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Delhi Baoli History and Facts : गंधक की बावली से लेकर उग्रसेन की बावली तक… ये हैं दिल्ली के ऐतिहासिक Stepwells

Delhi Baoli History and Facts : दिल्ली… एक ऐसा शहर, जहाँ हर ईंट, हर पत्थर इतिहास की कहानियां सुनाता है. यह शहर सिर्फ़ क़िलों और महलों का नहीं, बल्कि उन बावलियों का भी है, जिनकी सीढ़ियाँ समय की परतों को समेटे खड़ी हैं. कभी यहाँ पानी की हर बूंद जीवन का आधार थी—लोग इन्हीं बावलियों से प्यास बुझाते, यहाँ ठहरते, संवाद करते और जीवन की लय खोजते थे. अग्रसेन की भव्य बावली से लेकर महरौली और फिरोज़ाबाद की छुपी धरोहरों तक… ये बावलियाँ आज भी खामोशी में इतिहास की गूंज सुनाती हैं. ये हमें याद दिलाती हैं कि दिल्ली सिर्फ़ एक राजधानी नहीं, बल्कि जल-संस्कृति और स्थापत्य की जिंदा मिसाल है.

राजों की बावली, दिल्ली (Rajon Ki Baoli, Delhi)

दिल्ली की सबसे भव्य और संरक्षित बावलियों में से एक है राजों की बावली. ये Mehrauli Archaeological Park के बीचों-बीच स्थित है. राजों की बावली का निर्माण वर्ष 1506 ईस्वी में करवाया गया था. इसे उस समय के राज मिस्त्रियों ने इस्तेमाल किया, इसलिए इसका नाम पड़ा राजों की बावली. कुछ लोग इसे राजाओं की बावली समझते हैं, पर असल में इसका संबंध राजाओं से नहीं, बल्कि राजमिस्त्रियों से है.

ये बावली चार मंज़िला है, इसमें 66 सीढ़ियां हैं. सीढ़ियां नीचे उतरते ही आपको गहराई की ओर ले जाती हैं. हर स्तर पर मेहराबदार गलियारे बने हैं, जो इसकी खूबसूरती को और बढ़ाते हैं.

नीचे के तल पर पानी आज भी जमा रहता था और गर्मियों में यहाँ की ठंडी हवा से लोगों को आज भी राहत मिलती है. दीवारों में बने छोटे-छोटे खांचे दीपक जलाने के लिए बनाए गए थे. बावली के आसपास कई छोटे-छोटे कमरे भी बने हैं, जिनका इस्तेमाल साधु-संत, यात्री और स्थानीय लोग करते थे. ये जगह न सिर्फ पानी का स्रोत थी, बल्कि सामाजिक मेल-जोल और आराम करने की एक प्रमुख जगह भी रही है.

Rajon Ki Baoli Location

पता: Mehrauli Archaeological Park, New Delhi. ये क़ुतुब मीनार परिसर से लगभग 500 मीटर की दूरी पर स्थित है.

कैसे पहुँचें (How to Reach Rajon Ki Baoli)

मेट्रो से

निकटतम मेट्रो स्टेशन:

क़ुतुब मीनार मेट्रो स्टेशन (Yellow Line) – लगभग 2 किमी दूरी

साकेत मेट्रो स्टेशन (Yellow Line) – लगभग 2.5 किमी दूरी

मेट्रो से उतरने के बाद आप ई-रिक्शा/ऑटो से सीधे Mehrauli Archaeological Park पहुंच सकते हैं.

बस से

दिल्ली परिवहन निगम (DTC) की कई बसें महरौली बस स्टैंड तक आती हैं।

वहां से बावली लगभग 10-12 मिनट पैदल की दूरी पर है।

निजी वाहन से

अगर आप कार/बाइक से जाते हैं तो Qutub Minar पार्किंग में वाहन खड़ा कर सकते हैं।

वहां से बावली पैदल रास्ते से लगभग 7-8 मिनट की दूरी पर है।

समय और टिकट

समय: सूर्योदय से सूर्यास्त तक (हर दिन खुला रहता है)

प्रवेश शुल्क: निःशुल्क (ये ASI संरक्षित स्मारक है)

गंधक की बावली (Gandhak ki Baoli)

दिल्ली की सबसे पुरानी और रहस्यमयी बावलियों में से एक है गंधक की बावली। कहते हैं यहाँ का पानी कभी औषधीय गुणों से भरपूर था। आज हम आपको ले चलते हैं महरौली आर्कियोलॉजिकल पार्क की इस ऐतिहासिक धरोहर की ओर.

इस बावली का निर्माण गुलाम वंश के शासक शम्सुद्दीन इल्तुतमिश ने 13वीं शताब्दी की शुरुआत में करवाया था. नाम पड़ा – गंधक की बावली… क्योंकि यहाँ के पानी से सल्फर यानी गंधक की तेज़ गंध आती थी. माना जाता था कि ये पानी त्वचा रोग और कई बीमारियाँ ठीक कर देता था.

ये चार मंज़िला गहरी बावली है, आयताकार आकार में बनी और चौड़ी सीढ़ियों से नीचे उतरने वाली. कभी यहाँ का पानी स्थानीय लोगों और यात्रियों के लिए जीवन रेखा था। अब पानी बहुत कम बचा है, लेकिन इसकी गहराई और स्थापत्य आज भी इसे अद्भुत बनाते हैं.

महत्व और आसपास का ज़िक्र:

गंधक की बावली और राजों की बावली महरौली आर्कियोलॉजिकल पार्क का हिस्सा है। पास ही आपको राजों की बावली, जमाली कमाली मस्जिद, और बलबन का मक़बरा जैसे कई ऐतिहासिक स्थल भी देखने को मिलेंगे.

लोकेशन और पहुँचने का तरीका:

अगर आप यहाँ आना चाहते हैं, तो निकटतम मेट्रो स्टेशन है कुतुब मीनार मेट्रो स्टेशन. वहाँ से ऑटो या रिक्शा लेकर आप सीधे महरौली आर्कियोलॉजिकल पार्क पहुँच सकते हैं. बस से भी आप महरौली या कुतुब मीनार स्टॉप तक आ सकते हैं और अगर निजी वाहन से आ रहे हैं, तो पार्किंग की सुविधा कुतुब मीनार के पास मिल जाएगी.

समय और टिकट:

यहाँ प्रवेश पूरी तरह निशुल्क है और आप सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक यहाँ घूम सकते हैं.

गंधक की बावली सिर्फ़ पानी का स्रोत नहीं थी, यह दिल्ली की प्राचीन जीवनशैली और विज्ञान का प्रतीक भी है. अगर आप राजों की बावली देखने आएं, तो इस बावली को ज़रूर देखना न भूलें… क्योंकि यह दोनों जगहें मिलकर आपको 800 साल पुराने इतिहास की झलक दिखाती हैं.

गंधक की बावली – कैसे पहुँचे

नज़दीकी मेट्रो स्टेशन:
क़ुतुब मीनार मेट्रो स्टेशन (येलो लाइन) – यह सबसे नज़दीकी स्टेशन है।

स्टेशन से निकलकर आप ऑटो, ई-रिक्शा या कैब ले सकते हैं।

दूरी लगभग 1.5 – 2 किलोमीटर है, यानी 8-10 मिनट में पहुँच जाएंगे।

बस मार्ग (DTC Buses):
क़ुतुब मीनार या महरौली बस स्टॉप तक कई बसें आती हैं।

कश्मीरी गेट, सराय काले खाँ, आईटीओ और गुरुग्राम की तरफ़ से सीधी बसें उपलब्ध हैं।

कार / निजी वाहन से:
गूगल मैप में “Gandhak Ki Baoli, Mehrauli Archaeological Park” सर्च करें।
आप क़ुतुब मीनार पार्किंग पर गाड़ी खड़ी कर सकते हैं, वहाँ से पैदल या रिक्शा लेकर बावली तक पहुँच सकते हैं।

पैदल यात्रा (अगर पास हों):
अगर आप राजों की बावली या जमाली कमाली मस्जिद देख रहे हैं, तो वहीं से पैदल चलकर 10-12 मिनट में गंधक की बावली पहुँच सकते हैं।

समय: सुबह 6 बजे से शाम 6 बजे तक
टिकट: कोई शुल्क नहीं (Free Entry)

निजामुद्दीन बावली (Nizamuddin Baoli)

दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में स्थित है हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की दरगाह और इसी दरगाह के पास है एक ऐसी बावली, जो सिर्फ़ पानी का ज़रिया नहीं, बल्कि इतिहास, आस्था और विवाद की गवाही भी देती है – ये है निज़ामुद्दीन बावली.

इतिहास

इस बावली का निर्माण 14वीं शताब्दी में हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के आदेश पर किया गया था। ये जगह उस समय सूफी दरगाह का हिस्सा बनी और स्थानीय लोगों को पानी उपलब्ध कराने के लिए इसे खोदा गया.

बावली का पानी आज भी साफ़ और मीठा माना जाता है, और दरगाह आने वाले लोग इसे पवित्र जल समझकर पीते हैं या अपने साथ ले जाते हैं.

ये बावली आज भी पानी से लबालब भरी रहती है. पत्थर से बनी चौकोर संरचना और उसके चारों ओर की गैलरी इस बात का प्रमाण है कि इसे धार्मिक और सामुदायिक दोनों उद्देश्यों से बनाया गया था.

विवाद की कहानी

निज़ामुद्दीन बावली का जिक्र करते समय एक दिलचस्प और ऐतिहासिक विवाद सामने आता है. उस दौर में दिल्ली पर ग़यासुद्दीन तुग़लक़ का शासन था, और वो तुग़लक़ाबाद क़िला बनवा रहे थे. उन्होंने सख़्त आदेश दिया था कि कोई भी मज़दूर या कारीगर किले के काम से हटकर किसी और निर्माण में हिस्सा नहीं ले सकता. लेकिन निज़ामुद्दीन औलिया के लिए काम करने वाले लोग दिन में राजा के क़िले और रात में औलिया की बावली बनाने आते थे.

इससे नाराज़ होकर ग़यासुद्दीन तुग़लक़ ने औलिया से टकराव लिया. कहा जाता है कि इसी विवाद के दौरान औलिया ने यह मशहूर जुमला कहा था – हुज़ूर, दिल्ली अभी दूर है.

और इतिहास गवाह है, ग़यासुद्दीन तुग़लक़ बंगाल से लौटते समय रास्ते में ही मारे गए और कभी दिल्ली वापस नहीं आ पाए.

लोकेशन और कैसे पहुँचें

निज़ामुद्दीन बावली, दिल्ली के हज़रत निज़ामुद्दीन दरगाह परिसर में स्थित है।

निकटतम मेट्रो स्टेशन:
हज़रत निज़ामुद्दीन मेट्रो (पिंक लाइन) – लगभग 2 किमी दूर।
जंगपुरा मेट्रो (वायलेट लाइन) – लगभग 1.5 किमी दूरी पर।

यहाँ से ऑटो या ई-रिक्शा लेकर आसानी से दरगाह तक पहुँच सकते हैं।

रेलवे कनेक्टिविटी:

निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन बावली से सिर्फ़ 1 किमी दूर है।

निजी वाहन:

गूगल मैप में “Hazrat Nizamuddin Baoli” डालें। दरगाह के पास पार्किंग सीमित है, बेहतर होगा आस-पास के पब्लिक पार्किंग का इस्तेमाल करें।”

समय और टिकट

समय: सुबह से रात तक (दरगाह के खुलने के समय तक)

टिकट: प्रवेश निशुल्क

निज़ामुद्दीन बावली सिर्फ़ पानी का स्रोत नहीं, बल्कि दिल्ली के उस दौर की याद है जब सत्ता और सूफ़ी संत आमने-सामने खड़े थे.

उग्रसेन बावली (Agrasen Baoli)

अब हम दिल्ली की सबसे प्रसिद्ध और रहस्यमयी बावलियों में से एक उग्रसेन की बावली बात करते हैं, जिसे Agrasen ki Baoli भी कहा जाता है. दिल्ली की भीड़-भाड़ भरी गलियों और कनॉट प्लेस की चहल-पहल के बीच अचानक एक रहस्यमयी खामोशी आपको अपनी ओर खींच लेती है. ये जगह है उग्रसेन की बावली, जिसे लोग सिर्फ़ इतिहास से ही नहीं, बल्कि अंधविश्वास और रहस्यों से भी जोड़ते हैं. उग्रसेन की बावली का नाम एक प्राचीन महाभारतकालीन राजा उग्रसेन से जोड़ा जाता है.

कहा जाता है कि इसकी नींव उन्हीं के समय रखी गई थी और बाद में 14वीं शताब्दी में तुग़लक़ या लोधी वंश ने इसे दोबारा बनवाया. ये बावली पानी के संरक्षण के लिए बनाई गई थी, लेकिन समय के साथ यह सिर्फ़ एक जलस्रोत न रहकर दिल्ली की पहचान बन गई.

यह बावली करीब 60 मीटर लंबी और 15 मीटर चौड़ी है. तीन मंज़िला संरचना वाली इस बावली तक पहुंचने के लिए आपको करीब 108 सीढ़ियाँ उतरनी पड़ती हैं.

दीवारों और मेहराबों पर बनी खूबसूरत कारीगरी, और नीचे जाते-जाते बढ़ती खामोशी इसे और भी रहस्यमयी बना देती है.

रहस्य और मान्यताए

स्थानीय लोगों का मानना है कि पहले इस बावली में काला पानी भरा रहता था, जो लोगों को अपनी ओर खींचता और उन्हें आत्महत्या करने पर मजबूर कर देता.
इसी वजह से इसे हॉन्टेड प्लेसेज़ ऑफ़ दिल्ली में गिना जाता है.
हालाँकि अब बावली एएसआई (Archaeological Survey of India) द्वारा संरक्षित स्मारक है, लेकिन इसकी रहस्यमयी खामोशी अब भी रूह कंपा देती है.

पॉप कल्चर कनेक्शन

उग्रसेन की बावली को बॉलीवुड फिल्मों और वेब सीरीज़ में भी दिखाया गया है.
पीके फिल्म में आमिर ख़ान का किरदार इसी बावली की सीढ़ियों पर दिखाई देता है.
आजकल ये जगह यूट्यूबर्स और इंस्टाग्रामर्स की शूटिंग लोकेशन भी बन चुकी है.

लोकेशन और कैसे पहुँचें

उग्रसेन की बावली दिल्ली के हैली रोड, कनॉट प्लेस पर स्थित है.

निकटतम मेट्रो स्टेशन:
बाराखंभा मेट्रो – करीब 900 मीटर

रेलवे स्टेशन:
नई दिल्ली रेलवे स्टेशन – लगभग 2 किमी दूर

निजी वाहन:
गूगल मैप में “Agrasen ki Baoli” डालें। कनॉट प्लेस में पार्किंग की सुविधा उपलब्ध है.

समय और टिकट

समय: सुबह 9 बजे से शाम 5:30 बजे तक
प्रवेश शुल्क: निःशुल्क.

उग्रसेन की बावली सिर्फ़ सीढ़ियों और पत्थरों का ढांचा नहीं है। ये दिल्ली की उस विरासत का हिस्सा है, जो हमें बताती है कि पानी हमारे लिए कितना जरूरी है.

पुराना किला बावली (Purana Qila Baoli)

दिल्ली का पुराना किला अपने आप में इतिहास की किताब है. इसके भीतर है एक अनोखा जलस्रोत यानि बावली, जो कभी इस किले या यूं कहें कि इस शहर की जीवनरेखा हुआ करती थी. इस बावली का निर्माण मुग़ल सम्राट हुमायूँ ने 16वीं शताब्दी में पुराना किला बनवाते समय कराया था. हालांकि कुछ इतिहासकार इसे शेर शाह सूरी के काल से जोड़कर देखते हैं. इसका उद्देश्य था – किले के निवासियों और सैनिकों को पर्याप्त पानी उपलब्ध कराना.

पुराना किला खुद उस जगह पर बना है, जिसे महाभारतकालीन इंद्रप्रस्थ कहा जाता है। यानी इस बावली के आसपास इतिहास हज़ारों साल पीछे तक जाता है.

स्थापत्य

ये बावली किले की दीवारों के बीच छुपी हुई है. सीढ़ीनुमा संरचना वाली ये बावली गहराई तक जाती है और बारिश के पानी को संग्रहित करके साल भर इस्तेमाल के लायक बनाती थी. इसकी दीवारों में लगे लाल बलुआ पत्थर और मेहराबें आज भी हमें उस दौर की इंजीनियरिंग और वास्तुकला की झलक दिखाती हैं.

महत्व

किले जैसे बड़े परिसर में पानी की व्यवस्था सबसे बड़ी चुनौती होती थी. यही वजह थी कि इस बावली ने सैनिकों, शाही परिवार और यहाँ तक कि आसपास के बाशिंदों की प्यास बुझाने में अहम भूमिका निभाई.

आज ये बावली भले ही सूखी नज़र आती हो, लेकिन कभी यह किले का सबसे ज़रूरी हिस्सा हुआ करती थी.

लोकेशन और कैसे पहुँचें

पुराना किला बावली, पुराना किला (Old Fort), सुप्रीम कोर्ट के पास, दिल्ली में स्थित है।

निकटतम मेट्रो स्टेशन:

सुप्रीम कोर्ट (ब्लू लाइन)– लगभग 1.5 किमी दूर

इंडिया गेट और हुमायूँ का मक़बरा भी नज़दीक हैं, तो आप इन जगहों को साथ में देख सकते हैं.

निजी वाहन:
गूगल मैप में Purana Qila डालकर आसानी से लोकेशन पा सकते हैं. पार्किंग सुविधा किले परिसर के बाहर उपलब्ध है.

समय और टिकट

समय: सुबह 7 बजे से शाम 5 बजे तक
प्रवेश शुल्क (ASI द्वारा निर्धारित):
भारतीय नागरिकों के लिए – ₹20
विदेशी पर्यटकों के लिए – ₹300

पुराना किला बावली सिर्फ़ पानी का स्रोत नहीं थी, बल्कि यह दिल्ली के उस दौर की जीवनशैली, ज़रूरत और बुद्धिमत्ता की गवाही देती है. अगर आप पुराना किला घूमने आएँ, तो इस बावली की ओर भी ज़रूर ध्यान दीजिए – क्योंकि कभी यहीं से इस किले की धड़कनें चलती थीं.

फिरोजशाह कोटला बावली (Ferozeshah Kotla Baoli)

दिल्ली की धरती पर मौजूद है एक ऐसा किला, जहां आज भी इतिहास की परछाइयाँ जिंदा हैं… और इसी किले की दीवारों के बीच छुपी है एक रहस्यमयी बावली –फिरोज़शाह कोटला बावली.

इतिहास और निर्माण

ये बावली दिल्ली के सुल्तान फिरोज़ शाह तुगलक ने बनवाई थी. तुगलक शासक अपनी जल-प्रबंधन प्रणाली और स्थापत्य कला के लिए प्रसिद्ध था. ये बावली मुख्य रूप से किले के निवासियों और सैनिकों को पानी उपलब्ध कराने के लिए बनाई गई थी. बावली की वास्तुकला में आप मजबूत पत्थरों, गहरे कुएं जैसे ढांचे और सीढ़ीनुमा संरचना को देख सकते हैं.

खास बातें और मान्यताएँ

ये बावली आज साधारण जनता के लिए बंद है, क्योंकि यहां कई हादसे हो चुके हैं.

लोकेशन

फिरोज़शाह कोटला किला – बहादुरशाह ज़फर मार्ग (BSZ Marg), नई दिल्ली
प्रमुख पहचान: अरुण जेटली स्टेडियम (पुराना फ़िरोज़शाह कोटला ग्राउंड, क्रिकेट स्टेडियम) के पास

कैसे पहुँचे (How to Reach)

Nearest Metro Station:

ITO Metro Station (Violet Line) – लगभग 650 मीटर (10 मिनट पैदल)

Nearest Bus Stop:

Express Building

By Car/Auto: सीधे BSZ Marg से किले तक पहुँचा जा सकता है, पार्किंग स्टेडियम और आसपास उपलब्ध है।

टाइमिंग और टिकट

किला और बावली सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक (ASI के अंतर्गत) खुला रहता है.

टिकट:

भारतीय नागरिक – ₹25/-
विदेशी नागरिक – ₹300/-
बच्चों (15 वर्ष तक) – फ्री

बावली का आंतरिक हिस्सा फिलहाल सार्वजनिक रूप से बंद है, लेकिन बाहर से और किले की दीवारों से झलक देखी जा सकती है.

फिरोज़शाह कोटला की बावली सिर्फ पानी का स्रोत नहीं, बल्कि इतिहास की एक जिंदा गवाही है… अगर आप दिल्ली घूमने आते हैं, तो इस जगह को मिस मत कीजिएगा.

द्वारका बावली (Dwarka Baoli)

आज हम आपको लेकर चलते हैं दिल्ली के उस कोने में, जहाँ आधुनिक इमारतों और चौड़ी सड़कों के बीच एक प्राचीन धरोहर अब भी खड़ी है—द्वारका बावली।

ये बावली, जो 16वीं शताब्दी में बनी मानी जाती है, पानी संग्रहण की उस परंपरा का हिस्सा है जिसने सदियों तक गाँवों की प्यास बुझाई।
दिलचस्प बात यह है कि इस बावली का जुड़ाव आसपास के गाँवों से रहा है—पालम, पोचाणपुर और लोहारहेड़ी.

लोहारहेड़ी गाँव, जो आज भी द्वारका सेक्टर 10 और 12 के बीच बसा है, कहा जाता है कि यहां लोहार रहा करते थे. ये कभी यहाँ के किसानों और लोहारों की मेहनत का केंद्र था। यहाँ के लोग खेती-बाड़ी और पशुपालन करते थे, और उनकी जीवनरेखा थी यही बावली।

सोचिए, जब नहरें और पाइपलाइनें नहीं थीं, तब इस बावली से ही पालम, पोचाणपुर और लोहारहेड़ी के लोग पानी भरते थे। यही बावली उनकी ज़िंदगी का आधार थी।

आज भले ही इस इलाके में ऊँची-ऊँची इमारतें, फ्लाईओवर और मेट्रो की आवाजाही हो, लेकिन यह बावली हमें बताती है कि कभी यहाँ की असली पहचान गाँव थे और उन गाँवों का दिल था—यह पानी का स्रोत।

अगर आप द्वारका बावली देखना चाहते हैं, तो यहाँ पहुँचना भी आसान है।

कैसे पहुँचें?

नज़दीकी मेट्रो स्टेशन है Dwarka Sector 12 Metro Station (Blue Line)।

मेट्रो से उतरकर आप ऑटो या रिक्शे से आसानी से यहाँ पहुँच सकते हैं।

बावली आज भी द्वारका सेक्टर-12 की एक गली में छुपी हुई मिल जाएगी, जैसे मानो भीड़भाड़ वाले शहर के बीच अतीत की कोई खामोश कहानी।

तो अगली बार जब आप द्वारका आएँ, तो सिर्फ मॉल और मार्केट ही नहीं, इस बावली को भी ज़रूर देखें। क्योंकि यही वह जगह है जहाँ से हमें पता चलता है कि गाँवों की संस्कृति और पानी की परंपरा कैसे दिल्ली को ज़िंदा रखती आई है।”*

लाल किला बावली (Red Fort Baoli)

लाल क़िले (Red Fort) के अंदर भी एक शानदार बावली (Baoli) मौजूद है, जिसे अक्सर लोग घूमते समय नज़रअंदाज़ कर देते हैं। आइए विस्तार से जानते हैं :

इस बावली को फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ ने बनवाया था. ये बावली, लाल क़िला बनने से क़रीब 300 साल पहले की है। जब शाहजहाँ ने 17वीं शताब्दी में लाल क़िला बनाया, तब इस बावली को भी उसकी सीमाओं में शामिल कर लिया गया. यानी ये दिल्ली की उन बावलियों में से है जो लाल क़िले से भी पुरानी हैं.

संरचना

यह बावली आठ कोणों यानि octagonal शेप में बनी हुई है, और दिल्ली की सबसे गहरी बावलियों में से एक है. इसमें नीचे तक जाने के लिए चौड़ी सीढ़ियाँ बनी हैं.
इसके चारों तरफ कमरे भी बनाए गए थे, जिन्हें शायद कभी सैनिकों या मजदूरों ने इस्तेमाल किया होगा।

खास बातें

अंग्रेज़ों के दौर में इस बावली का इस्तेमाल कैदियों की कोठरी के रूप में किया गया. 1857 की क्रांति के बाद, बहुत से स्वतंत्रता सेनानियों को लाल क़िले की इसी बावली में कैद किया गया और बाद में वहीं मार दिया गया. इसलिए यह बावली सिर्फ पानी की धरोहर नहीं है, बल्कि हमारे स्वतंत्रता संग्राम की गवाही भी देती है.

लोकेशन

यह बावली लाल क़िले (Red Fort) के अंदर नेताजी सुभाष पार्क (दरियागंज) की ओर वाले हिस्से में स्थित है.

कैसे पहुँचें?

नज़दीकी मेट्रो स्टेशन : लाल क़िला मेट्रो स्टेशन (Violet Line)।

वहां से पैदल ही आप लाल क़िले के गेट तक पहुँच सकते हैं।

हिंदू राव हॉस्पिटल बावली (Hindu Rao Hospital Baoli)

दिल्ली की बावलियों की कड़ी में अब बात करते हैं हिंदू राव हॉस्पिटल बावली (Hindu Rao Hospital Baoli) की। ये दिल्ली की उन बावलियों में से है, जिन्हें कम लोग जानते हैं लेकिन इनका इतिहास और वास्तुकला बहुत गहरी कहानियाँ समेटे हुए है.

ये बावली 14वीं शताब्दी की है और इसे दिल्ली के सुल्तान फ़िरोज़ शाह तुग़लक़ ने बनवाया था. इसके ठीक पास फ़िरोज़ शाह का बनाया शिकारगाह (Hunting Lodge) और वेधशाला (Pir Ghaib / Observatory) भी है. उस समय यह बावली आसपास के किलेबंदी, बागों और बस्तियों को पानी उपलब्ध कराने के लिए बनाई गई थी.

संरचना

यह बावली काफ़ी बड़ी और गहरी है. इसमें नीचे तक जाने के लिए चौड़ी सीढ़ियाँ हैं और चारों ओर मज़बूत पत्थरों की दीवारें हैं. पानी को ज़्यादा समय तक सुरक्षित रखने के लिए बावली के आस-पास की मिट्टी और पत्थर इस तरह चुने गए थे कि रिसाव न हो.

विशेषता

यह बावली सिर्फ़ पानी का स्रोत नहीं थी, बल्कि आसपास रहने वाले लोगों के लिए सामाजिक स्थल की तरह भी इस्तेमाल होती थी।
नज़दीकी Pir Ghaib वेधशाला और शिकारी महल के कारण यह बावली हमेशा सक्रिय रहती थी.
अंग्रेज़ों के समय के बाद से यह बावली धीरे-धीरे उपेक्षित होती चली गई।

लोकेशन

ये बावली दिल्ली के Civil Lines) क्षेत्र में हिंदू राव हॉस्पिटल के बिलकुल पीछे स्थित है.
पास में ही Pir Ghaib का स्मारक और Flagstaff Tower (1857 Revolt की गवाही देने वाला स्थान) भी मौजूद है.

कैसे पहुँचे?
नज़दीकी मेट्रो स्टेशन

सिविल लाइन्स मेट्रो स्टेशन (Yellow Line)
वहाँ से आप ऑटो या ई-रिक्शा लेकर आसानी से हिंदू राव हॉस्पिटल पहुँच सकते हैं.
हॉस्पिटल के पीछे की ओर बढ़ने पर यह बावली दिखाई देती है.

आज की स्थिति

आज यह बावली ASI (Archaeological Survey of India) के संरक्षण में है.
हालांकि यहां तक पहुंचने के लिए आपको थोड़ी खोजबीन करनी पड़ेगी क्योंकि यह ज़्यादा चर्चित स्मारक नहीं है।
इतिहास प्रेमियों और एक्सप्लोरर्स के लिए यह एक छिपा हुआ ख़ज़ाना है।

अरब की सराय (Arab Ki Sarai Baoli)

तो चलिए अब जानते हैं अरब की सराय बावली (Arab Ki Sarai Baoli) के बारे में विस्तार से –

निर्माण काल : 1560 का दशक
* इसे हमीदा बानो बेगम (हुमायूँ की प्रमुख पत्नी और बाद में अकबर की माता) ने बनवाया था।
* मकसद था – उन लगभग 300 अरब कारीगरों और विद्वानों को ठहराने के लिए सुविधाएँ देना, जिन्हें वह मक्का से अपने साथ दिल्ली लाई थीं।
* इस सराय में उनके रहने की व्यवस्था थी और बावली पानी की ज़रूरत पूरी करने के लिए बनाई गई थी।

संरचना

* यह बावली L आकार की है, जो दिल्ली की अन्य बावलियों से इसे अलग बनाती है।
* इसमें दो अलग दिशाओं से सीढ़ियाँ उतरती हैं और नीचे पानी का भंडारण होता है।
* इसके आसपास कभी सराय (गेस्ट हाउस) के कमरे और चौक-चौबारे हुआ करते थे, जिनका कुछ हिस्सा आज भी दिखाई देता है।

लोकेशन

यह बावली हुमायूँ का मकबरा परिसर, निजामुद्दीन, दिल्ली में स्थित है.
अरब की सराय गेट से होकर आप सीधे इस बावली तक पहुँच सकते हैं.

कैसे पहुँचे

निकटतम मेट्रो स्टेशन:

जोर बाग (Yellow Line) या हज़रत निजामुद्दीन (Pink Line / रेलवे स्टेशन पास)
मेट्रो से उतरने के बाद आप ऑटो/ई-रिक्शा से सीधे हुमायूं के मकबरे के प्रवेश द्वार तक पहुंच सकते हैं.
टिकट लेकर अंदर प्रवेश करने के बाद अरब की सराय वाले हिस्से की ओर बढ़ें, वहीं यह बावली स्थित है

आज की स्थिति

ये बावली अब पर्यटकों के लिए आकर्षण का बड़ा हिस्सा बन चुकी है.
हुमायूं के मकबरे, Bu Halima’s Tomb, ईसा ख़ाँ का मकबरा, नीला गुंबद आदि के साथ यह एक शानदार मुग़ल वास्तुकला का अनुभव देती है. यहां का वातावरण शांति और इतिहास से भरा हुआ है.

कुतुब साहब की बावली (Qutub Sahib Ki Baoli)

यह बावली 12वीं शताब्दी ईस्वी में सुल्तान इल्तुतमिश द्वारा बनवाई गई थी. इसे सूफ़ी संत हज़रत क़ुतुबुद्दीन बख्तियार काकी (Qutubuddin Bakhtiyar Kaki) के लिए बनाया गया था. हज़रत क़ुतुब साहब ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (अजमेर वाले) के प्रमुख शिष्य और आध्यात्मिक उत्तराधिकारी थे. इस बावली का नाम भी इन्हीं की याद में पड़ा. यह बावली सदियों से दरगाह आने वाले श्रद्धालुओं और स्थानीय लोगों के लिए पानी का प्रमुख स्रोत रही है.

संरचना और बनावट

* यह बावली लगभग 377 वर्ग मीटर क्षेत्रफल में फैली हुई है और लगभग 23 मीटर गहरी है.
* निर्माण में क्वार्टज़ाइट पत्थर और चूने का गारा (lime mortar) प्रयोग हुआ है.
* इसका प्रवेश मार्ग दरगाह के वुज़ू क्षेत्र से होकर जाता है.
* ऊपर की ओर एक खुला छज्जा (terrace) है, जहाँ कुछ कब्रें बनी हुई हैं.
* वहीं से सीढ़ियां नीचे उतरती हैं और बावली तक पहुंचाती हैं.

धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

* यह बावली क़ुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह परिसर का हिस्सा है।
* दरगाह परिसर में और भी कई संरचनाएँ हैं –

* असेंबली हॉल (सभा भवन)
* चिल्ला खाना (robe chamber)
* मस्जिद
* नगाड़ा घर (drum house)
* पानी के छोटे तालाब (tanks)
* भव्य प्रवेश द्वार
* यह परिसर मेहरौली गांव की ऐतिहासिक और आध्यात्मिक पहचान है.

लोकेशन

स्थान: क़ुतुबुद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह, मेहरौली गाँव, दिल्ली

निकटतम प्रमुख स्थल:

* आदम ख़ाँ का मक़बरा (लगभग 1.2 किमी दूर)
* गंधक की बावली (नज़दीक ही)

कैसे पहुँचे:

* मेहरौली बस स्टैंड से यह दरगाह कुछ ही दूरी पर है.
* मेट्रो से आने पर क़ुतुब मीनार स्टेशन (Yellow Line) सबसे पास है, वहाँ से ई-रिक्शा/ऑटो द्वारा पहुँचा जा सकता है.

इस बावली और पूरे परिसर का संरक्षण व पुनरुद्धार भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा समय-समय पर किया जाता रहा है.
दरगाह की धार्मिक महत्ता के कारण यहाँ लगातार श्रद्धालुओं की आवाजाही बनी रहती है, जिसके चलते बावली के पुनरुद्धार का महत्व और बढ़ जाता है.

बावली अभी भी दरगाह परिसर में सुरक्षित मौजूद है.
श्रद्धालु और पर्यटक दरगाह पर आते समय इसे देख सकते हैं.
यहाँ का वातावरण गहरी आध्यात्मिकता, सूफ़ी परंपरा और दिल्ली के शुरुआती सुल्तानी दौर की झलक देता हैय

तुगलकाबाद किला बावली (Tughlaqabad Fort Baoli)

* यह बावली 14वीं शताब्दी में ग़ियासुद्दीन तुगलक (1321–1325 ई.) के समय तुगलकाबाद किले के भीतर बनाई गई थी.
* इस बावली का उद्देश्य था किले और उसके निवासियों के लिए मुख्य पेयजल स्रोत बनना.
* लेकिन, ऐतिहासिक तथ्य बताते हैं कि तुगलकाबाद किला कभी पूरी तरह से आबाद नहीं हो पाया.
* किले का निर्माण लगभग 15 साल बाद ही छोड़ दिया गया, इसलिए यह बावली भी अपने असली उद्देश्य के लिए इस्तेमाल नहीं हो सकी.

संरचना और बनावट

बावली किले के अंदर, मुख्य द्वार से बाएँ मुड़ने पर स्थित है।
यह एक बड़ा जलाशय (reservoir) है, जिसे किले के पत्थरों और चूने के गारे से बनाया गया था.
बावली गहरे और चौड़े कुंड जैसी है, जिसे वर्षा का पानी और आसपास की जलधाराओं से भरने के लिए डिज़ाइन किया गया था
इसमें सीढ़ीनुमा ढांचा है, ताकि लोग अलग-अलग स्तरों से पानी निकाल सकें.

तुगलकाबाद किला और बावली का संबंध

ग़ियासुद्दीन तुगलक ने इस किले को दिल्ली को एक अभेद्य दुर्ग बनाने की महत्वाकांक्षा से बनवाया था.
किले के साथ-साथ बावली का निर्माण यह सुनिश्चित करने के लिए हुआ कि लंबे समय तक घेरे (siege) के दौरान भी पानी की कमी न हो.
लेकिन, किले की अधूरी स्थिति और उसके abandonment के कारण बावली का इस्तेमाल बहुत कम समय के लिए हुआ.

स्थान

तुगलकाबाद किला, तुगलकाबाद, दक्षिण दिल्ली

कैसे पहुँचे:

नज़दीकी मेट्रो स्टेशन – तुगलकाबाद मेट्रो स्टेशन (Violet Line)
वहाँ से ऑटो या रिक्शा द्वारा किले तक पहुँचा जा सकता है.

वर्तमान स्थिति

* आज यह बावली किले के खंडहरों के बीच मौजूद है।
* पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) के संरक्षण में होने के बावजूद यहाँ पानी प्रायः नहीं रहता।
* बावली अब मुख्यतः एक **ऐतिहासिक संरचना** के रूप में ही देखी जाती है।
* किले का वीरान माहौल और बावली का शांत रूप, पर्यटकों को दिल्ली के मध्यकालीन इतिहास की याद दिलाता है।

वज़ीरपुर मॉन्युमेंट कॉम्प्लेक्स बावली (Wazirpur Monument Complex Baoli)

इतिहास और पृष्ठभूमि

यह बावली दक्षिण दिल्ली के वज़ीरपुर मॉन्युमेंट कॉम्प्लेक्स में स्थित है, जो मुनिरका मेट्रो स्टेशन (आर.के. पुरम के पास) से नज़दीक है। इस परिसर का प्रमुख आकर्षण पाँच लोदीकालीन गुम्बद (1451–1526 ई.) हैं, जिनके चारों ओर यह बावली मौजूद है। बावली का निर्माण भी लोदी काल (15वीं–16वीं शताब्दी) का माना जाता है। हालांकि इसके निर्माणकर्ता या संरक्षक के बारे में कोई ठोस ऐतिहासिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं।

संरचना और बनावट

यह एक दो मंज़िला संरचना है। इसके एक हिस्से में गहरा कुआँ मौजूद है। सीढ़ियों और खुले ढाँचे से पानी तक पहुँचने की व्यवस्था थी। आज भी यदि भीतर झाँका जाए तो कुएँ की गहराई में पानी दिखाई देता है।

महत्व

यह बावली लोदीकालीन स्थापत्य और उस समय की जल-प्रबंधन प्रणाली का उदाहरण है। लोदी शासकों के दौर में पानी के संरक्षण और सामुदायिक उपयोग हेतु बावलियाँ अत्यंत महत्वपूर्ण थीं। वज़ीरपुर परिसर की यह बावली वहाँ स्थित पाँचों गुम्बदों के साथ मिलकर एक ऐतिहासिक समूह का निर्माण करती है।

स्थान और पहुँच

स्थान – वज़ीरपुर मॉन्युमेंट कॉम्प्लेक्स, आर.के. पुरम, मुनिरका मेट्रो स्टेशन के पास, नई दिल्ली।
कैसे पहुँचे – मेट्रो द्वारा मुनिरका (मैजेंटा लाइन) स्टेशन से पैदल या ऑटो द्वारा पहुँचा जा सकता है।

वर्तमान स्थिति

यह स्थल आम पर्यटकों के बीच बहुत प्रसिद्ध नहीं है, इसलिए यहाँ शांति रहती है। बावली संरचनात्मक रूप से अब भी सुरक्षित है और कुएँ में पानी दिखाई देता है, हालांकि पर्यटकों का ध्यान अधिकतर गुम्बदों पर केंद्रित रहता है। यह परिसर पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) के संरक्षण में है।

बेगमपुर बावली (Begumpur Baoli)

इतिहास और निर्माण

बेगमपुर बावली, मालवीय नगर (दक्षिण दिल्ली) स्थित बेगमपुर मस्जिद के पास है। इसका निर्माण 14वीं शताब्दी में तुगलक काल (संभवतः फिरोज़ शाह तुगलक, 1351–1388 ई.) के समय हुआ। इसका मुख्य उद्देश्य बेगमपुर मस्जिद और आसपास की बस्ती को पानी उपलब्ध कराना था।

स्थापत्य विशेषताएँ

यह चौकोर आकार की बावली है जिसमें सीढ़ियों द्वारा नीचे तक उतरने की व्यवस्था थी। इसे क्वार्ट्जाइट पत्थरों और चूने के मसाले से बनाया गया था। इसके द्वारा वर्षा जल का संरक्षण कर लंबे समय तक उपयोग संभव था। यह आसपास की मस्जिद और संरचनाओं के साथ मिलकर एक जल-प्रबंधन प्रणाली का हिस्सा रही।

स्थान

यह बावली बेगमपुर मस्जिद परिसर के समीप स्थित है। वर्तमान में यह मालवीय नगर के भीड़-भाड़ वाले क्षेत्र में है।
निकटतम मेट्रो स्टेशन – हौज़ खास / मालवीय नगर।

वर्तमान स्थिति

आज बावली खंडहर रूप में है और इसमें पानी नहीं है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने इसे संरक्षण में लिया है। स्थानीय लोगों और पर्यटकों के बीच यह कम जानी-पहचानी जगह है, जिसके कारण यहाँ अपेक्षाकृत शांति रहती है।

महत्व

बेगमपुर बावली इस बात का प्रमाण है कि मध्यकालीन दिल्ली में हर मस्जिद, सराय और बस्ती के लिए बावली अनिवार्य हुआ करती थी। बेगमपुर मस्जिद और बावली मिलकर तुगलककालीन शहरी योजना और स्थापत्य का उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करती हैं।

आज ये बावलियाँ खामोश खड़ी हैं… कुछ टूटी हुई, कुछ भुला दी गईं। पर हर सीढ़ी, हर पत्थर अब भी बीते दौर की दास्तान कहता है. ये हमें याद दिलाती हैं कि पानी सिर्फ़ ज़रूरत नहीं, संस्कृति है… सभ्यता है… जीवन है. दिल्ली की बावलियां, मिट्टी और पानी से जुड़ा वो अध्याय हैं, जो हमें अतीत से जोड़ते हैं और भविष्य के लिए चेतावनी भी देते हैं. क्योंकि जहाँ पानी है… वहीं जीवन है.

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