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Pamban Bridge : जानें, पंबन ब्रिज का क्या है इतिहास और खासियत

Pamban Bridge : पंबन ब्रिज तमिलनाडु के प्रमुख आकर्षणों में से एक है. रामेश्वरम में स्थित पंबन में हर साल कई यात्री और पर्यटक आते हैं. यह आम ब्रिज की तुलना में काफी अलग है और इसलिए इस ब्रिज से जुड़ा इंजीनियरिंग चमत्कार आमतौर पर लोगों को आकर्षित भी करता है और उनके मन में डर भी पैदा करता है. आपको बता दें यह भारत का पहला वर्टिकल सी-लिफ्ट ब्रिज है, जिसकी लंबाई 2.08 किलोमीटर है और इसमें 99 स्पैन हैं रामेश्वरम द्वीप को मुख्य भूमि से जोड़ने वाले पंबन ब्रिज के बारे में ऐसी कई बातें हैं, जिसके बारे में शायद आप अब तक अनजान होंगी. आइए जानते हैं पंबन ब्रिज का इतिहास और ब्रिज की खासियत.

पंबन ब्रिज का इतिहास || History of Pamban Bridge

पंबन ब्रिज का निर्माण 1911 में शुरू हुआ था, लेकिन यह परियोजना कई सालों तक चलती रही. समुद्र की लहरों तूफानों और तकनीकी बाधाओं के बावजूद  ब्रिटिश इंजीनियरों ने यह साहसिक काम शुरू किया. पुल का निर्माण समुद्र में स्थित था जिससे इसे मजबूती से खड़ा करना और इसका आधार समुद्र के तल में गहरी नींव डालकर बनाना एक कठिन काम था. पुल का डिज़ाइन कंटीलीवर ब्रिज था जिसमें कुछ हिस्से ऊंचे खंभों पर बनाए गए थे, ताकि जहाज़ आसानी से नीचे से जा सकें. इसके निर्माण में इस समय की सबसे उन्नत तकनीक का इस्तेमाल किया गया था, जैसे हाइड्रोलिक क्रेन्स और मजबूत लोहे की संरचनाएं. परियोजना में बहुत समय और श्रम लगा, लेकिन इसके बाद भी पुल की संरचना धीरे-धीरे आकार लेने लगी.

13 वर्षों की मेहनत और संघर्ष के बाद पंबन ब्रिज 1914 में पूरी तरह से बनकर तैयार हुआ,  यह न केवल इंजीनियरिंग का एक अद्भुत उदाहरण था, बल्कि यह रामेश्वरम और मुख्य भूमि के बीच एक स्थायी संबंध का प्रतीक भी बन गया. जब यह पुल खोला गया तो लोगों ने खुशी से इसका स्वागत किया क्योंकि यह उनके जीवन को आसान और सुरक्षित बना देता था. हालांकि इस पुल का रास्ता हमेशा आसान नहीं था. पंबन ब्रिज ने अपने इतिहास में कई बार प्राकृतिक आपदाओं का सामना किया. 1964 में एक गंभीर चक्रवाती तूफान ने इस पुल को क्षति पहुंचाई लेकिन फिर भी पुल ने खुद को बरकरार रखा. इस घटना ने इसे और भी मजबूत और आत्मनिर्भर बना दिया.पुल की यह क्षमता प्राकृतिक आपदाओं के बावजूद खड़ा रहने की, उसे भारतीय इंजीनियरिंग के एक शानदार उदाहरण के रूप में आप देख सकते हैं.

नए और पुराने पमबन ब्रिज में अंतर || Difference between new and old Pamban Bridge

पुराना ब्रिज सिंगल लाईन का है जबकि नए पम्बन ब्रिज में डबल रेलवे ट्रैक बिछाया जा रहा है.
पुराने ब्रिज में 147 पिलर हैं जबकि नया ब्रिज 101 पिलर्स पर बनाया गया है.
नए ब्रिज में पिलर की गहराई 35 मीटर है.
पुराने ब्रिज का स्पेशल स्पैन 68 मीटर का है जबकि नए ब्रिज का स्पेशल स्पैन 72.5 मीटर का होगा
पुराने ब्रिज में एक सामान्य स्पैन 12 मीटर का है यानी दो पिलर की दूरी 12 मीटर की है जबकि नए ब्रिज में ये दूरी 18 मीटर की रखी गई है.

 

पंबन ब्रिज का महत्व || Importance of Pamban Bridge

पंबन ब्रिज ने केवल यात्रा को आसान नहीं किया बल्कि यह एक ऐतिहासिक धरोहर भी बन गया. यह ना सिर्फ एक पुल था बल्कि यह भारतीय इतिहास, संघर्ष और विकास का प्रतीक बन गया. समय के साथ इसकी संरचना को आधुनिक तकनीक से सुरक्षित किया गया, लेकिन इसके महत्व को कभी कम नहीं किया गया. भारतीय रेलवे के लिए एक महत्वपूर्ण मार्ग है. 1980 के दशक में एक समानांतर सड़क पुल का निर्माण किया गया ताकि वाहनों की बढ़ती संख्या को संभाला जा सके लेकिन पंबन रेलवे ब्रिज ने अपनी अद्वितीयता और ऐतिहासिकता बनाए रखा.

पंबन ब्रिज की खासियत || Features of Pamban Bridge

नया पंबन ब्रिज 2.07 किलोमीटर लंबा है और तमिलनाडु में पाक जलडमरूमध्य पर फैला है.
इसमें 72.5 मीटर का नेविगेशनल स्पैन है जिसे लंबवत रूप से 17 मीटर तक उठाया जा सकता है, जिससे जहाज़ सुरक्षित रूप से नीचे से गुज़र सकते हैं.
यह सबस्ट्रक्चर दो रेलवे ट्रैक को सहारा दे सकता है, हालाँकि यह वर्तमान में एक ही लाइन संचालित करता है। यह पंबन (रामेश्वरम) द्वीप को मुख्य भूमि पर मंडपम से जोड़ता है.
पुल को 80 किलोमीटर प्रति घंटे तक की ट्रेन की गति के लिए मंजूरी दी गई है और इसे बढ़े हुए रेल यातायात और भारी भार को संभालने के लिए बनाया गया है.
रेल मंत्रालय के तहत एक नवरत्न पीएसयू, रेल विकास निगम लिमिटेड (आरवीएनएल) द्वारा निर्मित, इस पुल की लागत लगभग 550 करोड़ रुपये है.
100 साल की अनुमानित आयु के साथ पुल का निर्माण विशेष इंजीनियरिंग तकनीकों के साथ किया गया है जो बार-बार रखरखाव की आवश्यकता को कम करता है.
इसमें स्टेनलेस स्टील Reinforcement पूरी तरह से वेल्डेड जोड़ उच्च श्रेणी के सुरक्षात्मक पेंट और कठोर समुद्री वातावरण में जंग से बचाने के लिए पॉलीसिलोक्सेन कोटिंग का उपयोग किया गया है.
नया पुल पुराने पुल से 3 मीटर ऊंचा बनाया गया है, ये समुद्री यातायात के लिए बेहतर समुद्री निकासी प्रदान करता है.
लिफ्ट स्पैन गर्डर को “रिलेशनशिप सिद्धांत पर आधारित ऑटो लॉन्चिंग विधि” का उपयोग करके इकट्ठा किया गया था, जिसे सनटेक कंस्ट्रक्शन द्वारा विकसित किया गया था और आईआईटी मद्रास द्वारा सत्यापित किया गया था.
श्रमिकों ने गर्डर खंडों को साइट से बाहर पेंट किया और उनका निरीक्षण किया, उन्हें ट्रक द्वारा पंबन ले जाया गया, और एक अस्थायी प्लेटफ़ॉर्म पर ईओटी क्रेन का उपयोग करके उन्हें इकट्ठा किया। सटीक वेल्डिंग जाँच करने के लिए इंजीनियरों ने PAUT (चरणबद्ध ऐरे अल्ट्रासोनिक परीक्षण) का उपयोग किया.
इस पुल की तुलना यूएसए में गोल्डन गेट ब्रिज, यूके में टॉवर ब्रिज और डेनमार्क और स्वीडन के बीच ओरेसंड ब्रिज जैसे प्रसिद्ध पुलों से की जा रही है, क्योंकि इसकी आधुनिक डिज़ाइन और टेकनीक है.
ब्रिटिश इंजीनियरों ने 1914 में निर्मित मूल पंबन ब्रिज में मैन्युअल रूप से संचालित शेरज़र स्पैन (एक प्रकार का रोलिंग लिफ्ट ब्रिज) का उपयोग किया गया था. इसमें 61 मीटर लंबा ट्रस था जो जहाज़ की आवाजाही के लिए 81 डिग्री तक ऊपर उठ सकता था। सुरक्षा चिंताओं के कारण उस पुल को रेल यातायात के लिए बंद कर दिया गया है.

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