Shillong Peak Tour Guide : Laitkor Peak एयरफोर्स स्टेशन से होकर गुजरता है रास्ता, घूमने के लिए बदल चुका है नियम!
Shillong Peak Tour Guide – Shillong Peak एक ऐसी जगह है जहां से पूरा शिलॉन्ग शहर ( Shillong City ) दिखाई देता है. इस पॉइंट के बारे में सुना तो बहुत था लेकिन अचानक यहां जाने का प्रोग्राम बन जाएगा, ऐसा नहीं सोचा था. गौरव और मैंने, जब साथ घूमने का प्लान किया तो सबसे पहले हम शिलॉन्ग पीक के लिए ही निकले. मैं स्कूटी चला रहा था और गौरव पीछे बैठ गए.
Shillong Peak , शिलॉन्ग शहर से 10 किलोमीटर से ज्यादा दूरी पर है. यहां जाने के लिए आपको Laitkor Peak एयरफोर्स स्टेशन के अंदर से होकर गुजरना पड़ता है. हालांकि ये बात हमें नहीं पता थी. Shillong Peak के रास्ते में हम जैसे ही शहर से बाहर निकले, खुला वातवरण मानों हमारा वेलकम करने लगा था.
यहां मैंने देखा कि शिलॉन्ग जैसे शहर और आसपास कई फोर्सेस के मुख्यालय हैं. सीआरपीएफ, इंडियन आर्मी, एयरफोर्स और भी दूसरी कई फोर्स… शहर में रास्ता टू लेन ही है. सड़क संकरी होने की वजह से जाम बहुत लग जाता है यहां. हम स्कूटी पर थे, तो बचकर निकलते रहे.
आगे एक पॉइंट पर गूगल मैप हमें दाहिने मुड़ने के लिए बता रहा था लेकिन हम थोड़ा आगे बढ़ चुके थे. शिलॉन्ग पीक के लिए हमने कई लोगों से पूछा लेकिन यहां लगा कि न तो लोग हिन्दी जानते हैं और न अंग्रेजी ही. कम्युनिकेटिव लोग नहीं हैं शिलॉन्ग के… हम चकराते और दिमाग लगाते खुद ही वापस आए तो वह कट मिला जहां से Laitkor Peak के लिए रास्ता जा रहा था.
इस रास्ते पर आगे बढ़े तो खामोशी ने ध्यान खींचा. यहां कोई दूसरा नहीं था जो हमारी तरह मजे से घूमने निकला हो. रास्ते भर में सन्नाटा था. नीचे धूप की वजह से सर्दी कम थी लेकिन यहां जंगली वातावरण और पेड़ पौधों की वजह से सर्दी बढ़ चुकी थी. हम कई किलोमीटर आगे बढ़े. आगे हमें सैन्य वाहन दिखाई दिए.
कुछ एक जगह फोटो लेने के लिए कमाल का व्यू दिखा लेकिन हमने सोचा कि हम तो शिलॉन्ग पीक जा रहे हैं, वहीं से फोटो लेंगे. ये सोचकर आगे बढ़ते रहे. आगे पहुंचे तो पता चला कि Laitkor Peak Airforce Station के दरवाजे आम लोगों के लिए बंद हैं. कोरोना काल में ये रास्ता ऐसा बंद हुआ कि आजतक नहीं खुला. यहां बहुत निराशा हुई.
कई बार रिक्वेस्ट के बाद भी दरवाजा नहीं खुला. यहां हमें एक विशाल रडार दिखाई दिया. ऐसा रडार मैंने हिंडर एयरफोर्स स्टेशन में देखा था. हम बचपन में लोनी के पास एक गांव में खेल टूर्नामेंट के लिए गए थे, तब हमें वहा ऐसा ही विशालकाय रडार दिखाई दिया था.
शिलॉन्ग पीक घूमने की अधूरी ख्वाहिश लिए हम लौटने लगे थे. नीचे आए तो एक स्कूल के बाहर खड़ी वहां की बस में बैठे ड्राइवर से बात की. समस्या वही, हिन्दी आती नहीं, अंग्रेजी का भी पता नहीं… किसी ने बताया कि शिलॉन्ग पीक के लिए गांव के अंदर से एक रास्ता जाता है जो हमें एयरफोर्स स्टेशन के दूसरे दरवाजे पर लेकर जाएगा. वहां से एंट्री है.
ये सुनकर हमें स्कूटी दौड़ा दी. पूछते पूछते, एयरफोर्स स्टेशन के दूसरे दरवाजे पर पहुंचे. यहां दरवाजे पर खड़े सैनिक ने हमें वही बात कही, जो पिछले दरवाजे पर बताई गई थी. वहां से अब किसी और से पूछने का मन नहीं था. कन्फ्यूजन बढ़ता जा रहा था कि क्या करें और क्या न करें और लोग भी बिल्कुल कम्युनिकेटिव नहीं थे. वे क्या कह रहे थे, क्या सुन रहे थे, वही जानें..
अब हमने तय किया कि लौट चलते हैं वापस शिलॉन्ग की ओर… कमाल के रास्तों से हम वापस बढ़ चले शिलॉन्ग की ओर. यहां सुबह एक पॉइंट दिखा था जहां से शहर की दूर तक छटा दिखाई दे रही थी. हमारे लिए यही शिलॉन्ग पीक बन गया. हमने यहीं से शहर को देखा और फिर आ गए वापस पुलिस बाजार….