डिनरी बस थी. मेरे दोस्त, राजीव भाई और बुल्टन भाई को बालटाल के लिए यात्रा शुरू करनी थी, और यहाँ से हमारा रास्ता अलग हो जाना था. राजीव भाई (बांकुड़ा, पश्चिम बंगाल से) ने बताया कि उन्होंने पहले हेल्थ सर्टिफिकेट बनवाया, फिर रजिस्ट्रेशन किया। वे उचित योजना के महत्व पर जोर देते हैं, क्योंकि बिना योजना के यात्रा सफल नहीं होगी.
10 जुलाई को उनका परमिट था, लेकिन 7 जुलाई को पहुंचने पर RF ID कार्ड नहीं मिला, इसलिए उन्होंने पहले से ही कालिका धाम में बुकिंग कर ली थी. उनकी वापसी की योजना बालटाल से श्रीनगर (वंदे भारत) और फिर कटरा (रूम बुक) तक की है, जो उनकी सुनियोजित यात्रा को दर्शाता है. यहाँ पर भारत की एकता देखने को मिलती है, जहाँ विभिन्न राज्यों के लोग दोस्त बन जाते हैं। सरकार ने सुविधाओं का बहुत अच्छा बंदोबस्त किया है, सब कुछ व्यवस्थित तरीके से चल रहा है, और यात्रियों को कोई शिकायत नहीं है.
अमरनाथ यात्राः भगवती नगर से प्रस्थान
बालटाल जाने वाली बसें और पहलगाम जाने वाली बसें अलग-अलग पार्किंग में खड़ी होती हैं। निजी और व्यावसायिक वाहन भी यहीं से चलते हैं।
पहलगाम की ओर यात्रा: रास्ते के पड़ाव
सुबह 4 बजे जम्मू से निकलने के बाद, हम 3.5 घंटे में चंद्रकोट पहुँचे, जहाँ भंडारे का आयोजन था। सभी यात्रियों ने भंडारे का भोजन ग्रहण किया. चंद्रकोट के बाद, लगभग 9:30 बजे हम बनिहाल पहुँचे, जहाँ एक और विश्राम लिया. बनिहाल में सेब, आलू बुखारे और खुबानी जैसी स्थानीय फल बिक रहे थे.
बनिहाल के बाद काजीगुंड टनल आती है, जिसके बाद घाटी (कश्मीर का क्षेत्र) शुरू हो जाता है. बनिहाल में दिल्ली, पंजाब और हरियाणा की संगत द्वारा लंगर लगाए गए थे। यात्रियों को सलाह दी गई कि वे पहले देखें कि क्या उपलब्ध है और खाने को बर्बाद न करें. ड्राइवरों ने बताया कि सड़कें पहले से काफी बेहतर हो गई हैं और टनल बनने से यात्रा छोटी हो गई है. सुरक्षा के कारण कोई खास मुश्किलें नहीं आतीं, बस बारिश में हल्की लैंडस्लाइडिंग हो सकती है.
कश्मीर में कश्मीरी और गोजरी भाषाएँ बोली जाती हैं, जो डोगरी से मिलती-जुलती हैं. सुबह 4 बजे जम्मू से चलकर हम दोपहर 12:30 बजे (12:25) पहलगाम पहुँचे।
अमरनाथ यात्राः नुनवान बेस कैंप, पहलगाम
पहलगाम पहुँचते ही हम नुनवान बेस कैंप पहुँचे, जहाँ हमारे सामान और RF ID कार्ड की जाँच की गई. यहाँ टेंट्स और लंगर की व्यवस्था है. फोल्डिंग वाले टेंट्स का किराया ₹500 है, और जमीन पर बिछे मैट्रेस वाले टैंट का किराया ₹370 है. लंगर क्षेत्र में अलग-अलग जगहों से आए लोगों द्वारा मुफ्त भोजन की व्यवस्था की गई थी. यहाँ गर्म पानी वाले बाथरूम और टॉयलेट ब्लॉक भी उपलब्ध हैं.
बेस कैंप में 8 से 10 हजार लोग मौजूद थे. यहाँ बाजार, नाई की दुकानें, और भजन कीर्तन की सुविधाएँ हैं। स्वच्छता का विशेष ख्याल रखा गया है. शाम को पहलगाम की मुख्य बाजार में भी घूम सकते हैं. रात को मेरी बस पहलगाम के लिए सुबह 4 बजे निकलने वाली थी.
अमरनाथ यात्राः पहलगाम से चंदनवाड़ी की ओर यात्रा
* नुनवान बेस कैंप से चंदनवाड़ी 16 किमी दूर है, और टैक्सी वाले भीड़ लगाए रहते हैं.
* चंदनवाड़ी पहुँचकर, हमने लंगर में पोहे और चाय का सेवन किया और अपनी यात्रा शुरू की।
* यहाँ से शेषनाग लगभग 14 कि.मी दूर है।
* चंदनवाड़ी में घोड़े, पालकी या पिट्ठू की सुविधा उपलब्ध है।
* यदि जम्मू या पहलगाम में सिम कार्ड नहीं लिया, तो यहाँ भी सिम कार्ड ले सकते हैं.
* यात्रा के लिए आवश्यक सभी सामान यहाँ मिल जाते हैं, जो यात्रा को आसान बनाते हैं.
अमरनाथ यात्राः पहलगाम मार्ग का धार्मिक महत्व
पहलगाम मार्ग का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है. आइए इसे समझते हैं.
* पहलगाम: भगवान शिव ने यहीं नंदी बैल को छोड़ा था। इसे पहले बैलगाँव भी कहते थे।
* चंदनवाड़ी: शिवजी ने अपने चंद्र को सिर से उतारा था। यह यात्रा का पहला प्रमुख पड़ाव है।
* पिस्सू टॉप: देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध का प्रतीक, जहाँ देवताओं की विजय हुई।
* शेषनाग: शिवजी ने अपने गले में लिपटे शेषनाग को छोड़ा था। यहाँ एक सुंदर झील है।
* महागुना टॉप: शिवजी ने अपने दो गणों को छोड़ा था। यह समुद्र तल से लगभग 14,000 फीट की ऊंचाई पर है।
* पंचतरणी: शिवजी ने अपने पांच तत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) को त्यागा था। यहाँ पांच पवित्र धाराएँ बहती हैं और इसे मोक्ष प्राप्ति का द्वार भी कहा जाता है।
* गणेश स्टॉप: शिवजी ने अपने पुत्र गणेश जी को पीछे छोड़ा था ताकि कोई उनकी अमर कथा न सुन सके।
* अमरनाथ गुफा: शिवजी ने पार्वती जी को अमर कथा सुनाई थी। गुफा में बर्फ से स्वयंभू शिवलिंग (हिमलिंग) बनता है।
अमरनाथ यात्राः चंदनवाड़ी से पिस्सू टॉप तक की चढ़ाई
* पिसू टॉप की चढ़ाई 3 से 4 कि.मी की सीधी खड़ी चढ़ाई है।
* यात्रियों ने लाठी डंडों का सहारा लिया।
* इस यात्रा को सफल बनाने में सेना (सीआरपीएफ, आईटीबीपी), भारतीय सेना के जवानों का कमाल का योगदान है, जो हर रास्ते पर मोर्चा थामे हुए हैं।
* बीआरओ (बॉर्डर रोड्स ऑर्गेनाइजेशन) ने भी रास्ता बनाने में सराहनीय कार्य किया है।
* भक्तों में असीम ऊर्जा और उत्साह दिखाई देता है।
* पिसू टॉप तक पहुंचने में 60 साल के अंकल भी युवा जैसे जोश में दौड़ते हुए दिखते हैं।
* रास्ते में पेयजल, शौचालय, स्वास्थ्य सुविधाएँ और लंगर उपलब्ध हैं।
* RF ID कार्ड हर समय अवश्य पहनना चाहिए.
* पहलगाम से 18 कि.मी (चंदनवाड़ी से 2 कि.मी) का सफर तय कर लिया गया था, और पिसू टॉप तक 1.5 कि.मी बचा था.
अमरनाथ यात्राः सीमाएँ और उनके कारण
मुझे पहले लगता था कि यात्रा के लिए दैनिक परमिट की सीमाएँ क्यों हैं, लेकिन जम्मू पहुँचने के बाद उन्हें एहसास हुआ कि ये सीमाएँ जायज हैं. यह यात्रियों के आवास, सुरक्षा और भीड़ को संभालने के लिए आवश्यक है, क्योंकि इससे अधिक यात्रियों को नियंत्रित करना संभव नहीं है. यात्रा कई पड़ावों से होकर गुजरती है, और हर पड़ाव पर सुरक्षा और व्यवस्था की आवश्यकता होती है.
अमरनाथ यात्राः पिस्सू टॉप और आगे की चुनौतियाँ
पिसू टॉप से जोजीबल तक पहुँचने पर यात्रियों का उत्साह लगभग 70% कम हो जाता है, जिसका कारण खराब रास्ता और थकावट है. जोजीबल पिसू टॉप से लगभग 0.5 कि.मी दूर है और यहाँ भी भंडारे की व्यवस्था है. जोजीबल के बाद शेषनाग के लिए बढ़ने पर, खाने के बाद चलने में और मुश्किल महसूस होती है. जोजीबल के बाद घोड़े और पिट्ठू का रास्ता पैदल रास्ते से अलग हो जाता है, जिससे कीचड़ कम मिलती है और फिसलने का डर कम होता है. शेषनाग पहुँचने से पहले ही सांस लेने में दिक्कत (ऑक्सीजन की कमी) महसूस होने लगती है, और मेडिकल टीमें ऑक्सीजन सिलेंडर के साथ मुस्तैद रहती हैं.
यात्रा का यह हिस्सा बहुत मुश्किल और कष्टप्रद होता है, खासकर महिलाओं और दूर से आए लोगों के लिए. यह ट्रैक जो कागजों में 7-8 कि.मी बताया जाता है, वास्तव में 10-12 कि.मी लंबा और बहुत कठिन होता है.
अमरनाथ यात्राः शेषनाग झील और मौसम का मिजाज
शेषनाग झील पहुँचने से 1 कि.मी पहले तक धूप थी, लेकिन पहुँचते ही बादल घने हो गए और ठंड बहुत बढ़ गई. यह जगह बहुत ही खूबसूरत है, पहाड़ों पर बर्फ गिरी हुई है, और सूर्य की पहली किरणें बर्फ को मणि की तरह चमकाती हैं. शेषनाग तक पहुँचते-पहुँचते लोग बहुत थक जाते हैं, उनका सामर्थ्य और एनर्जी लेवल जवाब दे देता है. सुबह 5:30 बजे से ट्रैक कर रहे लोग 12 घंटे बाद थक कर खड़े दिखाई देते हैं. शेषनाग के कैंप्स झील से लगभग 500 मीटर या 1 कि.मी आगे हैं. शेषनाग में रात का तापमान 3°C तक पहुँच गया था, जिससे ठंड बहुत ज्यादा थी. यात्रा में गर्मी होने की अफवाहों पर विश्वास न करें और अच्छे जैकेट, कैप और जुराबें (दो-तीन जोड़ी) जरूर साथ रखें, क्योंकि मौसम कभी भी बदल सकता है. बच्चों के साथ यात्रा करने पर उनके लिए भी पर्याप्त गर्म कपड़ों की व्यवस्था करें. ग्लेशियर पर ताज़ी बर्फबारी हुई थी, जिसने पूरे पहाड़ को ढक लिया था.
अमरनाथ यात्राः कश्मीरी लोगों का योगदान.
अमरनाथ यात्रा में कश्मीर के नौजवान, पुलिसकर्मी, और प्रशासनिक अधिकारी यात्रियों की सुविधाएँ सुनिश्चित करने में लगे हुए हैं. वे वाशरूम की सफाई, यात्रियों की सेवा और सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं. वे लोगों से कश्मीर की जन्नत में बिना किसी डर के आने का आग्रह करते हैं. घुड़सवार (बकरवाल/पहाड़ी लोग) भी यात्रियों की सहायता में लगे हैं.
अमरनाथ यात्राः शेषनाग से महागुना टॉप (गणेश टॉप)
शेषनाग से निकलने के बाद लगभग आधा किलोमीटर का रास्ता खच्चरों के चलने के कारण कीचड़ भरा और खराब हो चुका था, जिससे चलने में सावधानी बरतनी पड़ी. मजबूत ट्रैकिंग शूज़ पहनना सबसे अच्छा होता है. महागुना टॉप (गणेश टॉप) अमरनाथ यात्रा का सबसे ऊंचा स्थान (हाईएस्ट पीक पॉइंट) है, जो 14,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है. यहाँ पहुँचने पर ऑक्सीजन की कमी के कारण साँस लेने में दिक्कत होती है. यह वो जगह है जहाँ शिवजी ने अमर कथा सुनाने से पहले अपने पुत्र गणेश को छोड़ा था. यह पॉइंट पार करने के बाद यात्रियों में एक नई ऊर्जा आ जाती है, क्योंकि उन्हें पता होता है कि अब ढलान शुरू होगी. ऊंचाई पर ठंडी हवा के कारण नाक, मुँह और आँखों को ढकना महत्वपूर्ण है.
अमरनाथ यात्राः महागुना टॉप से पोषपत्री
महागुना टॉप से नीचे उतरते ही ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है, और साँस लेने की समस्या ठीक हो जाती है. अगला स्टेशन पोषपत्री 1.5 कि.मी दूर है, और पवित्र गुफा यहाँ से 15.5 कि.मी दूर है. यहाँ खुले मैदान और भेड़ें चरती दिखती हैं. पोषपत्री का भंडारा काफी प्रसिद्ध है, जहाँ मालिश की सुविधा जैसी अनोखी सुविधाएँ भी मिलती हैं.
पोषपत्री से पंचतरणी
पोषपथ्री से पंचतणी की दूरी 8 कि.मी है. यात्रा कठिन होने के कारण थकावट, सिरदर्द और हल्का बुखार स्वाभाविक है. अपने साथ दवाएँ ले जाने की सलाह दी जाती है.
अमरनाथ यात्राः मोबाइल नेटवर्क
BSNL के टावर जगह-जगह लगे हैं, जिससे नेटवर्क की कोई दिक्कत नहीं होती. Jio भी अच्छा नेटवर्क प्रदान करता है और 5G पर चलता है. Vodafone जैसे अन्य सिम कार्ड काम नहीं करते. यहां मुझे पंचतणी का कैंप चमकता हुआ दिखाई देता है, लेकिन अभी भी दूरी 3 कि.मी थी.
पंचतरणी में अनुभव
रास्ते में एक बाबा मिले जो मध्य प्रदेश से आए थे और विभिन्न नदियों का जल लेकर अमरनाथ यात्रा पूरी करने के बाद बाबा बैजनाथ धाम जा रहे थे। वे नंगे पाँव चल रहे थे और उनका मानना था कि सच्चे मन से आने पर महादेव कंकर-पत्थर को भी फूल बना देते हैं. पंचतरणी की घाटी बहुत खूबसूरत है, जिसमें घोड़े घास चरते हुए और जलधाराएँ बहती हुई दिखाई देती हैं. यात्रा में घोड़ों का बहुत बड़ा सहयोग है, जिनके बिना अमरनाथ यात्रा संभव नहीं। ये लद्दाखी नस्ल के पहाड़ी घोड़े होते हैं, जो पहाड़ों पर चलने के लिए उपयुक्त होते हैं और ठंडे मौसम को झेल सकते हैं। एक जवान घोड़े की कीमत लाखों में होती है.
पंचतरणी बेस कैंप में टेंट ₹700 प्रति व्यक्ति में बुक किए गए (शेषनाग में ₹600, पहलगाम में ₹500 थे), जिससे यात्रा महंगी होती जा रही है. पंचतरणी में टेंट में चार्जिंग पॉइंट की सुविधा नहीं थी, जिससे यात्रियों को फोन चार्ज करने में दिक्कत हुई. पावर बैंक साथ ले जाने की सलाह है. यात्रा में वाशरूम की सुविधा उतनी उत्तम नहीं है और जहाँ घोड़े और इंसान एक साथ चलते हैं, वहाँ रास्तों की समस्या (कीचड़) रहती है. यात्रियों के बीच भाईचारा और दोस्ती यात्रा का एक खूबसूरत अनुभव रहा.
पंचतरणी से पवित्र गुफा तक
हमने सुबह 4:30 बजे पंचतणी बेस कैंप से पवित्र गुफा के लिए यात्रा शुरू की. यह रास्ता 6 कि.मी लंबा है, जिसमें शुरुआती 4 कि.मी की कठिन चढ़ाई है, उसके बाद 2 कि.मी का रास्ता समतल है. सुबह का तापमान 3°C था, और रात को इससे भी कम रहा होगा। पिछली रात तेज बारिश और आंधी के कारण टेंट गिरने का डर था. पर्वतों पर बर्फ बिखरी हुई है, जो एक सुंदर दृश्य प्रस्तुत करती है. पंचतरणी से 2 कि.मी की दूरी तय करने के बाद, संगम टॉप 1 कि.मी दूर था, और पवित्र गुफा 4 कि.मी दूर थी. बालटाल का रास्ता यहीं से 12 कि.मी दूर जाता है.
घोड़ों के हेयर स्टाइल बहुत आकर्षक होते हैं. पवित्र गुफा ठीक सामने पहाड़ी से मुड़ते ही दिखाई देती है, और इसके दर्शन से सारी थकान मिट जाती है. पिछले साल की अधूरी यात्रा (सोनमर्ग में रोके जाने के कारण) इस बार सफल हुई, जिससे यात्रियों को सुकून मिला. बीआरओ के कर्मचारी जगह-जगह रास्ते की मरम्मत करते हुए दिखाई देते हैं, उनका कार्य प्रशंसनीय है. गुफा से 1 कि.मी दूर भारी बर्फबारी हुई थी, जिसका भक्त आनंद ले रहे थे.
पवित्र गुफा में दर्शन और यात्रा का समापन
पवित्र गुफा से पहले स्नान के लिए गर्म पानी ₹100 प्रति बाल्टी में उपलब्ध था. सुबह 4:30 बजे पंचतरणी से चलकर, 6 कि.मी का सफर तय करके हम सुबह 9:30 बजे बाबा अमरनाथ की पावन गुफा में पहुँचे और दर्शन किए. यह दर्शन एक सुखद और अविस्मरणीय अनुभूति देने वाला था. यात्रा की कामयाबी में पैरामिलिट्री फ़ोर्स के जवान (बीएसएफ, आईटीबीपी, सीआरपीएफ, इंडियन आर्मी), बीआरओ कर्मी जिन्होंने सड़कें बनाईं और रास्ते तैयार किए, सफाई कर्मचारी जो दिन-रात सफाई कर रहे थे, भंडारों का आयोजन करने वाले जिन्होंने जम्मू से लेकर पवित्र गुफा और बालटाल तक भक्तों को भूखा नहीं रहने दिया, कश्मीरी लोग (पुलिसकर्मी, प्रशासनिक अधिकारी, घोड़े वाले) जिन्होंने इस यात्रा को सफल बनाने में बहुमूल्य योगदान दिया.
वापसी का रास्ता: बालटाल रूट
बालटाल के रास्ते पर भक्तों की भीड़ बहुत ज्यादा थी. बालटाल का रास्ता 15 कि.मी पैदल वालों के लिए और 16 कि.मी घोड़े वालों के लिए है. यह रास्ता बहुत खड़ी चढ़ाई और ढलान वाला है, जिससे घोड़ों को ढलान पर चलने में दिक्कत होती है. मैंने वापसी में घोड़े की सेवा ली ताकि उसका अनुभव लिया जा सके. पिछले साल की यात्रा बंद हो गई थी, लेकिन इस बार सफलतापूर्वक दर्शन हुए. यात्रा के दौरान कई चुनौतियाँ आईं, जैसे शेषनाग में तबीयत खराब होना, बर्फ और तेज बारिश, टेंट उड़ने का डर, और रात भर न सो पाना. इन सभी अनुभवों के बावजूद, यात्रा सफल रही और नए दोस्त मिले.
यह ब्लॉग अमरनाथ यात्रा के हर पहलू को विस्तार से बताता है, जिसमें यात्रा की तैयारी से लेकर रास्ते की चुनौतियों और विभिन्न समुदायों के योगदान तक सब कुछ शामिल है.