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Holi Rituals in India: कहीं 100-कहीं 150 साल से नहीं खेली गई होली, जानें त्योहार से जुड़ी अजीब परंपराओं को

Holi Rituals in India : भारत में इस बार 8 मार्च को होली मनाया जा रहा है. यूं तो होली पूरे देश में उत्‍साह और उमंग से मनाई जाती है. मथुरा-वृंदावन की होली तो दुन‍ियाभर में फेमस है. वहीं, देश में कुछ जगह ऐसी भी हैं जहां होली नहीं मनाई जाती है.

हम आपको देश की ऐसी ही जगहों के बारे में बता रहे हैं जहां होली का त्‍योहार की अजीब प्रथा.

गुजरात का रामसन गांव || Ramsan village of Gujarat

गुजरात में वैसे तो हर त्‍योहार खास होते हैं और यहां का गरबा का वर्ल्‍ड फेमस है. होली भी यहां अच्‍छी तरह मनाई जाती है लेक‍िन यहां एक जगह ऐसी भी है जहां 200 सालों से होली नहीं मनी है. यह जगह बनासकांठा ज‍िले में है जहां के रामसन गांव में दो सदी से होली नहीं मनी है. यहां के बारे में माना जाता है क‍ि इस गांव को कुछ संतों ने श्राप द‍िया था. ज‍िसकी वजह से लोग भयभीत रहते हैं. यहां के लोग इस श्राप की वजह से होली का जश्‍न नहीं मना पाते हैं.

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झारखंड का दुर्गापुर गांव || Durgapur village of Jharkhand

झारखंड में आद‍िवासी त्‍योहार तो हर्षोल्‍लास से मनते हैं वहीं होली की भी रंगीन‍ियत यहां पाई जाती है. इस राज्‍य में भी एक जगह ऐसी है जहां 100 से ज्‍यादा सालों से होली नहीं मनाई गई है.

झारखंड में बोकारो जिले के दुर्गापुर गांव में होली का जश्‍न कई सालों से नहीं मनाया गया है. इसका कारण भी बड़ा रोचक है. दरअसल, होली के द‍िन ही यहां के राजा के बेटे की मौत हुई थी.

इस बात का गम हमेशा रहा. यही कारण है क‍ि राजा ने मरने से पहले अपनी प्रजा को कहा क‍ि वह होली न मनाएं. तब से यहां होली का जश्‍न नहीं होता है. अगर इस गांव के क‍िसी व्‍यक्‍त‍ि को होली खेलने का मन भी होता है तो उसे दूसरे गांव में जाना होता है.

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उत्‍तराखंड में क्विली और कुरझान गांव || Quili and Kurjhan villages in Uttarakhand

उत्‍तराखंड में अलकनंदा और मंदाक‍िनी के संगम पर बसा है रुद्रप्रयाग ज‍िला. इसी ज‍िले के दो गांवों में होली का त्‍योहार नहीं मनाया जाता है. इसका कारण भी धार्मिक आस्‍था से जुड़ा हुआ है. दरअसल, इन गांवों में स्‍थानीय देवी त्रिपुर सुंदरी को काफी माना जाता है. देवी को शोरगुल पसंद नहीं है, इसील‍िए यहां के गांव के लोग ऐसे त्‍योहारों को मनाने से दूर रहते हैं, ज‍िसमें इस तरह का माहौल हो. ऐसा यहां 150 सालों से ज्‍यादा में हो रहा है.

मध्‍य प्रदेश का हथखोह गांव || Hathkhoh village of Madhya Pradesh

मध्‍य प्रदेश का बुंदेलखंड अपनी मस्‍ती भरी बोली के ल‍िए हर जगह जाना जाता है और होली तो यहां जमकर मनती है. यहां एक ऐसी जगह भी है जहां होली मनाने की परंपरा नहीं है. यह जगह बुंदेलखंड के सागर ज‍िले में है ज‍िसके हथखोह गांव में लोग होली नहीं मनाते हैं. यहां की मान्‍यता है क‍ि कई सालों पहले गांव के लोगों को खुद देवी ने दर्शन द‍िए थे.उस समय देवी ने कहा था क‍ि होली न मनाएं तो गांव के लोगों ने इस बात को मान ल‍िया. तब से इस गांव में परंपरा चली आ रही है.

ब‍िहार का असरगंज गांव || Asarganj village of Bihar

ब‍िहार में होली का रंग लोगों पर चढ़कर बोलता है लेक‍िन यहां भी एक जगह ऐसी है जहां न स‍िर्फ गांव के लोग रंगों से खुद को दूर रखते हैं बल्‍क‍ि घरों में पकवान भी नहीं बनाते हैं. ब‍िहार के मुंगेर ज‍िले में असरगंज का सती स्‍थान है जहां होली का त्‍योहार नहीं मनता हैं. यहां के लोगों को मानना है क‍ि होली मनाने पर गांव में व‍िपदा आती है, इस कारण से लोग होली नहीं मनाते हैं। यह परंपरा भी सती प्रथा से जुड़ी है. इस परंपरा को गांव के लोग करीब 200 सालों से न‍िभा रहे हैं.

राजस्थान का बांसवाड़ा और डूंगरपुर गांव || Banswara and Dungarpur villages of Rajasthan

राजस्थान के बांसवाड़ा और डूंगरपुर जिले में कुछ आदिवासी रहते हैं. ये आदिवासी लोग बहुत ही खतरनाक तरह से होली मनाते हैं जिसे ‘खूनी होली’ कहते हैं. होली के खास मौके पर लोग यहां जलते हुए अंगारे पर चलते हैं और इसके बाद दो टोलियां बनती है. ये दोनों टोली के लोग एक-दूसरे पर पत्थर बरसाते हैं.

इस पत्थर बारी में लोग घायल भी होते हैं और ऐसी मान्यता है कि जिन लोगों के खून निकलता है उनका आने वाला समय अच्छा होता है. इसलिए लोग कोशिश करते हैं कि उनका खून निकल जाएग. ये प्रथा सुनने में काफी अजीब है लेकिन ये बिल्कुल सच है. होली खेलने का ये अंदाज आपने शायद ही सुना होगा. रिपोर्ट्स के मुताबिक, यहां ये आदिवासी दशकों से इस प्रथा को अपना रहे हैं.

Komal Mishra

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