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Wayanad Travel Blog: केरल के 12 जिलों में से एक वायनाड है, जो कि कन्नूर और कोझिकोड के बीच में स्थित है। वायनाड एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है. पश्चिमी घाट के हरे भरे पर्वतों के बीच स्थित वायनाड की प्राकृतिक सुंदरता आज भी अपने पुराने रूप में ही है। तो आज ट्रेवल जुनून के इस आर्टिकल में आप पढ़ेंगे कि वायनाड में कहां-कहां घूमें और वहां क्या अलग कर सकते हैं।
असल में वायनाड शांति पसंद करने वाले लोगों के लिए एक आदर्श जगह है। इसे 1980 में एक नए जिले के रूप में बनाया गया था। ये बैंगलुरु के पास एक काफी मशहूर हिल स्टेशन है। यहां पर अक्सर बैंगलुरु से 2 दिनों की छुट्टियां बिताने के लिए लोग आते हैं।
वायनाड जिले का नाम वायल नाडू से लिया गया है, जिसका मतलब है धान के खेतों की भूमि। ये एक सुरम्य पठार है जो कि तमिलनाडु और कर्नाटक की सीमाओं पर पश्चिमी घाट के पहाड़ों के बीच में घूमने वाली 700 से 2100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। ये जिला इलायची, कॉफी, चाय और मसालों जैसी फसलों के उत्पादन के साथ राज्य के सबसे बड़े विदेशी मुद्रा कमाई में से एक है।
वायनाड का एक समृद्ध इतिहास है, वायनाड की पहाड़ियों में पाषाण युग सभ्यता के कई प्रमाण मिलते हैं। वायनाड का मौसम पूरे साल सुखद बना रहता है। ये एक लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है। यहां के प्रसिद्ध पर्यटक स्थलों में झरने, झील, ट्रेकिंग के लिए जगह, हिल स्टेशन और कई तीर्थ केंद्र है।
वायनाड के सबसे पास कोझिकोड अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है और कोझिकोड का रेलवे स्टेशन भी जिले के सबसे पास है। वायनाड एक ऐसा जिला है जो कि कोझिकोड, कन्नूर, ऊटी और मैसूर से बस और सड़क मार्ग से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। वहीं कोझिकोड के लिए बैंगलोर, चेन्नई और त्रिवेंद्रम जैसे मुख्य शहरों से आसानी से बसें मिल जाती है।
आपको बता दें कि वायनाड जाने का सबसे अच्छा समय सितंबर से मई तक होता है, जबकि इस जिले का पीक सीजन अक्टूबर से मार्च तक माना जाता है। इस जगह को पूरा घूमने में 1-2 दिन लग जाते हैं।
वायनाड में घूमने की जगहें
ये चोटी कालपेट्टा में ही नहीं बल्कि वायनाड में भी सबसे ऊंची चोटी है। ये चोटी समुद्र स्तर से 2100 मीटर की ऊंचाई पर बनी हुई है। ये ट्रैकर्स के लिए एक काफी पसंद की जाने वाली जगह है। आप यहां पर आकर चोटी पर बने हुए अस्थाई कैंप को भी देख सकते हैं। इस जगह के खूबसूरत दृश्य आपका दिल छू लेंगे।
मीनमुट्टी झरना केरल का दूसरा और वायनाड का सबसे खूबसूरत झरना है। इस झरने के नाम का मतलब है जहां मछलियां ठहर गई, ये एक मलयालम शब्द है। इस जगह का नाम ऐसा इसलिए रखा गया है क्योंकि यहां पर कुछ प्राकृतिक कारणों के चलते मछलियां तैर नहीं पाती है। ये झरना 300 मीटर की ऊंचाई से गिरता है और गिरने के बाद तीन अन्य धाराओं में बंट जाता है, जो कि मीनमुट्टी झरने का सबसे खूबसूरत और रोमांचक दृश्य है।
पुकूट झील वायनाड में एक ताजे पानी की झील है। ये झील घने जंगलों के बीच में स्थित है और केरल के मशहूर पिकनिक स्थलों में से एक है। आप झील के किनारे बैठ कर नजारों को देखते हुए घंटों बिता सकते हैं या आप एक नांव किराए पर लेकर अपने परिवार के साथ घूम सकते हैं।
सोचिप्पारा झरने को क्षेत्र में सेंटीनेल रॉक झरने के नाम से भी जानते हैं, ये 100 से 300 फीट की ऊंचाई से गिरते हैं। मलयालम में सोचि का अर्थ होता है सुई और पारा का अर्थ होता है पत्थर, इस तरह से इस झरने का नाम पड़ा सोचिप्पारा। इस झरने के तीन हिस्से हैं जो कि मीनमुट्टी, कानथपारा और सोचिप्पारा में जाकर गिरते हैं। अंत में ये तीनों धाराएं आगे बढकर चालीयार नदी में पहुंचकर मिल जाती हैं।
कारापुझा बांध भारत का सबसे बड़ा अर्थ डैम यानि कि पृथ्वी बांध है। ये बांध कारापुझा झील पर बना हुआ है। इस झील की विशेषता ये है कि यहां पर लगभग 12 अन्य झीलों का समावेश होता है। आप इन कई झीलों के बीच स्थित सुंदर जगह-जगह बिखरे पहाड़ों को भी देख सकते हैं।
सुल्तान बत्तेरि से लगभग 12 किलोमीटर दूर एडक्कल की सुन्दर गुफाएं नवपाषाण युग के दौरान बनाई गई है। 1000 मीटर ऊंची अम्बुकुथी पहाड़ी पर स्थित ये गुफा हर साल हजारों यात्रियों को अपनी तरफ आकर्षित करती है। इतिहास प्रेमियों और अन्य यात्रियों को इन गुफाओं पर की गई प्राचीन नक्काशी और लेखन काफी दिलचस्प लगते हैं। ये कुल 3 गुफाएं है जो कि पुराने युग की मानव जीवनशैली का सबूत है।
वायनाड वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी जिसे मुथुंगा वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी भी कहा जाता है। केरल के वायनाड जिले में एक वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी और हाथी रिजर्व है। ये केरल में वन्यजीवन के शीर्ष पर है और ये भी वायनाड पर्यटन में सबसे अच्छे स्थानों में से एक है। साल 1973 में बने वायनाड वाइल्डलाइफ सैंक्चुरी को 1991-92 में हाथी संरक्षक परियोजना के तहत लाया गया था।
जैन मंदिर एक पुराना मंदिर है, जो कि वायनाड जिले के सुल्तान बैथेरी शहर के दिल में स्थित है। केरल में फैले खंडहरों की एक श्रृंखला के बीच ये सबसे महत्वपूर्ण है। माना जाता है कि सुल्तान बथरी में जैन मंदिर 13वीं शताब्दी में बनाया गया था। मंदिर का एक दिलचस्प इतिहास है। ये पहली बार एक मंदिर के रूप में कार्य करता था, और फिर वाणिज्यिक गतिविधि का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया। बाद में 18वीं शताब्दी में ये टीपू सुल्तान द्वारा गोला बारूद का डंपिंग ग्राउंड बन गया था।
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