Romania Travel: इंडियन रेस्टोरेंट में भूख मिटी पर नहीं मिला दिल्ली वाला स्वाद
रोमानिया (Romania) मेरा पहला विदेशी दौरा था. इससे पहले मैंने विदेशी यानी यूरोपीय देशों को सिर्फ या ज्यादातर बॉलीवुड फिल्मों में ही देखा था. रोमानिया (Romania) में ऐसे ऐसे ट्रैवल एक्सपीरियंस हैं जिन्हें अब भी एक्सप्लोर नहीं किया जा सका है. यहां पर नाइट लाइफ आपको एक अलग ही दुनिया में लेकर जाती है. देर रात शुरू होने वाला ये जीवन सुबह तड़के तक चलता है. ये भारतीय लाइफ से एकदम उलट है जहां हम दिन ढलते ही अपने घरों को लौट जाते हैं और खाकर सो जाते हैं.
हमारी दुनिया सुबह नए सिरे से शुरू होती है लेकिन यहां जब मन किया कपड़े पहनिए, घर से बाहर निकल जाइए. आपकी दुनिया शुरू हो जाएगी. हां, आपकी जेब में पैसे होने चाहिए.
रोमानिया (Romania) का कंट्रीसाइड ही इसका हार्ट और सोल है. यहां संस्कृति के भेष में लिपटा रोमानिया (Romania) आपको अलग रूप में दिखाई देगा. मध्यकालीन इतिहास की ऐसी झलक आपको पूरे यूरोप में कहीं नहीं मिलेगी. रोमानिया (Romania) दुनिया का तीसरा सबसे बायोलॉजिकली डाइवर्स एरिया है. इसके Danube Delta को अपने यूनिवर्सल वेल्यू के लिए यूनिस्को ने रिकॉग्नाइज किया है. रोमानिया (Romania) का आर्किटेक्चर, म्यूजिक, क्राफ्ट और ट्रेडिशन आपको बोलता जान पड़ेगा. रोमानिया (Romania) की पहाड़ी श्रृंखलाएं बाइकर्स और ट्रैकर्स को अलग रोमांच में लेकर जाती हैं.
मैंने मेट्रो में, सड़कों में रेस्टोरेंट्स में, पार्क में हर जगह लड़कियों की संख्या ही अधिक देखी. जब विकीपीडिया चेक किया तो पाया कि लड़कियां यानी महिलाएं यहां लगभग 52 फीसदी हैं. रोमानिया की अपनी यात्रा में मुझे सबसे ज्यादा परेशानी खाने की वजह से रही. यहां होटल में सुबह का ब्रेकफास्ट भी नॉन वेज से होता है और डिनर भी. नॉन वेज भी अपने जैसा नहीं कि चिकन को भून के अच्छे से खाया जाए. बल्कि इसमें प्रॉन, स्नेल, क्रैब, ऑक्टोपस, पॉर्क की संख्या अधिक होती है और आपको ये जानकर आश्चर्य जरूर होगा कि ब्रेकफास्ट में लोग इनके कच्चे मांस ही ज्यादातर खाते हैं. मैं तो इसे देखकर ही हैरत में पड़ गया था. ऐसा नहीं है कि मैं नॉन वेज नहीं खाता हूं. पहाड़ी राज्यों में तो लोग नॉन वेज ही नहीं बल्कि ऐसी कई डिशेज खाते हैं जो भारत के मैदानी इलाकों के लोग या तो खाते नहीं है, या खा नहीं बाते हैं. मैंने अधिकतर डिशेज खाई हैं लेकिन कोई कच्चा मांस खिलाए तो ना बाबा ना.
टूर के आखिरी दिनों में मुझे इंडियन फूड की तलाश थी. मैं भारतीय खाने के लिए पागल हुआ जा रहा था. मन तो कर रहा था कि कोई गरमा गरम आलू पूड़ी दे दे और चाहे तो 5 गुना कीमत ले ले लेकिन यहां तो चाइनीज, इटैलियन, थाई इन्हीं सबके दर्शन हो रहे थे. आखिरकर हमें एक इंडियन रेस्टोरेंट मिल ही गया. इस रेस्टोरेंट का नाम करिश्मा था. इस रेस्टोरेंट को देखते ही हम भागकर इसमें गए. अंदर हमने दाल मखनी और शाही पनीर के ऑर्डर दिए. रेस्टोरेंट के मालिक वहीं के लोकल थे लेकिन उन्होंने शेफ भारतीय रखे थे. हम भूख से छटपटा रहे थे. ऑर्डर देने के कुछ ही मिनटों में हमारा खाना टेबल पर सज चुका था. मैंने तेजी से खाना शुरू किया. पहला निवाला मुंह में जाते ही एहसास हुआ कि मैं कुछ यूरोपीय ही खा रहा हूं जो थोड़ा बहुत भारतीय फ्लेवर में है. खानों में भारतीय रंग न के बराबर था. मसाले भी कुछ अलग से लग रहे थे.