Haldi valley must visit during rajasthan tour
Haldi valley- भारत की धरती पर कई वीर यौद्धाओं ने जन्म लिया है. मेवाड़ की धरती पर ऐसे ही एक शूरवीर ने 9 मई 1540 को जन्म लिया था. नाम था महाराणा प्रताप,महाराणा प्रताप के शौर्य से जुड़े कई किस्से हैं, जिनमें से एक है Haldi valley का युद्ध.
Haldi valley ही वो स्थान है जहां महाराणा प्रताप और अकबर की सेना के बीच 1576 में एक भयंकर युद्ध लड़ा गया था जो आज भी इतिहास में दर्ज है. राजस्थान में “एकलिंगजी” से 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हल्दीघाटी एक दर्रा है जो राजसमंद और पाली जिलों को आपस में जोड़ता है. उदयपुर से 40 किलोमीटर दूर स्थित इस जगह की मिट्टी हल्दी की तरह पीली है, शायद इसलिए भी इस जगह का नाम हल्दीघाटी पड़ा.
Haldi valley का नाम आते ही वीर राजपूत “महाराणा प्रताप” का नाम याद आता है, इसलिए आपके लिए इस वीर राजपूत के बारे में जानना भी ज़रूरी हो जाता है. महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को मेवाड़ के राजा उदय सिंह के घर हुआ था, बचपन से ही साहसी होने के कारण छोटी उम्र में ही उन्हें अस्त्र-शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण दिया जाने लगा, उनके पिता उदय सिंह उन्हें अपनी तरह एक कुशल योद्धा बनाना चाहते थे.
Fort Khejarla – एक शानदार विरासत जो अब एक होटल बन चुकी है
27 वर्ष की आयु में जब महाराणा प्रताप ने मेवाड़ की सत्ता संभाली तो दिल्ली के अलावा आधा मेवाड़ भी मुगलों के अधीन था. अकबर की नीति अपने अधीन हिंदू राजाओं की शक्ति का प्रयोग कर दूसरे हिंदू राजाओं को को भी अपने अधीन करना था. मेवाड़ के बचे हुए भाग पर अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए अकबर निरंतर प्रयासरत था, राजस्थान के कई हिंदू शासक अकबर की शक्ति की आगे घुटने टेक चुके थे लेकिन महाराणा प्रताप ने अपने वंश को कायम रखने और अपने पूर्वजों के मान–मर्यादा की रक्षा के लिए अपना संघर्ष जारी रखा और ये प्रण लिया कि जब तक अपने राज्य को मुगलों से मुक्त नहीं करवा लेंगे, तब तक शाही सुख नहीं भोगेंगे.
अपना महल छोड़कर वो जंगलों में रहने लगे, वे भूमि पर सोया करते थे, मुश्किल समय में घास की रोटी खाकर भी जीवन यापन किया, लेकिन उन्होंने ताउम्र अकबर के सामने आत्मसमर्पण नहीं किया. 30 वर्षों तक अकबर ने अपनी पूरी ताक़त लगा दी लेकिन महाराणा प्रताप को झुका नहीं सके, उनकी वीरता, देशभक्ति, और स्वाभिमान का मुगल बादशाह अकबर भी कायल था.
मेवाड़ पर चढ़ाई करते हुए मानसिंह के नेतृत्व में मुगल सेना जब 18 जून, 1576 को हल्दीघाटी पहुंची तो मुगलों और महाराणा प्रताप के बीच ये युद्ध लड़ा गया. महाराणा चेतक पर सवार होकर मुगलों से युद्ध कर रहे थे. मुगलों की सेना में हाथी बहुत अधिक संख्या में थे. हर बार चेतक को इन हाथियों के बीच जाकर युद्ध करना पडता था.
Tanot Rai Mata Mandir – पाकिस्तान ने गिराए हजारों बम, मंदिर पर खरोंच तक नहीं आई
इसलिए हाथियों को भ्रमित करने के लिये चेतक के मुंह पर हाथी की एक नकली सूंड लगा दी जाती थी ताकि वो भी हाथी जैसा ही दिखे . एक हाथी पर सवार मानसिंह पर हमला करने के लिए जैसे ही चेतक ने छलांग लगाकर हाथी के सिर पर पैर रखे तो महाराणा ने मानसिंह पर भाले से हमला किया.
इस हमले में महावत तो मारा गया, लेकिन मान सिंह ने हौदे में छुपकर अपनी जान बचा ली, इस हमले के दौरान हाथी की सूंड में बंधी तलवार से चेतक का पिछला पैर बुरी तरह ज़ख्मी हो गया. घायल चेतक को मुगल सैनिकों ने घेर लिया, महाराणा को संकट में घिरा देखकर झालामान ने बड़ी सूझबूझ से उनका मुकुट अपने सिर पर रखा और युद्ध करने लगे.
झालामान का डील-डौल महाराणा से काफ़ी मेल खाता था इसलिए मुगलों को लगा कि वो महाराणा प्रताप ही है. इस बीच चेतक महाराणा को लेकर सुरक्षित निकल गया, कुछ मुगल सिपाहियों ने चेतक का पीछा भी किया लेकिन चेतक ने एक 24 फीट चौड़े बरसाती नाले को छलांग लगा दी.
जयपुर के ट्रिप में अगर आप बिड़ला मंदिर नहीं गए, तो टूर रह जाएगा अधूरा
मुगल सैनिक उस पार नहीं जा सके, नाला पार करते ही चेतक गिर पड़ा और कुछ ही देर में उसने दम तोड़ दिया. इस तरह चेतक ने अपने स्वामी की सेवा करते हुए अपने प्राण दे दिए. जिस स्थान पर चेतक ने अपने प्राण दिए थे वहां चेतक स्मारक भी बनाया गया है.
इस युद्ध में महाराणा प्रताप अपने 20000 सैनिकों के साथ जिस वीरता से मुगलों की विशाल 80000 हथियारबंद सेना से लड़े थे, उसके लिए आज भी उनको याद किया जाता है. इस संग्राहलय में हल्दीघाटी के युद्ध के मैदान के एक मॉडल के अलावा महाराणा प्रताप के जीवन से जुड़ी कुछ वस्तुओं को भी रखा गया है.
जोधपुर में स्थित है Jaswant Thada, जिसे मारवाड़ का ताजमहल कहा जाता है
सुबह 8 बजे से रात 8 बजे तक खुले रहने वाले इस म्यूजियम में महाराणा प्रताप के जीवन को बखूबी दर्शाया गया है. म्यूजियम परिसर में महाराणा प्रताप और उनके साथियों की तांबे के रंग की प्रतिमाएं बनाई गई है, प्रतिमाओं के किनारे रेलिंग लगी है.
जिसके उस पार जाने पर पाबंदी है. एक प्रतिमा में तो चेतक को मानसिंह के हाथी के ऊपर छलांग लगाते हुए भी दिखाया गया है. एक अन्य कक्ष में महाराणा प्रताप के बचपन से लेकर जवानी तक की घटनाओं को चित्रों के माध्यम से दिखाया गया है. कहीं वो शिक्षा ले रहे है तो कहीं हथियार चलाने का अभ्यास कर रहे है, किसी चित्र में योजना बनाते दिखाई दे रहे है तो कहीं विचार-विमर्श में मग्न है.
कुछ शीशे की अलमारियों में उन हथियारों को भी रखा गया है जो उस युद्ध में प्रयोग में लाए गए थे. थोड़ी देर में यहां हॉल का प्रक्ष मद्धम कर दिया गया और एक फिल्म दिखाई जाने लगी, जिसमें महाराणा प्रताप के जीवन से जुड़ी बातों को बताया गया था.
देश की राजधानी दिल्ली और आसपास के क्षेत्र में देवी के 5 ऐतिहासिक मंदिर हैं.… Read More
Kalp Kedar : कल्प केदार उत्तराखंड राज्य में स्थित एक रहस्यमय और अलौकिक तीर्थस्थल है,… Read More
उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले का धराली गांव एक बार फिर प्राकृतिक आपदा का शिकार हुआ… Read More
Chhatarpur Mandir जिसे छतरपुर मंदिर कहा जाता है, दिल्ली के सबसे प्रसिद्ध और भव्य मंदिरों… Read More
Partywear dresses for women के लिए एक complete guide – जानें कौन-से आउटफिट्स पहनें शादी,… Read More
दोस्तों सुहागरात न सिर्फ रिश्ते की नई शुरुआत होती है बल्कि ये पति और पत्नी… Read More