Food Travel Blog: मेरी मूंग दाल कहां है?
मुझे बचपन के उस दौर के किस्से तक याद हैं, जब मेरी उम्र शायद एक साल भी नहीं थी। भाषा और बातों की समझ नहीं रही होगी उस वक़्त, मगर कुछ सीन आंखों के सामने आज भी फ़िल्म की तरह घूम जाते हैं।
ऐसे कई किस्से बाद में, मगर आज बात उस समय की जब मेरी उम्र शायद 4 साल रही होगी। हमेशा की तरह दीदी ससुराल से आई। मैं उनसे मिला, मगर मेरे बालमन की नज़र दीदी के पर्स पर टिकी थी। कब वह पर्स खुलेगा और उससे मूंग दाल की नमकीन का पैकेट निकलेगा।
आमतौर पर दीदी आते ही वह पैकेट मेरे हवाले कर देती थी, मगर आज ऐसा क्यों नहीं हुआ? दीदी के लिए पानी का गिलास लाने के लिए बोह्ड़ (दूसरी मंज़िल जहां रसोई होती है) जाते वक्त मैं सोच रहा था कि शायद उन्हें कोई दुकान नहीं मिली होगी रास्ते में।
कुछ वक़्त पहले दीदी की शादी हुई थी। मां के बाद मेरा आत्मीय सम्बन्ध दीदी से ही था, जिन्हें मैं दीदू कहता था। उन्हें मालूम था कि मैं मूंग दाल की नमकीन पसंद करता हूं। इसलिए शादी के बाद जब कभी वह घर आतीं, मूंग दाल लेकर आना नहीं भूलतीं। उस दिन भी इसीलिए मैं इंतज़ार कर रहा था। मगर न तो उस दिन वह पर्स खुला और न ही उस दिन के बाद कभी दीदी मेरे लिए मूंग दाल लाई। मुझे बात खटकी तो थी, पर दीदी से कभी नहीं पूछा कि वो नमकीन दाल कहां है।
शायद दीदी ने सोच लिया था कि अब मैं बड़ा हो गया हूं और मुझे अब ऐसे बहलाने की ज़रूरत नहीं है। मेरा बालमन परेशान तो हुआ, मगर फिर समझ गया कि दीदी अब मूंग दाल नहीं लाती तो कोई बात नहीं। मैंने कोई शिकायत नहीं की, कोई सवाल नहीं पूछा। शायद यह समझने लगा था कि कहां कैसे व्यवहार करना है।
मगर कई बार फिर छोटा हो जाने को दिल चाहता है। गुस्से में रूठकर दीदी से पूछने को दिल चाहता है कि बाकी बातें बाद में, पहले यह बताओ की मेरी मूंग दाल कहां है?
(ये अनुभव पत्रकार आदर्श राठौर ने अपनी फेसबुक वॉल पर शेयर किया)