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Historical Gates of Delhi – ये हैं दिल्ली के ऐतिहासिक दरवाज़े, आपने कितनों को देखा?

दिल्ली के इतिहास में जो एक चीज़ आज भी हर किसी का ध्यान खींचती है, वह है दिल्ली के दरवाज़े. दिल्ली में राज करने वाली हर हुकूमत के काल में बने दरवाज़े ( Historical Gates of Delhi ) आज भी दिल्ली के इतिहास का झरोखा हैं. दिल्ली गेट ( Delhi Gate ), कश्मीरी गेट ( Kashmere Gate ) , काबुली दरवाज़ा (खूनी दरवाज़ा या लाल दरवाज़ा), तुर्कमान गेट ( Turkman Gate ), लाहौरी गेट ( Lahori Gate ), आज भी दिल्ली के माथे पर जड़े नगीने की तरह हैं. हालांकि, ऐसे न जाने कितने दरवाज़े और भी रहे होंगे जो वक्त की धूल में मिल चुके हैं. इस आर्टिकल में हम आपको दिल्ली के दरवाज़ों ( Historical Gates of Delhi ) के बारे में बताएंगे, वो दरवाज़े और आज भी दिल्ली के बीते हुए कल की कहानी कहते हैं –

कश्मीरी गेट | Kashmere Gate

कश्मीरी गेट दिल्ली की अटूट पहचान से जुड़ा हुआ दरवाज़ा ( Historical Gates of Delhi ) है. हालांकि, दिल्ली के जिस इलाके में ये मौजूद है, वहां मेट्रो स्टेशन कश्मीरी गेट से निकलने वाले अगर सभी लोगों से इसके बारे में पूछा जाएगा तो बेहद ही कम लोग होंगे जिन्हें असल कश्मीरी गेट के बारे में जानकारी भी होगी. कुछ ही लोग ऐसे होंगे जो इसके बारे में बता पाएंगे.

कश्मीरी गेट लाल किले या शाहजहानाबाद की सीमा पर बना एक दरवाज़ा है. लाल किला बनवाने वाले मुगल बादशाह शाहजहां ने इसका भी निर्माण करवाया था. दिल्ली से शहंशाह कश्मीर जाने के लिए इस दरवाज़े का इस्तेमाल करते थे. इसी वजह से इसका नाम कश्मीरी गेट दिया गया.

1857 की क्रांति में मेरठ से आई स्वतंत्रता सेनानियों की टुकड़ी ने यमुना नदी को पार करके सबसे पहले इसी दरवाज़े पर कब्ज़ा किया था. हालांकि, अंग्रेजों ने बाद में पूरी ताकत से इसपर हमला किया और दोबारा इसे अपने कब्जे में ले लिया. इस संघर्ष में दरवाज़े को भी खासा नुकसान पहुंचा था. इस दरवाज़े से जुड़ी और भी जानकारी आप नीचे दिए गए वीडियो में देख सकते हैं.

 

दिल्ली गेट | Delhi गेट

दरियागंज इलाके में एक व्यस्त चौराहा है. यहां एक तरफ रास्ता जाता है राजघाट और रिंग रोड की ओर. सामने बाईं ओर है फिरोजशाह कोटला स्टेडियम जिसे अब अरुण जेटली स्टेडियम के नाम से जाना जाता है. दाहिनी ओर है मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज. इसी इलाके में स्थित है दिल्ली गेट. यह भी शाहजहानाबाद शहर का प्रवेश द्वार था. आगरा का दिल्ली गेट भी मोहम्मद फरुखसियार ने हूबहू इसी के जैसा बनवाया था.

दिल्ली में एक दूसरा दिल्ली गेट भी रहा है. यह नज़फगढ़ में स्थित है. इसका निर्माण शक्तिशाली मुग़ल प्रधानमंत्री नजफ़ खान ने 1770 में करवाया था. हालांकि अब इसे वैद किशोरी लाल द्वार के नाम से जाना जाता है.

अजमेरी गेट | Ajmeri Gate

शाहजहानाबाद शहर के प्रवेश द्वारा का ये रास्ता राजस्थान के अजमेर शहर की ओर ले जाता था. यही वजह थी कि इसका नाम अजमेरी गेट रखा गया. इसके निर्माण का वर्ष साल 1644 के आसपास बताया जाता है. यह गेट एक तिराहे पर स्थित है. इसका एक रास्ता नई दिल्ली रेलवे स्टेशन लेकर जाता है और दूसरा सदर बाजार. तीसरे रास्ते से आप पहुंचते हैं चावड़ी बाजार. वैसे इसके पास ही है जीबी रोड, जो दिल्ली की एक बदनाम सड़क के रूप में जानी जाती है.

लाहौरी गेट | Lahori Gate

यह गेट लाल किला में जाने का मुख्य द्वार ( Historical Gates of Delhi ) है. शाहजहां ने इसका निर्माण साल 1639 में कराया था.  बाद में, इसी दरवाज़े पर मुग़ल शासक औरंगज़ेब ने एक प्राचीर का निर्माण कराया. इस वजह से ये और भी भव्य बन गया. यहां से रास्ता लाहौर की तरफ़ जाता था इसलिए इसका नाम लाहौरी दरवाज़ा रखा गया.

तुर्कमान गेट | Turkman Gate

इस दरवाज़े का नाम 12वीं शताब्दी में हुए सूफी संत तुर्कमान बयाबानी के नाम पर रखा गया. इसका निर्माण साल 1650 ईस्वी के आसपास बताया जाता है. यह गेट ( Historical Gates of Delhi ) दिल्ली के रामलीला मैदान के पास स्थित है. 1976 में इमरजेंसी के समय इस गेट को काफी नुकसान पहुंचा था लेकिन आज यह अच्छी स्थिति में है.

अलाई दरवाज़ा | Alai Darwaza

अलाई दरवाजा एक शानदार और भव्य प्रवेश द्वार है. इसे दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने बनवाया था. अलाई दरवाजा कुतुब मीनार परिसर में क्वाल्ट-उल-इस्लाम मस्जिद के दक्षिणी हिस्से में मौजूद है. अलाई दरवाजा को बनवाने के लिए लाल बलुआ पत्थर और सफेद संगमरमर का इस्तेमाल किया गया था. तुर्क कारीगरों द्वारा निर्मित ये दरवाज़ा भारत में बनाई गई शुरुआती इस्लामिक इमारतों में से एक है.

कलकत्ता गेट | Calcutta Gate

पुरानी दिल्ली के आंचल में छिपा एक और दरवाज़ा है कलकत्ता गेट. यह लाल किले के पीछे की तरफ स्थित है और अपने साथ दिल्ली का भी इतिहास समेटे हुए है. लेखक व इतिहासकार सोहेल हाशमी ने दैनिक जागरण को बताया कि गुलाम भारत में अंग्रेजों की राजधानी गर्मी में शिमला, जबकि सर्दी में कलकत्ता थी. वर्ष 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेज कलकत्ता स्थित हावड़ा को रेलगाड़ी के जरिये पंजाब से जोड़ने की थी.

ऐसा करके वे समंदर के रास्ते आने वाले माल को या तब के महानगर कलकत्ता के सामान को लाहौर और पेशावर तक पहुंचा सकते थे. बता दें कि रंगून के लिए रास्ता कलकत्ता से होकर ही गुजरता था और ये पूरा रास्ता बेहद महत्वपूर्ण था. रेलगाड़ी को क्योंकि मेरठ होते हुए जाना था, लेकिन अंग्रेज दिल्ली से रेलवे लाइन गुजारने के लिए तैयार नहीं थे. ऐसे में पुरानी दिल्ली के व्यापारी, बैंकर्स व कुछ अमीरों ने इकट्ठा होकर अंग्रेजों पर दिल्ली से रेलवे लाइन गुजारने के लिए दबाव डाला. व्यापारियों व अन्य लोगों ने अंग्रेज अधिकारियों को समझाया था कि दिल्ली व्यापारिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है. ऐसे में इसे रेल लाइन से जोड़ा जाना चाहिए.

इसके लिए व्यापारियों ने कई याचिकाएं भी डाली थीं, जिसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी के बोर्ड ऑफ कंट्रोल के अध्यक्ष चा‌र्ल्स वुड ने रेल लाइन को दिल्ली से गुज़ारने के लिए हामी भरी थी. इसके बाद वर्ष 1867 में 1 जनवरी की आधी रात में दिल्ली में रेल इसी गेट के ऊपर से होकर गुजरी थी और उसी समय के आसपास पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन की नींव पड़ी थी.

मोरी गेट | Mori Gate

सिखों ने 11 मार्च 1783 को दिल्ली के लाल किले पर हमला किया था. एक भेदिए ने सिख टुकड़ी को किले की कमज़ोर दीवार के बारे में बता दिया था. सिख सेना ने इसी जगह से दीवार को तोड़ा था. ये जगह आज मोरी गेट के नाम से जानी जाती है.

Mori Gate

लाल दरवाज़ा, खूनी दरवाज़ा या काबुली दरवाज़ा | Lal Darwaza or Khooni Darwaza

अफगानिस्तान और भारत का रिश्ता सिंधु सभ्यता और मौर्यकाल से है. हालांकि बाद में, खिलजी से लेकर लोदी वंश तक और मुगलकाल से लेकर अहमद शाह अब्दाली के दौर तक दिल्ली से जुड़ी कई कहानियां हैं. अक्सर अफ़गानिस्तान से रिश्तों वाली इमारतों में अफ़गानी घूमने भी आते थे. दिल्ली में भोगल और कई इलाकों में आपको अफ़गानिस्तान मूल के लोग मिलते हैं.

ऐसा ही किया था अफ़गान अमीर हबीबुल्लाह ने, जब वह 1907 में ब्रिटिश वायसराय से मिलने आए थे. वह दिल्ली में अफ़गान शासकों की इमारतें देखना चाहता था. शेरशाह सूरी ने भारत में कई ऐतिहासिक इमारतें बनाई और जीटी रोड जैसी सड़क भी दी. किला कुहना मस्जिद के अलावा उसने पुराना किला के सामने शेरशाह गेट या लाल दरवाज़ा बनवाया. यहां से शायद काबुल जाने का काफ़िला निकलता था, इसीलिए इसका नाम काबुली दरवाज़ा रखा गया. बाद में, यह लाल दरवाज़ा भी कहा जाने लगा, इसकी वजह इसके निर्माण में इस्तेमाल हुए लाल पत्थर थे और फिर खूनी दरवाज़ा.

मौलाना आजाद मेडिकल कालेज के पास ‘काबुली दरवाजा’ को ही आज ‘खूनी दरवाज़ा’ कहा जाता है. कुछ लोग मानते हैं काबुली दरवाजा यहां नहीं कहीं और था. आरवी स्मिथ अपनी किताब ‘दिल्ली: अननोन टेल्स आफ ए सिटी’ में लिखते हैं कि काबुली दरवाजा को ‘खूनी दरवाजा’ नाम इसलिए मिला क्योंकि यहीं पर लेफ्टिनेंट हडसन ने बहादुर शाह जफर के दो बेटों और एक नाती की हत्या की थी. इस दरवाजे को लेकर कई कहानी प्रचलित हैं कि कैसे दारा शिकोह के सिर को काटकर कई दिन यहां रखा गया. एक ये भी है कि कैसे जहांगीर ने रहीम खानखाना के बेटों की हत्या यहीं करवाई.

खूनी दरवाज़े का वीडियो आप यहां देख सकते हैं.

इंडिया गेट | India Gate

यह दिल्ली का सबसे आधुनिक दरवाज़ा ( Historical Gates of Delhi ) है.  इंडिया गेट का असली नाम “ऑल इंडिया वॉर मेमोरियल” है. इसे, प्रथम विश्व युद्ध और तीसरे अंग्रेज़-अफ़ग़ान युद्ध में शहीद हुए एंग्लो इंडियन आर्मी के जवानों की याद में बनवाया गया था. इसका निर्माण 1921 -33 के बीच हुआ.

26 जनवरी 1972 को, यहां अमर जवान ज्योति का निर्माण कराया गया. इसका मकसद,  बांग्लादेश मुक्ति संग्राम से जुड़ा था, जिसे 1971 युद्ध के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने निर्मित कराया था. फरवरी 2019 में यहां “नेशनल वार मेमोरियल” का निर्माण कार्य भी पूरा हुआ है.

आज इंडिया गेट दिल्ली के अहम पिकनिक स्पॉट्स के रूप में जाना जाता है.

( Historical Gates of Delhi )

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