बांधवगढ़. मध्य प्रदेश के पूर्वी हिस्से में स्थित बांधवगढ़ हमेशा से ही पर्यटक स्थल के रूप में मशहूर रहा है. बांधवगढ़ के किले का संबंध रामायण काल से जोड़कर देखा जाता है. ऐसी मान्यता है कि भारत और श्रीलंका के बीच रामायण काल में सेतु बनाने वाले नल और नील नामक वानरों ने इस किले को बनाया था. मान्यता यह भी है कि इस किले का प्रयोग राम और हनुमान ने लंका से वापसी के समय किया था. इस किले को बाद में राम ने लक्ष्मण के हवाले कर दिया जिन्हें बांधवधीश अर्थात् किले के भगवान के नाम से जाना गया. बांधवगढ़ किले के उत्तरी हिस्से की गुफाओं की खुदाई से प्रथम शताब्दी के ब्राह्मी अभिलेख प्राप्त हुए हैं। खजुराहों के मंदिरों का निर्माण करवाने वाले चंदेल राजाओं ने भी इस किले पर शासन किया. रीवा के महाराजा के उत्तराधिकारी बघेल राजाओं ने 12वीं शताब्दी में यहां राज किया. बांधवगढ़ उनके साम्राज्य की 1617 तक राजधानी थी. उसके बाद रीवा को राजधानी बनाया गया जो 120 किलोमीटर उत्तर में स्थित है. राजधानी के स्थानांतरण के कारण काफी समय तक बांधवगढ़ को अनदेखा किया किया जाता रहा.
बांधवगढ़ का राष्ट्रीय पार्कः बांधवगढ़ का राष्ट्रीय पार्क पर्यटकों को हमेशा से ही लुभाता रहा है. राष्ट्रीय पार्क बनने से पहले यह स्थान यहां शासन करने वाले राजाओं के शिकार की स्थली था. आजादी के बाद राजशाही का अन्त हुआ और इस स्थान को मध्य प्रदेश सरकार के अधीन लाया गया. यहां के राजाओं को 1968 तक शिकार करने का अधिकार था. उसके बाद इसे राष्ट्रीय पार्क बनाया गया और यहां शिकार पर पाबंदी लगा दी गई. पार्क बनने और शिकार पर पाबंदी लगने के बाद यहां टाइगरों की संख्या में बढ़ोत्तरी गई. 1993 में इस पार्क को प्रोजेक्ट टाइगर के अधीन लाया गया.
यह खासतौर पर टाईगर क्षेत्र के रूप में जाना जाता है. बाघों से रूबरू होने की यह आदर्श जगह है. सड़कों के बीचोंबीच टाइगरों को मस्त चाल में चलते हुए यहां आसानी से देखा जा सकता है. बांधवगढ़ राष्ट्रीय पार्क जबलपुर से 195 किलोमीटर और खजुराहो से 210 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. बांधवगढ़ को मध्य प्रदेश के वन्य जीव धरोहर का सिरमौर कहा जाता है. यह स्थान बंगाल टाईगर, चीतल, तेंदुओं, गौर, सांबर और बहुत सी जंगली प्रजातियों के लिए प्रसिद्ध है.
बांधवगढ़ विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य भारत में स्थित है जो पहाड़ों और नदियों से भरपूर है. मध्य प्रदेश के कान्हा या अन्य पार्कों की तुलना में यहां समान टाइगर और अन्य जीव-जन्तु हैं. इसके अलावा यह स्थान मध्यम आकार की बिसन जड़ी-बूटियों के उत्पादन के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है. बांधवगढ़ एक राष्ट्रीय पार्क के रूप 1968 में उभरकर सामने आया जिसका क्षेत्रफल 105 किलोमीटर था. 1986 में दो सटे हुए जंगलों को मिलाकर पार्क का विस्तार कर दिया गया. राष्ट्रीय पार्क बनने से पहले यह स्थान रीवा के महाराजाओं के खेलने के लिए आरक्षित था लेकिन राजकीय संरक्षण के पतन के बाद इसे तब तक अनदेखा किया गया जब तक सरकार ने इस इलाके में प्रवेश पर अंकुश लगाने के लिए इसे राष्ट्रीय पार्क घोषित नहीं कर दिया. भारतीयों के लिए इस पार्क में प्रवेश शुल्क 25 रुपये है जबकि विदेशियों के लिए शुल्क 500 रुपये रखा गया है. प्रति वाहन शुल्क 200 रुपये और गाईड शुल्क 100 रुपये है.
क्या करें और क्या देखेंः बांधवगढ़ में यात्रा करने के लिए हर संभव सफारी का प्रयोग करें क्योंकि एक विशेष सफारी की प्राप्ति की कोई गारंटी नहीं है. विकल्प जीप सफारी से हाथी सफारी तक संभव है. सफारी का समय पूर्व निर्धारित होता है इसलिए सफारी के प्रारंभ और अंत में कैंप के चारों तरफ आराम करने और जलती आग के चारों तरफ बैठकर मद्यपान करने का पर्याप्त समय रहता है. इस प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन बहुत से होटल करते हैं. बहुत से होटल दृश्य-श्रव्य प्रस्तुतीकरण की व्यवस्था भी शाम को करते हैं जो बहुत बार ज्ञानवर्धक और शिक्षित करने वाला होता है.
जीप सफारीः सबसे पहले और महत्वपूर्ण जीप में जंगल का दर्शन करना उचित होगा. जीव का कारवां के रूप में इस्तेमाल बेहतरीन विकल्प है. इस बात का ध्यान रहे कि जीप में एक ड्राईवर और गाईड सहित 6 व्यक्ति से अधिक न हों. अपनी चार पहिए वाली गाड़ी को भी किसी मान्यताप्राप्त गाईड के साथ प्रयोग किया जा सकता है. ज्यादातर होटल अपनी फीस में पार्क में संबंधित सफारी का मूल्य शामिल करते हैं, इसलिए होटल की सफारी की जांच करें.
हाथी सफारीः पार्क के चारों तरफ घूमने और नजदीक से देखने के लिए हाथी सफारी से बढ़िया शायद की कोई दूसरा माध्यम हो. पर हाथी की बुकिंग पहले से कर लेनी चाहिए ताकि बाद में उसकी सफारी का आनन्द लेने में कोई दिक्कत न हो. अच्छे से अच्छे हाथी की सेवाओं से प्राप्त होने वाली जंगल की यात्रा के अनुभव और आनंद का दो घन्टे के भ्रमण के लिए भुगतान किया जाता है. जिसमें आपका दर्शन आपके गाईड की ट्रेनिंग स्किल्स पर निर्भर करता है. भारतीय के लिए हाथी की सवारी का शुल्क 100 रुपये प्रति घंटा है जबकि विदेशियों के लिए यह शुल्क 400 रुपये प्रति घंटा है.
बांधवगढ़ किलाः लगभग 2000 साल पुराना यह किला बांधवगढ़ पहाड़ियों की खड़ी चोटी पर स्थित है जिसे रीवा के महाराजाओं ने बनवाया था. 800 मीटर की ऊंचाई पर बने इस किले से शहर और जंगल का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है. इस किले की अपनी एक पौराणिक कथा है. कहा जाता है कि इस किले को भारत और लंका के बीच सेतुसमुद्रम बनाने वाले वानरों ने बनाया था. राम, लक्ष्मण और हनुमान ने लंका से वापसी के समय यहां विश्राम किया था. तब राम ने यह किला लक्ष्मण को भाई के प्रेम की निशानी के तौर भेट किया. लक्ष्मण को बांधवधीश की उपाधि यहीं से मिली. बाद में यह किला रीवा के राजाओं के अधीन रहा. किले के बगल से चरनगंगा नदी बहती है. कहा जाता है कि इस नदी का स्रोत विष्णु के चरण हैं. इसी कारण इस नदी का नाम चरणगंगा पड़ा. पास ही शेष शय्या पर विराजमान विष्णु की विशाल मूर्ति है. इस मूर्ति को चट्टानों से काटकर बनाया गया है. किले के मुख्य रास्ते से थोड़ा हटकर विष्णु के दसों अवतारों की मूर्तियां देखी जा सकती हैं. साथ ही 12 शताब्दी के तीन छोटे किंतु सुंदर मंदिरों के दर्शन भी किए जा सकते हैं.
बघेल म्युजियमः बांधवगढ़ की खास बात यह रही है कि यहां अब भी सफेद टाईगर पाए जाते हैं. ताला गांव के पास के स्थित बघेल संग्रहालय में मोहन नामक सफेद टाईगर के बच्चे देखे जा सकते हैं जिन्हें महाराजा मार्तंड सिंह द्वारा 1951 में पकड़ा और संग्रहालय में रखा गया था. इस संग्रहालय में प्रवेश शुल्क 50 रुपये और प्रवेश करने का समय सुबह 10 बजे से शाम 4 बजे तक है.
गुफा दर्शनः पार्क के उत्तरी हिस्से में 35 बलुआ पत्थर की गुफाएं हैं. इन गुफाओं में पहली शताब्दी के ब्राह्मी अभिलेख प्राप्त हुए हैं. जब तक गुफा को पार करने के लिए स्टील ग्रिल नहीं थे तब तक यह गुफाएं बेहद खूबसूरत थीं.
बांधवगढ़ के आसपास दर्शनीय स्थल
भांमरा बांधः यह बांध ताला से बीस किलोमीटर दूर स्थित है। पनपाथा अभ्यारण्य के करीब स्थित यह बांध खूबसूरत पक्षियों को देखने का उत्तम स्थल है. पार्क से दस किलोमीटर दूरी पर स्थित घपूडी बांध भी पक्षियों को देखने लायक बहुत सुन्दर स्थान है.
परफेक्ट पिक्चर सफारीः बांधवगढ़ अपने पर्यटकों के लिए तीन दिन का जीव जन्तुओं की फोटोग्राफी का अद्वितीय कैम्प आयोजित करता है. इस कैम्प में जंगल और उसमें रहने वाली प्रजातियों के बारे में काफी कुछ जानने में मदद मिलती है. इसका आयोजन दिल्ली आधारित नैचर सफारी नामक एक समूह के माध्यम से किया जाता है. कैम्प का आयोजन अप्रैल-जून के बीच किया जाता है जिसमें 15 वर्ष से ऊपर के व्यवसायिक फोटोग्राफर हिस्सा ले सकते हैं. कैम्प टाईगर डेन रिसॉर्ट में तीन रातों तक चलता है. जंगल में भोजन, हाथी या जीप सवारी की व्यवस्था 9900 प्रतिव्यक्ति या दो लोगों की हिस्सेदारी में उपलब्ध हो जाती है.
फोटोग्राफर शरद तिवारी द्वारा चलाए जाने वाले इस कैम्प में अनेक पर्यावरणविदों से संपर्क का अवसर मिलता है. इस कैम्प में फील्ड ट्रेनिंग प्राप्त करने के साथ जंगल में घूमकर टाईगरों, पक्षियों और वनस्पतियों की फोटो खींची जा सकती है. आदर्श फोटोग्राफी के लिए दो लैन्सों: 70-300 और 100-400 वाला डिजिटल एसएलआर कैमरा होना चाहिए. साथ ही कम से कम 512 एमबी वाले दो मैमोरी कार्ड और एक 2७ कनवर्टर होना चाहिए. यद्यपि एक पुराना और सामान्य डिजिटल एसएलआर कैमरा भी उपयोगी साबित होगा. टाईगर डेन रिसॉर्ट में कम्प्यूटर की व्यवस्था है जहां शाम को तस्वीरों का संग्रह किया जा सकता है.
भागीरथ
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