Tosh Village Tour Blog - रात 8 बजे से कुछ ज्यादा का वक्त था. हम तोष गांव के मुहाने पर खड़े थे. टैक्सी वाले को भाड़ा भी दे चुके थे.
Tosh Village Tour Blog – रात 8 बजे से कुछ ज्यादा का वक्त था. हम तोष गांव के मुहाने पर खड़े थे. टैक्सी वाले को भाड़ा देकर हम गांव के अंदर जा रहे थे. इजरायली शख्स भी हमारे साथ ही था. उन्होंने हमसे कहा कि उनके होटल से पर्वतों का शानदार नजारा दिखाई देता है. हम उनके साथ ही उनके होटल में चल दिए. वहां पर बाहर ही कुछ लोग जमघट लगाए बैठे थे और अपनी मस्ती में मस्त थे. हम उनके साथ भीतर गए और वहीं उनका एक छोटा सा इंटरव्यू भी किया. इस इंटरव्यू में उन्होंने हमसे पार्वती वैली में तीन बरस से अपने ठिकाने की वजह के बारे में बताया. उन्होंने बताया कि और कौन कौन से इजरायली वहां आना चाहते हैं. इस छोटी सी मुलाकात के बाद, हमने उसी होटल में रुकने का प्लान किया. हमने ओनर से कमरे के बारे में जानकारी ली लेकिन सभी कमरे बुक थे. ये सुनकर हमने इजरायली शख्स को अलविदा कहा और कमरे की तलाश में आगे बढ़ चले.
किस्मत से, इसी होटल के पीछे एक दूसरा होटल था और वहां हमें 500 रुपये के अमाउंट में एक कमरा मिल गया. कमरा ठीक ठाक था. उस समय सामने के व्यू का तो पता नहीं था सिर्फ रात गुजारने के लिए जगह की तलाश थी. हमारी ये तलाश यहां पहुंचकर पूरी हो चुकी थी. हमने कमरे में सामान सेट किया. फ्रेश हुए और फिर निकल चले तोष गांव के भ्रमण पर. रात को हमारा ये नाइट वॉक नालियों पर रखी तख्तियों, उबड़-खाबड़ रास्तों से होकर जा रहा था. दो दो फ्लैश लाइट ऑन करने के बाद भी कुछ नजर नहीं आ रहा था. दूर से गांव जगमगा रहा था लेकिन वहां पहुंचकर अंधियारे में डूबा नजर आया. हम घूम घामकर ऐसी जगह पहुंचे जहां कभी तोष गांव की परिधि हुआ करती थी. यही पुराना तोष गांव था लेकिन अब वह बहुत दूर तक फैल चुका है. यहां पुरानी शैली के घर आज भी बने हुए हैं. और हां, यहां उन्हीं ऋषि जमदग्नि का मंदिर है जिनका मंदिर हमने मलाणा गांव में देखा था. हां, यहां भी बाहरी लोगों को लेकर मंदिर से जुड़े वही नियम लागू हैं जो मलाणा में थे, यानि कि बाहरी लोग मंदिर छू नहीं सकते और अगर वे ऐसा करते हैं तो उन्हें जुर्माना देना होगा.
बहरहाल, हम यहां रुके. बीच में खुली जगह थी जहां बच्चे खेल रहे थे. अलाव के आगे हाथ सेंक रहे थे और वहां मंदिर के दाहिनी तरफ एक जगह लोग पूजा कर रहे थे. अब क्योंकि हमें भूख लगी थी इसलिए हमें किसी अच्छे रेस्टोरेंट की तलाश थी. पता कि तो लोगों ने कहा कि वहीं जसमीत ढाबा है, वहां आप भोजन कर सकते हैं. पूछ पूछकर हम बताई गई दिशा में आगे बढ़े. जसमीत ढाबे का बोर्ड तो बाहर ही लगा था लेकिन रेस्टोरेंट था अंदर जाकर. बैठे तो बेहद आराम का अहसास हुआ. संजू ने वहां अंडा करी ऑर्डर कर दी और मैंने दाल रोटी. चावल भी मंगा लिए थे हमने. लगभग 20 मिनट के बाद भोजन आना शुरू हुआ. क्या कमाल की थाली थी दोस्तों. दाल तो गजब की थी. संजू के बताए के हिसाब से अंडा करी भी शानदार थी. खा-पीकर हमने अंकल से अगली सुबह नाश्ते पर फिर से आने का वादा किया और चल दिए वापस अपने होटल पर.
यहां एक बात और जो मैं भूल गया, वो ये कि जसमीत भाई साहब कभी दिल्ली के बाशिंदे हुआ करते थे. पत्नी के मायके की विरासत मिली तो यहीं आकर बस गए. दिल्ली हमेशा के लिए छोड़कर. आराम से हैं, खुश हैं. मैंने पूछा कि बच्चे कैसे पढ़ते हैं तो उन्होंने बताया कि वे दोनों कुल्लू ही रहते हैं और वहीं रहकर पढ़ाई करते हैं. यही एक तकलीफ है पहाड़ों पर. रहने को तो रह लो लेकिन एजुकेशन और हेल्थ, ये दोनों सिस्टम आज भी आपको तड़पा देते हैं. और अगर जसमीत जी की तरह आप भी कोई कारोबार करते हैं जो माचिस की एक डिबिया लाने के लिए भी जो पापड़ बेलने पड़ते हैं कि पूछिए मत. सरकार ने सड़क भी खस्ताहाल कर देने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. कमाल है, होती क्यों हैं ये सरकारें? यही सवाल आने लगा था मन में.
अब हम होटल के लिए बढ़े. आते वक्त तो हम घूमकर आए थे लेकिन जाते वक्त एक नया रास्ता मिला जमदग्नि ऋषि के मंदिर के बगल से होकर सीधा हमारे होटल तक जाता था, लप्प से होटल पहुंच गए. वहां पर सामान सही किया, संजू तो तुरंत ही नींद के घेरे में चला गया, मैंने पूरा डेटा ट्रांसफर किया और फोन, कैमरा बैटरी चार्ज की, फिर सोया.
अगली सुबह तोष गांव में क्या क्या हुआ, ये जानिए हमारे अगले ब्लॉग में, आप हमारी हर अपडेट्स के लिए हमें सब्सक्राइब ज़रूर करें. तोष का विडियो देखने के लिए ऊपर दिए गए वीडियो पर क्लिक करें.
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