Haveli in delhi, seth chunnamal ki haveli, Haveli in Chandni Chowk, Old Dehi Architecture, Old Delhi History, Old Delhi Photos
Chunnamal Haveli: लाल किला (Red Fort) , जिसे हमने आपने सुना खूब है, कईयों ने देखा भी होगा. कभी भीतर जाकर तो कभी पंद्रह अगस्त के दिन प्रधानमंत्री को वहीं से भाषण देते हुए. अब इसी लाल किले के सामने जो चांदनी चौक है न उसी की भीड़ भाड़, ट्रैफिक, चिल्ल पौं करते हॉर्न हम सभी के सिर में आज दर्द कर देते हैं. लेकिन अगर आप गौर करें तो ये चांदनी चौक कई बेशकीमती नगीने आज भी अपने में समेटे हुए हैं. अब आप कहेंगे ये तो हम बचपन से सुनते सुनते बड़े हो गए, आपके पास नया क्या है, मेरे भाई, इस चांदनी चौक में नया तो कुछ नहीं है, होगा भी कैसे, सदियों की कहानी जो इसके हर कदम पर बिखरी हुई है, हां… यही पुरानापन इसका स्वर्णजड़ित गुंबद है, जिसे हर हिंदुस्तानी को पास से, करीब से, नजदीक जाकर, ठहराव और लंबी सांस लेकर, वक्त निकालकर जरूर देखकर जहन में उतार लेना चाहिए.
अब जरा पॉइंट पर आता हूं. मैं 24 सितंबर 2019 को चांदनी चौक गया. मेरा उद्देश्य था कि पहले माइक लूंगा, फिर धरमपुरा हवेली (Dharampura Haveli) जाउंगा, और फिर भटकते भटकते कुछ और हवेलियां. जिन हवेलियों के नाम मैंने लिखकर स्थानीय जनता वाया गूगल मैप चलने का प्लान बनाया था, उनके नाम थे… बेगम समरू की हवेली, हक्सर हवेली, नमक हराम हवेली, चुन्नामल की हवेली, मिर्जा गालिब की हवेली और बिहारी लाल की हवेली.
मैं सबसे पहले कैमरा मार्केट में गया, जहां मेरी माइक खरीदने की कोशिश नाकाम साबित हुई. इसके बाद मैं चल पड़ा धरमपुरा की हवेली की तरफ. मन तो था कि मैं इस हवेली के हर हिस्से को कैमरे में उतारकर ज्ञान से भरा ऐसा वॉइस ओवर दूंगा की मेरी ही बांछे खिल जाएंगी लेकिन वहां के मैनेजमेंट से मायूसी हाथ लगी. मुझे वहां जाकर पता चला कि शूट की कीमत ढाई लाख रुपये है. अब या तो ये मजाक था, या ना कहने का टेढ़ा बहाना. मैं हवेली देखकर वाह करना चाह रहा था लेकिन मैनेजमेंट ने मुझे आह करने पर मजबूर कर दिया.
इसके बाद मैं गूगल मैप पर आ गया. मैंने टाइप किया चुन्नामल हवेली (Chunnamal Haveli) और दिखाए जा रहे रास्ते पर आगे बढ़ने लगा. चलते चलते मैं परांठे वाली गली पहुंचा. वहां जाकर स्टार्स की तस्वीरों से सजे होटल देखे तो मन किया क्यों न खा ही लिया जाए. एक रेस्टोरेंट में बैठा. हालांकि सच कहूं तो न परांठे अच्छे थे, न सब्जियां. इससे अच्छा स्वाद तो मुझे घर पर बने परांठों में मिल जाता है. खैर, नाम बड़े और दर्शन छोटे. पेट भरकर मैं आगे बढ़ चला. गूगल मैप गलियों से होते हुए मुझे मुख्य रास्ते पर ले आया और फिर आया मेरा गंतव्य, जो था चुन्नामल हवेली (Chunnamal Haveli).
हवेली को दूर से देखकर ही मैं समझ गया था कि यही चुन्नामल हवेली (Chunnamal Haveli) होगी. पास गया तो मुख्य दरवाजे के पास संतोष सिंह नाम के शख्स मिले जो हवेली के दरवाजे पर ही थे. मैंने उनसे अंदर जाने की अनुमति मांगी तो उन्होंने कहा कि आप हवेली के मालिकों से पहले बात कर लीजिए. उन्होंने मुझे बताया कि गूगल पर मुझे हवेली (Chunnamal Haveli) मालिक श्री अनिल प्रसाद जी का नंबर मिल जाएगा. मैंने अनिल प्रसाद जी को इससे पहले कई वीडियोज, डॉक्यूमेंट्री में देखा था, सो मैंने उन्हें नंबर मिला दिया. अनिल जी को मैंने अपना परिचय दिया. मेरी बात सुनते ही अनिल जी ने तुरंत कहा कि आप ऊपर आ जाइए. बस फिर क्या, मैंने खुद को तैयार किया और चल दिया हवेली के अंदर. तैयार का मतलब मेकअप से कतई मत समझिएगा. तैयार का मतलब अनिल जी से पूछे जाने वाले सवाल थे.
सीढ़ियों से चढ़कर मैं अंदर दाखिल हुआ. सच कह रहा हूं दोस्तों, बाहर की मारममार से जूझते हुए जब मैं अंदर के खुले वातावरण में पहुंचा, वो भी चांदनी चौक जैसी जगह पर, तो पहले तो मानों मेरी आंखें चौंधियां सी गई थीं लेकिन फिर मैंने यही कहा- बेहद किस्मत वाले हैं आप लोग.
अनिल जी ने अंदर मेरा स्वागत किया. अहम बात ये है कि मेरा ध्यान अनिल जी पर कम, हवेली की दीवारों, आंगन, पुराने आर्किटेक्चर पर अधिक था. ऐसा होना भी लाजिमी था क्योंकि मैं पहली बार किसी हवेली में खड़ा था. मैंने अनिल जी से सेठ चुन्नामल के बारे में पूछा. उन्होंने बताया कि उनका कपड़ों का बड़ा काम था और उन्होंने ही यमुना पर बने पुल के लिए अंग्रेजों को आर्थिक मदद भी दी थी. चुन्नामल जी की छठी पीढ़ी के शख्स मेरे सामने बैठे थे, जिनका नाम अनिल प्रसाद था. अनिल जी ने बताया कि दिल्ली की पहली मोटर चुन्नामल सेठ ने ही खरीदी थी. पहली बार बिजली यहीं आई थी. इसी घर में कई बड़ी हस्तियां आया करती थीं.
मैंने अनिल जी से पूछा कि आप इसे धरमपुरा की हवेली की तरह मॉडर्नाइज करके क्यों नहीं प्रमोट कर रहे हैं? उन्होंने कहा कि ऐसा करने पर इसका जो वास्तविक स्वरूप है, वह ध्वस्त हो जाएगा, और हम ऐसा नहीं चाहते हैं. अनिल जी की ये सोच मेरे दिल को छू गई. उन्होंने मुझे सेठ चुन्नामल की हवेली का मुख्य कमरा भी दिखाया जिसमें आज भी फर्नीचर, उर्दू लेख, पुराना आइना, कालीन, उसी स्वरूप में थे जैसा 1848 में थे. मैं बेहद खुश था. आखिरकार मैं दिल्ली की ऐसी हवेली में था जिसे नष्ट नहीं होने दिया गया और वह आज भी हमारे बीच है.
अनिल जी ने मुझे बताया कि उनका पूरा परिवार, बेटे-बहू-पोते सभी इसी घर में रहते हैं. मैंने कहा बच्चों को तो पार्क की जरूरत ही नहीं, वह यहीं सारे खेल खेल सकते हैं. वो हंस दिए. इसके बाद उन्होंने आंगन में मुझे वो हिस्सा भी दिखाया जिसमें लोहे को नट बोल्ट से जोड़कर लगाया गया एक बड़ा ढांचा आज भी अच्छे रूप में कायम दिखाई दिया. मैंने हर चीज को वीडियो के रूप में संचित किया.
इसके बाद वक्त विदा लेने का था. मैं अनिल जी के जज्बे का कायल हो चुका था. मैं खुद गांव का हूं और मेरी पुश्तैनी जमीनें और घर हैं. अनिल जी की दृढ़ता ने मुझे पूर्वजों की चीजों के प्रति और आदरभाव देने का कार्य किया. इतनी संपत्ति होने के बावजूद सेठ चुन्नामल की विरासत को उनके वंशज जिस रूप में आज संभाल रहे हैं, इसे देखकर सेठ चुन्नामल की आत्मा अवश्य ही प्रफुल्लित होगी.
Iran Travel Blog : ईरान, जिसे पहले फारस (Persia) के नाम से जाना जाता था,… Read More
Pahalgam Travel Guide : भारत के जम्मू-कश्मीर में स्थित पहलगाम (Pahalgam) उन चंद जगहों में… Read More
Haifa Travel blog: इजरायल और ईरान युद्ध में जिस एक शहर की चर्चा सबसे ज्यादा… Read More
Jagannath Puri Temple, ओडिशा का एक ऐसा धार्मिक स्थल है जो न केवल आस्था बल्कि… Read More
उत्तराखंड के प्रसिद्ध तीर्थस्थल केदारनाथ तक पहुँचने के लिए हर साल हजारों श्रद्धालु Helicopter Services… Read More
Air travel को भले ही आज सबसे सुरक्षित transport modes में गिना जाता है, लेकिन… Read More