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Meghalaya Yatra Blog – ट्रेन में Sikh Regiment के जवानों ने जोश बढ़ा दिया!

Meghalaya Yatra Tour Blog – मेरी यात्रा का अगला पड़ाव उत्तर-पूर्व ( Meghalaya Yatra Blog ) है. जीवन में पहली बार मैं उत्तर पूर्व के किसी राज्य में यात्रा ( Meghalaya Yatra Blog ) के लिए जा रहा हूं. यूपी के पूर्वांचल में स्थित अपने गांव की परिधि से आगे मैं आज तक नहीं बढ़ सका हूं. इसके थोड़ा नीचे रांची वह जगह हैं जिसके पास में पतरातू है, यहां बचपन में ताऊ जी का घर था. बचपन में इसी के नज़दीक मां छिन्नमस्तिका के मंदिर में मेरा मुंडन हुआ था, मां छिन्नमस्तिका को रजरप्पा माई के नाम से भी जाना जाता है.

सच में, यह ( Meghalaya Yatra Blog ) मेरे लिए जीवन का पहला अनुभव तो है ही. इस सफर के लिए मैंने 15 दिन नियत किए हैं. एक एक सामान को अपनी सूची में शामिल कर लिया. पहली बार मैं अपनी यात्रा पर लैपटॉप लेकर जा रहा हूं. मैंने यह फैसला इसलिए किया क्योंकि वीडियो तो मैं बना लेता हूं लेकिन जब लिखता हूं तो देर हो चुकी होती है और फिर भूली बिसरी कई बातें ऐसी हो जाती हैं जो ब्लॉग में शामिल नहीं हो पाती. देर रात तक और सुबह उठने के बाद फिर से, इस चेकलिस्ट का दो बार मिलान किया. सब फिट मिला. घर पर सुबह नाश्ते के बाद मैं नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के लिए निकल गया.

जब आप कहीं लंबे वक्त की यात्रा ( Meghalaya Yatra Blog ) पर निकलते हैं तो अपनों को विदा कहने का लम्हा भी भावुक होता है. मां, पत्नी, बच्चों को. यह वह पल होता है जब आपको अपनी दिल थोड़ा सख्त करना पड़ता है. भावनाओं की इसी कश्मकश से जूझते मैंने रात बिताई और सुबह भी इन्हीं विचारों से घिरा हुआ था, जब घर से निकला था.

मैंने नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से सुबह 11:25 की राजधानी एक्सप्रेस में बुकिंग कराई थी. थर्ड एसी में साइड अपर की बर्थ अलॉट हुई थी. फ्लाइट का विकल्प इसलिए नहीं चुना क्योंकि ओमिक्रॉन वायरस और कोरोना के मौजूद संकट की वजह से वहां के नियम कायदों से मैं अनजान था. ट्रेन में भोजन का विकल्प भी ऑप्ट कर लिया था.

मैं समय पर था, वक्त पर मेट्रो ली और वक्त रहते ही स्टेशन भी पहुंच गया. हाल ये था कि सुबह पौने 11 बजे ही मैं अपनी सीट पर सामान रख चुका था. जिस कोच में मैं बैठा हूं उसमें ज़्यादातर आर्मी के लोग हैं.

साइड लोअर और बगल वाली 6 सीटों में से 4 पर आर्मी के ही लोग हैं. आगे पीछे भी कुछ नागालैंड आर्म्ड फोर्सेस के जवान हैं. बगल में दो लोग (जो आर्मी में हैं) अपने बक्से रख रहे हैं, मैंने उनसे पूछा कि आप लोग आर्मी में हो? वह बोले हां, मैंने फिर पूछा- पोस्टिंग चेंज हुई? एक जिनके लंबे बाल हैं और कान में ईयरफोन लगाकर लगातार किसी से बात कर रहे हैं, वह बोले- रांची थी अब गुवाहाटी जा रहे हैं.

मैंने सवाल किया, रांची से दिल्ली और दिल्ली से गुवाहाटी? वह बोले- नहीं… रांची से हिमाचल अपने घर गए थे, और फिर अब जा रहे हैं गुवाहाटी. मन में तो आया कि ये सवाल भी कर डालूं कि क्या वजह है कि आर्मी काले बक्से देती है? एक तो ये भारी भरकम होते हैं और इससे किसी के घायल होने का अंदेशा भी रहता है, लेकिन फिर नहीं किया!

ट्रेन में देख रहा हूं कि पैंट्री वाले चक्कर तो बहुत लगा रहे हैं लेकिन आ कुछ नहीं रहा है. सिर्फ एक पानी की बोतल ही मिली है, अभी तक. भूख बढ़ी तो खुद उठकर ट्रेन के दरवाज़े के पास सामान सेट कर रहे पैंट्री वालों के पास पहुंचा. मैंने उनसे पूछा कि भैया क्या क्या मिलता है भोजन में. खैनी खा रहे एक शख्स ने हाथ पर उसे मलते मलते ही कहा कि आपकी बर्थ नंबर कौन सी है, मैंने कहा 32, वे बोले- हां आपका वेज है.

Meghalaya Tour Blog - सिख रेजिमेंट के जवानों संग
Meghalaya Tour Blog – सिख रेजिमेंट के जवानों संग

मैंने उन्हें समझाने की कोशिश की कि मेरा सवाल ये नहीं था. इतनें में पैंट्री वाले दूसरे शख्स बोले- आपको अभी लंच मिलेगा, शाम को हाई टी, रात को डिनर, सुबह ब्रेकफास्ट, दोपहर को लंच और फिर शाम को हाई टी और रात को डिनर. मन में तो लड्डू फूट गया. मैंने सोचा, रेलवे तो पूरा पैसा वसूल है, कमाल है. हालांकि चूंकि मुझे गुवाहाटी उतरना है इसलिए उसके लिए डिनर नहीं मिलेगा. डिनर साढ़े सात बजे के बाद होता है. खैर फिर भी, 30 घंटे खाते पीते बीतेंगे, वह भी बजट में.

मेरी बर्थ के नीचे साइड लोअर बर्थ है, उसपर भी आर्मी के ही जवान हैं. वह कूचबिहार, पश्चिम बंगाल जा रहे हैं. उनके पास बैठा और बातचीत भी शुरू हो गई. वे सरकार के काम से बहुत खुश दिखाई दिए. कह रहे हैं कि पहले जब मैं छुट्टी लेकर आता था, तब सुबह 3 बजे से गैस सिलेंडर लेने के लिए लाइन में लगना पड़ता था, और अब देखो. मतलब नहीं कि आपको इतज़ार करना पड़े.

चूंकि वे बुलंदशहर से हैं और उनका एक घर गाज़ियाबाद में भी है, सो मित्रता होना तो स्वाभाविक था ही 😉 बातें चलती रहीं, तो लगे हाथ अपना सवाल मैंने उनसे कर लिया, वही लोहे के बक्से वाला. वे बोले- ये बक्से सेना में इसलिए मिलते हैं ताकि जवान इशू होने वाले अपने सामान को हिफाजत से रख सकें. पहले बैरकें और जहां पोस्टिंग होती थी वहां सामान के लिए कोई जगह नियत नहीं रहती थी, इसीलिए ये बक्से दिए जाते थे. वही रिवाज आज भी कायम है.

हमने बातें की, पश्चिमी यूपी पर, गन्ने पर, किसान पर, राजनीति पर, अजित सिंह और भी तमाम मुद्दों पर. इतने में मेरा भोजन आ गया. दोपहर के ठीक सवा एक बजे. मैंने उनसे पूछा, तो वे बोले- घर से लेकर आया हूं. थोड़ी बात और की फिर अपने बर्थ पर आ गया. मैंने भोजन खोला ही था कि उन्होंने मट्ठे के लिए पूछा. मैंने सकुचाते हुए न कहा, लेकिन उन्होंने दोबारा कहा कि ले लो, घर का ही है. मैंने कहा कि हां, लाइए….

उन्होंने एक स्टील की गिलास पकड़ा दी. खाते-खाते मट्ठा मिल जाए, वह भी शुद्ध तो कहने ही क्या. वाह, मजा बांध दिया भाई जी ने. दोपहर का खाना खाकर अब सोच रहा हूं, थोड़ा लेट जाता हूं. फिर उठकर काम किया जाएगा. सारा सामान पैक करना होगा फिर से… अरे अरे पैक मतलब लैपटॉप को बैग में रखना होगा. और चार्जिंग केबल को भी. यही पैकिंग.

अब इस सफर ( Meghalaya Yatra Blog ) के बाकी बचे हिस्से को रात में लिखूंगा.

दोपहर का कुछ हिस्सा करवटें बदलते बीता कुछ नीचे लोगों से बात करते हुए. इस कोच में कई आर्मी के लोग हैं. इनमें एसएसबी, आईटीबीपी और भारतीय सेना के जवान शामिल हैं. आईटीबीपी में कार्यरत एक शख्स ने बताया कि उनकी तैनाती कोकराझार में हो गई थी. वहां वे ऐसे लोगों से मिले जिन्हें हिन्दी भी नहीं आती थी.

वह भन्नाकर बोले- हिन्दी तो देशभर में कम्पल्सरी ( अनिवार्य ) कर देनी चाहिए. पूरे देश में हर बच्चे को जब तक हिन्दी पढ़नी ज़रूरी नहीं होगी, वह सीखेगा कैसे? ये क्या बात है कि कोई कोई हिन्दी जानता ही न हो! वह खुद पंजाब से थे, और पूरे सफर में मैंने अभी तक उन्हें पंजाबी बोलते ही देखा था.

आजू बाजू कई जवान थे लेकिन उनके बाल लंबे थे. मुझसे रहा न गया तो पूछ बैठा कि आप लोगों की तैनाती बॉर्डर पर ही होती है या कहीं और, तब मुझे पता चला कि वे सभी स्पोर्ट्स के हैं और खिलाड़ी हैं. ये आर्मी का अलग अलग खेलों में प्रतिनिधित्व करते हैं. कमाल है. कितनी विविधताएं हैं न!

ये सभी पंजाब से ही हैं. इनके एक साथी ने बताया कि वह 52 तरीके से पग बांधना जानते हैं. कमाल की बात थी ये! मैंने उनका इंस्टाग्राम खोल लिया. एक एक करके कई वीडियो देख लिए. ये तो कमाल के अभिनेता निकले और गाने भी खूब गाते हैं. सो मैंने भी लगे हाथ उनसे गाने का अनुरोध कर डाला. काफी सोच विचार करके उन्होंने गाया और बहुत कमाल का गया. ये पूरा वाकया आप वीडियो में ज़रूर देखिएगा.

बातचीत काफी लंबी चली. इस बातचीत से पहले लखनऊ स्टेशन पर गाड़ी रुकी थी. लखनऊ में मैंने एक पेस्ट खरीदा था. साथ ही, अपने दो दोस्तों अभिषेक और चंदन को कॉल कर उनसे बात की थी. और लखनऊ से पहले मां और पत्नी-बच्चों से.

गीत वाले कार्यक्रम के बाद जो सफर बोझिल सा लग रहा था, मानों उसमें थोड़ी रवानी आ गई थी. अब थोड़ा हल्का हल्का फील हो रहा था. अब लग गई थी भूख. सो अपनी सीट पर जाकर बैठ गया और इंतज़ार करने लगा खाने का.

सफर ( Meghalaya Yatra Blog ) में रेलवे का डिनर वाला ये मेन्यू दोपहर के लंच से थोड़ा कमतर था. हां, स्वादिष्ट था लेकिन. दाल, बीन्स-आलू-शिमला मिर्च की सब्ज़ी, पराठे, चावल, दही, आचार. मस्त खाया. हाथ-मुंह धोकर आया और सीट पर आराम की मुद्रा में बैठ गया.

अभी बैठा ही था कि एक पिता की उसके बच्चों के साथ हो रही बातचीत ने ध्यान खींचा. ये पिता शायद सेना में थे और पोस्टिंग ड्यूटी पर जा रहे होंगे. ये अपने बच्चों को प्यार से पढ़ाई के बारे में बता रहे थे. पहले बेटे से बात की, उसे समझाया और फिर बड़ी बेटी से. बेहद ही सौम्यता से वह बेटी से कह रहे थे कि सीडीएस की तैयारी फोकस होकर करना बेटा. जो किताबें चाहिए, मुझे बताना या ले लेना. छोटे भाईयों को भी समझाना.

वे कह रहे थे कि अगर भाई गुस्सा होते हैं, तो प्यार से समझाना लेकिन आप गुस्सा मत होना. दोस्तों मन में भावुकता उमड़ पड़ी ये बातचीत सुनकर. मैं तो 15 दिन के लिए जा रहा हूं तो किस तरह की भावनाएं आ रही हैं, वह मैं देख रहा हूं और जो महीनों अपने परिवार से दूर रहते हैं, वे कैसे रहते होंगे. सलाम है देश के सैनिकों को!

मेरे सामने अपर सीट पर बैठी एक महिला घर से लाया खाना खा रही थीं. उन्होंने मुझसे पूछा कि क्या आपने भोजन को चुना था? मैंने कहा कि हां, उसमें ऑप्शन आता है. उसे चुनने के बाद किराए में थोड़ा इजाफा हो जाता है लेकिन आप भोजन के मामले में निश्चिंत हो जाते हैं. वह बोली- रेलवे का खाना पता नहीं कैसा होता है! यह कहकर उन्होंने मुंह भी थोड़ा सिकोड़ लिया. मैंने कहा- भोजन तो स्वादिष्ट है.

अब खिलाड़ी सैनिकों वाली टोली मेरी सीट पर आई. मैं टाइपिंग कर रहा था और ब्लॉग लिख रहा था इसे देखकर वे बहुत खुश हुए. हिन्दी टाइपिंग की रफ्तार देखकर तो और भी. हा हा हा. यहां भी हल्की फुल्की बातचीत हुई… वे सभी कल मिलने के लिए कहकर गुड नाइट बोलकर चले गए.

यात्रा ( Meghalaya Yatra Blog ) का पहला दिन अब खत्म होने को है. आपको मेरा ये संस्मरण ( Meghalaya Yatra Blog ) कैसा लगा, ज़रूर बताइएगा. मुझे खुशी होगी अगर आप Travel Junoon के ब्लॉग को सब्सक्राइब करेंगे. जल्द मिलते हैं, अगले ब्लॉग में. देखते रहिए Travel Junoon का Youtube Channel और पढ़ते रहिए Travel Junoon का ब्लॉग.

( Meghalaya Yatra Blog )

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