Baolis of Delhi: दिल्ली की बावली के बारे में जाने Interesting Fact
Baolis of Delhi : बावलियां मुख्यतः जल के स्रोत के तौर पर इस्तेमाल हुआ करती थीं. आज देश की राजधानी दिल्ली में कुछ चुनिंदा बावलियां ही बची हुई हैं. दिल्ली के आलावा उत्तर भारत के आसपास, ये बावड़ी पीने के पानी की बुनियादी आवश्यकता प्रदान करने के अलावा सौंदर्य और वास्तुकला की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं. दिल्ली के आसपास की बावली (Baolis of Delhi ) ज्यादातर एक किले के अंदर पाई जाती है, क्योंकि घेराबंदी की स्थिति में पीने योग्य पानी की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करके किले को आक्रमणकारियों से सुरक्षित रखने के लिए पीने के पानी की सबसे बड़ी आवश्यकता होती थी.
इनमें से अधिकांश का निर्माण इतना गहरा है कि गर्मी के महीनों में भी पानी की उपलब्धता साल भर बनी रहती है. जबकि कुछ में सिर्फ पत्थर के मूल स्लैब और बोल्डर होते हैं. आइए जानते हैं दिल्ली की बावलियों के बारे में…
ऐसी 14 बावली हैं जिन्हें आप दिल्ली शहर के आसपास देख सकते हैं. एक ही दिन में सभी बावड़ियों को देखना संभव नहीं है, विशेष रूप से सप्ताह के दिनों में क्योंकि सड़क यातायात और कुल दूरी में आने-जाने में बहुत समय लगता है. हालांकि, रविवार को उन सभी को देखने जाना सही रहता है. आइए जानते हैं बीवली के इतिहास के बारे में.
यह बावली पुराना किला के अंदर स्थित है. इस क्षेत्र को पांडवों की राजधानी माना जाता है. 89 सीढ़ियां आपको 22 मीटर की गहराई तक ले जाती हैं. इस बावली को बनाने के लिए आठ लैंडिंग से अलग, बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया था. यह बावड़ी ही नहीं, पुराण किला भी अपनी सुंदरता से आपको मंत्रमुग्ध कर देगा. यह दिल्ली के सबसे पुराने किलों में से एक है जहां आपको शहर के इतिहास को विस्तार से जानने का मौका मिलेगा.
यह बावली आपको हजरत निजामुद्दीन की दरगाह के पास मिलेगी, और इसे 1321-22 ई. में बनाया गया था. ऐसा माना जाता है कि इस बावली के पानी से कई बीमारियां ठीक हो सकती हैं. इसकी हालत बिगड़ती जा रही थी फिर दिल्ली प्रशासन ने 2009 में इस पर संज्ञान लिया और इसे साफ करने के आदेश दिया. वर्तमान में यह कुछ जीवित बावड़ियों में से एक है.
यह शायद दिल्ली में सबसे लोकप्रिय और सबसे अधिक देखी जाने वाली बावड़ियों में से एक है, क्योंकि इसकी आर्किटेक्चर डिजाइन बहुत ही सुंदर है. पीके और सुल्तान जैसी फिल्मों में भी इस बावली को दिखाया गया है. यही वजह है कि यह हाल के दिनों में और अधिक लोकप्रिय हो गई. इसे प्रसिद्ध राजा अग्रसेन ने बनवाया था. 104 सीढ़ियां और तीन-स्तरीय गहरी संरचना आपको बावली तक ले जाएगी. आपको अग्रसेन की बावली जरूर देखना चाहिए.
14 वीं शताब्दी के आसपास निर्मित यह बावली तुगलकाबाद किले के अंदर स्थित है. किले में बने तालाब तक पहुंचने तक मुख्य प्रवेश द्वार से अपनी बाईं ओर जाएं. इतिहास के अनुसार यह किला कभी भी पूरा नहीं बना और बावली का पानी भी कभी इस्तेमाल नहीं किया गया. इस किले को इसके शुरुआती निर्माण के 15 साल बाद ही छोड़ दिया गया था.
फिरोज शाह कोटला बावली की विशिष्ट गोलाकार संरचना इसकी सबसे अनूठी विशेषताओं में से एक है. मूल रूप से, यह कई कक्षों से घिरा हुआ था, जो समय के साथ गायब हो गए हैं, और वर्तमान में केवल खंडहर ही देखा जा सकता है. हालांकि, बनावट सुंदर है और अभी भी प्रसिद्ध क्रिकेट मैदान फिरोज शाह कोटला के मैदान में पानी भरने के लिए उपयोग की जाती है. एक आत्महत्या के मामले के बाद, संरचना को चारों ओर से लोहे की ग्रिल से घेर लिया गया था.
यह महरौली आर्केलॉजिकल पार्क के अंदर स्थित है और यहां दो तरफ से पहुंचा जा सकता है. आप कुतुब मीनार परिसर के लिए एक टिकट खरीद सकते हैं और बावली तक पैदल जा सकते हैं या आप पार्क के पीछे से पीछे स्थित गांव से होते हुए जा सकते हैं. आप अपनी कार पास में पार्क कर सकते हैं और इस स्थान तक पहुंचने के लिए बस पांच मिनट चल सकते हैं.
ऐसा माना जाता है कि इस बावली का निर्माण सिकंदर लोदी (1498-1517 ई.) के शासनकाल में दौलत खान ने करवाया था. बावली में चार तल हैं और तल पर एक कुआं है जहां जल स्तर में भारी गिरावट के कारण आप शायद ही पानी का कोई निशान देख सकते हैं.
लालकिले की ऐतिहासिक बावली को लेकर अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है कि इसे लालकिले के साथ बनाया गया था या फिर उससे पहले. इसके इतिहास को लेकर शुरू से ही विवाद रहा है. क्योंकि लालकिले के स्मारकों में इस बावली का जिक्र नहीं है. मगर यह बात भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) भी मान रहा है कि यह एक महत्वपूर्ण बावली है.
मगर देशवासियों के लिए यह बावली इसलिए अधिक महत्वपूर्ण है कि इस बावली में स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने वाले तीन वीर सैनिकों को रखा गया था. लालकिले के अंदर स्थित इस बावली पर लंबे समय से ताला लगा था और पर्यटकों का वहां तक जाना मना था. मगर एएसआइ ने अब इसके नजदीक जाने के लिए पर्यटकों को इजाजत दे दी है.
इसी बावली के अंदर जेल बनी है. अंग्रेजों के खिलाफ बगावत कर ब्रिटिश आर्मी से लड़ाई के दौरान बर्मा में जनरल शाहनवाज खान और उनके दल को ब्रिटिश आर्मी ने 1945 में बंदी बना लिया था. नवंबर, 1946 में मेजर जनरल शाहनवाज खान, कर्नल प्रेम सहगल और कर्नल गुरुबक्श सिंह को इसी जेल में रखा गया था.
इन पर अंग्रेजी हकूमत ने राजद्रोह का मुकदमा चलाया था, लेकिन भारी जनदबाव के चलते ब्रिटिश आर्मी के जनरल को न चाहते हुए भी आजाद हिंद फौज के इन अफसरों को अर्थदंड लगाकर छोड़ने को विवश होना पड़ा था.
दिल्ली में फिरोजशाह तुगलक के शासनकाल (1351-88) में कई शिकारगाहे बनाई गई थीं. इसी में से एक शिकारगाह कुश्क ए शिकार है. इस शिकारगाह को पानी पहुंचाने के मकसद से ही हिंदू राव की बावली बनवाई गई थी. फिरोजशाह तुगलक ने देश में कई शहरों की नींव रखी और उन्हें बावली बनाने का भी शौक था. यह बावली भी तुगलक काल का बेहतरीन इतिहास है.
बताया जाता है कि साल 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के समय इस बावली के पानी के सहारे ही अंग्रेजों के कई दिन गुजरे थे… हालांकि, आज ये बावली भी मानों अपनी आखिरी सांसें गिन रही हो.
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