करतारपुर कॉरिडोर : पाकिस्तान की इमिग्रेशन बिल्डिंग से करतारपुर साहिब तक लेकर जाने वाली बस में ये जनाब मिले
मैं कदमों से चलकर इस देश में गया, कदमों से सीमाएं पार की, और हर नजारे को, लोगों को, सीमा पर खड़ी रेंजर्स के सिपाहियों (Pakistan Rangers) को करीब से देखा जाना. सीमा से सटी उस पार की दुनिया आखिर है कैसी? ये क्यूरोसिटी जो मेरे अंदर थी, उसे इस सफर से सुलझा दिया. खैर, यात्रा है तो कई बातें भी होंगी. मैं पाकिस्तानियों से मिला, कई बातें की. वहां के बच्चों से मिला. उनसे भी बातें की. लेकिन यात्रा में कई ऐसी चीजें हुईं जो मुझे चौंकाने लगी थीं.
Kartarpur Corridor Journey : कैसे पहुंचे करतारपुर साहिब , Tips to Know
पाकिस्तानी सीमा (Pakistan Border) में प्रवेश करने का मेरा सफर शुरू होता है, भारत के इमिग्रेशन पॉइंट (Kartarpur Immegration Point) से. यहां से एक इलेक्ट्रोनिक रिक्शा मुझे लेकर भारत-पाकिस्तान की सीमा (India – Pakistan Border) तक जाता है. इस रिक्शा से उतरकर मैं जैसे ही बॉर्डर को पार करता हूं, एक कैमरा मुझे नजर आता है. एक शख्स इस कैमरे को लेकर खड़ा था. वह इस रिक्शे की मूवमेंट को काफी दूर तक कवर करता है.
जब मैं इस रिक्शे से पाकिस्तान के इमिग्रेशन पॉइंट (Pakistan Immegration Point) तक पहुंचता हूं, तो वहां एक जनाब ब्राउन कुर्ते पायजामे में खड़े दिखाई देते हैं. मैं उनसे पहला सवाल करता हूं, क्या मैं वीडियो बना सकता हूं? वह मुस्कुराते हुए हां कह देते हैं. हालांकि , इसके साथ ही, वह मुझपर नजरें भी गड़ा देते हैं. शायद मेरा अकेला जाना मुझे शक के घेरे में ला रहा था. वह मेरे शब्दों को थोड़ा पास आकर सुनते भी हैं. फिर वहीं पहुंच जाते हैं.
इन ब्राउन कुर्ते वाले भाई साहब की जो पोजिशन थी. अगले 3-4 मिनट में (जब मैं करेंसी एक्सचेंज करा रहा था) वहां एक दूसरा शख्स उन्हें रिप्लेस कर देता है. वह कहीं और चले जाते हैं. और उस जगह एक उनसे पतला शख्स खड़ा हो जाता है. वह वहां पहुंचने वाले दूसरे लोगों का वेलकम करने लगता है. मैं यहां से जब पाकिस्तान की इमिग्रेशन बिल्डिंग (Pakistan Immegration Building) में प्रवेश करता हूं तो पासपोर्ट चेकिंग काउंटर पर एक शख्स मुझसे हैरानी से पूछते हैं- आप अकेले आए हो? मैंने उत्तर दिया- जी हां, मैं अकेले ही आया हूं…
उन्होंने अगला सवाल किया- इंडिया में कहां से हो आप- मैंने कहा- मैं मूलतः बनारस के पास से हूं लेकिन रहता दिल्ली में हूं. इन जनाब ने कहा- हमारे बाप-दादा वहीं से थे. वो बताते थे कि बनारस के लोग ठग होते हैं. मैंने कहा- जी ऐसा नहीं है, हर जगह हर तरह के लोग मिलते हैं. इसके बाद मैंने देखा, इस शख्स के साथ खड़े 2-3 लोग मुझपर और मेरे एक्सप्रेशंस पर नजरें बनाए हुए थे. ये सभी मानों मेरे चेहरे के भाव पढ़ लेना चाहते थे.
मैंने वेरिफिकेशन से संबंधित प्रक्रिया पूरी की और फिर बिल्डिंग के बाहर खड़ी बस में बैठ गया. इस बस के चलने पर एक और शख्स मेरे पास आए और मुझसे पंजाबी में बात करने लगे. इनका नाम आमिर था. आमिर ने बात बढ़ाई इससे पहले ही मैंने उन्हें टोकते हुए कहा कि मुझे पंजाबी आती नहीं है. उन्होंने कहा कि आपको पंजाबी नहीं आती. वो काफी चौंक से गए थे. मैंने दोबारा कहा- मैं दिल्ली से हूं न इसलिए… इसके बाद उन्होंने कई तरह के सवाल किए, जैसे यहां कैसे आना हुआ, अकेले ही आए हो, आदि आदि…
अब आ गई बारी करतारपुर साहिब (Kartarpur Sahib Gurudwara) की. यहां वो शिलापट्ट जहां खड़े होकर इमरान खान और नवजोत सिंह सिद्धू ने ओपनिंग सेरेमनी के दिन भाषण दिया था. यहां अलग अलग झुंड में कई लोग भारत से आ रहे जत्थों का वेलकम करते दिखाई देते हैं. ये ग्रुप जत्थों/व्यक्तियों के साथ फोटो खिंचवाते हैं, बात करते हैं और फिर उन्हें वहां के बारे में बताते हैं. मैं जब यहां की वीडियो बनाना शुरू करता हूं तो इसी ग्रुप में से कुछ लोग मेरे आजू-बाजू आकर खड़े हो जाते हैं. मुझे ऐसा लगा कि जैसे ये मेरे वीडियो के कंटेट को और जो मैं बोल रहा था, उसे ध्यान से सुन रहे थे. 1 मिनट के आसपास वे लोग वहीं डेरा जमाए रहते हैं और फिर तितर-बितर हो जाते हैं.
इस यात्रा के ये अनुभव हो सकता है किसी और रूप में हों लेकिन मेरे मन में इस एक्सपीरिएंस ने एक शक की छाप भी छोड़ दी है. हो सकता है, मैं सही हूं, या हो सकता है मेरा सवाल गलत हो लेकिन आपको क्या लगता है, मेरे वीडियो को देखिए और प्लीज प्रतिक्रिया दीजिए…
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