know about makka darji imambara and bhul bhulaiya of sitapur
imambara-उत्तर प्रदेश के विभिन्न इलाकों में यहां के समृद्ध इतिहास के चिन्ह बिखरे पड़े हैं. राजधानी लखनऊ से लगभग 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सितापुर में भी इतिहास के चिन्ह मौजूद हैं. लेकिन रखरखाव की कमी के कारण बर्बाद हो रहे हैं. अपनी नक्कशियों और बुलंद इमारत में एक इतिहास समेटे खैराबाद का मक्का दर्जी इमामबाड़ा व मस्जिद के गेट जमींदोज कर दिया गया. नगर पालिका की जेसीबी चली और हैरत की बात है कि जिम्मेदारों को पता तक नहीं चला. ईओ नगर पालिका परिषद खैराबाद हृदयानंद उपाध्याय ने बताया कि मामला मेरे संज्ञान में नहीं है.
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समाजसेवी नदीम हसन कहते हैं कि गेट कमजोर नहीं था. इसके अलावा मस्जिद के अंदर आने जाने के लिए साइड से निकलने का रास्ता भी बनाया जा सकता थ. गेट काफी चौड़ा था और इसे वक्फ बोर्ड के जरिए रिपेयर भी कराया जा सकता था. इसे गिराने की कतई जरूरत नहीं थी. मस्जिद के इमाम हाफिज सिद्दीक ने बताया कि मस्जिद का दरवाजा काफी जर्जर हो चुका था, जिससे मस्जिद में आने वाले नमाजीयों कि जान को खतरा था इसलिए जर्जर हो चुके दरवाजे को गिर दिया गया है. इसकी जगह दूसरा दरवाजा बनवाया जा रहा है.
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वहीं, स्थानीय लोगों में इस गेट को गिराए जाने से रोष है. उनका आरोप है कि तुर्क पट्टी के वॉर्ड मेंबर और ठेकेदार जुबैर अंसारी ने निजी स्वार्थ में मस्जिद के खूबसूरत गेट को नगरपालिका से जेसीबी मंगवाकर गिरवा दिया. स्थानीय लोगों को कहना है कि, यह ऐतिहासिक धरोहर सुन्नी वक्फ की है, लेकिन इसकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया गया. वरिष्ठ नागरिक व पूर्व सभासद ओमकार नाथ कपूर ने बताया कि चूंकि इमामबाड़ा एक ऐतिहासिक धरोहर है जिसकी देख-रेख की जिम्मेदारी वक्फ बोर्ड के हाथों में है उन्होंने बताया कि जिस प्रकार से यह दरवाजा गिराया गया है वह पूरी तरह अनुचित है.
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वहीं, स्थानीय लोगों में इस गेट को गिराए जाने से रोष है. उनका आरोप है कि तुर्क पट्टी के वॉर्ड मेंबर और ठेकेदार जुबैर अंसारी ने निजी स्वार्थ में मस्जिद के खूबसूरत गेट को नगरपालिका से जेसीबी मंगवाकर गिरवा दिया. स्थानीय लोगों को कहना है कि, यह ऐतिहासिक धरोहर सुन्नी वक्फ की है, लेकिन इसकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया गया. वरिष्ठ नागरिक व पूर्व सभासद ओमकार नाथ कपूर ने बताया कि चूंकि इमामबाड़ा एक ऐतिहासिक धरोहर है जिसकी देख-रेख की जिम्मेदारी वक्फ बोर्ड के हाथों में है उन्होंने बताया कि जिस प्रकार से यह दरवाजा गिराया गया है वह पूरी तरह अनुचित है.
बुजुर्ग बताते हैं कि नवाब साहब ने अपनी शेरवानी व टोपी की बेहतरीन सिलाई से खुश होकर मक्का दर्जी के लिए यह इमामबाड़ा बनवाया था. अनूठी कलाकारी की झलक पेश करती यह ऐतिहासिक इमारत अब बदहाल होती जा रही है. समाजसेवियों ने कई बार खैराबाद की भूलभुलैया को संरक्षित करने की मांग की, लेकिन राज्य सरकार इसे भूल बैठी है.
शासन प्रशासन की उदासीनता का आलम यह है कि पिछले दो दशकों से यहां कोई झांकने तक नहीं पहुंचा है. अपनी खूबसूरती के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध मुगल काल में बने इस भूलभुलैया की तुलना लखनऊ की भूलभुलैया से की जाती है. उपेक्षा से बदहाल होती जा रही भूलभुलैया पर फिलहाल कुछ लोगों का कब्जा है. आरोप है कि कुछ लोग इसकी बेशकीमती जमीन को हथियाने की फिराक में रहते हैं.
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