ककनमठ मंदिर के दर्शन के बाद, मैं श्री दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र सिहोनिया ( Shri Digambar Jain Atishaya Kshetra Sihoniya ) की ओर बढ़ा...
Shri Digambar Jain Atishaya Kshetra Sihoniya Tour Blog – ककनमठ मंदिर ( kakanmath mandir ) की यात्रा को मैंने लगभग एक घंटे में पूरा कर लिया था. ककनमठ मंदिर ( kakanmath mandir ) की यात्रा के बाद स्वामी जी ने मुझे फिर अपनी बाइक पर बिठाया और लाकर सिहोनिया छोड़ दिया. अगर आप स्वामी जी और उनकी इस दिलचस्प बाइक से परिचित नहीं हैं तो आपको मुरैना की यात्रा के पिछले ब्लॉग ज़रूर पढ़ने चाहिए. दरअसल, स्वामी जी, पान सिंह तोमर के गांव में एक मंदिर से संबंध रखते हैं. बस वहीं से हमारी उनसे मित्रता हो गई थी.
स्वामी जी ने मुझे जब सिहोनिया छोड़ा तब मैं उलझन में पड़ गया. सुबह वरिष्ठ पत्रकार अनिल सिंह तोमर जी ने जगहों की लंबी सूची बता दी थी लेकिन अभी तक सिर्फ दो ही हुए थे. धूप बेहद तेज़ थी. मैंने सोचा- ऐसा भी क्या मेहनत करना. चार दिन है. नहीं हुआ तो चारों दिन यहीं रुक जाएंगे. अनिल जी ने सिहोनिया में एक जैन तीर्थ क्षेत्र ( Shri Digambar Jain Atishaya Kshetra Sihoniya ) के बारे में भी बताया था. ये जैन मंदिर ( Shri Digambar Jain Atishaya Kshetra Sihoniya ), बेहद आध्यात्मिक महत्व रखता है.
सिहोनिया में पानी से गला तर करने के बाद, मैं श्री दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र सिहोनिया ( Shri Digambar Jain Atishaya Kshetra Sihoniya ) की ओर बढ़ चला. स्थानीय लोगों ने बता दिया था कि पैदल भी वहां तक जाया जा सकता है इसलिए मैं उत्साह में आ गया था. पानी लगातार पिए जा रहा था. कुछ दूर चलने के बाद ही मुझे वह जैन तीर्थ क्षेत्र दिखाई दिया. बीहड़ में किसी नगीने की तरह. गजब का दृश्य था वह भी. आसपास खेत खलिहान और बीच में आभा बिखेरता यह जैन मंदिर ( Shri Digambar Jain Atishaya Kshetra Sihoniya ).
मैं जैन तीर्थ क्षेत्र ( Shri Digambar Jain Atishaya Kshetra Sihoniya ) के मुख्य दरवाज़े पर पहुंच गया. यह बंद था लेकिन पता करने पर मालूम हुआ कि दोपहर में भी अंदर एंट्री है लेकिन मुख्य मंदिर बंद रहता है. मैं अंदर दाखिल हुआ. परिसर में एक अलग ही नज़ारा था. उज्जवल मंदिर देखते ही मेरी ऊर्जा मानों और भी बढ़ गई थी.
सिहोनिया के इस जैन तीर्थ क्षेत्र ( Shri Digambar Jain Atishaya Kshetra Sihoniya ) में सिहोनिया को भी सिहोनिया जी कहते हैं. यह सवाल जब मैंने यहां के मैनेजर आयुष जैन जी से पूछा तो उन्होंने कहा कि ऐसा जगह के पवित्र होने की वजह से कहा जाता है. क्योंकि यहां की ज़मीन से पवित्र प्रतिमा निकली इसलिए यह नाम भी पवित्र हो गया.
आयुष जैन जी हैं तो इंदौर के, लेकिन यहां भी सेवाएं देते हैं. कमाल है न. एक युवा का धर्म के प्रति ये समर्पण देखकर बेहद खुशी की अनुभूति हुई. मैंने यहां का मनोहारी गार्डन देखा, कमल मंदिर देखा, धर्मशाला देखी और आयुष जी से सारी जानकारी भी ली. आप इस तीर्थ क्षेत्र की संपूर्ण जानकारी को वीडियो में देख पाएंगे.
अब भूख लगी थी तो यहां की भोजनशाला की तरफ बढ़ चला. भोजनशाला में पता किया तो दाल और सब्ज़ी थी. मैंने ऑर्डर दे दिया. कमाल का भोजन था दोस्तों. और उससे भी बेहतर तो श्री दिगंबर जैन अतिशय क्षेत्र सिहोनिया जी ( Shri Digambar Jain Atishaya Kshetra Sihoniya ) में इस कैंटीन का पानी था. क्या गजब की शीतलता थी उसमें. मैंने खाने से पहले भी और खाने के बाद भी खूब पानी पिया. रहा नहीं गया. ये जानकर भी कि भोजन के वक्त पानी नहीं पीना चाहिए.
भोजन के उपरांत मैंने वहां मौजूद शख्स को पैसे देने चाहे, उन्होंने साफ इनकार कर दिया. बोले- संस्था का है… कोई बात नहीं. मैंने फिर उन्हें अपने बारे में बताया. मेरा भारतीय सेना पर बनाया गया वीडियो देखकर उनकी खुशी मानो दोगुनी हो गई थी. सफर में भी हम कितने रिश्ते बना लेते हैं न! ये रिश्ता भी ऐसा ही था.
Shri Digambar Jain Atishaya Kshetra Sihoniya से बाहर आकर अब मैंने बढ़ चला वापस सिहोनिया जी में चौराहे की ओर. यहां से बस लेकर मुझे मुरैना जाना था. और यहां जमकर सोना था. क्योंकि पिछली रात तो मुरैना स्टेशन पर ही मच्छरों को भगाते गुज़र गई थी. लगभग पौने घंटे बाद बस चली. हालांकि मिल तो तुरंत ही गई थी. हा हा… अब मैं बढ़ चला था मुरैना स्टेशन के पास अपनी धर्मशाला की ओर.
अगले ब्लॉग में पढ़िए मेरी यात्रा का दूसरा दिन और स्थान होगा 64 योगिनी मंदिर का… अपना खूब ध्यान रखिएगा दोस्तों, शुक्रिया.
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