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झारखंड के इस जगह पर मछली मारने के लिए गांव वाले करते हैं इलेक्ट्रिक करंट का इस्तेमाल

Fish: जंगलों में रहने वाले लोग एक जमाने में किसी जानवर जैसा ही जीवन जीते थे. गुफाओं में रहते थे. कच्चे मांस-मछलियों का भक्षण करते थे. पेड़-पौधों की पत्तियों और छालों से तन ढक लेते थे. सबसे पहले उसने आग जलाना सीखा. आधुनिक युग में तकनीक और विज्ञान से भी दोस्ती कर ली है.

सारंडा के ग्रामीण भी पीछे नहीं रहे. नदी-नालों में मछली मारने में भी वे नये-नये प्रयोग करने लगे हैं. विज्ञान का सहारा लेने लगे हैं. यह जोखिम भरा है, तो इसका रोमांच भी अलग ही है. सारंडा के दोदारी, दुईया, अगरवां व अन्य सुदूरवर्ती गांवों में लोग अब पारंपरिक व पौराणिक तरीके से मछली नहीं मारते.

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इन्होंने वैज्ञानिक तरीके से विद्युत करंट या सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है. बिजली के खंभों से सिंगल फेज बिजली लेकर लंबे तार को नदी-नालों के किनारे ले जाते हैं. करंट प्रवाहित तार को एक पतले बांस के डंडे की मदद से नदी-नालों के पानी में करंट प्रवाहित करते हैं.

jharkhand villagers using electric current and solar plate battery to catch fish from rivers
jharkhand villagers using electric current and solar plate battery to catch fish from rivers

बिजली का झटका लगते ही मछली बेहोश होकर पानी के ऊपर आ जाती है. वहां मौजूद लोग आसानी से उसे पकड़ लेते हैं. इस प्रक्रिया से काफी संख्या में मछलियां तो पकड़ लेते हैं. करंट लगने का जोखिम भी रहता है, लेकिन राहत की बात यह है कि पानी में जहां तार डाला जाता है, वहीं कुछ क्षेत्रों में करंट का हल्का असर रहता है.

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इसका प्रभाव सिर्फ मछलियों पर ही पड़ता है. पानी के अंदर कुछ दूरी पर मछली पकड़ने के लिए मौजूद लोगों पर इसका कोई असर नहीं होता. इसी तरह सोलर प्लेट व बैट्री का इस्तेमाल करके भी लोग मछली मार रहे हैं. इसमें जोखिम थोड़ा कम होता है.

jharkhand villagers using electric current and solar plate battery to catch fish from rivers
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उल्लेखनीय है कि इस विधि से मछली मारना हमेशा जानलेवा साबित हो सकता है. ग्रामीणों को ऐसे तरीके अपनाने से बचना चाहिए. पारंपरिक व पौराणिक तरीके से ही मछली मारना चाहिए. थोड़ी-सी असावधानी बड़ी दुर्घटना को आमंत्रण दे सकती है.

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Komal Mishra

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